कितना हितकारी है केन बेतवा का मिलन? | 21 Jan 2017

सन्दर्भ

  • गौरतलब है कि हाल ही में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी के लिये हरी झंडी मिल गई है| हालाँकि सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय प्राधिकार समिति, मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व पर इस परियोजना के प्रतिकूल प्रभावों की जाँच कर रही है और प्रभावों के न्यूनीकरण के उपायों पर विचार कर रही है| 
  • हाल ही में केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के सन्दर्भ में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने कथित तौर पर यह बयान दिया है कि ‘कैसे हम पशु-पक्षियों की खातिर विकास कार्यों को रोक सकते हैं’| केन्द्रीय मंत्री ने बयान दिया है या नहीं इस बात को लेकर विवाद हो सकता है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से होने वाली पर्यावरणीय क्षति को रोकना एक गंभीर चुनौती है| पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान की सम्भावनाओं के बीच इस परियोजना के उद्देश्यों को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं|

क्या है केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना?

  • सूखी नदियों को सदा जल से भरी रहने वाली नदियों से जोड़ने की बात आज़ादी के समय से ही शुरू हो गई थी लेकिन पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाने, ख़र्चीली परियोजना होने और अपेक्षित नतीजे न मिलने के डर से ऐसी परियोजनाओं पर क्रियान्वयन नहीं हो पाया| नदियों का पानी समुद्र में न जाए- इसे लेकर नदियों को जोड़ने के पक्ष में तर्क दिये जाते रहे हैं| और माना जा रहा है भारत में ‘नदी जोड़ो’ उपक्रम का आरम्भ केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के साथ ही हो जाएगा|
  • विदित हो कि इस परियोजना के अंतर्गत केन और बेतवा नदियों को आपस में जोड़ने वाले 230 किलोमीटर लंबी नहर और विभिन्न बैराज और बाँधों की एक श्रृंखला का निर्माण करना है जिससे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के 6.35 लाख हेक्टेयर भूमि में फसलों की सिंचाई सुलभ होने की उम्मीद है|
  • सर्वप्रथम इस परियोजना के अंतर्गत 9,000 हेक्टेयर के जलाशय का निर्माण कर उसमें पानी रोका जाएगा| इस जलाशय के पास ही दो पावरहाउस बनाए जाएंगे जिनसे 78 मेगावाट हाइड्रोपावर का उत्पादन किया जाएगा फिर 230 किमी लंबी नहर निकाली जाएगी|
  • इस नहर के मध्यम से एक व्यापक क्षेत्र को सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध कराया जाएगा और उसके बाद भी एक निश्चित मात्रा में केन नदी से बेतवा नदी में पानी छोड़ा जाएगा, हालाँकि यहाँ पर सबसे वाजिब सवाल यह है कि क्या केन और बेतवा नदियों में इतना पानी उपलब्ध है?

कितना पानी है केन और बेतवा में?

  • केन और बेतवा में कितना पानी है! यह अभी तक रहस्य बना हुआ है, क्योंकि यह जानकारी सार्वजानिक अधिकार क्षेत्र के दायरे के बाहर रखी गई है| गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले जल संसाधन मंत्रालय द्वारा नदियों को आपस में जोड़ने पर गठित तत्कालीन समिति के एक सदस्य ने यह जानकारी माँगी कि केन और बेतवा नदियों में कितना पानी है, आश्चर्य कि बात है कि उन्हें यह कहकर मना कर दिया गया कि केन-बेतवा, गंगा नदी घाटी के भाग हैं जो कि एक अन्तराष्ट्रीय नदी घाटी है अतः अंतराष्ट्रीय नियमों के अनुसार संबंधित नदियों में पानी की मात्रा के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी जा सकती|
  • चूँकि केन-बेतवा परियोजना की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि दोनों नदियों में कितना पानी है,यदि नदियों में जल का स्तर कम हुआ तो जलाशय में पानी इकट्ठा कर न तो बिजली उत्पादन हो सकता है और न ही नहर निकाली जा सकती है अतः पहले केन-बेतवा में कितना पानी है इसका ईमानदार आकलन करना होगा|

केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के संबंध में अन्य चिंताएँ

  • जंगल केवल पशु-पक्षियों के आश्रय स्थल नहीं हैं बल्कि यह नदियों के लिये परिपोषण का भी कार्य करता है, हाल ही में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में उल्लेख किया गया है कि केन नदी के जलग्रहण क्षेत्र में मौज़ूद पन्ना टाइगर रिजर्व की 10,500 हेक्टेयर भूमि इस परियोजना के द्वारा नष्ट हो जाएगी| विदित हो कि इतने बड़े पैमाने पर वन्य भूमि के नष्ट हो जाने से जीव-जंतु प्रभावित तो होंगें ही साथ में नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में भी व्यापक बदलाव देखने को मिलेगा| लेकिन अफसोस की बात है, कृषि वित्त निगम लिमिटेड द्वारा किये गए पर्यावरण प्रभाव आकलन में इसका उल्लेख तक नहीं है|
  • इस परियोजना से प्रभावित होने वाले गाँवों में कमजोर आय वर्ग और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं और कुल 7000 के करीब लोगों के विस्थापन की एक महत्त्वपूर्ण चुनौती सामने होगी| इस परियोजना में निर्माण कार्य, विस्थापन और पुनर्वास, एवं अन्य कार्यों पर अनुमानित लागत करीब 30,000 करोड़ रुपए तक हो सकती है| ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि राजनेताओं, नौकरशाहों और व्यवसाइयों का एक बड़ा भ्रष्टाचारी वर्ग इस परियोजना की तरफ़ गिद्धदृष्टि से देख रहा है|
  • केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का मुख्य उद्देश्य केन नदीघाटी के अधिशेष जल के प्रतिस्थापन के माध्यम से ऊपरी बेतवा घाटी में पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों के लिये पानी उपलब्ध कराना है| विदित हो कि उपरी बेतवा घाटी बुन्देलखण्ड से बाहर स्थित है, इसका अर्थ यह हुआ कि पहले से ही जलसंकट ग्रस्त बुन्देलखण्ड से पानी खींचकर बुन्देलखण्ड के बाहर पहुँचाया जाएगा|
  • गौरतलब है कि अकेले बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 4000 से भी ज़्यादा तालाब हैं, यदि इन सभी तालाबों को सँवार लिया जाए तो इन नदियों को जोड़ने की ज़रूरत तो रह ही नहीं जाएगी और कई हजार करोड़ रुपए इस परियोजना पर खर्च होने से भी बच जाएँगे| इस परियोजना को पूरा करने का समय 10 साल बताया जा रहा है, लेकिन हमारे यहाँ भूमि अधिग्रहण और वन भूमि में निर्माण कार्य की स्वीकृति में जो अड़चनें आती हैं, उनके चलते यह परियोजना 20-25 साल से पहले सम्पूर्ण नहीं हो पाएगी|

निष्कर्ष

  • भारत में नदियों को जोड़ने की पहली पहल ऑर्थर कॉटन ने की थी| लेकिन फिरंगी हुकूमत का नदियों को जोड़ने का मकसद देश में गुलामी के शिकंजे को और मज़बूत करने के साथ,बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा का दोहन करना था| हालाँकि आज़ादी के बाद भी नदियों को जोड़ने की माँग होती रही है लेकिन अब तक इस परियोजना को अमल में नहीं लाया गया है क्योंकि इस परियोजना को अमल में लाने में व्यापक चुनौतियाँ तो हैं ही, साथ में यदि यह परियोजना अमल में लाई जाती हैं, तो नदियों की अविरलता खत्म होने की आशंका भी है|
  • यदि नदियों को जोड़ो अभियान के तहत केन-बेतवा नदियाँ जुड़ जाती हैं तो इनकी अविरल बहने वाली धारा टूट सकती है| उत्तराखण्ड में गंगा नदी पर  टिहरी बांध बनने के बाद एक तरफ तो गंगा की अविरलता प्रभावित हुई है, वहीं दूसरी तरफ पूरे उत्तराखण्ड में बादल फटने और भूस्खलन की आपदाएँ बढ़ गई हैं| लेकिन हमारे नीति निर्माताओं ने इससे कोई सीख नहीं लिया है|
  • गौरतलब है कि बुंदेलखंड में लगभग चार हज़ार तालाब हैं, और इनमें से आधे तालाब कई किलोमीटर वर्ग क्षेत्रफल के हैं| यह ही सत्य है कि बुंदेलखंड देश के अत्यधिक पिछड़े हुए इलाकों में से एक है, यदि यहाँ के लोगों की समस्याओं को दूर करना है तो सरकार को इन तालाबों को गहरा करने व उनकी मरम्मत पर विचार करना चाहिए|
  • एक तथ्य यह भी है कि केन की सहायक नदियाँ जैसे बन्ने, केल, उर्मिल, धसान आदि वर्षा के मौसम में पानी से लबालब भर जाती हैं| यदि केन को उसकी सहायक नदियों से जोड़ा जाए तो शायद पानी की समस्या का कारगर उपाय निकल सकता है|
  • भौतिकवादी महत्त्वकांक्षाओं ने पर्यावरण में इतना अधिक परिवर्तन ला दिया है कि मानव और प्रकृति के बीच का संतुलन, जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है, धराशायी होने के कगार पर पहुँच गया है| साथ ही मानव की अदूरदर्शी विकास प्रक्रियाओं ने विनाशात्मक रूप धारण कर लिया है ऐसे में डर है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना कहीं अदूरदर्शी विकास प्रक्रियाओं का एक उदहारण न बन जाए|