अंतरराज्यीय आय असमानता और इस संबंध में जीएसटी की भूमिका | 08 Feb 2017

सन्दर्भ·

  • भारत में आय असमानता बढ़ रही है, क्या लेकिन आपने कभी सोचा है कि इस असमान आय के धारक कौन हैं? यानी किनके बीच आय असमानता बढ़ रही है! प्रायः हम यही पढ़ते-सुनते आए हैं कि गरीब और अमीर लोगों के बीच आय असमानता की खाई चौड़ी होती जा रही है। हमारा भारत विविधताओं वाला देश है जहाँ 29 राज्य और 7 केंद्र-शासित प्रदेश कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रगति की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
  • हम अब तक केवल अमीर और गरीब जनता के परिपेक्ष्य में ही आय असमानता का अध्ययन करते आ रहें है, लेकिन यदि आय असमानता की परिधि में राज्यों को सम्मिलित कर लिया जाए तो हमारे सामने दिलचस्प आँकड़े नज़र आते हैं, हालाँकि यह आँकड़े संतोषजनक नहीं बल्कि चिंताजनक हैं।

राज्यों के मध्य बढ़ती आय असमानता 

  • तमिलनाडु में रहने वाले एक व्यक्ति की सलाना आय बिहार में रहने वाले व्यक्ति से आज चार गुना अधिक है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दशक में भारत के सबसे विकसित राज्य की आय भारत के सबसे गरीब राज्य की आय से चार गुना और अधिक हो जाएगी।
  • यदि भारत में लोगों की सम्पन्नता के पैमाने पर आय असामनता का अध्ययन किया जाए तो इसके कई वाजिब कारण दिख जायेंगे लेकिन जैसे ही हम राज्यों के स्तर पर बात करते हैं तो हमारे सामने चुनैतियों का एक ऐसा पहाड़ खड़ा है जिसके कारणों की तलाश करना एक अत्यंत ही दुष्कर कार्य है।
  • भारत जैसे ही अन्य देश जहाँ कि अलग-अलग राज्य और केंद्र सरकार की अवधारणा मौजूद हैं, के सन्दर्भ में बात करें तो हमारी प्रगति और बौनी नज़र आती है। जहाँ अमेरिकी राज्यों में आय असमानता न के बराबर है वहीं भारत में हाल ही में किये गए आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट और एक अन्य रिपोर्ट ने भारत की एक संघ के रूप में प्रगति की कलई खोलकर रख दी है।

‘इंडियाज़ क्यूरियस केस ऑफ़ इनकम डाइवर्जेंस’ रिपोर्ट

  • हाल ही पेश किये गए वर्ष 2016-17 की आर्थिक समीक्षा के चैप्टर संख्या 12 में दिखाया गया है कि भारत के राज्यों में आय असमानता बढ़ती ही जा रही है, हालाँकि इस सबंध में वर्ष 2014 में ज़ारी ‘इंडियाज क्यूरियस केस ऑफ़ इनकम डाइवर्जेंस’ अंतरराज्यीय आय असमानता को बेहतर ढंग से पेश किया गया है।

  • उल्लेखनीय है कि इस रिपोर्ट को भारत के केवल 12 बड़े राज्यों की आय के आधार पर तैयार किया गया था। छोटे राज्यों को इस अध्ययन में शामिल इसलिये नहीं किया गया था ताकि अतिवाद की स्थिति से बचा जा सके और एक व्यावहारिक रिपोर्ट पेश की जाए। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका, चीन और यूरोपियन यूनियन की तुलना में भारत में राज्यों के मध्य आय असमानता का स्तर अत्यंत ही ऊँचा है।
  • जैसा कि हम ग्राफ में देख सकते हैं कि वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच भारतीय राज्यों की आय असामनता अपने उच्चतम बिंदु पर है। एक और महत्त्वपूर्ण आकलन यह है कि यह आय असमानता वर्ष 1991 के बाद और बढ़ गई है। तो क्या एलपीजी( liberalization, privatization, and globalization) सुधारों ने राज्यों के बीच आय-असमानता में वृद्धि कर दी है? इस सवाल पर विचार हम इस लेख के निष्कर्ष में करेंगे, पहले देखते हैं कि इस संबंध में जीएसटी की क्या भूमिका है?

जीएसटी की भूमिका

  • इसमें कोई शक नहीं है कि कर सुधारों की दिशा में जीएसटी एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है, लेकिन राज्यों के बीच बढ़ती आय असमानता को कम करने में इसकी भूमिका सीमित लग रही है। जैसा कि हम जानते हैं जीएसटी का उद्देश्य ही हैं ‘एक देश एक कर’। अब होगा यह कि कम विकसित राज्य करों में रियायत का वादा कर किसी कम्पनी को अपने यहाँ निवेश के लिये आमंत्रित करने की स्थिति में नहीं रहेगा। इस बात को एक उदहारण से इस प्रकार समझते हैं- हाल ही में एप्पल ने भारत में अपनी एक विनिर्माण इकाई खोलने की बात की थी और ज़ल्दी ही यह कर्नाटक में शुरू भी हो जाएगी, यदि बिहार एप्पल के इस विनिर्माण इकाई को अपने यहाँ खुलवाना चाहे तो वह करों में रियायत देने की बात कर सकता था लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद बिहार चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता है।

क्या कहते हैं अर्थव्यवस्था के सिद्धांत?

  • यदि अर्थशास्त्र की भाषा में बात करें तो उत्पादन प्रक्रियाएँ अधिक विकसित राज्य से कम विकसित राज्य में जानी चाहिये, उदाहरण के लिये गुजरात राज्य काफी हद तक विकसित हो गया है, जहाँ प्रति व्यक्ति आय संतोषजनक है और औद्योगिक उत्पादन दर भी ठीक-ठाक है। किसी स्थान विशेष के लोगों के जीवन स्तर में सकारात्मक सुधार के बाद वहाँ श्रम शक्ति भी महँगी हो जाती है अतः आदर्श स्थिति तो यही है कि उद्योग अब गुजरात से निकलकर बिहार में जाने चाहियें लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
  • ह्रासमान सीमांत उत्पादकता के सिद्धांत(law of diminishing marginal productivity) के अनुसार उत्पादन के दौरान अन्य सभी कारकों में बिना किसी परिवर्तन के यदि एक ही इनपुट में वृद्धि करते जाएँ तो पहले तो उत्पादन की दर बढ़ेगी, फिर धीरे-धीरे कम होती जायेगी और फिर अंत में एक ऐसा समय आएगा जब इनपुट में वृद्धि के बाद भी उत्पादन बिलकुल नहीं बढ़ेगा या फिर कम होने लगेगा।
  • इस सिद्धांत को आसानी से ऐसे समझ सकते हैं, मान लिया जाए कि हमें प्यास लगी है और हम तेज़ी से एक ग्लास पानी पी जाते हैं, उसके बाद हमारी प्यास थोड़ी कम होती है फिर हम दूसरा ग्लास भी पी जाते हैं, लेकिन इसके बाद हमारी इच्छा एक ग्लास नहीं बल्कि आधी ग्लास पानी पीने की होती है, धीरे-धीरे एक ऐसी स्थिति आती है जब हमें और पानी पीने की आवश्यकता नहीं होती। ठीक यहीं सिद्धांत उत्पादन पर भी लागू होता है। लेकिन औद्योगीकरण के मामले में राज्यों में यह सिद्धांत लागू नहीं हो पा रहा है, तभी तो पहले से ही समृद्ध राज्य और समृद्ध होते जा रहे हैं।

निष्कर्ष

  • हमारा भारत व्यापक विविधताओं वाला देश है, जहाँ कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं जहाँ अर्थव्यवस्था का कोई भी सिद्धांत लागू नहीं हो पाता है। अतः अब जब जीएसटी लागू होने जा रहा है तो हमारे नीति –निर्माताओं को अर्थव्यवस्था के सिद्धांत से इतर अन्य बातों पर भी गौर करना होगा। कहा भी गया है कि अर्थशास्त्र एक व्यावहारिक विज्ञान है और हमें इसका ध्यान रहना चाहिये।
  • जहाँ तक वर्ष 1991 के बाद से इस आय असामनता में देखी जाने वाली उल्लेखनीय वृद्धि का सवाल है तो यह कहा जा सकता है कि आर्थिक सुधारों के बाद भारत में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आना शुरू हुआ और अवसरंचना निर्माण में जिन राज्यों को थोड़ी सी भी बढ़त हासिल थी उन राज्यों में अधिक संख्या में उद्योग धंधे स्थापित हुए। अतः पहले से ही पिछड़े राज्य और पिछड़ते चले गए। जीएसटी लागू होने के बाद इन राज्यों के हितों को ध्यान में रखना होगा।
  • किसी राज्य में उद्योग का विकास बहुत हद तक इस बात पर भी निर्भर करता है कि उस राज्य में अवसरंचना निर्माण कैसा है! यानी पानी, बिजली और परिवहन की समस्या तो नहीं है! राज्य की कानून-व्यवस्था का समुचित अवस्था में होना भी औद्योगीकरण को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करता है। अतः अंतरराज्यीय आय में असमानता की बात करते हुए हमें इन बातों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है।