भारत और बेरोज़गारी | 03 Feb 2022

यह एडिटोरियल 01/02/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A Hazy Picture on Employment in India” लेख पर आधारित है। इसमें PLFS द्वारा प्रस्तुत रोज़गार संबंधी आँकड़ों और भारत में बेरोज़गारी की मौजूदा स्थिति के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ 

किसी भी अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन के दो महत्त्वपूर्ण संकेतक हैं— विकास दर और उत्पादन एवं कार्यबल के संरचनात्मक संघटन में परिवर्तन। भारत ने पहले संकेतक के मामले में विशेष रूप से वर्ष 1991 के सुधारों के बाद से पर्याप्त सुसंगत परिवर्तनों का अनुभव किया है लेकिन रोज़गार की प्रवृत्ति में सुसंगत या स्पष्ट पैटर्न देखने को नहीं मिला है। हालाँकि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) के अनुसार हाल के समय में कामगार जनसंख्या अनुपात में वृद्धि और रोज़गार में एक लैंगिक अंतराल में गिरावट देखी गई है लेकिन भारत का समग्र बेरोज़गारी परिदृश्य अभी भी निराशाजनक ही है।

भारतीय अर्थव्यवस्था और रोज़गार

  • आर्थिक विकास दर के रुझान 
    • अर्थव्यवस्था की विकास दर (जो स्थिर मूल्यों पर सकल मूल्य वर्द्धित/GVA द्वारा मापी जाती है) आर्थिक सुधार लागू होने से पहले के 20 वर्षों में 4.27% रही थी जो बाद के 20 वर्षों में बढ़कर 6.34% और वर्ष 2010-11 से 2019-20 के बीच (2011-12 की कीमतों पर) में बढ़कर 6.58% हो गई। 
    • इस विकास प्रक्षेपवक्र के साथ-साथ कृषि की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट आई (वर्ष 1990-91 में 30% से घटकर वर्ष 2019-20 में 18%) देखी गई तथा कुल आर्थिक उत्पादन में गैर-कृषि उत्पादन की हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हुई है।

भारत के रोज़गार संबंधी आँकड़े की निगरानी 

  • कार्यबल और रोज़गार संबंधी आँकड़े के दो प्रमुख स्रोत हैं- (1) दशकीय जनगणना (2) राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा रोज़गार और बेरोज़गारी पर राष्ट्रव्यापी पंचवर्षीय सर्वेक्षण।
    • NSSO के पंचवर्षीय सर्वेक्षण वर्ष 2011-12 तक के ही आँकड़े उपलब्ध कराते हैं अत: इसे वर्ष 2017-18 में लाये गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) जो वार्षिक आँकड़े उपलब्ध कराता के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
    • PLFS भारत का पहला कंप्यूटर आधारित सर्वेक्षण है जिसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा वर्ष 2017 में शुरू किया गया था। इसका गठन अमिताभ कुंडू की अध्यक्षता वाली समिति की अनुशंसा के आधार पर किया गया।
      • यह बेरोज़गारी के स्तर, रोज़गार के प्रकार एवं उनकी संबंधित हिस्सेदारी, विभिन्न प्रकार की नौकरियों से अर्जित मज़दूरी, कार्य किये गए घंटों की संख्या जैसे विभिन्न चरों के संबंध में आँकड़े एकत्रित करता है।

रोज़गार के रुझान 

  • PLFS आँकड़े कामगार जनसंख्या अनुपात (WPR) में वृद्धि को दर्शाता हैं जो वर्ष 2017-18 में 34.7% से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 38.2% हो गया।
    • यह पूर्व की प्रवृत्ति विपरीत है जहाँ वर्ष 2004-05 के बाद से WPR में गिरावट देखी जा रही थी।
  • इस परिवर्तन का अर्थ यह भी है कि जनसंख्या में वृद्धि की तुलना में रोज़गार में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
  • WPR में वृद्धि ग्रामीण एवं शहरी आबादी और पुरुष एवं महिला आबादी सभी में दर्ज की गई है।
    • WPR में वृद्धि इसलिये भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योकि यह श्रम बल भागीदारी दर में वृद्धि के साथ हुई है।

महिला-विशिष्ट आँकड़े 

  • महिला WPR अनुपात वर्ष 2017-18 से 2019-20 के बीच 17.5% से बढ़कर 24% हो गया। इस अनुपात को जब महिला आबादी से गुणा किया जाता है तो यह महिला कामगारों की संख्या में 17% वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है।
  • PLFS आँकड़े से एक और सकारात्मक संकेत यह प्राप्त हुआ है कि पुरुष और महिला कामगार भागीदारी दर में अंतर कम हो रहा है।
    • वर्ष 2017-18 में कार्यबल में 100 पुरुष कामगारों के मुकाबले 32 महिला कामगार थीं वही वर्ष 2019-20 में महिला कामगारों की संख्या बढ़कर 40 हो गई।
    • वर्ष 2017-18 में देश के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 24% थी जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 28.8% हो गई।
  • इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष श्रम बल की तुलना में महिला श्रम बल में बेरोज़गारी दर काफी कम है जबकि शहरी क्षेत्रों में स्थिति इसके विपरीत है।
    • ग्रामीण भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में 33% अधिक है।

वास्तविक बेरोज़गारी परिदृश्य प्रस्तुत आँकड़ों से भिन्न

  • नौकरियों की तुलना में नौकरी चाहने वाले लोगों की अधिक संख्या: PLFS आँकड़े से पता चलता है कि वर्ष 2017-18 से 2019-20 के बीच नौकरी के इच्छुक लोगों की संख्या में वृद्धि की तुलना में नौकरियों की संख्या तीव्र वृद्धि हुई है।
    • लेकिन इसके बावजूद वर्ष 2017-18 से 2018-19 के बीच बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या में 2.3 मिलियन की वृद्धि हुई जिसका मुख्य कारण इन दो वर्षों में नौकरी के इच्छुक लोगों की संख्या में हुई तेज़ वृद्धि (52.8 मिलियन) है।
  • वेतनभोगी कामगारों की संख्या में गिरावट: वेतनभोगी कामगारों का प्रतिशत वर्ष 2019-2020 में 21.2% से गिरकर वर्ष 2021 में 19% हो गया है जिसका अर्थ है 9.5 मिलियन लोग वेतनभोगी नौकरी से बहार हो गए हैं या फिर बेरोज़गार हो गए हैं या अनौपचारिक क्षेत्र में चले गए हैं।
    • अपरिवर्तित कृषि क्षेत्र: कार्यबल की क्षेत्रीय संरचना से पता चलता है कि भारत में 45.6% कामगार कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में, 30.8% सेवा क्षेत्र में और 23.7% उद्योगों में संलग्न हैं।
    • वर्ष 2017-18 से 2019-20 के बीच कुल रोज़गार में उद्योग और सेवा क्षेत्रों की हिस्सेदारी में कोई वृद्धि नहीं हुई है। इसका अर्थ है कि कृषि से बाहर श्रम का स्थानांतरण नहीं हुआ है।
  • कृषि संबंधी रोज़गार के प्रसार के कारण: तेज़ी से शिक्षित हो रहा युवा श्रम बल कृषि क्षेत्र से बाहर अधिक लाभकारी कार्य की तलाश तो कर रहा है लेकिन अधिक सफल नहीं हो रहा।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि उद्योग और सेवा क्षेत्रों ने पूंजी-गहन और कई मामलों में श्रम-विस्थापनकारी प्रौद्योगिकियों एवं उत्पादन रणनीतियों को अपना लिया है।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाए जाने के साथ यह स्थिति और गंभीर हो रही है।

गे की राह 

  • आर्थिक विकास प्रारूपों पर पुनर्विचार की आवश्यकता: रोज़गार में उल्लेखनीय वृद्धि के बिना राष्ट्रीय आय में उद्योग और सेवा क्षेत्रों की बढ़ती हिस्सेदारी आर्थिक वृद्धि एवं विकास के पारंपरिक प्रारूपों की प्रासंगिकता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।
  • भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये पारंपरिक आर्थिक विकास प्रारूपों और उनकी प्रयोज्यता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
    • एक वैकल्पिक दृष्टिकोण के रूप में उद्योग आधारित विकास मॉडल हेतु प्रयास करने की राष्ट्रीय रणनीति पर पुनर्विचार किया जाए और कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में अधिक आकर्षक, लाभकारी और अधिक संतोषजनक रोज़गार सृजित करने के लिये आर्थिक रूपांतरण के अधिक प्रासंगिक कृषि-केंद्रित मॉडल का पता लगाया जाए।
  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोज़गार निर्मित करना: विनिर्माण और सेवा क्षेत्र द्वारा अतीत में सृजित रोज़गार अवसरों की तुलना में उनके द्वारा पर्याप्त रूप से अधिक रोज़गार निर्मित करने की तत्काल आवश्यकता है। इसमें निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल करना चाहिये:
    • ऐसे श्रम कानूनों में बदलाव जो उद्योग को श्रम प्रधान उत्पादन अपनाने हेतु हतोत्साहित करते हो। 
    • रोज़गार-संबद्ध उत्पादन प्रोत्साहन।
    • श्रम प्रधान आर्थिक गतिविधियों को विशेष सहायता।
  • उद्योगों का विकेंद्रीकरण: औद्योगिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण आवश्यक है ताकि हर क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिल सके।
    • ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से शहरी क्षेत्रों की ओर ग्रामीण लोगों के प्रवास को कम करने में मदद मिलेगी जिससे शहरी क्षेत्र के रोज़गार अवसरों पर दबाव कम होगा।
  • निवेश में वृद्धि: भारत में निजी क्षेत्र की निवेश दर में (लगभग एक रैखिक आकृति में) वर्ष 2011 से गिरावट आ रही है। रोज़गार परिदृश्य में तभी सुधार होगा जब निजी निवेश में गति आएगी।
    • सरकार को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा को संरेखित करना चाहिये और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल और नौकरी-सह-प्रशिक्षण के माध्यम से मानव पूंजी तथा बुनियादी सामाजिक सुरक्षा में स्थायी और दीर्घकालिक निवेश करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत के बेरोज़गारी के परिदृश्य और बेरोज़गारी की इस लहर से निपटने हेतु किये जा सकने वाले उपायों के संबंध में चर्चा कीजिये।