बाह्य अंतरिक्ष की भू-रणनीति | 06 Oct 2021

यह एडिटोरियल ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘India and the geopolitics of the moon’’ और ‘‘The growing strategic importance of outer space’’ लेखों पर आधारित है। इसमें बाह्य अंतरिक्ष संबंधी भू-राजनीति और भारत पर इसके प्रभाव के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अमेरिका एवं अन्य ‘क्वाड’ (QUAD) भागीदारों—ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ बाह्य अंतरिक्ष सहयोग हेतु नए अवसरों का पता लगाने के लिये भारत ने स्वयं को अधिक सक्रीय रूप से संलग्न किया है। बाह्य अंतरिक्ष तेज़ी से उभरता हुआ एक नया क्षेत्र है, जहाँ हाल के वर्षों में अधिकाधिक वाणिज्य एवं प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति नज़र आ रही है।

बाह्य अंतरिक्ष में भारत की नई रणनीतिक अभिरुचि दो प्रमुख रुझानों को चिह्नित करने पर आधारित है। पहला, 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में उभरती प्रौद्योगिकियों की केंद्रीयता; और दूसरा, बाह्य अंतरिक्ष में शांति एवं स्थिरता के लिये नए नियमों के निर्धारण की तात्कालिकता।

बाह्य अंतरिक्ष की भू-रणनीति

  • बाह्य अंतरिक्ष में वाणिज्यिक पहलू में प्रायः पारंपरिक रूप से अमेरिका का दबदबा रहा है। रूस के साथ अमेरिका की सैन्य प्रतिस्पर्द्धा ने सुरक्षा क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किये हैं। 
    • नागरिक और सैन्य दोनों ही क्षेत्रों में एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में चीन का उदय ‘एस्ट्रोपॉलिटिक्स’ (Astropolitics) यानी ‘खगोलीय राजनीति’ को एक नया आकार दे रहा है।
  • चीन की अंतरिक्ष क्षमताओं के नाटकीय विस्तार एवं बाह्य अंतरिक्ष पर अपना दबदबा बढ़ाने की उसकी महत्त्वाकांक्षा ने विश्व के लोकतांत्रिक देशों को अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के साथ-साथ अंतरिक्ष में एक संवहनीय व्यवस्था को बढ़ावा देने हेतु एक साथ आने की नई तात्कालिकता उत्पन्न की है।

भारत के लिये इसका महत्त्व 

  • अंतरिक्ष क्षेत्र देश की रक्षा व्यवस्था की संभावित चौथी शाखा के रूप में उभर रहा है। 
  • अमेरिका, रूस और चीन पहले से ही एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनने की राह पर अग्रसर हैं, इसलिये भारत को उभरती सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिये स्वयं को उपयुक्त रूप से तैयार करने की आवश्यकता होगी।
  • गौरतलब है कि प्रायः एक अंतरिक्ष शक्ति देश में शत्रुओं या प्रतिस्पर्द्धियों को अंतरिक्ष के उपयोग से वंचित करते हुए अपने हित में अंतरिक्ष का उपयोग करने की क्षमता होती है। 
    • भारत के पास पहले से ही अंतरिक्ष का उपयोग करने की उल्लेखनीय क्षमता मौजूद है। लेकिन किसी प्रतिरोधी को अंतरिक्ष के उपयोग से वंचित कर सकने की उसकी क्षमता अभी स्वाभाविक रूप से नगण्य ही है।
    • जहाँ तक कृत्रिम उपग्रहों (Satellites) की बात है, तो भारत के पास कुछ ही सैन्य उपग्रह मौजूद हैं, जबकि देश में 40 से अधिक नागरिक उपग्रहों मौजूद हैं। भारत का पहला समर्पित सैन्य उपग्रह वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था।
  • हालाँकि, भारत ने अंतरिक्ष शक्ति बनने की राह में कुछ प्रगति अवश्य की है। 
    • हाल ही में आयोजित ‘मिशन शक्ति’ ने शत्रुओं के उपग्रहों को निशाना बना सकने की भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया है।
    • नवस्थापित ’रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी’ (Defence Space Agency-DSA) को रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (DSRO) का सहयोग प्राप्त होगा, जिसे ‘प्रतिद्वंद्वी की अंतरिक्ष क्षमता को कमतर करने, बाधित करने या नष्ट करने’ के लिये आयुध निर्माण का कार्य सौंपा गया है।  

बाह्य अंतरिक्ष भू-राजनीति से संबद्ध समस्याएँ

  • अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण: अंतरिक्ष का सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण बुनियादी रूप से रचनात्मक वाणिज्यिक एवं वैज्ञानिक परियोजनाओं के विपरीत है। अंतरिक्ष में युद्ध की स्थिति शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष में तैनात प्रणालियों के रखरखाव के लिये आवश्यक अंतर्निहित सहयोग को नष्ट कर देगी।  
    • इन तथ्यों के बावजूद, बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण संबंधी में लगातार वृद्धि हुई है।
  • अंतरिक्ष मलबे की समस्या: मिसाइल द्वारा नष्ट किया गया कोई भी उपग्रह प्रायः कई छोटे टुकड़ों में विखंडित हो जाता है, जो कि अंतरिक्ष मलबे में वृद्धि करता है। अंतरिक्ष में मुक्त रूप से तैरते हुए ये मलबे परिचालित उपग्रहों के लिये संभावित खतरा उत्पन्न करते हैं और इनके कारण उपग्रह वस्तुतः निष्क्रिय या नष्ट भी हो सकते हैं। 
    • विभिन्न देशों द्वारा अधिकाधिक उपग्रहों को लॉन्च किये जाने साथ, जहाँ उनमें से प्रत्येक रणनीतिक या व्यावसायिक महत्त्व रखते हैं, भविष्य में अंतरिक्ष मलबा एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण की प्रतिस्पर्द्धा: ‘स्पेस माइनिंग’ यानी अंतरिक्ष अन्वेषण को लेकर चल रही मौजूदा प्रतिस्पर्द्धा संघर्ष और सहयोग के एक नए युग की शुरुआत करेगी।  
    • यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार, वर्ष 2040 तक वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग लगभग 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का होगा।
  • ‘मून रश’ (Moon Rush): चंद्रमा पर जल और ‘पीक्स ऑफ एटरनल लाइट’ (Peaks of Eternal Light) की खोज के बाद चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर लक्षित ‘मून रश’ एक नई परिघटना ही बन गई है। उदाहरण के लिये:   
    • हाल ही में चीन के चांग'ई 4 (Chang’e 4) ने दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के अंधेरे हिस्से में वॉन कर्मन क्रेटर (Von Karman crater) में सॉफ्ट लैंडिंग की।
    • अमेरिका के लूनर प्रोग्राम का लक्ष्य अगले दशक में एक बार फिर चंद्रमा पर मानव को भेजना है।
    • नासा भी मुख्यतः दक्षिणी ध्रुव पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है और यदि यह अभियान सफल होता है, तो यह दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला पहला मानव दल होगा।
    • जेफ़ बेज़ोस (अमेज़न कंपनी के मालिक) ने ‘ब्लू मून प्रोजेक्ट’ का अनावरण किया है, जिसके तहत अगले कुछ वर्षों में महिलाओं और पुरुषों को चंद्रमा पर भेजने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस’ (SSA) में सभी वस्तुओं- प्राकृतिक (उल्कापिंड) और मानव-निर्मित (उपग्रह) की गति की निगरानी करना और अंतरिक्ष के मौसम पर नज़र रखना शामिल है।  
    • वर्तमान समय में अंतरिक्ष हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है और अंतरिक्ष-आधारित संचार तथा पृथ्वी अवलोकन में किसी भी व्यवधान के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

‘स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस’ (SSA)

  • पृथ्वी की कक्षा में हज़ारों पिंड मौजूद हैं, जो उपग्रहों और प्रक्षेपणों के लिये संभावित खतरा उत्पन्न करते हैं। ‘स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस’ (SSA) का अर्थ पृथ्वी की कक्षा में मौजूद पिंडों की निगरानी करना और अनुमान लगाना कि वे किसी भी नियत समय पर कहाँ होंगे।

भारत के बाह्य अंतरिक्ष अवसरों की संभावनाएँ

  • भारत, अंतरिक्ष क्षेत्र में सक्रीय रूप से संलग्न है, जिसने बीते दशकों में उल्लेखनीय अंतरिक्ष क्षमताओं का विकास किया है। वहीं अमेरिका स्वीकार करता है कि वह अंतरिक्ष व्यवस्था को एकतरफा परिभाषित नहीं करता है और इसलिये वह नए भागीदारों की तलाश कर रहा है। 
    • वाशिंगटन में जारी भारत-अमेरिका संयुक्त बयान में ‘स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस समझौता ज्ञापन’ को इस वर्ष के अंत तक अंतिम रूप देने की योजना पर प्रकाश डाला गया है, जो बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक संवहनीयता को सुनिश्चित करने की दिशा में डेटा और सेवाओं को साझा करने में मदद करेगा।
  • ‘स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस’ पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग समुद्री क्षेत्र जागरूकता पर संपन्न समझौतों के ही समान है, जो विभिन्न महासागरीय मेट्रिक्स पर जानकारी साझा करने की सुविधा प्रदान करते हैं। 
  • ‘क्वाड' द्वारा स्थापित नया अंतरिक्ष कार्यसमूह सहयोग के नए अवसरों की पहचान करेगा और जलवायु परिवर्तन की निगरानी, ​​​​आपदा प्रतिक्रिया एवं तत्परता, महासागरों एवं समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग और साझा क्षेत्रों में चुनौतियों पर अनुक्रिया जैसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये उपग्रह डेटा की साझेदारी सुनिश्चित करेगा।   
    • क्वाड नेताओं ने "बाह्य अंतरिक्ष के सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये नियमों, मानदंडों, दिशानिर्देशों और सिद्धांतों पर परामर्श करने’ के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।

आगे की राह

  • सार्वजनिक और निजी संस्थानों का आपसी सहयोग: भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के नियामक, वाणिज्यिक और वैज्ञानिक अनुसंधान तत्त्वों को संरचनात्मक रूप से अलग-अलग करने की आवश्यकता है।  
    • अंतरिक्ष अनुसंधान एवं विकास पर वित्तपोषण को बढ़ाया जाना चाहिये और इसरो तथा निजी अनुसंधान संस्थानों को साथ मिलकर कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • इसके साथ ही, एक स्वतंत्र नियामक स्थापित किये जाने की आवश्यकता है जो इसरो एवं नए अंतरिक्ष ऑपरेटरों को एकसमान अवसर प्रदान करते हुए उनका नियंत्रण कर सके।
  • एक सुदृढ़ नियामक ढाँचे की आवश्यकता: अपनी अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने हेतु भारत को एक सुदृढ़ नियामक ढाँचे का भी निर्माण करना चाहिये।  
    • भारत को वर्तमान अंतरिक्ष व्यवस्था के लिये उभरती चुनौतियों पर भी कड़ी नज़र रखनी चाहिये तथा बाह्य अंतरिक्ष क्षेत्र की प्रकृति के विषय में अपनी पूर्ववर्ती राजनीतिक धारणाओं की समीक्षा करनी चाहिये, साथ ही नए वैश्विक मानदंडों के विकास में योगदान करना चाहिये, जो बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) के मूल सार को सशक्त करेंगे।
  • अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की प्रभावी ढंग से रक्षा करने के लिये भारत के पास मलबे एवं अंतरिक्ष यान से लेकर आकाशीय पिंडों तक सभी खगोलीय निकायों को ट्रैक करने की सटीक क्षमता मौजूद होनी चाहिये।  
    • चूँकि सटीक ट्रैकिंग ही अंतरिक्ष में लगभग सभी आवश्यक गतिविधियों का आधार है, इसलिये इस महत्त्वपूर्ण क्षमता को स्वदेशी रूप से विकसित किया जाना चाहिये।
  • अंतरिक्ष रक्षा की प्रभावकारिता के लिये भारत को विभिन्न प्रकार के अंतरिक्ष आयुधों (भौतिक, इलेक्ट्रॉनिक और साइबर) के मामले में एक न्यूनतम और विश्वसनीय क्षमता हासिल करने की आवश्यकता है।  

निष्कर्ष

बाह्य अंतरिक्ष क्षेत्र की चुनौतियों और अवसरों के व्यापक स्तर को देखते हुए तात्कालिक और व्यापक सुधार की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति उच्चतम राजनीतिक स्तर से ही की जा सकती है। वर्ष 2015 में हिंद महासागर पर प्रधानमंत्री के संभाषण ने समुद्री मामलों पर राष्ट्रीय ध्यान को केंद्रित किया था। भारत को बाह्य अंतरिक्ष के मामले में भी वैसे ही हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘बाह्य अंतरिक्ष किसी भी देश की रक्षा व्यवस्था की संभावित चौथी शाखा के रूप में उभर रहा है।’ चर्चा कीजिये।