भारत में बौद्धिक संपदा ढाँचा एवं नवाचार | 26 Jun 2017

संदर्भ 

  • भारत को अपने बौद्धिक  सम्पदा ढाँचे को लेकर अमेरिकी कंपनियों  की चिंताओं पर विचार करना चाहिये तथा उस दिशा की ओर चलने का प्रयास करना चाहिये, जो बौद्धिक संपदा का सम्मान करता हो। इस आलेख में भारत के बौद्धिक संपदा ढाँचे को लेकर अमेरिकी कंपनियों की दुविधाओं पर चर्चा की गई है तथा यह समझाने का प्रयास किया गया है कि भारत को अपनी आर्थिक विकास की गति को तेज़ बनाए रखने तथा ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनने के लिये अपनी बौद्धिक संपदा  ढाँचे को व्यवसाय के अनुकूल बनाना होगा।  

विश्लेषण : 

  • प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा भारत-अमेरिकी संबंधों को और बेहतर बनाने, संवाद को ज़ारी रखने  एवं लम्बे समय से चली आ रही बाधाओं को दूर करने का एक सुअवसर है। 
  • दोनों देश अपने संबंधों को नई ताज़गी प्रदान कर सकते हैं तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के पथ पर एक साथ आगे बढ़ सकते हैं। यह तभी हो सकता है, जब वे मिलकर नवाचार के विकास के लिये कोई ठोस उपाय करेंगे, क्योंकि नवाचार से ही आर्थिक विकास को गति मिलेगी।

विशाल क्षमता 

  • भारत अमेरिका का एक बड़ा आर्थिक भागीदार है तथा अमेरिकी कंपनियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक साझेदार भी। विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2017-18 में 7.2 % की दर से आगे बढ़ेगी। भारत की 1.30 अरब की जनसँख्या तथा इतना बड़ा उपभोक्ता आधार ही वह  कारण है, जिसके लिये  विदेशी कंपनियाँ  इस बाज़ार की ओर ललायित हो रही हैं । इसी झुकाव को देखते हुए तथा नए व्यवसायों को आकर्षित करने के लिये प्रधानमंत्री मोदी ने “भारत में निवेश ( इन्वेस्ट इंडिया )”  अभियान प्रारंभ किया है।
  • भारत की आर्थिक क्षमता का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिये सरकार को विदेशी कंपनियों के साथ बौद्धिक संपदा संरक्षण के मामले में उचित व्यवहार सुनिश्चित करने वाले कदम उठाने पड़ेंगे। व्यवसायी नए बाज़ारों में निवेश करने से पहले वहाँ उपस्थित एवं पारदर्शी कानून तथा विनियमन प्रणाली के अनुरूप कार्य कर रही प्रभावी बौद्धिक संपदा ढाँचे को देखते हैं। 
  • बौद्धिक संपदा नवाचार तथा सृजनात्मक उद्योगों का प्राण है। यह नए–नए जीवन रक्षक एवं  नवीनतम उच्च प्रौद्योगिकी उपकरणों के विकास में निवेश को प्रोसाहित करता है, एवं उपभोक्ताओं को खतरनाक अवैध उत्पादों से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अमेरिकी सरकार का यह प्रयास रहा है कि विदेशी बाज़ारों में अमेरिकी कंपनियों के साथ सर्वोत्तम व्यवहार किया जाए। यही वो स्थान है, जहाँ भारतीय नीतियों की आलोचना होती है। भारत में कार्य करने का प्रयास करने वाली अमेरिकी कंपनियों को यहाँ की आर्थिक और वाणिज्यिक बाधाओं ने उन्हें लाभ की स्थिति दूर कर दिया है। उन बाधाओं में से अनेक बौद्धिक संपदा ढाँचे से जुड़ी हैं ।

बौद्धिक संपदा और नवाचार के बीच महत्त्वपूर्ण कड़ी 

  • प्रधानमंत्री मोदी ने इस कड़ी को स्वीकार किया है। मई 2016  में उन्होंने भारत की पहली बौद्धिक संपदा अधिकार नीति जारी की, जिसमें अनेक सकारात्मक प्रशासनिक परिवर्तन करने तथा बौद्धिक संपदा शिक्षा कार्यक्रम बनाने की बात कही गई थी। इधर एक सप्ताह पहले औद्योगिक नीति एवं प्रोत्साहन विभाग ने बौद्धिक संपदा अधिकार  जागरूकता के लिये एक नई स्कीम की घोषणा की है, जो एक महत्त्वपूर्ण कदम है। उपभोक्ताओं को बौद्धिक संपदा अधिकार की जानकारी होनी  आवश्यक है।
  • अमेरिकी चेम्बर का अन्तर्राष्ट्रीय  बौद्धिक संपदा  इंडेक्स, जो 2012 से प्रति वर्ष जारी किया जाता है, उन बौद्धिक संपदा संबंधित बाधाओं को उभारता है, जिसे अमेरिकी कंपनियों को भारत में सामना करना पड़ता हैं। जैसे – आनलाईन एवं हार्ड गुड्स पाइरेसी भारतीय फिल्म उद्योग के आर्थिक योगदान को  कम करते हुए  भारतीय बाज़ार को लगातार खोखला कर रही हैं।
  • जैव-औषधि उद्योग को पेटेंट प्राप्त करने और उसे बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विशेषकर, भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा 3 (डी) भारत में जैव-औषधि नवाचार के विकास को कम करता है, क्योंकि इसके अनुसार किसी उत्पाद को पेटेंट कराने के लिये उस पर “वर्धित प्रभावकारिता (enhanced efficacy )” को प्रदर्शित करना ज़रूरी है।
  • इधर कुछ नई बौद्धिक संपदा  चुनौतियां भी उभरी हैं। वर्ष 2015 में भारत सरकार कंप्यूटर से संबंधित आविष्कारों  के लिये संतुलित और उचित दिशा-निर्देशों को पारित कर चुकी थी, जिसने सभी प्रकार के कंप्यूटर से संबंधित आविष्कारों  के लिये  पेटेंटिबिलिटी की अनुमति दी थी, लेकिन 2016 में, उन सकारात्मक दिशा-निर्देशों को वापस ले लिया गया और फिर इस  आवश्यकता के साथ कि सॉफ्टवेयर केवल तभी पेटेंट योग्य हो सकता है यदि  वह किसी नए हार्डवेयर आविष्कार से जुड़ा हुआ है, अंतिम रूप में फिर से जारी किया गया। एक सदैव विकसित हो रहे डिजिटल युग में, सभी प्रकार के सॉफ़्टवेयर के लिये पेटेंटिबिलिटी तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण होगी।
  • इसके अतिरिक्त, भारतीय अधिकारियों ने पेटेंट उपचार को एवं हाल ही में चिकित्सा उपकरणों को क्षीण करने के कई प्रयास किए हैं। 
  • पिछले साल फरवरी में, भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा मेडिकल स्टंट्स (stents)  को आवश्यक औषधियों की राष्ट्रीय सूची में शामिल किए जाने के बाद, भारत सरकार के राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने मेडिकल स्टंट्स पर अनिवार्य मूल्य नियंत्रणों में 85 प्रतिशत की कमी कर दी  थी । 
  • प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी की नीति की सराहना की है, जबकि  भारत में अपने उत्पादों की बिक्री शुरू करने या जारी रखने की मांग करने वाली नवीन चिकित्सा कंपनियों पर उस नीति का विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। 
  • ऐसी नीतियाँ उन कानूनी निश्चितता को कमज़ोर करेंगी, जिस पर जैव-औषधि निवेशक निर्भर करते हैं, इसके अलावा यह भारत में नए जीवन-रक्षक इलाज़ में निवेश को भी खतरे में डालेंगी।
  • भारत को यदि एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना है, जो नवाचार को बढ़ावा देता है, जो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है और जो निवेशकों के स्वागत में एक कारोबारी माहौल विकसित करता है, तो उसके लिये बौद्धिक संपदा  महत्वपूर्ण होगा।
  • अमेरिकी चैंबर के सूचकांक से पता चलता है कि जो देश बौद्धिक संपदा  ढाँचे के मामले में शीर्ष पर हैं, उनकी उद्यम पूंजी तक पहुंच की संभावना अधिक है और साथ ही उनमें उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों को विकसित करने और सही ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्थाएं बनने की संभावना भी प्रबल है।

निष्कर्ष

  • अब भारत को भी अपनी दिशा बदलकर उस ओर चलने की आवश्यकता है, जो बौद्धिक संपदा  का सम्मान करता है और जो मज़बूत बौद्धिक संपदा  ढांचे  द्वारा प्रदान किये जाने वाले आर्थिक लाभों को प्राप्त करता है। भारत यदि अमेरिकी प्रशासन से बातचीत के नए अवसर का लाभ उठाना चाहता है तो उसे बौद्धिक संपदा ढाँचे को लेकर अमेरिकी कंपनियों  की चिंताओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिये।