एक बेहतर जल प्रबंधन की आवश्यकता और महत्त्व | 07 Oct 2017

संदर्भ

कहा गया है कि जल ही जीवन है। जल प्रकृति के सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों में से एक है। कहने को तो पृथ्वी चारों ओर से पानी से ही घिरी है लेकिन मात्र 2.5% पानी ही प्राकृतिक स्रोतों- नदी, तालाब, कुओं और बावड़ियों से मिलता है, जबकि आधा प्रतिशत भूजल भंडारण है। सर्वाधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि भारत जल संकट वाले देशों की कतार में आगे खड़ा है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों  में रह रहे करोड़ों लोग ज़बरदस्त जल संकट का सामना कर रहे हैं और दूषित जल का उपयोग करने को अभिशप्त हैं। ऐसे में बेहतर जल प्रबंधन से ही जल संकट से बचाव और संरक्षण किया जा सकता है।

भारत में प्रभावी जल प्रबंधन की ज़रूरत क्यों?

  • भारत में भी वही तमाम समस्याएँ हैं जिनमें पानी की बचत कम, बर्बादी ज़्यादा है। यह भी सच्चाई है कि बढ़ती आबादी का दबाव, प्रकृति से छेड़छाड़ और कुप्रबंधन भी जल संकट का एक महत्त्वपूर्ण कारण है।
  • पिछले कुछ सालों से अनियमित मानसून और वर्षा ने भी जल संकट और बढ़ा दिया है। इस संकट ने जल संरक्षण के लिये कई राज्यों की सरकारों को परंपरागत तरीकों को अपनाने के लिये मज़बूर कर दिया है।
  • भारत में तीस प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों में रहती है। आवास और शहरी विकास मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि देश के लगभग दो सौ शहरों में जल और बेकार पड़े पानी के उचित प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • जल संसाधन मंत्रालय का मानना है कि वर्तमान में जल प्रबंधन की चुनौतियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। सीमित जल संसाधन को कृषि, नगर निकायों और पर्यावरणीय उपयोग के लिये मांग, गुणवत्तापूर्ण जल और आपूर्ति के बीच समन्वय की ज़रूरत है।
  • जल प्रबन्धन को बेहतर बनाने में राष्ट्रीय जल नीतियों की अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यद्यपि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकि है और हम उन बिन्दुओं पर भी चर्चा करेंगे, लेकिन पहले एक नज़र दौड़ातें हैं जल-नीतियों के माध्यम से अब तक हुई प्रगति पर।

जल नीतियों का महत्त्व

  • दिनों-दिन गंभीर होते जल संकट को देखते हुए पिछले 70 सालों में तीन राष्ट्रीय जल नीतियाँ बनाई गईं। पहली नीति 1987 में बनी, जबकि 2002 में दूसरी और 2012 में तीसरी जल नीति बनी। इसके अलावा 14 राज्‍यों ने अपनी-अपनी जलनीतियाँ बना ली हैं। बाकी राज्य तैयार करने की प्रक्रिया में हैं।
  • राष्ट्रीय जल नीति में "जल को एक प्राकृतिक संसाधन” मानते हुए इसे जीवन, जीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है। नीति में जल के उपयोग और आवंटन में समानता तथा सामाजिक न्याय के नियमों को अपनाए जाने की बात कही गई है।
  • जल नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि खाद्य सुरक्षा, जैविक तथा समान और स्थायी विकास के लिये राज्य सरकारों को सार्वजनिक धरोहर के सिद्धांत के अनुसार सामुदायिक संसाधन के रूप में जल का प्रबंधन करना चाहिये।

आगे की राह

  • विदित हो कि इज़राइल के मुकाबले भारत में जल की उपलब्धता पर्याप्त है। लेकिन वहाँ का जल प्रबंधन हमसे कहीं ज़्यादा बेहतर है। इज़राइल में खेती, उद्योग, सिंचाई आदि कार्यों में रिसाइकिल्ड जल का उपयोग अधिक होता है और यही कारण है कि इज़राइल के लोगों को पानी संबंधी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है। हम इज़राइल से काफी कुछ सीख सकते हैं।
  • आज जल संकट का स्वरूप तेज़ी से बदल रहा है, ऐसे में एक नई जल नीति बनाई जानी चाहिये। इसमें हर ज़रूरत के लिये पर्याप्त जल की उपलब्धता और जल को प्रदूषित करने वाले को कड़ी सज़ा का प्रावधान होना चाहिये।
  • यद्यपि जल से संबंधित नीति या कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है, फिर भी जल संबंधी सामान्य सिद्धातों को लागू करने के लिये  व्यापक राष्ट्रीय जल नीति तैयार करना समय की मांग है।
  • जल को समवर्ती सूची का विषय बनाना भी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। जल के समवर्ती सूची में आने से बदलाव यह होगा कि केन्द्र, जल संबंधी जो भी कानून बनाएगा, उसे मानना राज्य सरकारों की बाध्यता होगी। केन्द्रीय जल नीति हो या जल कानून, वे पूरे देश में एक समान लागू होंगे।
  • हालाँकि, वर्तमान परिस्थितियों में जल को समवर्ती सूची में डालना एक पश्चगामी कदम हो सकता है, क्योंकि आज जहाँ हम संघवाद और प्रशासन के विकेन्द्रीकरण पर जोर दे रहें हैं, वहाँ जल का केन्द्रीकरण संविधान के प्रगतिवादी सिद्धांत के विरुद्ध होगा।

निष्कर्ष

  • जल ही जीवन है अर्थात् जल जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। जल के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक जल रिपोर्ट 2006 में कहा था कि “हमारी धरती पर हर किसी के लिये पर्याप्त पानी है लेकिन फिर भी जल संकट बरकरार है। इसका कारण कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, उचित संस्थानों की कमी, नौकरशाही की जड़ता और मानव क्षमता एवं भौतिक बुनियादी ढाँचे में निवेश की कमी है”।
  • सरकार को चाहिये कि राज्यों से विचार-विमर्श के बाद तुरंत एक ऐसी राष्ट्रीय जल नीति का निर्माण करे, जो भारत में भूजल के अत्यधिक दोहन, जल के बँटवारे से संबंधित विवादों और जल को लेकर पर्यावरणीय एवं सामाजिक चिंताओं का समाधान प्रस्तुत कर सके।
  • जहाँ तक जल को समवर्ती सूची में शामिल करने का सवाल है तो ज़रूरी नहीं है कि यह संघवाद के मूल्यों के खिलाफ़ हो, बशर्ते यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहे।