भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण | 10 Jul 2023

यह एडिटोरियल 07/07/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Internationalizing the rupee without the ‘coin tossing’’ लेख पर आधारित है। इसमें रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबद्ध लाभों और चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

नॉमिनल GDP, क्रय शक्ति समता, राजकोषीय घाटा, रुपया वोस्त्रो खाते, विमुद्रीकरण, भारतीय रिज़र्व बैंक, मौद्रिक नीति, मुद्रास्फीति, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, मुद्रा विनिमय समझौते

मेन्स के लिये:

बाह्य वाणिज्यिक उधार, रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ और चुनौतियाँ।

रुपया (Rupee) भारत की आधिकारिक मुद्रा है, जो सांकेतिक जीडीपी (Nominal GDP) के मामले में दुनिया की पाँचवीं और क्रय शक्ति समानता (Purchasing Power Parity- PPP) के मामले में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है भारत के कुछ पड़ोसी देशों, जैसे भूटान और नेपाल में भी रुपए का उपयोग विधिक मुद्रा के रूप में किया जाता है। हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा बाज़ार और व्यापार लेनदेन में अत्यंत कम हिस्सेदारी के साथ रुपया अभी भी वैश्विक मुद्रा बन सकने से बहुत दूर है।

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण (Internationalisation of the rupee ) व्यापार, निवेश, रिज़र्व और अन्य उद्देश्यों के लिये भारत के बाहर रुपए के उपयोग एवं स्वीकृति को बढ़ाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने से भारत को कई लाभ प्राप्त हो सकते हैं, हालाँकि इसमें कई चुनौतियाँ और जोखिम भी शामिल हैं।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की वर्तमान स्थिति 

  • अंतर्राष्ट्रीयकरण में सीमित प्रगति :
    • रुपया अभी अंतर्राष्ट्रीयकरण से बहुत दूर है, जहाँ वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में रुपए की दैनिक औसत हिस्सेदारी मात्र 1.6% है, जबकि वैश्विक माल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी मात्र 2% है।
  • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदम:
    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण (जैसे बाह्य वाणिज्यिक उधारी को रुपए में सक्षम करना) को बढ़ावा देने के लिये भारत ने कुछ कदम उठाए हैं, जहाँ भारतीय बैंकों को रूस, संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका और मॉरीशस के बैंकों के लिये रुपया वोस्त्रो खाते (Rupee Vostro accounts) खोलने के लिये प्रोत्साहित किया गया है और लगभग 18 देशों के साथ रुपए में व्यापार करने के लिये एक तंत्र स्थापित किया गया है।
    • हालाँकि ऐसे लेन-देन की मात्रा सीमित ही रही हैं और भारत अभी भी रूस से अमेरिकी डॉलर में तेल खरीद रहा है।
  • मुद्रा विनिमय से जुड़ी बाधाएँ:
    • चालू खाते और पूंजी खाते में उल्लेखनीय घाटे के परिदृश्य में भारत पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता (capital account convertibility)—अर्थात् स्थानीय वित्तीय निवेश परिसंपत्तियों की विदेशी परिसंपत्तियों में और विदेशी परिसंपत्तियों की स्थानीय वित्तीय निवेश परिसंपत्तियों मुक्त आवाजाही—की अनुमति नहीं देता है, जहाँ पूंजी पलायन (capital flight)—अर्थात् मौद्रिक नीतियों/वृद्धि के अभाव के कारण भारत से पूंजी का बहिर्वाह—और विनिमय दर की अस्थिरता (exchange rate volatility) के अतीत के अनुभवों से प्रेरित होकर अपनी मुद्रा के विनिमय पर उल्लेखनीय बाधाएँ लगा रखी हैं।
  • पड़ोसी देशों की चिंताएँ :
    • पड़ोसियों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को ध्यान में रखे बिना रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण शुरू नहीं किया जा सकता
    • वर्ष 2016 में भारत द्वारा विमुद्रीकरण (demonetisation) ने भी भारतीय रुपए के प्रति, विशेष रूप से भूटान और नेपाल में, भरोसे को झटका दिया।
    • दोनों देशों में RBI द्वारा अतिरिक्त नीतिगत बदलावों (आगे फिर नोटबंदी सहित) का भय बना हुआ है।
    • वर्ष 2023 में 2,000 रुपए के नोट को वापस लेने के कदम से भी रुपए के प्रति भरोसे पर असर पड़ा है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के क्या लाभ हैं?

  • विदेशी मुद्राओं पर निर्भरता कम होना:
    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेनदेन के लिये अमेरिकी डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी।
    • इससे भारत की आर्थिक संप्रभुता बढ़ेगी और मुद्रा में उतार-चढ़ाव का जोखिम कम होगा।
  • वैश्विक व्यापार में वृद्धि:
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण संलग्न पक्षकारों को प्रत्यक्ष रूप से रुपए में लेनदेन की अनुमति देकर सहज अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा प्रदान कर सकता है।
    • इससे मुद्रा रूपांतरण (currency conversions) की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, लेनदेन लागत कम हो जाएगी और सीमा-पार व्यापार सरल हो जाएगा।
  • संवृद्ध वित्तीय एकीकरण:
    • विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला रुपया वित्तीय एकीकरण को बढ़ा सकता है।
    • यह विदेशी निवेशकों को आकर्षित करेगा और पूंजी प्रवाह को बढ़ावा देगा, जिससे भारतीय वित्तीय बाज़ारों में निवेश के अधिक अवसर बनेंगे और तरलता आएगी।
  • बेहतर मौद्रिक नीति प्रभावशीलता:
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है।
    • व्यापक अंतरराष्ट्रीय पहुँच के साथ, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये विनिमय दर (exchange rate) को एक साधन के रूप में उपयोग कर सकता है।
    • यह मौद्रिक स्थितियों के प्रबंधन और आर्थिक चुनौतियों पर प्रतिक्रिया देने में अधिक लचीलापन प्रदान करेगा।
  • सुदृढ़ क्षेत्रीय प्रभाव:
    • विश्व स्तर पर स्वीकृत रुपया भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को सुदृढ़ कर सकता है और इसे एशिया में एक प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकता है।
    • यह क्षेत्र के भीतर व्यापार और निवेश को बढ़ावा देगा, आर्थिक साझेदारी और सहयोग को प्रोत्साहित करेगा।
  • आरक्षित भंडार या रिज़र्व का विविधीकरण:
    • अंतर्राष्ट्रीयकरण से आरक्षित मुद्रा (reserve currency) के रूप में इसका आकर्षण बढ़ेगा।
    • केंद्रीय बैंक और विदेशी सरकारें अपने पोर्टफोलियो में विविधता एवं स्थिरता प्रदान करते हुए, अपने विदेशी मुद्रा भंडार के एक हिस्से के रूप में रुपए रखने का विकल्प चुन सकती हैं।
  • वित्तीय सेवाओं का विकास:
    • रुपए की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति बढ़ने के साथ रुपए-मूल्य वाले लेनदेन से जुड़ी वित्तीय सेवाओं, जैसे व्यापार वित्तपोषण, करेंसी हेजिंग (currency hedging) और निपटान सेवाओं में वृद्धि होगी।
    • यह भारत में एक मज़बूत और प्रतिस्पर्द्धी वित्तीय सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा दे सकता है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • विनिमय दर की अस्थिरता (Exchange Rate Volatility):
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण इसे विनिमय दर की वृहत अस्थिरता के जोखिम में ला सकता है। रुपए के मूल्य में उतार-चढ़ाव व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता, विदेशी निवेश प्रवाह और वित्तीय बाज़ार स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
    • संभावित प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये विनिमय दर जोखिमों का प्रबंधन करना अत्यंत आवश्यक हो जाएगा।
  • पूंजी पलायन और वित्तीय स्थिरता (Capital Flight and Financial Stability):
    • रुपए को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के लिये खोले जाने से पूंजी पलायन की स्थिति बन सकती है, यदि निवेशक रुपए में भरोसा खो दें या प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों की आशंका रखें।
    • इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves) पर दबाव पड़ सकता है, वित्तीय स्थिरता प्रभावित हो सकती है और मौद्रिक नीति प्रबंधन के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • पूंजी नियंत्रण (Capital Controls):
    • भारत में अभी भी पूंजी नियंत्रण लागू है जो विदेशियों की भारतीय बाज़ारों में निवेश और व्यापार करने की क्षमता को सीमित करता है।
    • इन नियंत्रणों के कारण रुपए का अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किया जाना कठिन हो जाता है।
  • प्रतिस्पर्द्धी मुद्राएँ (Competing Currencies):
    • रुपए को अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन जैसी स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता है, जिन्हें व्यापक स्वीकृति और तरलता प्राप्त है।
    • बाज़ार हिस्सेदारी प्राप्त करना और इन प्रमुख मुद्राओं को विस्थापित करना एक बड़ी चुनौती सिद्ध हो सकती है।
  • आत्मविश्वास और धारणा (Confidence and Perception):
    • भारत की आर्थिक एवं मौद्रिक नीतियों की विश्वसनीयता एवं स्थिरता रुपए के प्रति भरोसा पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
    • नीतिगत अनिश्चितता, पारदर्शिता की कमी या भू-राजनीतिक जोखिमों के संबंध में कोई भी धारणा इसके अंतर्राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया में बाधा डाल सकती है।
  • बाज़ार सहभागियों द्वारा अपनाया जाना:
    • अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन के लिये रुपए को अपनाने हेतु व्यवसायों, व्यक्तियों और वित्तीय संस्थानों सहित विभिन्न बाज़ार सहभागियों को सहमत करने के लिये इस मुद्रा के प्रति भरोसे, परिचितता और असंशय की आवश्यकता होगी।
    • विश्व स्तर पर रुपए के उपयोग के लाभों के बारे में जागरूकता का निर्माण करना और इसका प्रचार करना एक उल्लेखनीय चुनौती है।

रॅन्मिन्बी (Renminbi) के अंतर्राष्ट्रीयकरण में चीन के अनुभव से भारत कैसे सीख सकता है?

  • चीन का चरणबद्ध और अंशांकित दृष्टिकोण:
    • वर्ष 2004 से पहले रॅन्मिन्बी का उपयोग चीन तक ही सीमित रहा था।
      • वर्ष 2009 तक चीन ने अन्य देशों के साथ व्यापार, निवेश और मुद्रा विनिमय के लिये इसके उपयोग का विस्तार कर दिया।
      • वर्ष 2013 में शंघाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (Shanghai Free Trade Zone) ने अनिवासी ऑन-शोर और ऑफ-शोर खातों के बीच अप्रतिबंधित व्यापार को सक्षम कर दिया।
  • अपनी मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण में चीन की उपलब्धियाँ:
    • एक ऑनलाइन लेख के अनुसार, समय के साथ चीन ने अपनी मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण का एक महत्त्वपूर्ण स्तर हासिल कर लिया है, जहाँ इसकी आरक्षित मुद्रा की स्थिति में तेज़ी से सक्षमता आई है (उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 तक अंतर्राष्ट्रीय रिज़र्व में इसकी हिस्सेदारी ~2.88% तक पहुँच गई थी)।
  • चीन का अनुकरण करने के लिये भारत की संभावित रणनीतियाँ:
    • भारत अपनी मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये क्रमिक एवं अंशांकित दृष्टिकोण (gradual and calibrated approach) अपनाने में चीन की कुछ रणनीतियों का अनुकरण कर सकता है, जबकि साथ ही यह सुनिश्चित करे कि उसकी घरेलू आर्थिक और वित्तीय स्थितियाँ अनुकूल एवं प्रत्यास्थी हों।
    • भारत इस क्षेत्र और इसके बाहर के देशों के साथ अपने मौजूदा व्यापार एवं निवेश संबंधों का भी लाभ उठा सकता है तथा अपनी मुद्रा विनिमय व्यवस्था और ऑफ-शोर बॉण्ड बाज़ार का विस्तार करने का प्रयास कर सकता है।

भारत रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये किन विशिष्ट सुधारों की दिशा में आगे बढ़ सकता है?

  • रुपए को अधिक स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय बनाना:
    • वर्ष 2060 तक पूर्ण परिवर्तनीयता के लक्ष्य के साथ, वित्तीय निवेश के भारत और विदेशों के बीच स्वतंत्र आवाजाही को सक्षम करना।
    • इससे विदेशी निवेशकों को आसानी से रुपए के क्रय-विक्रय की सुविधा मिलेगी, जिससे इसकी तरलता बढ़ेगी और यह अधिक आकर्षक बन सकेगा।
  • गहन बॉण्ड बाज़ार की ओर आगे बढ़ना:
    • विदेशी निवेशकों और भारतीय व्यापार भागीदारों को रुपए में अधिक निवेश विकल्प उपलब्ध कराना, इसके अंतर्राष्ट्रीय उपयोग को सक्षम बनाना।
  • निर्यातकों/आयातकों को रुपए में लेनदेन के लिये प्रोत्साहित करना:
    • रुपए के आयात/निर्यात विनिमय के लिये व्यापार निपटान औपचारिकताओं को अनुकूलित/इष्टताम करने से दीर्घावधिक लाभ प्राप्त होगा।
  • अन्य मुद्रा विनिमय समझौतों पर हस्ताक्षर करना:
    • भारत ने श्रीलंका के साथ ऐसा एक समझौता किया है जहाँ भारत को डॉलर जैसी आरक्षित मुद्रा का सहारा लिये बिना रुपए में व्यापार एवं निवेश लेनदेन निपटान का अवसर मिलता है। अन्य देशों के साथ भी ऐसे समझौते किये जा सकते हैं।
  • कर प्रोत्साहन की पेशकश करना:
    • भारत में परिचालन में रुपए का उपयोग करने के लिये विदेशी व्यवसायों को कर प्रोत्साहन की पेशकश की जानी चाहिये।
  • मुद्रा प्रबंधन स्थिरता सुनिश्चित करना और विनिमय दर व्यवस्था में सुधार लाना:
    • मुद्रा अवमूल्यन या विमुद्रीकरण/नोटबंदी जैसे अचानक लाये जाने वाले या बड़े बदलावों से बचना चाहिये जो रुपए के प्रति भरोसे को प्रभावित कर सकते हैं।
    • नोटों और सिक्कों का सुसंगत और पूर्वानुमानित निर्गम/पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करना।
  • तारापोर समिति की अनुशंसाओं का पालन करना:

अभ्यास प्रश्न: रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण इस क्षेत्र और उससे परे भारत के आर्थिक एवं रणनीतिक हितों को कैसे प्रभावित करता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)

(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • रुपए की परिवर्तनीयता का अर्थ है रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना।
  • भारतीय मुद्रा चालू खाते में पूरी तरह से परिवर्तनीय है और पूंजी खाते में आंशिक रूप से परिवर्तनीय है।
  • चालू खाता परिवर्तनीयता का अर्थ है वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार के लिये घरेलू मुद्रा को अन्य विदेशी मुद्राओं में और इसके विपरीत परिवर्तित करने की स्वतंत्रता। दूसरी ओर पूंजी खाता परिवर्तनीयता का अर्थ पूंजी प्रवाह और बहिर्वाह से संबंधित मुद्रा रूपांतरण की स्वतंत्रता है।
  • अत: विकल्प (C) सही उत्तर है।