कितना जायज़ है दिव्यांगों के लिये जीएसटी की उच्च दरों का निर्धारण? | 29 Jun 2017

सन्दर्भ
जीएसटी के लागू होने के साथ-साथ एक इससे जुड़ा सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न भी सर्वाधिक चर्चा में है। वह प्रश्न विभिन्न वस्तुओं पर आरोपित होने जा रहे विभिन्न दरों से संबंधित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शारीरिक तौर पर अक्षम व्यक्तियों को दिव्यांग नाम देकर एक सकारात्मक शुरुआत की, लेकिन ऐतिहासिक ‘वस्तु एवं सेवा कर’ दिव्यांगजनों के उम्मीदों पर खरा उतरता दिखाई नहीं दे रहा है।

समस्याएँ एवं चुनौतियाँ

  • जीएसटी लागू होने के साथ ही दिव्यांग लोगों के द्वारा उपयोग किये जाने वाले लगभग सभी आवश्यक उपकरण (जैसे- व्हील चेयर, ब्रेल टाइपराइटर, सुनने वाली मशीन) अपने मूल्य से 5% महँगे हो जाएंगे। यदि जीएसटी विधेयक के अध्याय 90:9 के विवाद को नहीं सुलझाया गया तो कुछ ऑर्थोपेडिक उपकरण जैसे-बैसाखी (crutches) और सर्जिकल बेल्ट के मूल्य में भी 12% तक की बढ़ोतरी होने की संभावना है। 
  • भारत में छोटी कारों को भी विलासिता की वस्तु के समान माना जा रहा है।  जीएसटी परिषद् ने इन पर 18% की दर से कर लगाने का निर्णय लिया है, जबकि देश में सार्वजानिक परिवहन के साधन आज भी दिव्यांगजनों के प्रयोग के अनुकूल नहीं हैं और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों द्वारा स्वयं के लिये अनुकूल कारों को खरीदना विलासिता नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है। 
  • दरअसल, भारत के सामान्य दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आवश्यक उपकरण प्राप्त करना पहले से ही एक चुनौती बना हुआ है, अब इन पर 5% जीएसटी लगने से दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आवश्यक वस्तुएं प्राप्त करना और भी कठिन हो जाएगा। 
  • यह स्पष्ट नहीं है कि जीएसटी परिषद् भारत के दिव्यांग व्यक्तियों पर कर क्यों लगा रही है, जबकि कुछ वस्तुओं जैसे काजल पर 0% कर तथा कीमती पत्थरों पर 0.25% की दर से कर लगाया जा रहा है।  दिव्यांग व्यक्तियों की अधिकांश वस्तुओं पर 5% की दर से कर लगाया जाएगा।  पतंग, अगरबत्ती और काजू पर भी 5% की दर से कर लगेगा। 
  • उल्लेखनीय है कि जीएसटी परिषद् द्वारा लिया गया यह निर्णय हाल ही में पारित किये गए विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (RPWD) अधिनियम, 2016 का उल्लंघन करता है। इस अधिनियम के अध्याय 8 (सरकारों के कर्तव्य एवं ज़िम्मेदारियाँ) में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि संबंधित सरकार को दिव्यांग व्यक्तियों की व्यक्तिगत सक्षमता को बढ़ावा देने के लिये कार्यक्रमों का विकास करना चाहिये।
  • विदित हो कि वर्ष 1990 में भी व्हील चेयर पर 30% तथा बैसाखी पर 25% की दर से कर लगाया गया था।  वर्ष 2001 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के समक्ष इस मुद्दे को उठाया गया, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया। कुछ वर्षों बाद जब वे पुनः वित्त मंत्री बने तो उन्होंने इन पर लगने वाले कर में कमी करके इसे 5% कर दिया। 
  • वर्ष 2006 में पुनः तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कर की दर में कमी करके इसे 0% कर दिया तथा 10 वर्षों तक स्थिति यही बनी रही, परन्तु अब ऐसा प्रतीत होता है कि देश वर्ष 2002-2004 की स्थिति में पुनः लौट रहा है।

क्या हो आगे का रास्ता?

  • ज्ञात हो कि दिव्यांगजनों की समस्याओं के समाधान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए सरकार द्वारा छह माह पूर्व ही नए दिव्यांग कानून को पारित किया गया था। अब वित्त मंत्रालय और विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिये विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities) को कम से कम एक समिति अथवा एक कार्यकारी समूह का गठन करना चाहिये, जो इसके अध्याय 8 में दिये गए अधिदेश का गंभीरतापूर्वक संज्ञान ले। 
  • इस अध्याय में यह कहा गया है कि विकलांग व्यक्तियों के यंत्रों को वहनीय कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिये प्रोत्साहन योजनाओं और रियायती कार्यक्रमों का विकास किया जाना चाहिये। भारत को दिव्यांग जनसंख्या की बेहतरी के लिये निवेश करना चाहिये। गौरतलब है कि भारत में 70  मिलियन दिव्यांग लोग हैं।

निष्कर्ष
यदि दिव्यांग व्यक्ति अपने घर से बाहर निकलने में सक्षम होंगे, स्कूल और कॉलेज जा सकेंगे, योग्यता के आधार पर रोज़गार प्राप्त करेंगे तथा कार्यस्थल पर जाकर अपनी प्रतिभा का परिचय देंगे तो वे देश की संवृद्धि और आर्थिक प्रगति में योगदान कर सकते हैं।  अच्छी गुणवत्ता वाले और वहनीय उपकरण उनके सपनों को साकार करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।