संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता | 18 Dec 2019

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत की हालिया आर्थिक स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए संरचनात्मक सुधारों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने भारत की आर्थिक स्थिति पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि भारत सरकार को घरेलू मांग में छाई मंदी को दूर करने के लिये संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान देना चाहिये। गीता गोपीनाथ के अनुसार, “राजनीतिक रूप से यह भारत के लिये संरचनात्मक सुधारों हेतु सर्वाधिक उपयुक्त समय है।” विदित है कि बीते महीने सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही (Q2) के संबंध में जो आधिकारिक आँकड़े जारी किये उनके अनुसार, भारत की आर्थिक वृद्धि दर 4.5 फीसद पर पहुँच गई है। वहीं चालू वर्ष की पहली तिमाही में GDP वृद्धि दर 5.0 प्रतिशत आँकी गई थी। बीती पाँच तिमाहियों से भारत की GDP वृद्धि दर अनवरत रूप से गिरती जा रही है, विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति स्पष्ट रूप से भारत की अर्थव्यवस्था के लिये खतरे का संकेत है।

संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता

  • अर्थव्यवस्था पर छाए आर्थिक मंदी के बादलों को देखते हुए कई बड़े अर्थशास्त्रियों ने सरकार से संरचनात्मक सुधारों की मांग की है। जानकारों का मानना है कि यदि सरकार द्वारा इस संबंध में शीघ्र ही कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया गया तो स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है।
  • NSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही (Q2) में देश की GDP का कुल मूल्य लगभग 35.99 लाख करोड़ रुपए है, जो कि इसी वर्ष की पहली तिमाही (Q1) में 34.43 लाख करोड़ रुपए था जो यह दर्शाता है कि भारत की GDP वृद्धि दर तकरीबन 4.5 प्रतिशत है।
  • वहीं Q2 के निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) में भी कमी देखने को मिली है। जहाँ एक ओर यह PFCE पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) की इसी तिमाही में 9.8 प्रतिशत था, वहीं चालू वर्ष की इसी तिमाही में गिरकर 5.1 प्रतिशत पर जा पहुँचा है। यह गिरावट देश में आम नागरिकों के मध्य आत्मविश्वास के संकट को स्पष्ट रूप से उजागर करती है।
  • इसके अलावा चालू वित्तीय वर्ष के Q2 में सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) भी बीते वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (11.8 प्रतिशत) से गिरकर 1.0 प्रतिशत पर आ गया है।
    • विदित है कि GFCF का आशय सरकारी और निजी क्षेत्र में स्थायी पूंजी पर किये जाने वाले शुद्ध पूंजी व्यय के आकलन से है। माना जाता है कि यदि किसी देश के GFCF में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है तो उस देश के आर्थिक विकास में भी तेज़ी से वृद्धि होगी। वहीं इसके विपरीत GFCF में गिरावट अर्थव्यवस्था के नीति निर्माताओं के लिये चिंताजनक विषय होता है। बीते कुछ वर्षों से भारत के GFCF में गिरावट की प्रवृत्ति ही देखी जा रही है जो कि भारत की आर्थिक वृद्धि के लिये बिल्कुल भी संतोषजनक खबर नहीं है।

संरचनात्मक सुधार और यूक्रेन का उदाहरण

  • संरचनात्मक सुधार का आशय ऐसे दीर्घकालिक उपायों से होता है, जिनके माध्यम से अर्थव्यवस्था की कुशलता में वृद्धि की जाती है एवं अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों की अनम्यताओं को दूर कर उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा क्षमता को बढ़ाया जाता है। संरचनात्मक सुधार की दृष्टि से भारत में अब तक कई प्रयास किये गए हैं, जिनमें वर्ष 1991 का LPG (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण) सुधार उल्लेखनीय हैं।
  • सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि संरचनात्मक सुधारों का आशय सरकार के काम करने के तरीके में बदलाव से है। इस प्रकार के सुधार को समझने के लिये यूक्रेन एक बेहतरीन उदाहरण हो सकता है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि वर्तमान में यूक्रेन की अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी गड़बड़ाई हुई है।
    • यूक्रेन दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में से एक है, हालाँकि यूक्रेन की सरकार देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिये भरसक प्रयास कर रही है। उदाहरण के लिये हाल ही में सरकार ने सभी मंत्रियों के लिये अपनी वित्तीय स्थिति की घोषणा करना अनिवार्य कर दिया था। इस कदम से उन राजनेताओं के लिये ऐसी कंपनियों को लाभ पहुँचाना मुश्किल हो जाएगा जिनमें उन्होंने निवेश किया है।
    • इसके परिणामस्वरूप सभी सरकारी ठेके योग्य कंपनियों को मिल सकेंगे और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के साथ ही कीमतों में कमी आएगी।
    • इसके अतिरिक्त सरकार ने कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये हैं। जैसे- सरकारी धन की बचत के लिये सरकार गैस पर दी जा रही सब्सिडी की भारी मात्रा को कम करेगी। कई जानकार यूक्रेन में किये जा रहे सुधारों को संरचनात्मक सुधारों के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि यहाँ सरकार ने अपने काम करने के तरीके में बदलाव किया है।

संरचनात्मक सुधार का महत्त्व

  • संरचनात्मक सुधारों से घरेलू और विदेशी दोनों प्रकार के निवेशकों के बीच विश्वास पैदा करने में मदद मिलती है जिसके परिणामस्वरूप मांग में वृद्धि हो सकती है।
  • साथ ही निवेश में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था में रोज़गार भी बढ़ता है।
    • ज्ञातव्य है कि इस प्रकार के सुधारों का लाभ केवल दीर्घकालिक अवधि में ही देखा जा सकता है, जबकि इसके विपरीत राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों का परिणाम अपेक्षाकृत कम अवधि में सामने आता है।

तीन नीतियों पर प्राथमिकता से होना चाहिये कार्य

IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने सरकार से तीन प्रमुख नीतियों पर प्राथमिकता से कार्य करने का आग्रह किया है।

  • गीता गोपीनाथ के अनुसार, सर्वप्रथम सरकार को बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की बैलेंस शीट (Balance Sheets) में सुधार के कार्य को और अधिक तेज़ कर देना चाहिये। बैलेंस शीट की सफाई का अर्थ संदिग्ध अथवा ऐसी परिसंपत्तियाँ, जिनकी वसूली संभव नहीं है की पहचान कर उन्हें प्राथमिक स्तर पर अलग करने से है। साथ ही उन्होंने सार्वजनिक बैंकों की क्रेडिट क्षमता को पुनर्जीवित करने के लिये उनकी कार्यप्रणाली में सुधार करने का भी सुझाव दिया है।
  • उन्होंने केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर राजकोषीय समेकन की नीति को जारी रखने को कहा है। इसके अलावा उन्होंने कर अनुपालन बढ़ाने के साथ-साथ राजकोषीय पारदर्शिता में सुधार लाने जैसे कदमों का समर्थन किया है।
  • अंत में बुनियादी ढाँचे में निवेश के साथ-साथ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के उद्देश्य से श्रम, भूमि एवं उत्पाद बाज़ार में सुधार भारत की प्राथमिकता होनी चाहिये ताकि तेज़ी से बढ़ती श्रम शक्ति के लिये और अधिक बेहतर रोज़गारों का सृजन किया जा सके।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाया जाए। भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। जानकारों का मानना है कि यदि हम सच में संरचनात्मक सुधार चाहते हैं तो हमें आर्थिक स्वतंत्रता को नीति निर्धारण का मार्गदर्शक सिद्धांत बनाना होगा।

प्रश्न: भारत की हालिया आर्थिक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता पर विचार कीजिये।