भारत में नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार | 23 Aug 2025
यह एडिटोरियल 21/08/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Nuclear Energy Can Help Power India's Economic Growth, Private Push Welcome,” पर आधारित है। इसमें नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी की अनुमति देने की दिशा में सरकार के बदलाव पर चर्चा की गई है। हालाँकि, नियामक बाधाएँ और जन चिंताएँ जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो भारत में नाभिकीय ऊर्जा के विकास में संभावित रूप से बाधा डाल सकती हैं।
प्रिलिम्स के लिये: भारत स्मॉल रिक्टर, भारत का नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र, नाभिकीय ऊर्जा अधिनियम, 1962, नाभिकीय ऊर्जा नियामक बोर्ड, परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010, कुडनकुलम नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र, फुकुशिमा आपदा, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
मेन्स के लिये: भारत का नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र: संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह
भारत का ऊर्जा परिदृश्य एक परिवर्तनकारी बदलाव के दौर से गुजर रहा है, सरकार दशकों में पहली बार नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिये खोलने की योजना बना रही है। यह कदम वर्ष 2047 तक नाभिकीय ऊर्जा क्षमता को महत्त्वाकांक्षी 100,000 मेगावाट तक बढ़ाने के देश के व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा है। हालाँकि, लागत में वृद्धि, लाइसेंसिंग में विलंब और जनता की चिंताएँ जैसी चुनौतियाँ भारत में नाभिकीय ऊर्जा के विकास में बाधा डालती हैं। समय-सीमा को सुव्यवस्थित करने, आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ करने तथा एक नियामक कार्यढाँचा बनाने की आवश्यकता है जो इस क्षेत्र में निवेश एवं जनता के विश्वास को बढ़ावा दे।
नाभिकीय ऊर्जा भारत के आर्थिक विकास और स्थिरता लक्ष्यों में किस प्रकार योगदान दे रही है?
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना और शुद्ध-शून्य लक्ष्य प्राप्त करना: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और वर्ष 2070 तक अपने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने की भारत की रणनीति में नाभिकीय ऊर्जा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- वर्ष 2047 तक 1,00,000 मेगावाट परमाणु क्षमता के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ, नाभिकीय ऊर्जा देश के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में एक आधारशिला बनने के लिये तैयार है।
- उदाहरण के लिये, भारत की नाभिकीय ऊर्जा क्षमता 2031-32 तक 8,180 मेगावाट से बढ़कर 22,480 मेगावाट हो जाएगी।
- ऊर्जा माँगों को पूरा करना: इस विकसित होते शहरी-औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये, नाभिकीय ऊर्जा एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है।
- पवन और सौर जैसे नवीकरणीय स्रोतों के विपरीत, जो रुक-रुक कर आते हैं, परमाणु संयंत्र 24/7 संचालित हो सकते हैं, जिससे एक स्थिर ऊर्जा उत्पादन सुनिश्चित होता है।
- वर्तमान में, भारत की प्रति व्यक्ति विद्युत् खपत 1,395 kWh (2024 तक) है, लेकिन वर्ष 2035 तक यह आँकड़ा दोगुना होने की उम्मीद है।
- केंद्रीय बजट 2025-26 में नाभिकीय ऊर्जा मिशन के लिये 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसका लक्ष्य ऊर्जा अवसंरचना में विविधता लाने के लिये वर्ष 2033 तक पाँच भारत स्मॉल रिक्टर (BSR) स्थापित करना है।
- सतत् शहरीकरण और औद्योगीकरण: भारत की शहरी आबादी वर्ष 2031 तक 60 करोड़ तक बढ़ने का अनुमान है, ऐसे में नाभिकीय ऊर्जा शहरों में स्वच्छ और निर्बाध बिजली की बढ़ती माँग को पूरा कर सकती है।
- यह औद्योगिक विकास, विशेष रूप से विनिर्माण और इस्पात जैसे ऊर्जा-गहन क्षेत्रों को बढ़ावा देती है, जिन्हें निरंतर विद्युत् आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
- राजस्थान नाभिकीय ऊर्जा स्टेशन की इकाई 7 और 8 जैसी आगामी परियोजनाओं का उद्देश्य ऐसी माँगों को स्थायी रूप से पूरा करना है।
- राजनयिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा: भारत का बढ़ता परमाणु क्षेत्र न केवल एक घरेलू उपलब्धि है, बल्कि कूटनीति और वैश्विक आर्थिक जुड़ाव का एक शक्तिशाली साधन भी है।
- वर्ष 2008 का महत्त्वपूर्ण यूएस-भारत असैन्य परमाणु समझौता एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने भारत के लिये अग्रणी परमाणु राष्ट्रों के साथ सहयोग स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया।
- रणनीतिक साझेदारियों, विशेष रूप से रूस के साथ, जिसका उदाहरण कुडनकुलम नाभिकीय ऊर्जा परियोजना है, ने उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढाँचे तक भारत की पहुँच को काफी हद तक बढ़ाया है।
- ये सहयोग परियोजनाओं की समय-सीमा में तेज़ी लाने, रिएक्टर सुरक्षा में सुधार लाने और स्थानीय विशेषज्ञता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण रहे हैं। इन साझेदारियों के आर्थिक लाभ भी उतने ही गहन हैं, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान दे रहे हैं और आर्थिक विकास को गति दे रहे हैं।
- रोज़गार सृजन और कौशल विकास: नाभिकीय ऊर्जा रोज़गार सृजन और कौशल विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो भारत के आर्थिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के विस्तार से निर्माण, संचालन, रखरखाव और प्रौद्योगिकी विकास में रोज़गार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय नाभिकीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, नाभिकीय ऊर्जा पवन ऊर्जा की तुलना में प्रति यूनिट विद्युत् पर लगभग 25% अधिक रोज़गार उत्पन्न करती है, जबकि परमाणु उद्योग में काम करने वाले अन्य नवीकरणीय क्षेत्रों की तुलना में एक-तिहाई अधिक कमाते हैं।
- यह भविष्य की ऊर्जा माँगों को पूरा करने के लिये अपने औद्योगिक कार्यबल को बढ़ाने के भारत के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है।
- तकनीकी नवाचार और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा: नाभिकीय ऊर्जा तकनीकी नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देती है, विशेष रूप से फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों (FBR) में प्रगति के माध्यम से।
- ये प्रौद्योगिकियाँ न केवल परमाणु दक्षता में सुधार करती हैं, बल्कि यूरेनियम पर निर्भरता कम करने की भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति के अनुरूप भी हैं।
- प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR), जो 2024 में कोर लोडिंग तक पहुँच गया, थोरियम-आधारित नाभिकीय ऊर्जा विकसित करने की दिशा में भारत की प्रगति का उदाहरण है।
भारत के नाभिकीय ऊर्जा विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- यूरेनियम आपूर्ति की बाधाएँ: भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्वदेशी यूरेनियम भंडारों की सीमित उपलब्धता है, जो इसके परमाणु रिएक्टरों के निर्बाध संचालन में महत्त्वपूर्ण रूप से बाधा डालती है।
- भारत में अनुमानित 70,000 टन घरेलू यूरेनियम भंडार है, जो प्रेशराइज़्ड हैवी वाटर रिएक्टर्स (PHWR) के बढ़ते बेड़े को बनाए रखने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- परिणामस्वरूप, भारत अपनी यूरेनियम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर है, जिसके प्राथमिक आपूर्तिकर्त्ता ऑस्ट्रेलिया, कज़ाखस्तान और कनाडा हैं।
- इसके अलावा, भू-राजनीतिक अस्थिरता, अस्थिर वैश्विक मूल्य निर्धारण और रसद संबंधी बाधाएँ आपूर्ति शृंखला को बाधित कर सकती हैं, जिसका रिएक्टर संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- भारत में अनुमानित 70,000 टन घरेलू यूरेनियम भंडार है, जो प्रेशराइज़्ड हैवी वाटर रिएक्टर्स (PHWR) के बढ़ते बेड़े को बनाए रखने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- थोरियम उपयोग में तकनीकी बाधाएँ: भारत का महत्त्वाकांक्षी त्रि-चरणीय परमाणु कार्यक्रम थोरियम-आधारित रिएक्टरों पर टिका है, लेकिन दूसरे और तीसरे चरण में प्रगति अभी भी अवरुद्ध है।
- भारत में लगभग 846,000 टन थोरियम भंडार है, जो वैश्विक कुल भंडार का लगभग 25% है।
- थोरियम में परिवर्तन के लिये आवश्यक द्रुत प्रजनक रिएक्टरों (FBR) को लगातार तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- इस बीच, वर्ष 2003 में प्रस्तावित भारत का त्वरक-संचालित उप-क्रांतिक प्रणाली (ADSS) अभी तक साकार नहीं हो पाया है, जिससे थोरियम में परिवर्तन में देरी हो रही है।
- नियामक और वित्तीय बाधाएँ: नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन सुविधाओं की शुरुआत के लिये पर्याप्त वित्तीय निवेश, विस्तारित समय-सीमा और जटिल अवसंरचनात्मक आवश्यकताओं की आवश्यकता होती है।
- वित्तीय बाधाओं ने काकरापार और कुडनकुलम संयंत्रों के उन्नयन जैसी परियोजनाओं की प्रगति में बाधा उत्पन्न की है।
- CEA (केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण) के अनुसार, भारत में एक PHW नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की पूंजीगत लागत लगभग 117 मिलियन रुपये है।
- उच्च प्रारंभिक लागत और अनिश्चित प्रतिफल नाभिकीय ऊर्जा में निजी क्षेत्र के निवेश को हतोत्साहित करते हैं, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को प्राथमिकता मिलती है जो शीघ्र प्रतिफल प्रदान करती हैं।
- इसके अलावा, भारत का नियामक ढाँचा, हालाँकि व्यापक है, प्रायः इसकी सुस्ती और जटिलता के लिये आलोचना का शिकार होता है।
- इसके अलावा, भारत के नियामक ढाँचे को, हालाँकि यह संपूर्ण है, अक्सर इसकी धीमी गति और जटिलता के लिये आलोचना की जाती है।"
- अनुमोदन प्राप्त करने में देरी, विशेष रूप से भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंज़ूरी के लिये, परियोजना की समय-सीमा बढ़ा सकती है।
- उदाहरण के लिये, जैतापुर नाभिकीय ऊर्जा परियोजना, जिसका लक्ष्य विश्व की सबसे बड़ी परमाणु सुविधा बनना है, को नियामक चुनौतियों और स्थानीय विरोध के कारण देरी का सामना करना पड़ा है।
- वित्तीय बाधाओं ने काकरापार और कुडनकुलम संयंत्रों के उन्नयन जैसी परियोजनाओं की प्रगति में बाधा उत्पन्न की है।
- कुशल कार्यबल की कमी: भारत का परमाणु क्षेत्र इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और तकनीशियनों सहित कुशल पेशेवरों की गंभीर कमी का सामना कर रहा है, जो सीमित प्रशिक्षण अवसरों और अनुभवी कर्मचारियों की आसन्न सेवानिवृत्ति के कारण और भी बदतर हो गई है।
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) जैसे संस्थानों में प्रवेश क्षमता सीमित है और आगामी परियोजनाओं की पूर्ति के लिये कार्यबल का विस्तार करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
- विशेषज्ञता का यह अंतर परिचालन दक्षता के लिये खतरा है, जो विस्तार के प्रयासों में बाधा डालता है।
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) जैसे संस्थानों में प्रवेश क्षमता सीमित है और आगामी परियोजनाओं की पूर्ति के लिये कार्यबल का विस्तार करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
- पर्यावरण और अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे: परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन भारत के नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र के लिये एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।
- यद्यपि भारत ने परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन के लिये प्रणालियाँ स्थापित की हैं, जिनमें ऑन-साइट भंडारण और उसके बाद दीर्घकालिक भंडारण शामिल है, फिर भी केंद्रीकृत अपशिष्ट भण्डारों का अभाव एक चिंता का विषय बना हुआ है।
- भारत के परमाणु संयंत्र भंडारण सुविधाओं में स्थानांतरित करने से पहले अपशिष्ट को पाँच से सात वर्षों तक संग्रहीत करते हैं, लेकिन व्ययित ईंधन के दीर्घकालिक प्रबंधन का अभी भी कोई समाधान नहीं हुआ है।
- विश्व परमाणु अपशिष्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार, वर्तमान में किसी भी देश के पास परमाणु अपशिष्ट के लिये पूर्णतः क्रियाशील अंतिम निपटान स्थल नहीं है।
- फिनलैंड एकमात्र ऐसा देश है जो वर्तमान में एक स्थायी भण्डार का निर्माण कर रहा है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और सार्वजनिक अविश्वास: मज़बूत सुरक्षा प्रोटोकॉल के बावजूद, नाभिकीय ऊर्जा के बारे में जनता की धारणा एक महत्त्वपूर्ण बाधा बनी हुई है।
- फुकुशिमा त्रासदी (2011) जैसी घटनाओं ने परमाणु सुरक्षा को लेकर वैश्विक चिंताओं को बढ़ा दिया है, जिससे कुछ क्षेत्रों में प्रतिरोध बढ़ा है।
- हालाँकि भारत के संयंत्रों में विकिरण का स्तर वैश्विक सुरक्षा सीमा से काफी नीचे है, फिर भी जनता सतर्क बनी हुई है।
- उदाहरण के लिये, कुडनकुलम का विकिरण स्तर वर्ष 2014 में 0.081 माइक्रो-सीवर्ट से घटकर 0.002 माइक्रो-सीवर्ट हो गया है, लेकिन इससे परमाणु सुरक्षा को लेकर जनता की आशंका पूरी तरह से दूर नहीं हुई है, जिससे भूमि अधिग्रहण और सामुदायिक समर्थन जटिल हो गया है।
नाभिकीय ऊर्जा विकास में तेज़ी लाने के लिये भारत क्या उपाय कर सकता है?
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुगम बनाना: भारत को परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 में संशोधन करना चाहिये ताकि रिएक्टर संचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को अनुमति दी जा सके और कड़े नियामक सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किये जा सकें।
- निजी निवेश तकनीकी नवाचार को गति दे सकता है, परियोजनाओं में देरी को कम कर सकता है और बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये धन जुटा सकता है।
- यूरेनियम खनन और नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन में राज्य के एकाधिकार को समाप्त करने और निजी कंपनियों को अनुमति देने की सरकार की योजना इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है।
- सरकारी निगरानी और निजी विशेषज्ञता को मिलाकर एक हाइब्रिड विकास मॉडल, भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (BSMR) जैसी परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाएगा।
- निजी निवेश तकनीकी नवाचार को गति दे सकता है, परियोजनाओं में देरी को कम कर सकता है और बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये धन जुटा सकता है।
- घरेलू यूरेनियम अन्वेषण को बढ़ावा देना: यूरेनियम आपूर्ति की कमी को दूर करने के लिये, भारत को घरेलू यूरेनियम अन्वेषण को बढ़ावा देना और तथा खनन परियोजनाओं में तेज़ी लानी चाहिये।
- झारखंड में जादुगुड़ा खदानों में हाल ही में हुई खोज परमाणु रिएक्टरों के लिये भंडार बढ़ाने का अवसर प्रदान करती है।
- अमेरिका, रूस और फ्राँस जैसे देशों के साथ संबंधों को गहरा करके, भारत दीर्घकालिक आपूर्ति अनुबंध प्राप्त कर सकता है तथा अगली पीढ़ी की परमाणु प्रौद्योगिकियों पर साझा अनुसंधान से लाभान्वित हो सकता है।
- ये साझेदारियाँ लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) को तेज़ी से अपनाने और परमाणु क्षेत्र में क्षमता निर्माण में तेज़ी लाने में सक्षम होंगी।
- परमाणु ईंधन के लिये रणनीतिक भंडार स्थापित करना: भू-राजनीतिक कारकों के कारण आपूर्ति शृंखला में रुकावट के जोखिमों को कम करने के लिये, भारत को परमाणु ईंधन का एक रणनीतिक भंडार बनाने की आवश्यकता है।
- असैन्य परमाणु सहयोग समझौतों के माध्यम से रूस, कज़ाखस्तान और कनाडा जैसे देशों के साथ साझेदारी को मज़बूत करके, भारत दीर्घकालिक रूप से यूरेनियम की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत को उन्नत परमाणु ईंधन-चक्र प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से थोरियम उपयोग में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये तथा देश के दीर्घकालिक स्थायित्व और ऊर्जा लक्ष्यों के अनुरूप अपने प्रचुर घरेलू थोरियम संसाधनों का लाभ उठाना चाहिये।
- परियोजना अनुमोदन के लिये नियामक ढाँचे में सुधार: भारत को सुरक्षा मानकों से समझौता किए बिना परमाणु परियोजनाओं के लिये अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) में सुधार करने की आवश्यकता है।
- रिएक्टर अनुमोदन, सुरक्षा निगरानी और राज्य सरकारों के साथ सहयोग के लिये स्पष्ट अधिदेशों के साथ एक स्वतंत्र राष्ट्रीय नाभिकीय ऊर्जा प्राधिकरण (NNEA) की स्थापना से नौकरशाही संबंधी देरी कम होगी।
- एकल-खिड़की स्वीकृति प्रणाली स्थापित करके, भारत देरी को कम कर सकता है और परियोजनाओं के पूरा होने के समय में सुधार कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वर्ष 2047 तक 1,00,000 मेगावाट का लक्ष्य बिना किसी और रुकावट के पूरा हो।
- कौशल विकास को बढ़ावा: भारत के परमाणु क्षेत्र के लिये एक कुशल कार्यबल का निर्माण करने के लिये, स्किल इंडिया मिशन को BARC और अन्य संस्थानों द्वारा प्रदान किये जाने वाले विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करना आवश्यक है।
- उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों, रिएक्टर संचालन और अपशिष्ट प्रबंधन पर केंद्रित ये कार्यक्रम, सुरक्षा अनुपालन में सुधार करते हुए कार्यबल की कमी को दूर करने में सहायता करेंगे।
- इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय नाभिकीय ऊर्जा एजेंसी (IAEA) समझौतों के तहत आने वाले अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग, इस क्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता को और सुदृढ़ कर सकता है।
- रिएक्टर संचालन के लिये AI और डिजिटल ट्विन्स का लाभ उठाना: भारत वास्तविक समय में रिएक्टर के प्रदर्शन की निगरानी और अनुकूलन के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डिजिटल ट्विन तकनीक को एकीकृत कर सकता है।
- AI रखरखाव आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगा सकता है, विसंगतियों का पता लगा सकता है और परिचालन सुरक्षा में सुधार कर सकता है, जिससे मानवीय त्रुटि के जोखिम कम हो सकते हैं।
- डिजिटल ट्विन्स—रिएक्टरों के आभासी मॉडल, संचालन का अनुकरण कर सकते हैं, जिससे पूर्वानुमानित विश्लेषण और ऑपरेटरों के कुशल प्रशिक्षण की सुविधा मिलती है।
- महाराष्ट्र स्थित तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन (TAPS) रिएक्टरों ने डिजिटल ट्विन प्रौद्योगिकियों के प्रायोगिक परीक्षण शुरू कर दिये हैं।
- परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों का प्रबंधन: भारत को ईंधन के स्थायी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिये परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन हेतु एक केंद्रीकृत सुविधा स्थापित करनी चाहिये।
- यद्यपि वर्तमान प्रथाओं में साइट पर भंडारण और दीर्घकालिक निपटान शामिल है, दीर्घकालिक स्थिरता के लिये अपशिष्ट पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण पर केंद्रित एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है।
- फिनलैंड का ओनकालो भंडार एक गहन भू-वैज्ञानिक भंडारण सुविधा का एक अग्रणी मॉडल है, जिसके 100,000 वर्षों तक परमाणु अपशिष्ट को सुरक्षित रूप से संग्रहीत करने की उम्मीद है।
- उन्नत पुनर्संसाधन प्रौद्योगिकियों में निवेश पर्यावरणीय जोखिमों को कम करेगा और नाभिकीय ऊर्जा की सार्वजनिक स्वीकृति में सुधार करेगा।
- यद्यपि वर्तमान प्रथाओं में साइट पर भंडारण और दीर्घकालिक निपटान शामिल है, दीर्घकालिक स्थिरता के लिये अपशिष्ट पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण पर केंद्रित एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है।
- जन जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना: जन जागरूकता बढ़ाने और विरोध का समाधान करने के लिये, सरकार को नाभिकीय ऊर्जा की सुरक्षा, लाभों और पर्यावरणीय स्थिरता पर केंद्रित व्यापक अभियान शुरू करने चाहिये।
- स्थानीय समुदायों को चर्चाओं में सक्रिय रूप से शामिल करना, पारदर्शी सुरक्षा आँकड़े साझा करना, जैसे कि कुडनकुलम का सुरक्षा ट्रैक रिकॉर्ड, और स्थानीय विकास परियोजनाओं के लिये सब्सिडी वाली विद्युत् या वित्तपोषण जैसे प्रोत्साहन प्रदान करना, प्रतिरोध को कम करने में सहायता कर सकता है।
- खुले संवाद के माध्यम से विश्वास का निर्माण और समुदायों के साथ मज़बूत साझेदारी को बढ़ावा देना, समर्थन प्राप्त करने और परियोजना अनुमोदन में तेज़ी लाने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
- स्थानीय समुदायों को चर्चाओं में सक्रिय रूप से शामिल करना, पारदर्शी सुरक्षा आँकड़े साझा करना, जैसे कि कुडनकुलम का सुरक्षा ट्रैक रिकॉर्ड, और स्थानीय विकास परियोजनाओं के लिये सब्सिडी वाली विद्युत् या वित्तपोषण जैसे प्रोत्साहन प्रदान करना, प्रतिरोध को कम करने में सहायता कर सकता है।
निष्कर्ष:
भारत का नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र देश के सतत् विकास और ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ रखता है। प्रमुख चुनौतियों का समाधान करके, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देकर और तकनीकी प्रगति का लाभ उठाकर, देश अपनी पूर्ण परमाणु क्षमता का दोहन कर सकता है। रणनीतिक सुधारों और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करके, भारत एक मज़बूत और स्वच्छ ऊर्जा भविष्य (एसडीजी 7) का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, आर्थिक विकास को गति दे सकता है और वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में योगदान दे सकता है। आने वाले वर्ष भारत के नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण होंगे, और इसके महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सक्रिय उपाय महत्त्वपूर्ण होंगे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. भारत वर्ष 2047 तक अपनी नाभिकीय ऊर्जा क्षमता का उल्लेखनीय विस्तार करने के लिये तैयार है। भारत के विकास में नाभिकीय ऊर्जा की क्षमता का परीक्षण कीजिये। प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और उनका किस प्रकार समाधान किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’ के अधीन रखे जाते हैं, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)
(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न 1. ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)