किसानों को ऋण, उसका वितरण और उसे माफ करने के खतरे | 22 Jun 2017

संदर्भ और मुद्दा
वैसे तो किसानों के ऋण का यह मुद्दा समय-समय पर अपना सिर उठाता रहता है और फिलहाल यह एक बार फिर चर्चा में है| देश के विभिन्न राज्यों में किसानों की क़र्ज़ माफी को लेकर आन्दोलन चल रहे हैं| मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में तो यह आन्दोलन हिंसक हो गया और पुलिस गोलीबारी में छह लोग मारे गए| अन्य राज्यों में भी किसान अपने-अपने तरीकों से क़र्ज़ माफी की मांग कर रहे हैं | कुछ समय पहले तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया था| कुछ दिन पहले पंजाब ने राज्य में किसानों का दो लाख रुपए तक का क़र्ज़ माफ कर दिया| इसी नक्शेकदम पर चलते हुए कर्नाटक ने भी लगभग 22 लाख किसानों का 50 हजार रुपए तक का ऋण माफ कर दिया|

आइये, विशेषज्ञों की टिप्पणियों के साथ प्रश्नोत्तर के माध्यम से यह समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर क्या है किसानों की ऋण माफी का यह मुद्दा और क्या हैं इसके संभावित दुष्परिणाम तथा क्या हैं इसके संभावित समाधान? 

1. कृषि ऋण क्या है?
भारत में बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा कृषि क्षेत्र को ऋण देना केवल फसल उगाने वाले किसानों को धन उपलब्ध कराने का मामला नहीं है। रिज़र्व बैंक द्वारा दी गई कृषि ऋण की परिभाषा में किसानों को दिये जाने वाले अल्पकालिक फसल ऋण और मध्यम अवधि या दीर्घकालिक ऋण भी शामिल हैं| अल्पकालिक फसल ऋण मूलरूप से वह है, जो किसान छह महीने या अधिकतम एक साल के लिये लेते हैं, ताकि उन्हें फसल से पहले और बाद में कुछ धन जुटाने में सहायता मिल सके। इसलिये बैंक फसल की कटाई, कीटनाशक छिड़काव, छँटाई, ग्रेडिंग और नज़दीकी मंडी में अनाज को ले जाने में परिवहन लागत आदि जैसी कृषि सहयोगी गतिविधियों के लिये ऋण देते हैं। यह उन किसानों के लिये भी हो सकता है जो परंपरागत कृषि कार्यों में संलग्न हैं, जिनमें गन्ने तथा दालों के साथ-साथ चाय, कॉफी और रबर की बागानी फसलें तथा बागबानी भी शामिल हैं| इनके अलावा सिंचाई और कृषि विकास या उपकरणों की खरीद जैसी अन्य गतिविधियों के लिये भी एक साल से अधिक की अवधि हेतु ऋण उपलब्ध कराया जाता है|

2. क्या बैंकों द्वारा कृषि संबंधी अन्य गतिविधियों के लिये दिये गए ऋण का वर्गीकरण कृषि क्षेत्र ऋण के रूप में किया जा सकता है?
इसका उत्तर है ‘हाँ’ ऐसा किया जा सकता है| उदाहरणार्थ, भंडारागार, गोदामों, बाज़ार अहाता, शीत भंडारण इकाइयों जैसी अनाज भंडारण सुविधाओं के निर्माण के साथ-साथ मृदा संरक्षण और वाटरशेड विकास, बीज उत्पादन, जैव कीटनाशकों और टिशू कल्चर के लिये भी बैंक ऋण प्रदान करते हैं| हालाँकि ये कृषि क्षेत्र को ऋण देने की व्यापक परिभाषा में उपयुक्त बैठते हैं, लेकिन इन्हें कृषि-आधारभूत ऋण के रूप में वर्गीकृत किया जाता है| इनके अलावा, कृषि-व्यवसाय केंद्र, कृषि-क्लीनिक, खाद्य और कृषि-प्रसंस्करण, व्यक्तियों या संस्थानों द्वारा चलाई जाने वाली ग्राहक सेवा इकाइयों के लिये तथा  ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि जैसी सहायक कृषि गतिविधियों के लिये भी ऋण दिया जाता है|

3. क्या बैंक किसानों को ऋण देने के लिये बाध्य हैं?
इसका उत्तर भी ‘हाँ’ में ही है| उस समय से, जब कृषि क्षेत्र का योगदान सकल घरेलू उत्पाद या राष्ट्रीय आय में अधिक था, हमारे देश के नीति-निर्धारकों ने बैंकों के लिये अनिवार्य कृषि ऋण लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर दिया था| इसीलिये छोटे और मध्यम उद्योगों, आवास, निर्यात, शिक्षा और सामाजिक संरचना जैसे ऋण देने के लिये परिभाषित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र लगभग शीर्ष पर रहता है| इसलिये भारत में प्राथमिकता वाले क्षेत्र में बैंक ऋण का 40% निर्धारित किया गया है और विदेशी बैंकों के लिये भी लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं| इसके तहत कृषि के लिये 18% की उप-सीमा तय की गई है| यहाँ तक कि रिज़र्व बैंक ने इस 18% में से भी 8% ऋण छोटे और सीमांत किसानों को देने का लक्ष्य निर्धारित किया है| जो ऋणदाता यह लक्ष्य नहीं प्राप्त कर पाते, उन्हें ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष (Rural Infrastructure Development Fund-RIDF) में योगदान करना पड़ता है, जो केंद्र सरकार ने इस कमी को पूरा करने के उद्देश्य से बनाया है|

4. छोटे और सीमांत किसानों की श्रेणी में कौन आता है?
ऋण देने के उद्देश्य से सीमांत किसानों की श्रेणी में वे किसान आते हैं, जिनके पास एक हेक्टेयर की सीमा तक भूमि है| एक से दो हेक्टेयर के बीच भूमि रखने वाले लघु किसान की श्रेणी में आते हैं| इसमें भूमिहीन कृषक, किराए की भूमि पर खेती करने वाले और बँटाई पर खेती करने वाले लोग भी शामिल हैं| इनके साथ स्वयं सहायता समूह या कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगे छोटे और सीमांत किसानों के समूह भी शामिल हैं|

5. व्यक्तिगत किसान, कॉर्पोरेट किसान, सहकारी समितियों, किसान संगठनों आदि को बैंक कितना ऋण दे सकते हैं?
किसानों के लिये 12 महीनों से कम की अवधि के लिये उनके उत्पादन को बंधक या गिरवी रखकर बैंक 50 लाख रुपए तक का ऋण दे सकते हैं| डेयरी, मत्स्य पालन, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन आदि जैसी गतिविधियों में संलग्न कॉर्पोरेट किसानों, किसानों की सहकारी समितियों तथा अन्य संगठनों के लिये ऋण सीमा 2 करोड़ रुपए है| कृषि अवसंरचना के तहत कृषक सहकारी समितियों के लिये कृषि उत्पाद के निपटान (Disposal)  की ऋण सीमा 5 करोड़ रुपए तय की गई है, जबकि खाद्य और कृषि प्रसंस्करण के क्षेत्र में यह प्रत्येक ऋणकर्त्ता हेतु 100 करोड़ रुपए तक हो सकती है।

6. क्या किसी नियामक या सरकार द्वारा बैंकों की ब्याज दरों की कोई सीमा तय की गई है?
बैंक किसानों को अधिकतम 7% की दर से ऋण दे सकते हैं, जिसमें सरकार उन ऋण लेने वाले किसानों को  3% की सब्सिडी देती है, जो  समय से इसका भुगतान करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर सरकार का नियंत्रण है और वह कम दर पर कृषि ऋण देने के एवज में बैंकों को क्षतिपूर्ति करती है| 

7. यदि ऐसा है तो राज्य सरकारों के बीच कृषि ऋण को माफ करने की होड़ क्यों लगी हुई है?
ऐसा नहीं है कि केवल राज्य सरकारें ही ऐसा करती हैं, समय-समय पर कई केन्द्रीय सरकारें भी कृषि ऋण माफ कर चुकी हैं। कई मामलों में हो सकता है यह मुद्दा राजनीतिक हो, लेकिन अधिसंख्य मामलों में यह देखने को मिलता है कि किसी कारणवश पर्याप्त उत्पादन न हो पाने या उत्पादन बहुत अधिक हो जाने पर भी किसान अपने ऋण का भुगतान नहीं कर पाते| बहुत अधिक उत्पादन हो जाने पर कीमतें गिर जाती हैं और किसानों को पर्याप्त आय नहीं हो पाती, जैसा कि इस वर्ष होने का अंदेशा जताया जा रहा है| ऐसे में किसानों को उनके उत्पादों का सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाता| महाराष्ट्र का उदाहरण देखिये, वहाँ राज्य सरकार ने 30 हजार करोड़ रुपए का कृषि ऋण एक ही झटके में माफ कर दिया| वहाँ परेशानी यह है कि लगातार दो वर्षों के सूखे के बाद इस बार बम्पर फसल होने के कारण किसानों को उनकी उपज का बेहद कम दाम मिल रहा है| इसके अलावा, विमुद्रीकरण के कारण बुआई के समय भी किसानों को पैसा जुटाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था|

8. इस प्रकार की ऋण माफी के पीछे चिंता के कौन से कारण हैं? 
बैंकरों और अर्थशास्त्रियों के विचार में इस प्रकार से की गई ऋण माफी ऋणकर्त्ताओं में अनुशासनहीनता की संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करती है। इसके अलावा, यह नैतिक खतरों को भी आमंत्रण देती है अर्थात इसकी देखादेखी भविष्य में ऋण माफी की संभावनाओं के चलते अन्य ऋणकर्त्ताओं में भी भुगतान न करने की प्रवृत्ति जन्म लेने लगती है| 

चेतावनी के स्वर
अरुण जेटली: देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि राज्य सरकारें अपने दम पर ऐसा करें, केंद्र सरकार इस मामले में उनकी कोई सहायता नहीं करेगी| 

उर्जित पटेल: रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल इस प्रकार की ऋण माफी के खतरों के प्रति अपनी चिंता जताते हुए कह चुके हैं कि इससे ईमानदार ऋण संस्कृति प्रभावित होती है और अन्य ऋणकर्त्ताओं को इसकी वजह से ऊँची ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता है| इससे भी बड़ी चिंता राज्य सरकारों के वित्तीय स्वास्थ्य की है, जो बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किये इस प्रकार के लोक-लुभावन फैसले करती हैं। 

अरुंधती भट्टाचार्य: स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य ने ऋण माफी को लेकर चेतावनी दी थी| उन्होंने कहा था कि ऐसे कदम से लोग ऋण चुकाने से कतराएंगे. ऋण माफ करने से एक बार तो सरकार किसानों की तरफ से पैसे भर देती है, लेकिन उसके बाद जब किसान कर्ज लेते हैं तो वो अगले चुनाव का इंतजार करते हैं, इस उम्मीद में कि शायद उनका ऋण माफ हो जाए|

रघुराम राजन: 2014 में रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने सवाल उठाया था कि ऋण माफी के ऐसे फैसले कितने कारगर रहे हैं? अधिकांश अध्ययनों और शोधों से यही पता चलता है कि ऋण माफी बुरी तरह असफल रही है| ऐसे फैसलों के बाद किसानों को ऋण मिलने  में भी कठिनाई होती है|

मदद के उपाय 
यदि किसानों की मदद करनी ही है तो ऐसे तरीके अपनाए जाने चाहियें, जिनसे उन्हें नुकसान न हो| 

  • सरकारों को ऐसे प्रयास करने चाहियें कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले| 
  • बाजार तक उनकी पहुंच हो और किसान दलालों और बिचौलियों के चक्कर में न फँसें| 
  • ऋण माफ करने के बजाय सरकारें उन्हें मुफ्त में खाद, बीज और खेती में इस्तेमाल होने वाली मशीनें उपलब्ध कराएँ|
  • नाबार्ड जैसी संस्थाओं के जरिये उन्हें सस्ती दरों पर ऋण भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए| 

विगत के अनुभवों से सीख लेते हुए सबसे बड़ी बात जो सभी को स्वीकारनी होगी, वह यह कि ऋण माफी किसानों की कठिनाइयों का हल नहीं है| 

निष्कर्ष
इसका सीधा तथा सरल निष्कर्ष यह है कि प्रत्येक राज्य को इस प्रकार के लोक-लुभावन वादों को पूरा करने के लिये संसाधनों या धन की व्यवस्था स्वयं करनी होगी, जो वे अपने सीमित संसाधनों के सहारे पूरा नहीं कर सकते| ऐसा करने के लिये उनको और ऋण लेना होगा और विकास तथा अवसंरचना पर होने वाले खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी| इसके अलावा, इस तरह की ऋण माफी से बैंकों के कृषि ऋण देने की क्षमता प्रभावित होगी, जिसके बाद बैंक उन लोगों को ऋण देने से हिचकिचाएंगे, जो पुराना ऋण नहीं चुका रहे हैं| यह भी किसी से छिपा नहीं है कि कई बैंकों के लिये किसानों को दिया गया ऋण उनके एनपीए के बड़े कारणों में से एक है|