क्या खाद्यान्न की बर्बादी है भुखमरी का प्रमुख कारण? | 16 Oct 2018

भुखमरी एक वैश्विक चुनौती है। यदि हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर नज़र डालें तो पता चलता है कि भारत में भुखमरी की स्थिति क्या है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 में भारत में भुखमरी की स्थिति को ‘गंभीर’ श्रेणी में रखा गया है। भारत की स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत इस सूचकांक में 103वें स्थान पर है, जबकि इसमें कुल 119 देशों को ही शामिल किया गया था। यद्यपि वैश्विक खाद्य उत्पादन इतना है कि सभी को आसानी से भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है। फिर क्या कारण है इस वैश्विक समस्या का? क्यों भोजन सभी के लिये सुलभ नहीं है?

क्या है भुखमरी?

  • भुखमरी से हमारा आशय भोजन की अनुपलब्धता से होता है। किंतु खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) प्रतिदिन 1800 किलो कैलोरी से कम ग्रहण करने वाले लोगों को भुखमरी का शिकार मानता है।

भुखमरी के कारण उत्पन्न समस्याएँ

अल्पपोषण (Under Nutrition): स्वस्थ शरीर के लिये अपेक्षित पोषक पदार्थों की मात्रा जब किसी वज़ह से उपलब्ध नहीं हो पाती है तो व्यक्ति अल्पपोषण का शिकार हो जाता है। इसलिये भोजन की मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता का होना भी ज़रूरी है। इसका अर्थ है कि भोजन में आवश्यक कैलोरी की मात्रा के साथ-साथ प्रोटीन, विटामिन और खनिज भी पर्याप्त मात्रा में होना चाहिये।

चाइल्ड वेस्टिंग (Child Wasting): 5 वर्ष तक की उम्र के ऐसे बच्चे जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में काफी कम हो। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 के अनुसार, पाँच वर्ष से कम आयु के पाँच भारतीय बच्चों में से कम-से-कम एक बच्चा ऐसा है जिसकी लंबाई के अनुपात में उसका वज़न अत्यंत कम है।

चाइल्ड स्टन्टिंग (Child Stunting): जिनकी लंबाई उनकी उम्र की तुलना में कम हो।

बाल मृत्यु दर (Child Mortality Rate): 5 वर्ष तक की आयु में प्रति 1000 बच्चों में मृत्यु के शिकार बच्चों का अनुपात।

भुखमरी : एक वृहद् समस्या

  • वैश्विक स्तर पर सभी के लिये खाद्य उत्पादन पर्याप्त होने के बावज़ूद भी लगभग 815 मिलियन लोग ऐसे हैं जो अल्पपोषण (Under Nourishment) की समस्या से पीड़ित हैं।
  • भारत अपने सभी नागरिकों को भोजन मुहैया कराने के लिये पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न उत्पादन करता है, फिर भी वैश्विक भूख इंडेक्स रैंकिंग में 119 देशों में यह 103 वें स्थान पर है।
  • यद्यपि भारत पिछले दशक से खाद्य-सुरक्षित देश रहा है, लेकिन इसकी आर्थिक वृद्धि और बदलती जनसांख्यिकी खाद्य मांग के पैटर्न को बदल रही है।

खाद्यान्न की बर्बादी

  • गोदामों और शीत-गृहों (Cold Storage) की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण भारत में कुल वार्षिक खाद्य उत्पादन का लगभग 7% तथा फल एवं सब्ज़ियों का लगभग 30% बर्बाद हो जाता है।
  • हालाँकि अन्य देशों में भी समान स्थिति है और अफ्रीका में तो अनुमानतः इतना खाद्यान्न बर्बाद होता है कि उससे लगभग 40 मिलियन लोगों को खाना खिलाया जा सकता है।
  • भारत में शीत श्रृंखला विकास के लिये राष्ट्रीय केंद्र (National Centre for Cold-chain Development- NCCD) का अनुमान है कि देश में पूर्व-वातानुकूलित कृषि उपजों के स्थानांतरणये हेतु आवश्यक तापमान नियंत्रण परिवहन सुविधाओं की उपलब्धता कुल आवश्यकता का केवल 15% है तथा पूर्व-वातानुकूलित गोदाम सुविधा भी 1% से कम है।

चिंताजनक आँकड़े

  • भोजन की बर्बादी को लेकर न केवल सरकारें बल्कि सामाजिक संगठन भी चिंतित हैं। दुनिया भर में हर साल जितना भोजन तैयार होता है उसका लगभग एक-तिहाई बर्बाद हो जाता है। 
  • बर्बाद किया जाने वाला खाना इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों के भोजन की ज़रूरत पूरी हो सकती है। 
  • भारत में बढ़ती संपन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही खाना फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आज भी देश में विवाह स्थलों के पास रखे कूड़ाघरों में 40 प्रतिशत से अधिक खाना फेंका हुआ मिलता है।
  • अगर इस बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है। 

भोजन की बर्बादी से संबंधित नैतिक समस्याएँ

  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी, मानव अस्तित्व के लिये ज़रूरी हक ‘भोजन के अधिकार’ का उल्लंघन है। भोजन की बर्बादी विश्व के करोड़ों लोगों की सामाजिक सुरक्षा की उपेक्षा करती है। 
  • भोजन की बर्बादी दुनिया के करोड़ों बच्चों के कुपोषण के लिये भी ज़िम्मेदार है। पोषण के अधिकार का बाधित होना, बच्चों की शिक्षा और आगे चलकर आजीविका के अधिकार को भी बाधित करता है।  
  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी संसाधनों के दुरुपयोग को इंगित करती है। धन के साथ-साथ अनाज, जल, खाद्य उत्पादन में लगी ऊर्जा आदि का दुरुपयोग भी इसी में निहित है।   
  • विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भोजन के अपव्यय से जल, ज़मीन और जलवायु के साथ-साथ जैव विविधता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। सड़ा हुआ भोजन मीथेन गैस उत्पन्न करता है, जो कि प्रमुख प्रदूषणकारी गैस है। 
  • भुखमरी के कारण समुदायों का पलायन उन इलाकों की ओर होता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध हो। अत्यधिक पलायन समुदायों में संघर्ष और सामाजिक असंतुलन पैदा कर देता है।

खाद्यान्न की बर्बादी का पर्यावरण पर प्रभाव

  • खाद्यान्न की क्षति और बर्बादी न केवल संसाधनों के कुप्रबंधन का मुद्दा है बल्कि यह बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी योगदान देती है।
  • खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 8% के लिये खाद्य अपशिष्ट भी ज़िम्मेदार होते हैं।

खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने के उपाय

  • खाद्य उत्पादन, प्रसंस्करण, संरक्षण और वितरण की अधिक कुशल एकीकृत प्रणालियों को डिज़ाइन और उन्हें विकसित किये जाने की ज़रूरत है जो देश की बदलती खाद्य ज़रूरतों को पूरा कर सके। 
  • इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रेफ्रिजरेशन के अनुसार, यदि विकासशील देशों के पास विकसित देशों के समान ही शीत-गृहों की उपलब्धता हो तो वे अपनी खाद्य आपूर्ति का 14% या लगभग 200 मिलियन टन भोजन को बर्बाद होने से बचा सकेंगे।
  • देश के भोजन का केवल 4% शीत श्रृंखलाओं के माध्यम से स्थानांतरित हो पाता है। शीत श्रृंखलाएँ न केवल फसल काटने के बाद होने वाले नुकसान को कम करती हैं बल्कि इससे उत्पाद की गुणवत्ता बनी रहती है।
  • शीत श्रृंखला में वृद्धि के साथ अलग-अलग जलवायु वाले क्षेत्रों में खाद्यान्न का परिवहन आसानी से किया जा सकेगा।

भोजन की बर्बादी पर रोक लगाने को बने कानून 

  • सरकार भोजन की बर्बादी को कम करने के लिये कानून बना सकती है जो कंपनियों को उनकी आपूर्ति श्रृंखला में भोजन बर्बाद करने के लिये दंडित करे और खाद्य पदार्थों के पुनर्निर्माण और रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करे। उदाहरण के लिये फ्राँस 2016 में विश्व का पहला ऐसा देश बना जिसने अपने यहाँ सुपर मार्केट द्वारा न बिकने वाले फलों, सब्ज़ियों एवं अन्य खाद्य पदार्थों को नष्ट करने पर प्रतिबंध लगाया है।

निष्कर्ष

  • वर्तमान समय में प्रत्येक देश विकास के पथ पर आगे बढ़ने का दावा करता है। अल्पविकसित देश विकासशील देश बनना चाहते हैं तो वहीँ विकासशील देश विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं। इसके लिये देशों की सरकारें प्रयास भी करती हैं तथा विकास के संदर्भ में अपनी उपलब्धियों को गिनाती हैं। यहाँ तक कि विकास दर के आँकड़े से यह अनुमान लगाया जाता है कि कोई देश किस तरह विकास कर रहा है कैसे आगे बढ़ रहा है? ऐसे में जब कोई ऐसा आँकड़ा सामने आ जाए जो आपको यह बताए कि अभी तो देश ‘भूख’ जैसी ‘समस्या को भी हल नहीं कर पाया है, तब विकास के आँकड़े झूठे लगने लगते हैं। यह कैसा विकास है जिसमें बड़ी संख्या में लोगों को भोजन भी उपलब्ध नहीं है।