स्वच्छ भारत मिशन : कितना सफल कितना असफल? | 15 Nov 2017

भूमिका

भारत सरकार द्वारा सार्वभौमिक स्वच्छता हेतु शुरू किये गए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ (Swachh Bharat Mission - SBM) ने 2 अक्टूबर 2017 (महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती) को अपने तीन वर्ष पूरे कर लिये हैं। उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम पर अभी तक ₹ 60,000 करोड़ से भी अधिक खर्च किये जा चुके हैं। वस्तुतः सार्वभौमिक स्वच्छता सरकार के विकास एजेंडे में सबसे ऊपर है। वर्ष 2014 तक, केवल 39 प्रतिशत लोगों तक ही सुरक्षित स्वच्छता वाली सुविधाओं की पहुँच थी, परंतु आज एसबीएम के तीन साल पूरे हो चुके हैं देश भर के पाँच राज्यों द्वारा लगभग 200 ज़िलों और तकरीबन 2.4 लाख गाँवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। इसके अलावा, गाँवों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के आधार पर 1.5 लाख गाँवों ने स्वच्छता सूचकांक में रैंकिंग भी दर्ज़ कराई है।

प्रमुख बिंदु  

  • स्वच्छ भारत मिशन (जो केंद्र सरकार के विशालतम स्वच्छता कार्यक्रम का हिस्सा है) को शहरी तथा ग्रामीण मिशन के रूप में विभाजित किया गया है।  
  • इस मिशन का मुख्य उद्देश्य महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्तूबर, 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाना है। 
  • स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) की कमान शहरी विकास मंत्रालय को दी गई है और 4041 वैधानिक कस्बों में रहने वाले 377 लाख व्‍यक्तियों तक स्वच्छता हेतु घर में शौचालय की सुविधा प्रदान करने का काम सौंपा गया है।  
  • इस मिशन के अंतर्गत 1.04 करोड़ घरों को लाना है, जिसके तहत 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना तथा सभी शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा मुहैया करना है। 
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ग्रामीण मिशन ग्रामीण मिशन

  • इसे स्वच्छ भारत (ग्रामीण) के नाम से जाना जाता है, जिसका प्रमुख उद्देश्य 2 अक्तूबर, 2019 तक सभी ग्राम पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त करना है।  
  • इस मिशन की सफलता के लिये गाँवों में व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी से क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करना भी शामिल है। 
  • गाँव के स्कूलों में गन्दगी और मैले की स्थिति को देखते हुए, इस कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं के साथ शौचालयों के निर्माण पर विशेष ज़ोर दिया जाता है।  
  • सभी ग्राम पंचायतों में आंगनबाड़ी शौचालय और ठोस तथा तरल कचरे का प्रबंधन इस मिशन की प्रमुख विषय-वस्तु है।  
  • नोडल एजेंसियाँ ग्राम पंचायत और घरेलू स्तर पर शौचालय के निर्माण और उपयोग की निगरानी करेंगी। ग्रामीण मिशन के तहत ₹134000 करोड़ की लागत से 11.11 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है। 
  • व्यक्तिगत घरेलू शौचालय के प्रावधान के तहत, बीपीएल और एपीएल वर्ग के ग्रामीणों को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रत्येक शौचालय के लिये क्रमश: ₹9000 और ₹3000 का प्रोत्साहन, निर्माण और उपयोग के बाद दिया जाता है।

स्वच्छ भारत मिशन के 6 प्रमुख घटक हैं- 

  • व्यक्तिगत घरेलू शौचालय 
  • सामुदायिक शौचालय 
  • सार्वजनिक शौचालय 
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन 
  • सूचना और शिक्षित संचार (आईईसी) और सार्वजनिक जागरूकता 
  • क्षमता निर्माण   
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सर्वेक्षण की विश्वसनीयता पर उठते प्रश्न

  • हालाँकि इस संबंध में बहुत से सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार व्यक्त किये जा रहे है।  इस कार्यक्रम की सफलता के बिषय में सरकार के प्रशासनिक डेटा एवं स्वच्छ सर्वेक्षण ग्राम 2017 (इसे क्यूसीआई, एक ऐसा निकाय  जिसे भारत सरकार और उद्योग द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित किया गया है) द्वारा आँकड़े जारी किये गए हैं।
  • ये दोनों स्रोत अर्थात् क्यूसीआई के सर्वेक्षण और एसबीएम वेबसाइट इस कार्यकम की एक समान तस्वीर पेश करते हैं।
  • ध्यातव्य है कि मई और जून 2017 के बीच जब ये सर्वेक्षण किये जा रहे थे, उस समय स्वच्छ सर्वेक्षण ने देश भर में 62.45% शौचालय कवरेज का दावा किया था, जोकि एसबीएम के 63.73% के आँकड़े के लगभग समान था। इसके अलावा, क्यूसीआई सर्वेक्षण ने यह भी दावा किया था कि भारत में तकरीबन 91.29% लोग शौचालय का इस्तेमाल करते हैं।
  • यदि ये आँकड़े सच हैं तो इसका अर्थ यह होना चाहिये कि इस समय भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत बेहतर स्थिति में है।
  • हालाँकि, इस संबंध में शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन में देश में शौचालयों के उपयोग के संबंध में वैसे परिणाम देखने को नहीं मिले, जिनके विषय में इस सर्वेक्षणों में वर्णित किया गया था।
  • वास्तविकता यह है कि इन अनुसंधानों से प्राप्त जानकारियों से पता चलता है कि ये सर्वेक्षण खुले में शौच या शौचालय के उपयोग के संबंध में एक समीकृत प्रश्न उत्पन्न करते हैं।
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लक्ष्य से परे

  • यदि एसबीएम द्वारा प्रस्तुत सर्वेक्षणों के संबंध में गंभीरता से विचार किया जाए तो ज्ञात होता है कि केवल शौचालयों के उपयोग के संदर्भ में ही गलत अनुमान व्यक्त नहीं किये गए हैं बल्कि ऐसे बहुत से कारक है जिनका विश्लेषण किये जाने की आवश्यकता है।
  • इसी क्रम में एक तय समय-सीमा के अंदर भारत को खुले में शौच से मुक्त (open defecation free - ODF) बनाना भी ऐसी ही एक चुनौती है।
  • इस संबंध में जो मुख्य समस्या आ रही है वह यह है कि बहुत से क्षेत्रों में केवल तय समय-सीमा के अंदर शौचालयों के निर्माण पर अधिक बल दिया जा रहा है। इनके अंतर्गत इस बात पर विशेष बल नहीं दिया जा रहा है कि जितना ज़रूरी हर घर के लिये शौचालयों निर्माण करना है उतना ही ज़रूरी इन शौचालयों का उपयोग करना भी है।
  • गौरतलब है कि 2012 के आधारभूत डेटा के आधार पर, एसबीएम द्वारा ऐसे जीर्ण एवं अप्रयुक्त संरचना वाले शौचालयों को भी इस कसौटी में शामिल किया गया है, जिनका ‘निर्मल भारत अभियान’ कार्यक्रम के तहत निर्माण किया गया था।
  • जैसा कि 2012 के डेता में किया गया था, एसबीएस द्वारा भी इन सभी शौचालयों की कार्यात्मक शौचालयों के रूप में गणना की गई है।
  • "गुणवत्ता और शौचालयों की स्थिरता" [Quality and Sustainability of Toilets” (WaterAid,) 2017] 2017 नामक एक रिपोर्ट में यह निहित किया गया है कि जिन आठ राज्यों में यह अध्ययन किया गया था, एक चौथाई से भी कम घरों द्वारा स्वयं से शौचालय बनाने हेतु पहल की गई थी। वस्तुतः यह अध्ययन सरकार द्वारा प्रस्तुत दावों के विपरीत परिणाम पेश करता प्रतीत होता है।

प्रैक्सिस के अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार

  • प्रैक्सिस (Praxis), इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ (आई.डी.एस.) और वॉटरएड द्वारा आयोजित एक अन्य अध्ययन "स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) इमर्सिव रिसर्च” हेतु शोधकर्त्ताओं द्वारा चयनित आठ ओ.डी.एफ. गाँवों का चयन करके वहाँ कुछ दिन व्यतीत किये गए।
  • इनका उद्देश्य इस कार्यकम के परिणामस्वरूप विशेषकर वैसे ग्रामीण ज़िलों में लोगों के व्यवहार में हुए परिवर्तन का पता लगाना था, जिन्हें मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा ओ.डी.एफ. घोषित किया गया है।
  • इस समस्त प्रक्रिया के दौरान यह पाया गया कि आधिकारिक तौर पर, ओडीएफ गाँव के रूप में घोषित इन गाँवों की वास्तविक स्थिति कुछ और ही है। अध्ययन के अनुसार, ओडीएफ गाँवों के रूप में सत्यापित इन आठों गाँवों में से केवल एक गाँव वास्तव में ओडीएफ पाया गया, जबकि एक ओडीएफ होने के करीब पाया गया।
  • इसके अतिरिक्त अन्य गाँवों के संबंध में व्यक्त विवरण में सरकारी आँकड़ों के विपरीत जानकारी प्रदान की गई। यह सारा प्रकरण स्वच्छ भारत मिशन के कार्यान्वयन की प्रमाणिकता के संबंध में संदेह उत्पन्न करता है। 
  • उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश में "ओडीएफ सत्यापित दो गाँवों" में क्रमशः 37% और 74% घरों में एक भी शौचालय नहीं पाया गया। इसी प्रकार राजस्थान के एक "ओडीएफ सत्यापित" गाँव में सिर्फ 16% शौचालय कवरेज पाया गया।
  • इस अध्ययन के अनुसार, केवल झूठे ओडीएफ दावे में ही इस कार्यकम का निराशाजनक अवलोकन नहीं किया गया है बल्कि सभी गाँवों में एसबीएम को बढ़ावा देने के लिये इस्तेमाल किये गए दबावपूर्ण उपायों के संबंध में प्रश्न उठाए गए हैं। 

निष्कर्ष

एक ओर जहाँ सरकारी आँकड़ों और स्वच्छ सर्वेक्षण में यह पता चलता है कि नीति निर्माताओं को किन-किन क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है तथा और किन लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना चाहिये। वहीं दूसरी ओर इस संबंध में प्राप्त आँकड़े कुछ और ही तस्वीर प्रस्तुत करते हैष स्पष्ट रूप से इस विषय में और अधिक  गंभीरता एवं निष्पक्षता के साथ कार्य करते हुए सटीक जानकारी प्रदान की जानी चाहिये ताकि इस कार्यकम में निहित लक्ष्यों को भली-भाँति प्राप्त किया जा सकें। स्वच्छ भारत मिशन सही रास्ते पर अग्रसर है। निश्चित ही,  यह शुरुआत सरकार द्वारा संचालित बहुत से कार्यक्रमों व योजनाओं को समाहित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है |