भारत में रोहिंग्याओं की स्थिति | 05 Oct 2018

संदर्भ

हाल ही में भारत से सात रोहिंग्याओं को वापस उनके देश म्याँमार में भेजा गया है। दरअसल, चिंता की मुख्य वजह यह है कि यदि रोहिंग्या भारत में बसते हैं तो असहाय और बेरोज़गार युवा रोहिंग्या पाकिस्तान की इंटर सर्विस इंटेलिजेंस और अंतर्राष्ट्रीय जिहादी संगठनों जैसे कि अल-कायदा तथा अन्य लोगों के लिये आसान शिकार होंगे। अतः ज़रूरी है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इनकी उपस्थिति और उससे उत्पन्न समस्यायों को वक्त रहते पहचाना जाए।

वर्तमान प्रकरण

  • उल्लेखनीय है कि म्याँमार के पश्चिमी तट पर रखाईन प्रांत के मुसलमान रोहिंग्या, सशस्त्र बलों द्वारा उत्पीड़न के बाद वर्ष 2011 के अंत में भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पहुँचने लगे थे।
  • अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के कारण वर्ष 2012 में सात लोगों को गिरफ्तार किया गया था और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया और तब से उन रोहिंग्या पुरुषों को असम के सिलचर सेंट्रल जेल में तीन महीने तक हिरासत में रखा गया था।
  • हाल ही में असम राज्य ने विदेश मंत्रालय (जो विदेशी मिशनों और दूतावासों के माध्यम से राष्ट्रीयता को सत्यापित करता है) के साथ उन सात रोहिंग्या व्यक्तियों के बारे में विवरण साझा किया। म्याँमार द्वारा भी उनकी पहचान की पुष्टि की गई और उन्हें यात्रा दस्तावेज़ जारी किए गए।
  • इस बीच विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, सात लोगों ने भारत में म्याँमार दूतावास से अनुरोध किया कि वह उन्हें वापसी की सुविधा दे।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था और वापस लौटने की इच्छा की दोबारा पुष्टि करने के बाद, भारत ने मणिपुर के मोरेह सीमा पर सात लोगों को म्याँमार के अधिकारियों को सौंप दिया था।
  • क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मतलब यह है कि रोहिंग्या को अब म्याँमार वापस भेजा जा सकता है? यदि इस प्रश्न के उत्तर को तलाशें तो उत्तर स्पष्ट रूप से ‘नहीं’ होगा।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप से इनकार करने से अवैध आप्रवासियों की पहचान और निर्वासन पर केंद्र के अगस्त 2017 के आदेश की चुनौती का कोई असर नहीं पड़ता है। गौरतलब है कि यह याचिका अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कन्वेंशन के तहत भारत के दायित्वों से संबंधित है।

अवैध आप्रवासी कौन हैं ?

  • एक अवैध आप्रवासी से तात्पर्य विदेशी राष्ट्र के ऐसे नागरिक से है जो वैध यात्रा दस्तावेज़ो द्वारा भारत में प्रवेश करता है और उनके वैधता की समाप्ति के बावज़ूद यहाँ रहता है या एक विदेशी राष्ट्र के नागरिक से है जो वैध यात्रा दस्तावेज़ों के बिना ही किसी देश की सीमा में प्रवेश करता है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन और 1967 के शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है और वर्तमान में भारत में शरणार्थियों से संबंधित राष्ट्रीय कानून भी नहीं है।
  • वर्ष 2011 से केंद्र सरकार सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शरणार्थियों के रूप में दावा करने वाले विदेशी नागरिकों से निपटने के लिये एक मानक संचालन प्रक्रिया अपनाने के लिये कार्यरत है।
  • ऐसे मामले जो प्रथम दृष्टया जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीय पहचान, किसी विशेष सामाजिक समूह या राजनीतिक राय के कारण, छेड़छाड़, भय के आधार पर उचित प्रतीत होते हैं, उन्हें उचित सुरक्षा के सत्यापन के बाद दीर्घकालिक वीज़ा के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय को राज्यों या संघ शासित प्रदेशों द्वारा अनुशंसित किया जा सकता है।
  • दीर्घकालिक वीज़ा धारकों को निजी क्षेत्र में रोज़गार प्राप्त करने और किसी भी शैक्षिक संस्थान में दाखिला लेने की अनुमति है।

अवैध प्रवासी के निर्धारण की शक्ति

  • भारत सरकार के अनुसार, अवैध प्रवासी भारतीय नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और आतंकवादी संगठनों द्वारा भर्ती के लिये अधिक संवेदनशील हैं।
  • दरअसल, अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाना और उन्हें वापस भेज देना एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है और गृह मंत्रालय ने ‘विदेशी अधिनियम, 1946’ की धारा 3(2) के तहत अवैध विदेशी नागरिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
  • अवैध रूप से भारत में रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान और निर्वासन की शक्ति राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और गृह मंत्रालय के आप्रवासन ब्यूरो को सौंपी गई है।
  • अनधिकृत रूप से भारत में प्रवेश करते समय सीमा पर ही अवैध आप्रवासियों को उसी समय वहाँ से वापस भेजा जा सकता है।
  • आप्रवासन, वीज़ा और विदेशियों के पंजीकरण और ट्रैकिंग (IVFRT) पर मिशन मोड प्रोजेक्ट पर भारतीय मिशनों में प्राप्त जानकारी को एकीकृत और साझा करके विदेशियों की बेहतर ट्रैकिंग की सुविधा प्रदान करेगा।

वर्तमान में भारत में रोहिंग्याओं की स्थिति

  • गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत में 14,000 से अधिक यूएनएचसीआर पंजीकृत रोहिंग्या हैं।
  • हालाँकि, सुरक्षा एजेंसियों का अनुमान है कि भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं की संख्या 40,000 है।
  • साथ ही हरियाणा, यूपी और राजस्थान राज्यों के अलावा जम्मू, हैदराबाद और दिल्ली-एनसीआर में रोहिंग्या आबादी के क्लस्टर हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि भारत सरकार का यह अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्व है कि रोहिंग्याओं को अपने देश में संस्थागत भेदभाव, उत्पीड़न, नफरत और मानवाधिकारों के उल्लंघन से आवश्यक सुरक्षा प्रदान करे।

आगे की राह

  • भारत ने 1951 के ‘यूनाइटेड नेशंस रिफ्यूजी कन्वेंशन’ और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। दरअसल, इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले देश की यह कानूनी बाध्यता हो जाती है कि वह शरणार्थियों की मदद करेगा।
  • इसी वज़ह से वर्तमान में भारत के पास कोई राष्ट्रीय शरणार्थी नीति नहीं है। लिहाज़ा शरणार्थियों की वैधानिक स्थिति बहुत अनिश्चित है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विरुद्ध है।
  • एक लोकतांत्रिक राष्ट्र होने के नाते भारत का यह दायित्व बनता है कि वह संकटग्रस्त लोगों के लिये अपने दरवाज़े खुले रखे।
  • जिस शरणार्थी को शरण देने की अनुमति दे दी गई है, उसे बकायदा वैधानिक दस्तावेज़ मुहैया कराए जाएँ, ताकि वह सामान्य ढंग से जीवन-यापन कर सके।
  • हालाँकि, देशहित सर्वोपरि होता है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता। शरणार्थियों के कारण संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, कानून व्यवस्था के लिये चुनौती उत्पन्न होती है।
  • अतः परिस्थितियों को देखते हुए शरणार्थियों को वापस म्याँमार भेजने से ज़्यादा उचित एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था का निर्माण करना है, ताकि शरणार्थियों का प्रबंधन ठीक से हो सके।