संसद की भूमिका का संकुचन, कार्यवाही एवं कुछ सुझाव | 16 Sep 2020

यह संपादकीय विश्लेषण Parliament stifled, business, and a word of advice लेख पर आधारित है जिसे 5 सितंबर 2020 को PRS Blog में प्रकाशित किया गया था। यह लोकतंत्र में संसद की भूमिका के संकुचन का विश्लेषण करता है।

संदर्भ

14 सितंबर से जारी संसद का मानसून सत्र, कोरोना वायरस महामारी के दौरान विधायिका द्वारा विचारणीय मुद्दों का द्योतक है। विधि निर्माताओं और विधायिका में काम करने वाले कर्मचारियों की स्वास्थ्य सुरक्षा को बनाए रखते हुए ये निकाय लोकतंत्र में अपनी केंद्रीय भूमिका कैसे निभाते हैं? कई राज्यों ने बहुत कम सत्र आयोजित किये हैं - कुछ सिर्फ एक दिन के लिये आयोजित हुए हैं- जिसमें उन्होंने कई अध्यादेशों को मंज़ूर किया है और शायद ही पिछले कुछ महीनों में कार्यपालिका के किन्हीं भी कार्यों पर प्रश्न उठाए गए हैं। संसद शारीरिक दूरी की पालन करेगी, शून्य काल (जिसमें सदस्य अपने निर्वाचकों एवं व्यापक जनहित के मुद्दे उठाते हैं) को रद्द कर दिया गया है और प्रश्न काल (जिसमें मंत्रियों को सदस्यों द्वारा उठाये गए प्रश्नों का उत्तर देना होता है) को भी रद्द कर दिया गया है। सरकार के पास निर्णय लेने एवं विभिन्न सार्वजनिक कार्यों को करने का जनादेश होता है। यह विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है जो इस पर सवाल उठा सकती है और एक विशेष स्थिति में, यहाँ तक कि इसे परिवर्तित भी कर सकती है। विधायिका नियमित चुनावों के माध्यम से नागरिकों के प्रति जवाबदेह होती है और यदि इसके कानून एवं नीतियाँ जनता के लिये लाभकारी नहीं समझी जाती हैं तो इसे मतदान के माध्यम से हटाया जा सकता है। अंत में, संवैधानिक न्यायालयों से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि सभी कार्य संविधान की सीमाओं के भीतर किये गए हैं और विधायिका द्वारा बनाए गए कानून भी संविधानसम्मत हैं।

कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग का मामला

एक उदाहरण ब्रिटिश संसद के कार्यों और हमारी संसद के मध्य अंतरों का वर्णन करता है। जब एक कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग एप्लिकेशन के विचार की कल्पना की गई थी, तब ब्रिटेन की  मानवाधिकारों पर संयुक्त संसदीय समिति ने प्रस्तावों की जाँच की। मई की शुरुआत में प्रकाशित एक रिपोर्ट "मानवाधिकार और  COVID-19 पर सरकार की प्रतिक्रिया: डिज़िटल कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग" में, इसने सिफारिश की कि एक ऐप का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब इसे सक्षम बनाने के लिये एक विशिष्ट प्राथमिक कानून हो, और ऐसा कानून यह सुनिश्चित करे कि डेटा केवल COVID-19 के प्रसार को रोकने के सीमित उद्देश्य के लिये एकत्र किया गया है, डेटा को तृतीय-पक्ष के साथ साझा करने पर रोक लगाई जाए, डेटा को केवल एक केंद्रीय डेटाबेस में तभी अपलोड किया जाए जब व्यक्ति की कोरोना जाँच पॉज़िटिव हो अथवा पॉजिटिव होने का संदेह हो और डेटा संग्रहित करने के लिये समय सीमित किया जाए। इसका उत्तरदायित्व संभालने वाले मंत्री को प्रत्येक 21 दिनों में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की प्रभावकारिता के साथ-साथ डेटा सुरक्षा और गोपनीयता की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इसके विपरीत, भारत ने कार्यकारी निर्णय के माध्यम से आरोग्य सेतु एप की शुरुआत की, और इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की कि क्या यह अनिवार्य है (उदाहरण के लिये, हवाई यात्रा के दौरान, या मेट्रो रेल यात्रा के दौरान)। यह सब एक विशिष्ट कानून या किसी संसदीय निरीक्षण के बिना किया गया है। वास्तव में, संसदीय निरीक्षण पिछले छह महीनों के दौरान बड़े पैमाने पर हुआ ही नहीं हैं।

अधिसूचनाओं की बाढ़

175 दिनों के बाद संसद की बैठक होगी, आम चुनाव के हस्तक्षेप के बिना संसदीय बैठक न होने की यह सबसे लंबी अवधि है और छह महीने की संवैधानिक सीमा से बस थोड़ी ही कम है। संसदीय समितियों की लगभग चार महीने तक बैठक नहीं हुई थी, और उसके बाद केवल व्यक्तिगत बैठकें हुईं हैं जिनमें जोखिम और यात्रा प्रतिबंध को देखते हुए कम उपस्थिति दर्ज़ हुई है। वहीँ इसके विपरीत कई अन्य देशों में अधिवेशनों एवं समितियों दोनों ने सदस्यों को घर से ही इनमें भाग लेने में सक्षम बनाने के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाया है। इस अवधि में, 900 से अधिक केंद्रीय एवं  लगभग 6,000 राज्य सरकार की अधिसूचनाएँ जारी की गई हैं जो महामारी के प्रबंधन से संबंधित हैं। यह अन्य विषयों पर सूचनाओं के अतिरिक्त है। एक कामकाजी संसद या समितियों की अनुपस्थिति का अर्थ है कि सरकारी कार्यों की कोई जाँच या मार्गदर्शन नहीं किया गया है।

जब संसद की बैठक हो तो संसद को संकट के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया को देखना चाहिये। हालाँकि, ऐसा करना एक सतत् मार्गदर्शन तंत्र के बजाय पोस्टमार्टम विश्लेषण अधिक होगा। यह "कम कीमत पर खरीदें, उच्च कीमत पर बेचें" की पुरानी स्टॉक मार्केट की सलाह की तरह  है, जो कि निवेश निर्णय लेने में किसी का उचित मार्गदर्शन नहीं करती है। चीजें अनुरूप नहीं होती हैं तो किसी के पास नुकसान उठाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता है।

न्यायालयिक हस्तक्षेप

कई नीतिगत मुद्दों में न्यायिक हस्तक्षेप से संसदीय निरीक्षण की कमी को पूर्ण किया गया है। उदाहरण के लिये, सरकार द्वारा लॉकडाउन से संबंधित कार्यों और प्रवासियों को होने वाली कठिनाइयों पर संसद द्वारा प्रश्न उठाये जाने चाहिये थे। संसदीय मंचों की चर्चाओं से सरकार को देश भर में ज़मीनी हालात पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने और सरकार को उनके अनुरूप कार्य करने में सहायता मिलती। हालाँकि, इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाया गया, जो नीतिगत विकल्पों को संतुलित करने के लिये प्रथम स्थान नहीं है। हालाँकि न्यायालय के निर्देशों का पालन किया जाना चाहिये जो कार्यान्वयन के साथ विकासशील मुद्दों से निपटने के लिये आवश्यक कमियों को दूर करते हैं। एक और उदाहरण लेते हैं जिसमें न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों को सरकार को बकाया चुकाने की अवधि को सीमित करने का फैसला किया है और कैबिनेट के एक फैसले को खारिज कर दिया। यह एक नीतिगत मामला है जो दूरसंचार कंपनियों, उपभोक्ताओं (जो मूल्य वृद्धि या संभावित एकाधिकार होने से प्रभावित होते हैं), और बैंकों (जो दूरसंचार कंपनियों द्वारा डिफॉल्ट का सामना कर सकते हैं) के हितों को संतुलित करता है। इस मुद्दे को सरकार द्वारा संसद के निरीक्षण के साथ सबसे अच्छी तरह से निपटाया जा सकता है। हाँ लेकिन यदि यह अवैध ( या इसमें भ्रष्टाचार कहें) है, तो इस मामले को अदालतों द्वारा निपटान किया जाना चाहिये।

लघु सत्र, अधिक काम

संसद को अपनी संवैधानिक रूप से अनिवार्य भूमिका को पुनः प्राप्त करना चाहिये। इसके पास 18 दिन के छोटे सत्र में चर्चा करने के लिये बड़ी संख्या में मुद्दे हैं। दोनों सदन एक ही भौतिक स्थान का उपयोग करने के लिये पालियों में काम कर रहे हैं जो किसी दिन विस्तारित बैठक के दायरे को सीमित करता है। अंतिम सत्र के बाद की अवधि में, सरकार ने 11 अध्यादेश जारी किये हैं। इनमें से पाँच COVID-19 संकट और लॉकडाउन से संबंधित हैं: कर देने की की तारीखों का आगे बढ़ाने, नए दिवालिया मामलों पर स्थगन, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिये सुरक्षा, संसद सदस्यों एवं  मंत्रियों के वेतन और भत्तों में अस्थायी कटौती। अन्य छह में से, दो होम्योपैथी और चिकित्सा की भारतीय प्रणालियों को विनियमित करने वाली परिषदों के बोर्डों के अधिपत्य से संबंधित हैं, एक भारतीय रिज़र्व बैंक को सहकारी बैंकों को विनियमित करने की अनुमति देता है (एक समान विधेयक संसद में लंबित है), और तीन कृषि बाज़ारों से संबंधित हैं (अनुबंध खेती और मंडियों के बाहर व्यापार की अनुमति)। हालाँकि COVID-19 से संबंधित अध्यादेशों का एक अस्थायी अनुप्रयोग है, संसद को विस्तृत जाँच के लिये संबंधित समितियों को दीर्घकालिक निहितार्थ वाले (जैसे कि कृषि एवं बैंकिंग से संबंधित) मुद्दों को संदर्भित करना चाहिये।

मुख्य मुद्दे

पिछले छह महीनों में कई आयोजन हुए हैं, जिन पर गहन चर्चा की आवश्यकता है। इसमें कोरोना वायरस के प्रसार से निपटने और मृत्यु दर को सीमित करने के तरीके शामिल हैं और आने वाले महीनों में संभावित मार्ग जो विशेष कार्रवाई को निर्देशित कर सकते हैं। आर्थिक वृद्धि, जो पिछले दो वर्षों से घट रही है, इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसमें भारी गिरावट आई है। इससे रोज़गार सृजन, बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता और सरकारी वित्त के लिये दूरगामी प्रभाव पड़े हैं। सरकार के अनुपूरक बजट लाने की संभावना है; वास्तव में, जनवरी से बुनियादी पूर्वानुमानों में परिवर्तनों को देखते हुए केंद्रीय बजट पर एक नई दृष्टि डालने की आवश्यकता है। चीन सीमा पर स्थिति की भी चर्चा किये जाने की भी आवश्यकता है।

प्रश्न काल की अनुपस्थिति और एक लघु शून्य काल संसद सदस्यों को सरकार की जवाबदेही रखने और सार्वजनिक हित का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता को प्रतिबंधित करता है। संसद के सदस्यों को अन्य उपलब्ध विकल्पों का उपयोग यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नए कानूनों और व्यय प्रस्तावों को विस्तृत चर्चा के बाद ही पारित किया जाए। सांसदों का कर्तव्य है कि वे भारतीय नागरिकों के प्रति सरकार के काम की जाँच करने और नीति का मार्गदर्शन करने में अपनी भूमिका को पूर्ण करें। कोरोना वायरस की वजह से लघु सत्र एवं  बाधाओं के बावज़ूद, उन्हें ऐसा करने के लिये सीमित समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना चाहिये। उन्हें हमारे लोकतंत्र में अपनी सही भूमिका वापस लाने की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा प्रश्न: COVID-19 महामारी ने किस प्रकार लोकतंत्र में संसद की भूमिका को प्रभावित किया है? COVID-19 के परिप्रेक्ष्य में संसद के विधायी अधिकारों की महत्ता को बनाए रखने के लिये कुछ नवाचारी कदमों की चर्चा करें।