STA- 1 में शामिल होना भारत के लिये कितना महत्त्वपूर्ण है? | 04 Aug 2018

संदर्भ

अमेरिका ने भारत को सामरिक व्यापार प्राधिकरण-1  (Strategic Trade Authorisation-1 ) की सूची में शामिल करते हुए इसे किये जाने वाले दोहरे उपयोग वाली उच्च प्रौद्योगिकी के निर्यात में छूट प्रदान की है। उल्लेखनीय है कि भारत यह दर्जा पाने वाला एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है। इस सूची में शामिल होने के बाद अमेरिका से उच्च तकनीकी सामरिक उत्पादों का लेन-देन आसानी से हो सकेगा।

पृष्ठभूमि

  • भारत के लिये उच्च तकनीक तक पहुँच स्थापित करना, वर्ष 2008 में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने के प्रमुख उद्देश्यों में से एक था, जिसे विशेष रूप से 1970 से 90 के दशक तक अस्वीकार कर दिया गया था। 
  • राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के अंत में अमेरिका ने भारत को "प्रमुख रक्षा सहयोगी" के रूप में मान्यता दी और अपने सहयोगियों और भागीदारों के साथ रक्षा सह-उत्पादन और सह- विकास के लिये समान प्रौद्योगिकी को साझा करने की प्रतिबद्धता जताई।
  • अगस्त 200 9 में ओबामा ने शीतयुद्ध युग की प्रथाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से यूएस निर्यात नियंत्रण प्रणाली की व्यापक समीक्षा करने की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य प्रौद्योगिकियों को सोवियत संघ के हाथों में जाने से रोकना तथा अमेरिकी तकनीकी उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के साथ ही अधिक नौकरियाँ सृजित करना था। तब से अब तक ये परिवर्तन जारी हैं।

अमेरिका में सीमित है निर्यात लाइसेंसिंग

  • अमेरिका ने पारंपरिक रूप से बहुत ही सीमित निर्यात लाइसेंसिंग शासन किया है। मुनिशन सूची, जिसमें रक्षा वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों को शामिल किया जाता है, को राज्य विभाग द्वारा नियंत्रित किया जाता है और वाणिज्य नियंत्रण सूची, जिसमें दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी शामिल हैं, वाणिज्य विभाग के अंतर्गत आती है।

STA-1 तथा STA-2

  • 2011 में निर्यात नियंत्रण में सुधार के लिये पहल के रूप में अमेरिकी सरकार ने लाइसेंस मुक्त या लाइसेंस में छूट वाले शासन की ओर एक कदम बढ़ाते हुए सामरिक व्यापार प्राधिकरण (Strategic Trade Authorisation -STA) की अवधारणा लागू की तथा  इसके अंतर्गत दो सूचियाँ - STA-1 और STA-2 बनाई गईं। 
  • वे देश जो इनमें से किसी भी सूची का हिस्सा नहीं हैं उन्हें वाणिज्य नियंत्रण सूची (दोहरे उपयोग की वस्तुओं वाली) के प्रत्येक आइटम के लिये लाइसेंस प्राप्त करने हेतु आवेदन करना पड़ता है। 
  • STA-1 और STA-2 ने उन लोगों के बीच एक पदानुक्रम स्थापित किया जिन्हें अमेरिका "अच्छे देशों" (जो दुनिया में "प्रसार" की दिशा में योगदान नहीं देते थे) के रूप में प्रमाणित करने का इच्छुक था।
  • STA-1 सूची में 36 देश (इसमें नाटो सहयोगी और द्विपक्षीय संधि सहयोगी जैसे- जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं) हैं, जिनके अप्रसार नियंत्रण को अमेरिका दुनिया में सबसे अच्छा मानता है। 
  • उल्लेखनीय है कि ये सभी देश चारों बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण प्रणालियों- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG), मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), ऑस्ट्रेलिया समूह और वासनेर व्यवस्था का भी हिस्सा हैं। 
  • STA-1 में शामिल देशों (अमेरिका के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों) को लगभग 90% दोहरी उपयोग तकनीक के लिये लाइसेंस मुक्त पहुँच प्राप्त है और ये सभी देश राष्ट्रीय सुरक्षा, रासायनिक या जैविक हथियार इत्यादि के कारणों को नियंत्रित करने के लिये पात्र हैं भले ही प्रौद्योगिकी या वस्तु क्षेत्रीय स्थिरता या अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करे। 
  • STA-2 सूची में शामिल देशों को केवल कुछ मामलों में लाइसेंस छूट प्राप्त है लेकिन वे दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं/प्रौद्योगिकी प्राप्त नहीं कर सकते जो क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं, या परमाणु अप्रसार आदि में योगदान दे सकते हैं। 
  • STA-1 में शामिल होने से पहले, भारत STA-2 सूची में (सात अन्य देशों - अल्बानिया, हॉन्गकॉन्ग, इज़राइल, माल्टा, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका और ताइवान के साथ) शामिल था।
  • यहाँ कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है: 

♦ बहुत से देश STA-1 और STA-2 दोनों सूचियों से बाहर हैं और विशिष्ट लाइसेंस के बिना अमेरिका की उच्च तकनीक तक पहुँच प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
♦ अल्बानिया नाटो का एक सदस्य है इसके बावजूद STA-2 में शामिल है।
♦ इज़राइल, एक प्रमुख अमेरिकी सहयोगी, STA -1 में शामिल नहीं है। 
♦ फिलीपींस, एक और प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी इनमें से किसी भी सूची में शामिल नहीं है। 
♦ चीन और पाकिस्तान भी इनमें से किसी भी सूची में शामिल नहीं हैं। 

भारत तथा अमेरिका के बीच बढ़ती नज़दीकियाँ

  • भारत सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और रक्षा तथा उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग के लिये भारत का STA-2 से STA-1 में शामिल होना एक बड़ी उपलब्धि है। 
  • अमेरिकी सहयोगियों के इस कुलीन क्लब की सदस्यता से भारत के उच्च प्रौद्योगिकी व्यापार और वाणिज्य की ओर बढ़ने की उम्मीद है। 
  • अमेरिकी अनुमानों के मुताबिक, भारत के STA-1 का हिस्सा नहीं होने के कारण वह 2011 से अब तक पिछले सात वर्षों में लगभग 10 बिलियन डॉलर तक के आर्थिक लाभ का मौका खो चुका है।
  • भारतीय उच्च तकनीक उद्योग के लिये STA-1 का हिस्सा होने से भारत में बिक्री और विनिर्माण दोनों के लिये दरवाज़े खुल सकते हैं। 
  • "उद्योग बिना किसी चिंता के भारत में विनिर्माण केंद्रों की स्थापना कर सकते हैं। यहाँ तक कि तीसरे देश भी जो उच्च तकनीक विनिर्माण इकाइयों की स्थापना की मांग कर रहे हैं और जिसके लिये अमेरिका से दोहरी उपयोग वाली उपकरणों की आवश्यकता होती है, उन्हें लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया से नहीं गुज़रना पड़ेगा। 
  • भारत अब चारों बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण शासन व्यवस्थाओं का सदस्य न होने के बावजूद भी STA -1 का हिस्सा है यह इसके अप्रसार प्रमाण-पत्रों का साक्ष्य है। 

भारत के लिये STA-1 में शामिल होने का महत्त्व

  • अमेरिका में या तो उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) या द्विपक्षीय रक्षा संधि जैसे सैन्य गठजोड़ हैं ऐसे में भारत के लिये प्रमुख रक्षा सहयोगी का दर्ज़ा प्राप्त करना अद्वितीय है।
  • अमेरिका द्वारा उच्च प्रौद्योगिकी के उत्पादों की बिक्री के लिये निर्यात नियंत्रण में छूट देने से दोनों देशों के बीच रक्षा और कुछ अन्य क्षेत्रों में संबंध और मज़बूत हो सकेंगे।
  • इससे द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को बढ़ावा मिलेगा।
  • इससे अमेरिका द्वारा भारत को किया जाने वाला उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों का निर्यात सुगम होगा।
  • इस अधिसूचना के बाद अमेरिका से भारत को किये जाने वाले ड्रोन विमानों समेत अन्य आधुनिक हथियारों के निर्यात पर से सरकारी नियंत्रण खत्म हो गया है।
  • इससे न केवल दोनों देशों के बीच पारस्परिक सामंजस्य में वृद्धि होगी बल्कि लाइसेंसों की प्राप्ति में जो समय व्यर्थ होता है उसकी भी बचत होगी।

कैसे मिला भारत को यह दर्जा?

  • अमेरिका द्वारा किसी भी देश को STA-1 का दर्जा तभी दिया जाता है जब वह चार प्रमुख संगठनों- परमाणु आपूर्ति कर्त्ता समूह (NSG), मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), वासेनार व्यवस्था (WA) और ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का सदस्य हो। STA-1 का दर्जा पाने के लिये अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा ये शर्तें निर्धारित की गईं थीं।
  • भारत ने NSG के अलावा बाकी तीनों संगठनों की सदस्यता हासिल कर ली थी, लेकिन चीन की वज़ह से भारत को NSG की सदस्यता नहीं मिल पा रही थी। 
  • इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने भारत को अपना प्रमुख रक्षा साझेदार मानते हुए नियमों में ढील दी, जिसके बाद भारत को STA-1 का दर्जा मिल गया।

निष्कर्ष

  • अमेरिका ने भारत को यह दर्जा देकर चीन को एक कड़ा संदेश दिया है, चीन हमेशा से NSG में शामिल होने की भारत की मांग के खिलाफ रहा है। अब भारत को वे सभी सुविधाएँ मिलेंगी, जो NSG में शामिल किसी देश को मिलती हैं। अमेरिका के निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारत की यह स्थिति एक महत्त्वपूर्ण बदलाव की ओर संकेत करती है तथा भारत और अमेरिका के बीच सुदृढ़ होते संबंधों को भी प्रदर्शित करती है।