राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक | 05 Aug 2019

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण शामिल है। इस आलेख में एनएमसी विधेयक तथा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की चर्चा की गई है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में संसद द्वारा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, 2019 को पारित कर दिया गया है। इस विधेयक के माध्यम से एक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) का गठन किया जाएगा। यह आयोग मेडिकल शिक्षा के विनियमन हेतु प्रमुख इकाई के रूप में कार्य करेगा। इसके अतिरिक्त एनएमसी भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) के अधिकार एवं कार्यों को भी समाहित कर लेगी, साथ ही एनएमसी भारत की चिकित्सा शिक्षा एवं चिकित्सा तंत्र का विनियमन तथा इसमें सुधार के लिये भी करेगी।

भारतीय चिकित्सा परिषद को लेकर मुद्दे

भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के अंतर्गत भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) का गठन किया गया था। यह परिषद एनएमसी के प्रभाव में आने से पूर्व तक चिकित्सा शिक्षा तथा चिकित्सा तंत्र के विनियमन के लिये प्रमुख इकाई है।

  • इसके गठन से अब तक एमसीआई पर उत्तरदायित्त्व, भ्रष्टाचार और इसके संगठन तथा विनियमन में इसकी भूमिका को लेकर कई मुद्दे सामने आते रहे हैं।
    • वर्ष 2009 में यशपाल समिति एवं राष्ट्रीय ज्ञान आयोग पहले ही चिकित्सा शिक्षा तथा चिकित्सा तंत्र को पृथक विनियम ढाँचे के अंतर्गत लाने की सिफारिश कर चुके हैं।
    • एमसीआई एक निर्वाचित इकाई है जिसे स्वयं चिकित्सकों द्वारा चुना जाता है। जो हितों के टकराव की स्थिति उत्पन्न करती है।
    • एमसीआई में प्रमुख रूप से डॉक्टरों का ही प्रभुत्त्व होता है। किंतु दीर्घ अवधि में चिकित्सा शिक्षा में विविधता आई है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि एमसीआई में सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, समाजिक क्षेत्र की समझ रखने वालों तथा स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित आर्थिक विश्लेषकों को भी शामिल किया जाए।
    • ब्रिटेन की सामान्य चिकित्सा परिषद (General Medical Council) जो भारत की एमसीआई के समकक्ष है, का गठन 12 चिकित्सकों तथा 12 अन्य सदस्यों से होता है। ये अन्य सदस्य सामुदायिक स्वास्थ्य के सदस्य तथा स्थानीय सरकार के अधिकारी होते हैं।
    • एमसीआई के नियमों के अनुसार, नए कॉलेज के गठन से पूर्व 25 बार उसके निरीक्षण की आवश्यकता होती है और इस प्रकार की स्थिति इंस्पेक्टर राज को जन्म देती है।

एनएमसी विधेयक की विशेषताएँ

  • यह विधेयक केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के गठन का प्रावधान करता है तथा राज्यों को भी तीन वर्ष के भीतर राज्य चिकित्सा आयोग के गठन का निर्देश देता है।
  • एनएमसी में आंशिक रूप से केंद्र सरकार द्वारा नामित 25 सदस्य शामिल होंगे।
  • एनएमसी निम्नलिखित दायित्वों का निर्वहन करेगा-
    • चिकित्सा संस्थानों और चिकित्सा पेशेवरों को विनियमित करना।
    • स्वास्थ्य संबंधी मानव संसाधनों और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकताओं का आकलन करना।
    • राज्य चिकित्सा आयोगों द्वारा विधेयक के विभिन्न प्रावधानों को लागू करवाना
    • निजी चिकित्सा संस्थानों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50% तक फीस के निर्धारण के लिये दिशा निर्देश तैयार करना।
  • विधेयक एनएमसी की देख-रेख में स्वायत्तशासी बोर्ड के गठन का प्रावधान करता है-
    • स्नातक चिकित्सा शिक्षा बोर्ड (UGMEB) तथा स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा बोर्ड (PGMEB): ये बोर्ड स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर चिकित्सा योग्यता के मानक, पाठ्यक्रम, दिशा निर्देश और मान्यता प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार होंगे।
    • चिकित्सा मूल्यांकन एवं रेटिंग बोर्ड (MARB): यह बोर्ड UGMEB तथा PGMEB द्वारा निर्धारित मानकों को लागू करने में विफल चिकित्सा संस्थानों पर मौद्रिक दंड लगाने का कार्य करेगा। साथ ही यह बोर्ड सीटों की संख्या बढ़ाने, नए स्नातकोत्तर कोर्स आरंभ करने तथा नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिये भी अनुमति देगा।
    • नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड: यह सभी लाइसेंस प्राप्त चिकित्सकों के एक राष्ट्रीय रजिस्टर का निर्माण करेगा तथा संबंधित संस्थानों में पेशेवर आचरण को भी विनियमित करेगा।
  • सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता: विधेयक के अंतर्गत एनएमसी चिकित्सा क्षेत्र के लिये आधुनिक चिकित्सा पेशे से जुड़े कुछ मध्यम स्तर के चिकित्सकों को सीमित लाइसेंस दे सकता है। ये मध्यम स्तर के चिकित्सक कुछ मामलों में प्राथमिक और निवारक स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित सेवाएँ दे सकते हैं।
  • योग्यता परीक्षा: विनियमित सभी मेडिकल संस्थानों में स्नातक और स्नातकोत्तर की मेडिकल शिक्षा में प्रवेश के लिये एक समान राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) होगी। इस विधेयक में NEXT (National Exit Test) नाम से एक परीक्षा का प्रस्ताव दिया गया है। NEXT परीक्षा अंडर ग्रेजुएट कोर्स के अंतिम वर्ष में ली जाएगी। इसके माध्यम से अंडर ग्रेजुएट कोर्स के पूर्ण होने के पश्चात् विद्यार्थी को प्रैक्टिस करने के लिये लाइसेंस प्राप्त हो सकेगा।

राष्ट्रीय चिकित्सा विधेयक, 2019 के लाभ

  • एनएमसी के पास विभिन्न बीमारियों अनुसार विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करने की क्षमता है, अर्थात् यदि किसी बीमारी की व्यापकता अधिक है तो उससे निपटने के लिये उसी अनुपात में उस क्षेत्र के चिकित्सकों को बढ़ाने की क्षमता है। उदाहरण के लिये ब्रिटेन में सरकार निर्धारित करती है कि किस क्षेत्र में कितने चिकित्सकों की आवश्यकता है। सरकार के निर्देश के अनुसार ब्रिटेन की चिकित्सा परिषद इसके आदेश को लागू करती है। लेकिन वर्तमान में एमसीआई स्वायत्त रूप से कार्य करती है। एनएमसी इस अंतराल को भरने में सहायक हो सकता है।
  • NEET एवं NEXT जैसी योग्यता परीक्षाओं के माध्यम से एनएमसी सक्षमता और कौशल के मानक में एकरूपता ला सकता है। यह कई परीक्षाओं के भार को कम करेगा साथ ही विद्यार्थियों में विज्ञान के न्यूनतम स्तर को भी निर्धारित करेगा। इसके अतिरिक्त सिर्फ उन विद्यार्थियों जो कि योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण करके आए हैं, के प्रवेश को सुनिश्चित करके भ्रष्टाचार को भी कम करेगा।
  • राज्य चिकित्सा आयोग एक शिकायत निवारण तंत्र के रूप में भी कार्य करेगा। इस आयोग के समक्ष किसी भी चिकित्सक के पेशेवर अथवा नैतिक कदाचार के लिये शिकायत की जा सकेगी। इस प्रकार यह मरीज़ के हितों को सुरक्षित करेगा तथा चिकित्सीय सेवाओं के वाणिज्यीकरण के नकारात्मक प्रभावों को भी रोकेगा।
  • चिकित्सकीय शिक्षा हेतु विभेदकारी लागत समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को लाभ पहुँचा सकती है क्योंकि निजी चिकित्सा संस्थानों एवं डीम्ड विश्वविद्यालयों की 50 प्रतिशत सीटों पर शुल्क का अंतिम निर्णय एनएमसी का होगा।
  • एनएमसी नवाचार को प्रोत्साहित करने तथा अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये मेडिकल कॉलेजों में अनुसंधान हेतु एक पूर्वापेक्षित नियम बना सकता है।

आशंकाएँ

  • एनएमसी में कुछ सदस्यों को सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। ये सदस्य आयोग में पक्षपात तथा नौकरशाही को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली व्यापक विवेकाधीन शक्तियाँ एनएमसी की जवाबदेही को कम कर सकती हैं तथा इसे एक सलाहकारी निकाय बना सकती है।
  • एनएमसी विधेयक 3.5 लाख गैर-चिकित्सकीय लोगों को आधुनिक चिकित्सा के लिये लाइसेंस प्रदान करता है। इससे चिकित्सा क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
  • इस विधेयक में निजी मेडिकल कॉलेजों में सिर्फ 50 प्रतिशत सीटों पर शुल्क निर्धारण के लिये एनएमसी को शक्तियाँ दी गई हैं, जबकि अन्य 50 प्रतिशत सीटें अत्यधिक उच्च शुल्क के अंतर्गत दी जा सकती हैं। इससे ये सीटें पूर्ण रूप से आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग से दूर हो जाएंगी।

निष्कर्ष

भारत लंबे समय से कुशल चिकित्सकों की कमी की समस्या से जूझ रहा है। भारत में ऐसे कुछ ही चिकित्सा संस्थान है जो उच्च कोटि के चिकित्सकों का निर्माण करते हैं। वर्ष 1959 में आई मुदलियार समिति की रिपोर्ट में इंगित किया गया था कि भारत के चिकित्सक प्राथमिक स्वास्थ्य एवं संक्रामक रोग जो तत्कालीन समय की बड़ी चिंता के कारण थे, से निपटने में सक्षम नहीं हैं। वर्तमान में भी चिकित्सकों की नैदानिक परीक्षणों पर अत्यधिक निर्भरता उनके अल्प ज्ञान एवं वाणिज्यिक हितों की ओर इशारा करती है। एनएमसी भारत में चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा तंत्र को सुधारने पर तो ध्यान दे सकता है किंतु सरकार को इससे भी कुछ बड़े मद्दों जैसे प्रतिजैविक प्रतिरोधकता तथा सरकारी खर्च में कमी आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

प्रश्न: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, 2019 के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों का उल्लेख कीजिये। यह किस प्रकार भारतीय चिकित्सा परिषद से संबंधित मुद्दों को हल करने में सक्षम है?