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पेरिस समझौता | 12 Nov 2019 | जैव विविधता और पर्यावरण

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। पेरिस समझौते और उसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। साथ ही इस समझौते से अलग होने के अमेरिका के निर्णय का भी उल्लेख किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

ट्रम्प प्रशासन ने औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र (UN) को सूचित करते हुए पेरिस समझौते से अलग होने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। ज्ञातव्य है कि प्रक्रिया पूरी होने पर अमेरिका इस समझौते से अलग होने वाला पहला देश बन जाएगा। राष्ट्रपति ट्रम्प के अनुसार अमेरिका (जो कि दुनिया में सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है) के इस निर्णय से सबसे अधिक फायदा देश के तेल, गैस और कोयला उद्योग को होगा। परंतु अमेरिका के इस निर्णय से विकास और पर्यावरण के बीच चुनाव का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है। वर्तमान में लगभग पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना कर रहा है। धरती का तापमान और अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है, मौसम बदल रहा है और ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि ट्रम्प प्रशासन के निर्णय से विश्व समुदाय के समक्ष जलवायु परिवर्तन के खतरे से लड़ने की चुनौती और ज़्यादा बढ़ गई है।

जलवायु परिवर्तन: एक वास्तविकता

जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती से इनकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान में यह दुनिया भर के सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है। बढ़ते समुद्री जल के स्तर और मौसम के बदलते पैटर्न ने हज़ारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। दुनियाभर के तमाम प्रयासों के बावजूद भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि जारी है और विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आने वाले कुछ वर्षों में पृथ्वी की सतह का औसत तापमान काफी तेज़ी से बढ़ेगा एवं समय के साथ इसके दुष्प्रभाव भी सामने आएंगे। ध्यातव्य है कि जलवायु परिवर्तन आधुनिक समाज के लिये एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि पर्यावरण परिवर्तन से खाद्य उत्पादन को खतरा हो सकता है, समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है और प्राकृतिक घटनाएँ तेज़ी से सामने आ सकती हैं। आँकड़े बताते हैं कि 1980 से 2011 के बीच बाढ़ के कारण दुनियाभर के तकरीबन पाँच मिलियन लोग प्रभावित हुए और विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ा। कई देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र जैसे- कृषि और पर्यटन भी प्रभावित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त विश्व के कुछ हिस्सों में अनवरत सूखे की स्थिति बनती जा रही है और वे पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में ज़ीरो डे की स्थिति इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है। मौसम के बदलते पैटर्न ने उन स्थानों के स्थानीय वातावरण को भी बदल दिया है जहाँ जीव-जंतु और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, जिसके कारण कई जानवर या तो पलायन कर रहे हैं या विलुप्ति की कगार पर आ गए हैं। सूखे और मौसम के बदलते पैटर्न ने दुनियाभर के किसानों को भी काफी प्रभावित किया है और वे अपनी फसलों को बदलने के लिये मज़बूर हो गए हैं। जलवायु परिवर्तन आम लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि सूखा, खराब हवा और पानी की खराब गुणवत्ता के कारण तटीय और निचले इलाकों में खतरनाक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही है। संयुक्त राष्ट्र (UN) का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के इन खतरों के खिलाफ लगातार कार्यवाही किये बिना इनसे निपटना संभव नहीं है।

क्या है पेरिस समझौता?

पेरिस समझौते का इतिहास

पेरिस समझौते के प्रमुख बिंदु

क्यों ज़रूरी है पेरिस समझौता?

पेरिस समझौता बनाम क्योटो प्रोटोकॉल

पेरिस समझौते की सीमाएँ

अमेरिका के समझौते से बाहर होने के मायने

न्यूज़ीलैंड का उदाहरण- ज़ीरो कार्बन बिल

हाल ही में न्यूज़ीलैंड ने वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को पूर्णतः समाप्त करने के उद्देश्य हेतु एक "ज़ीरो कार्बन" बिल पारित किया है। ध्यातव्य है कि न्यूज़ीलैंड ने पेरिस जलवायु समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को स्पष्ट करते हुए यह कदम उठाया है।

पेरिस समझौता और भारत

आगे की राह

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिये। इस संबंध में पेरिस समझौता काफी महत्त्वपूर्ण और लाभदायक उपकरण है, हालाँकि इसमें अभी कुछ कमियाँ हैं जिन्हें सभी पक्षों के साथ मिलकर दूर किया जा सकता है एवं इस समझौते को और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।

प्रश्न: पेरिस समझौते की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए अमेरिका के अलगाव के निर्णय की चर्चा कीजिये।