I2U2 एवं भारत | 14 Jul 2022

यह एडिटोरियल 12/07/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India’s new West Asia approach is a welcome break with past diffidence” लेख पर आधारित है। इसमें I2U2 समूह और I2U2 शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

I2U2 चार देशों—भारत, इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा गठित एक नया समूह है। इसे ‘आर्थिक सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंच’ (International Forum for Economic Cooperation) का नाम दिया गया था।

  • यह मध्य-पूर्व और एशिया में आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के विस्तार पर केंद्रित है, जिसके अंतर्गत व्यापार, जलवायु परिवर्तन से मुकाबला, ऊर्जा सहयोग और अन्य महत्त्वपूर्ण साझा हितों पर समन्वय करना शामिल है। चार देशों का यह समूह आधारभूत संरचना, प्रौद्योगिकी और समुद्री सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में समर्थन और सहयोग को बढ़ावा देगा।
  • I2U2 का पहला आभासी शिखर सम्मेलन यूक्रेन में संघर्ष से उत्पन्न वैश्विक खाद्य और ऊर्जा संकट पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करेगा।

I2U2 समूह की पृष्ठभूमि

  • अब्राहम समझौते:
    • सितंबर, 2020 में इज़रायल, यूएई और बहरीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में अब्राहम समझौते (Abraham Accords) पर हस्ताक्षर किये, जिसने आगे इज़रायल और खाड़ी क्षेत्र के विभिन्न अरब देशों के बीच सामान्य संबंधों की बहाली का मार्ग प्रशस्त किया।
      • I2U2 को आरंभिक रूप से अक्टूबर, 2021 में अब्राहम समझौते के बाद समुद्री सुरक्षा, आधारभूत संरचना और परिवहन से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये गठित किया गया था।
      • इसका उद्देश्य भागीदार चार देशों की क्षमताओं, ज्ञान और अनुभव की अनूठी सरणी का दोहन करना था जिसने अंततः I2U2 के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।

Lebanon-Israel

I2U2 के लिये सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन से हो सकते हैं?

  • सुरक्षा:
    • इससे देशों को इन नए समूहों के ढाँचे के भीतर आपसी सुरक्षा सहयोग के निर्माण और विस्तार में मदद मिलेगी।
      • उल्लेखनीय है कि भारत का इज़रायल, अमेरिका और यूएई के साथ पहले से ही एक सुदृढ़ द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग स्थापित है।
  • प्रौद्योगिकी:
    • इनमें से प्रत्येक देश एक प्रौद्योगिकी केंद्र होने की स्थिति रखते हैं, जहाँ जैव प्रौद्योगिकी इनमें से प्रत्येक देश में एक प्रमुख क्षेत्र है।
    • इज़रायल को पहले से ही एक ‘स्टार्टअप नेशन’ के रूप में जाना जाता है। भारत भी स्वयं अपनी क्षमता से एक व्यापक स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के विकास की दिशा में कार्यरत है।
    • यूएई भी इस बात को समझता है कि विश्व अर्थव्यवस्था का भविष्य केवल हाइड्रोकार्बन, तेल और गैस पर आधारित नहीं होगा और उसे प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी कार्य करने की ज़रूरत है।
      • इस वर्ष मई में एक परियोजना शुरू की गई जिसके तहत एक इज़रायली कंपनी ईकोपिया (Ecoppia) भारत में रोबोटिक सोलर क्लीनिंग प्रौद्योगिकी का निर्माण करेगी। यह संयुक्त अरब अमीरात की एक परियोजना के लिये है।
  • खाद्य सुरक्षा:
  • व्यापार और संपर्क:
    • I2U2 चारों देशों के बीच व्यापार एवं वाणिज्य की प्रणाली को पुनर्जीवित और पुनःप्रेरित करने में योगदान दे सकता है ।
      • उल्लेखनीय है कि अमेरिका के बाद संयुक्त अरब अमीरात भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
    • संपर्क/कनेक्टिविटी:
      • I2U2 एक ‘कनेक्टिविटी कॉरिडोर’ के निर्माण के लिये संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ भारत की परियोजना को बढ़ावा देगा जो भारत से अरब प्रायद्वीप में अरब की खाड़ी से गुज़रता हुआ इज़रायल, जॉर्डन तक और फिर वहाँ से यूरोपीय संघ तक विस्तृत होगा।
        • इस गलियाये का निर्माण पूरा होने पर भारत के लिये कंटेनर परिवहन की लागत में उल्लेखनीय कमी आएगी (उदाहरण के लिये मुंबई से ग्रीस तक वहन हेतु लागत में 40% से अधिक की कमी आ सकती है)।

भारत के लिये I2U2 का क्या महत्त्व है?

  • भारत की पश्चिम-एशियाई नीतियाँ:
    • अब तक भारत की पश्चिम एशियाई नीतियों ने मुख्यतः अरब देशों और इज़रायल के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को एक-दूसरे से अलग रखने पर बल दिया है।
      • अब भारत के पास अवसर है कि यूएई और इज़रायल के साथ अपने संबंधों का अभिसरण कर सके।
      • अब्राहम समझौते से लाभ:
        • अब्राहम समझौते से भारत को संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब देशों के साथ अपने संबंधों को जोखिम में डाले बिना इज़रायल के साथ संबंधों को गहरा कर सकने का लाभ मिलेगा।
  • मुनाफा बाज़ार:
    • भारत एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है। यह उच्च-प्रौद्योगिकीय और अत्यधिक मांग वाली वस्तुओं का अग्रणी उत्पादक भी है जो पश्चिम एशिया के निवेशकों को आकर्षित करेगा।
  • भू-राजनीतिक उपस्थिति को प्रोत्साहन:
    • I2U2 विशेष रूप से पश्चिम एशिया में भारत की भू-राजनीतिक उपस्थिति को बढ़ावा देगा और भारत रणनीतिक एवं आर्थिक रूप से स्वयं को प्रमुख विश्व खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकेगा।
    • पश्चिम एशिया में लगभग 8-9 मिलियन भारतीय निवास करते हैं जिनमें से केवल संयुक्त अरब अमीरात में ही 25 लाख भारतीय मौजूद हैं। वे भारत के ‘सद्भावना दूत’ के रूप में अपनी उपस्थिति रखते हैं।
      • पश्चिम एशिया के भारतीय समुदाय धन प्रेषण (Remittances) के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं। I2U2 के माध्यम से पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग की वृद्धि से आवक धन प्रेषण में वृद्धि होगी।
      • अंतर्राष्ट्रीय प्रवास पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में खाड़ी देशों से भारत को प्राप्त आवक प्रेषण 38 बिलियन डॉलर का रहा था।

I2U2 से संबद्ध चुनौतियाँ

  • इज़रायल के लिये चुनौतियाँ:
    • जहाँ तक शांति स्थापना और अरब-इज़रायल संघर्ष के समाधान का प्रश्न है, अब्राहम समझौते को एक बड़ी सफलता माना जा सकता है।
      • हालाँकि इस भूभाग के अन्य देश अभी भी इज़रायल के साथ मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंध निर्माण को लेकर अनिच्छुक बने हुए हैं।
    • इसके साथ ही, वास्तविक धरातल पर इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष अभी भी चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र है।
  • अरब दुनिया के आंतरिक संघर्ष:
    • ईरान-सऊदी अरब: ईरान और सऊदी अरब के बीच शिया-सुन्नी संघर्ष जारी है जो इराक, सीरिया, लेबनान और यमन में भी संघर्ष का एक प्रमुख विषय है।
  • देशों का गुटों में बँटना:
    • अरब जगत में आंतरिक संघर्ष ईरान जैसे भारत के महत्त्वपूर्ण साझेदारों को दूसरे समूह में शामिल होने को प्रेरित कर सकता है।
    • विकसित हो रहे नए समीकरण देशों को दो गुटों में बाँट सकते हैं जहाँ एक ओर चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान और तुर्की होंगे जबकि दूसरी ओर भारत, इज़रायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात होंगे।
  • मध्य-पूर्व में चीन की बढ़ती भूमिका:
    • भारत को चीन को लेकर भी सतर्कता रखनी होगी जो इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार कर रहा है।
    • इज़रायल:
      • इज़रायल के हाइफ़ा बंदरगाह (Haifa port) का चीन द्वारा विस्तार किया गया है जहाँ उसने 1.5 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
      • चीन अशदोद बंदरगाह (Ashdod port) का भी निर्माण कर रहा है जो भूमध्य सागर में इज़रायल का एकमात्र बंदरगाह है।
    • संयुक्त अरब अमीरात:
      • संयुक्त अरब अमीरात विश्व के उन पहले देशों में से एक था, जिन्हें 5G परियोजना के लिये चीनी बहुराष्ट्रीय कंपनी हुआवेई (Huawei) की सहायता मिली थी।

आगे की राह

  • अवसर का लाभ उठाना:
    • I2U2 सभी संबंधित देशों के लिये लाभ का सौदा है। जहाँ तक पश्चिम एशिया के साथ सहयोग का संबंध है, भारत को एक अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
      • भारत को इस भूभाग में अत्यंत सतर्कता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, श्रमिक, व्यापार, निवेश और समुद्री सुरक्षा जैसे भारत के कई मूलभूत हित इस क्षेत्र से संलग्न हैं।
  • पश्चिम एशिया में अन्य भागीदारों को आश्वस्त करना:
    • भूभाग के दो देशों- ईरान और मिस्र को विशेष रूप से आश्वस्त किये जाने की आवश्यकता है कि यह नई व्यवस्था उनके विरुद्ध लक्षित नहीं है।
      • भारत के लिये अफगानिस्तान के वर्तमान संदर्भ में ईरान महत्त्वपूर्ण है। भारत को इस क्षेत्र में कूटनीतिक और रणनीतिक दोनों तरह की चुनौतियों से निपटना होगा।
      • मिस्र का इस गठबंधन के सभी चार देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध है लेकिन फिर भी उसे आश्वस्त किया जाना चाहिये कि इस समूह से वह आर्थिक या राजनीतिक रूप से प्रभावित नहीं होगा।
  • चारों देशों के बीच आपसी सहयोग:
    • पश्चिम एशियाई क्षेत्र की जटिलताओं से निपटने की राह में कई चुनौतियाँ मौजूद हैं।
      • एक-दूसरे के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिये प्रतिद्वंद्वी देशों को कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से संतुलित करना चारों देशों के बीच आपसी सहयोग के माध्यम से कार्यान्वित किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: I2U2 के लक्ष्यों और उद्देश्यों का समालोचनात्मक परीक्षण करें। भारत के लिये इसका क्या महत्त्व है?