सहभागी बजट | 04 Mar 2021

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत के संदर्भ में सहभागी बजट के महत्त्व व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

प्रत्येक सरकारी प्रणाली में बजट आवंटन किसी भी कार्य को पूरा करने की दिशा में पहला कदम है। केंद्र और विभिन्न राज्यों की सरकारें प्रतिवर्ष अपना बजट पारित करती हैं, परंतु जो बजट हमारे लिये सबसे ज़्यादा मायने रखता है, वह है शहर या नगर पालिका का बजट।

वास्तव में केंद्र और राज्यों के बजट में शहरों के लिये अधिकांश आवंटन नगर पालिकाओं के बजट में चला जाता है, क्योंकि नगर पालिकाएँ ही सरकार की अधिकांश योजनाओं को लागू करती हैं।  

इसके अतिरिक्त विश्व भर में इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि बजट बनाने की प्रक्रिया में तथा सार्वजनिक कार्यों की निगरानी में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी के चलते बेहतर परिणामों के साथ-साथ लापरवाही तथा भ्रष्टाचार के मामलों में गिरावट देखने को मिलती है। 

इसे देखते हुए भारत में सहभागी बजट तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता है।

क्या है सहभागी बजट?

  • सहकारी या पार्टिसिपेटरी बजट की अवधारणा सर्वप्रथम ब्राज़ील के शहर पोर्टो एलेग्रे में वर्ष 1980 के दशक के मध्य में प्रस्तुत की गई थी। वर्तमान में यह किसी-न-किसी रूप में विश्व के हज़ारों शहरों में प्रचलित है।
  • यह अवधारणा सुनिश्चित करती है कि स्थानीय समुदायों की विविध आवश्यकताओं और अनुभवों को समझा जाए तथा स्थानीय निर्णय लेने में अधिक-से-अधिक लोगों के मतों को सुना जाए।
  • पार्टिसिपेटरी बजटिंग (PB) में स्थानीय समुदायों और उनकी सेवा करने वाले सार्वजनिक संस्थानों के बीच संबंधों को बदलने की महत्त्वपूर्ण क्षमता होती है।
  • भारत में सहभागी बजट का नेतृत्व वर्ष 2001 में बंगलूरू में ‘जनाग्रह’ (एक गैर-लाभकारी संस्था) द्वारा किया गया था, परंतु पुणे में यह और मज़बूती से लागू हुआ जहाँ बंगलूरू के अनुभव से प्रेरणा ली गई और इसे एक अधिक प्रतिबद्ध नेतृत्व प्राप्त हुआ।
  • वर्तमान में लगभग 4,500 से अधिक नगर पालिकाएँ, जिनमें 300 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं प्रतिवर्ष बजट सत्र के दौरान अपना बजट प्रस्तुत करती हैं।

सहभागी बजट के लाभ:  

  • शासन तक पहुँच: सहभागी बजट लोगों को यह महसूस कराता है कि सार्वजनिक प्रशासन में उनकी भागीदारी है और इस प्रकार यह जनता तथा सरकार के बीच विश्वास को मज़बूत करता है।  
    • इसके माध्यम से बच्चे, महिलाएँ, वरिष्ठ नागरिक और अन्य समूहों के लोग प्रशासन के समक्ष तर्कों और अपेक्षाओं के साथ अपने मामले को रखने में सक्षम होंगे तथा उन्हें पूरा भी कर सकेंगे।    
    • यह बजट के साथ-साथ समस्या-समाधान पर लक्षित, हाइपरलोकल फोकस की सुविधा प्रदान करता है।
  • सामुदायिक स्वामित्व: यह सार्वजनिक संपत्तियों और सुविधाओं के मामले में समुदायों में स्वामित्व को अधिक से अधिक बढ़ावा देगा, जिससे उनका बेहतर संरक्षण तथा रखरखाव सुनिश्चित  होगा।
    • स्थानीय स्तर पर यह समुदायों, निर्वाचित पार्षदों और शहर प्रशासन सभी के लिये एक सकारात्मक बदलाव होगा।
    • यह नागरिक आवश्यकताओं के सापेक्ष सार्वजनिक कार्यों की गलत प्राथमिकता के कारण उत्पन्न अक्षमताओं को संबोधित करता है।
  • निष्पक्षता को बढ़ावा: समुदायों के साथ सक्रिय भागीदारी समानता बढ़ाने और असमानताओं को दूर करने के लिये निर्णय लेने तथा सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन की सहभागी प्रक्रिया का अभिन्न अंग है।
    • अंत में यह सुदूर हिस्सों में (आखिरी मील तक) सार्वजनिक कार्यों के प्रति जवाबदेही में सुधार करता है (क्योंकि इसके तहत नागरिक बजट निष्पादन की निगरानी करेंगे)।   
  • सरकार और लोगों के बीच विश्वास में वृद्धि:  नागरिक बजट के तहत जारी निधियों का उपयोग करने के लिये वार्ड-स्तर के इंजीनियरों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं ताकि उनके द्वारा सार्वजनिक जन सुविधाओं (जैसे- स्ट्रीट लाइट्स को ठीक करना, फुटपाथों को चलने योग्य बनाना, पार्कों का सौंदर्यीकरण, हर शहरी गरीब बस्ती में एक नया शिशु देखभाल केंद्र या सार्वजनिक शौचालय बनाना) को सुधारने पर ध्यान दिया जा सके।   
    • यह लोगों के जीवन को बदल देगा और नागरिकों तथा सरकारों के बीच विश्वास को मज़बूत करने में सहायक होगा।

आगे की राह:  

  • नागरिक भागीदारी को बढ़ाना: एक सामान्य नागरिक के लिये बजट दस्तावेज़ को स्वयं पढ़ना और उसे समझना आसान नहीं है। वर्तमान में अधिकांश नगर पालिका कानून बजट में नागरिक भागीदारी या सार्वजनिक कार्यों और निविदाओं में पारदर्शिता की सुविधा नहीं प्रदान करते हैं।
    • अतः गली, मोहल्ले और वार्ड स्तर पर वास्तव में परिवर्तन लाने के लिये इन बजटों पर नागरिक और मीडिया की अधिक-से-अधिक भागीदारी सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है। 
    • यह शहरों में ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देने और समुदायों विशेषकर बच्चों, महिलाओं तथा शहरी गरीबों के जीवन में परिवर्तन का एक कारक बन सकता है।
  • मेरा शहर मेरा बजट अभियान का अनुकरण: इस अभियान की शुरुआत पहली बार वर्ष 2015 में की गई थी और बंगलूरू, मंगलुरु तथा विशाखापत्तनम जैसे शहरों में यह नगर निगमों, क्षेत्रीय समुदायों और जनाग्रह के बीच एक सहयोगी प्रयास के रूप में प्रगति कर रहा है।
    • इन शहरों में लगभग 80,000 से अधिक नागरिकों से सार्वजनिक शौचालय, फुटपाथ, कूड़े के ढेर, सड़कें और नालियों जैसे व्यापक मुद्दों यथा- सार्वजनिक मुद्दों पर 85,000 से अधिक बजट इनपुट प्राप्त किये गए हैं ।
    • लोगों से प्राप्त किये गए इन इनपुटों की समीक्षा की जाएगी और इन्हें शहर के बजट में शामिल किया जाएगा।

निष्कर्ष:

हालाँकि प्रतिवर्ष केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले बजट बहुत आशाजनक दिखाई देते हैं। परंतु उन्हें यह सुनिश्चित करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है कि इन योजनाओं और निधियों से नागरिक हितों से संबंधित अपेक्षित परिणाम प्राप्त हों। सहभागी बजट इस चुनौती से निपटने में सहायक हो सकता है। 

हालाँकि सहभागी बजट में समानता के विधान की ज़रूरतों को प्रभावी रूप से एकीकृत करने के लिये संस्थागत भागीदारी के साथ इस क्षेत्र में विश्लेषणों को बढ़ावा देने की आवश्यकता होगी।

अभ्यास प्रश्न:  हाल के वर्षों में शहरी क्षेत्रों की आबादी और प्रशासन की जटिलता में हो रही वृद्धि को देखते हुए शहरों में समुदायों तथा मीडिया को नगर पालिका बजट निर्माण एवं इसके आवंटन की प्रक्रिया में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।