विकास से अधिक महत्त्वपूर्ण है आय का स्तर! | 15 Jul 2021

यह एडिटोरियल दिनांक 14/07/2021 को ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित लेख ‘‘Growth matters but income levels matter more’’ पर आधारित है। इसमें आर्थिक विकास के समक्ष विद्यमान चुनौतियों और उच्च विकास दर हासिल करने के उपायों के संदर्भ में चर्चा की गई है।

कोविड-19 महामारी से लगे आघात के बाद देश का आर्थिक विकास गिरावट की प्रवृत्ति दर्शा रहा है और निजी निवेश एवं माँग में भी कमी आई है।

इस परिदृश्य में भारत के लिये माँग में तीव्र पुनरूद्धार की आवश्यकता है और इसके लिये उच्च प्रति व्यक्ति आय (Higher Per Capita Income) आवश्यक है।

यद्यपि माँग में सुधार और आर्थिक विकास दर में वृद्धि के लिये अर्थव्यवस्था को अभी कई चुनौतियों से निपटना होगा।

अर्थव्यवस्था के संबंध में कुछ अवलोकन

  • कृषि क्षेत्र ने अपना प्रभावशाली विकास प्रदर्शन जारी रखा, जिससे पुनः इस बात की पुष्टि हुई कि यह अभी भी अर्थव्यवस्था का अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है और विशेषकर आपदा या संकट के समय इसकी प्रमुख भूमिका है।
  • स्थानीयकृत लॉकडाउन के कारण उत्पादन में रूकावट के साथ विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट की प्रवृत्ति बनी रही और यह अर्थव्यवस्था के विकास चालक के रूप में उभरने में विफल रहा है।
  • व्यापार (-18.2%), निर्माण (-8.6%), खनन (-8.5%) और विनिर्माण (-7.2%) क्षेत्र में गिरावट चिंता का विषय है क्योंकि ये क्षेत्र निम्न-कुशल रोज़गारों (Low-Skilled Jobs) में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं।

आर्थिक विकास के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • बेरोज़गारी दर में वृद्धि: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy- CMIE) के अनुसार मई 2021 में भारत की श्रम भागीदारी दर 40% थी जो अप्रैल 2021 की दर के समान ही थी, लेकिन इस अवधि में बेरोज़गारी दर 8% से बढ़कर 11.9% हो गई। 
    • उच्च बेरोज़गारी दर के साथ एक स्थिर श्रम भागीदारी दर का अर्थ है रोज़गार की हानि और रोज़गार दर में गिरावट।
    • CMIE के अनुसार, मई 2021 में 15 मिलियन से अधिक रोजगारों की हानि हुई जो नवंबर 2016 में नोटबंदी के दौरान 12.3 मिलियन की तुलना में अधिक है।
  • उच्च अनौपचारिकता: रोज़गार की हानि ने भारत में उच्च अनौपचारिकता और श्रम की भेद्यता को अवसर दिया है क्योंकि महामारी के दौरान दैनिक वेतनभोगियों या दिहाड़ी मज़दूरों के रोज़गार की सर्वाधिक हानि हुई। यह देश के समावेशी विकास के ध्येय और उच्च आर्थिक विकास क्षमता को चुनौती देता है।
  • निम्न व्यापार विश्वास: फिक्की (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry-FICCI) के सर्वेक्षण के अनुसार, व्यापार विश्वास सूचकांक (Business Confidence Index- BCI) में भारी गिरावट आई है। क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers Index- PMI) भी 10 माह के निम्नतम स्तर पर आ गया है, जो दर्शाता है कि विनिर्माण क्षेत्र में तनाव के संकेत दिख रहे हैं और विकास अनुमानों को संशोधित कर कम किया जा रहा है।
    • BCI और PMI दोनों में गिरावट यह दर्शाता है कि वर्ष 2021-22 के प्रति समग्र आशावादिता कम है, जो निवेश को प्रभावित कर सकता है और आगे भी रोज़गार की हानि का कारण बन सकता है
  • कमज़ोर माँग: घरेलू आय के गंभीर रूप से प्रभावित होने और कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान पिछली बचत के पहले ही आहरित या व्यय हो जाने के कारण माँग की स्थिति कमज़ोर बनी हुई है।

भारत की नीति प्रतिक्रिया की समस्याएँ:

  • आबादी के अतिसंवेदनशील या कमज़ोर समूहों की कठिनाइयों को कम करने के लिये उनकी सहायता हेतु सरकार द्वारा कम प्रत्यक्ष कार्रवाई की गई है।
  • नीतिगत उपायों का अधिकांश भार आपूर्ति पक्ष पर केंद्रित है न कि माँग पक्ष पर।
    • वित्तीय संकट के इस समय माँग को त्वरित प्रोत्साहन देने के लिये प्रत्यक्ष राज्य व्यय की आवश्यकता है।
  • अभी तक घोषित सभी प्रोत्साहन पैकेजों का बड़ा हिस्सा मध्यम अवधि (तत्काल नहीं) में कार्यान्वित होगा। इनमें बाह्य क्षेत्र, आधारभूत संरचना और विनिर्माण क्षेत्र से संबद्ध नीतियाँ शामिल हैं।
  • माँग पक्ष में किसी भी प्रत्यक्ष उपाय को अपनाने की तुलना में मुख्य नीति आधार के रूप में क्रेडिट बैकस्टॉप का उपयोग करने की अपनी सीमाएँ हैं क्योंकि यदि निजी निवेश में वृद्धि नहीं होती है तो यह कमज़ोर विकास प्रदर्शन का कारण बनेगी।
  • इसके अलावा, ऋण को सुगम बनाने का दृष्टिकोण आय में वृद्धि लाने में अधिक समय लेगा क्योंकि ऋणदेयता में ऋणदाता का विवेक और उधारकर्त्ता का दायित्व दोनों शामिल होता है।

आगे की राह

  • समग्र माँग में तीव्र पुनरूद्धार: विकास दर में सुधार माँग में सुधार पर निर्भर है। माँग में वृद्धि बचत में वृद्धि और आय-स्तर में सुधार के साथ ही होगी।
    • निवेश, विशेष रूप से निजी निवेश, "प्रमुख चालक" है जो माँग को प्रेरित करता है, क्षमता निर्माण करता है, श्रम उत्पादकता में वृद्धि करता है, नई प्रौद्योगिकी के प्रवेश को सक्षम करता है, रचनात्मक विनाश को अवसर देता है और रोज़गार सृजन करता है।
  • निर्यात संवर्द्धन: मई 2021 में भारत का निर्यात 32 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने के साथ, जो मई 2020 की तुलना में 67% अधिक है,  बाह्य माँग मज़बूत दिख रही है और इससे संकेत मिलता है कि वैश्विक माँग में तेज़ पुनरुद्धार हो रहा है।
    • इसके साथ ही निर्यातकों को निर्यात वित्त उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • मनरेगा के वित्तपोषण में वृद्धि और शहरी क्षेत्रों में इसका विस्तार: मनरेगा (MGNREGA) कार्यक्रम सामान्य दिनों के साथ ही संकट काल (जैसे कोविड-19) में श्रमिकों के लिये आजीविका समर्थन का प्रमुख आधार साबित हुआ है और इस दृष्टिकोण से योजना का शहरी क्षेत्रों में विस्तार करना एक अच्छा कदम होगा।
  • नकद लाभ का हस्तांतरण: एक सार्थक नकद हस्तांतरण संकटग्रस्त परिवारों में आत्मविश्वास की बहाली कर सकता है। लोगों के हाथ में नकद राशि उनके अंदर सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना लेकर आएगी जो आर्थिक सामान्य स्थिति की बहाली की आधारशिला है।
    • यह अर्थव्यवस्था में उपभोग और माँग की वृद्धि करेगी और अर्थव्यवस्था के ‘सुदृढ़ चक्र’ (Virtuous Cycle) को पुनः गति प्रदान कर सकती है।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: इंटरनेट की बढ़ती पहुँच के साथ सरकारों को उद्योग जगत के नेताओं का सहयोग लेते हुए समस्त आबादी तक ज्ञान और कौशल के प्रसार के लिये स्थानीय क्षेत्रीय भाषाओं में ऑनलाइन ट्यूटोरियल का सृजन करना चाहिये।
  • रत्न एवं आभूषण, वस्त्र एवं परिधान और चर्म-वस्तु निर्माण जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों को बढ़ावा देना चाहिये।

निष्कर्ष

  • विकास दर पर ध्यान केंद्रित करने के दीर्घावधि में अपने लाभ हैं क्योंकि उच्च आय स्तरों को प्राप्त करने के लिये एक लंबी अवधि तक सतत या संवहनीय विकास की आवश्यकता होती है।
  • भारत धीरे-धीरे ही सही लेकिन निश्चित रूप से आर्थिक पुनरुद्धार की राह पर है और इस विकास गति को बनाए रखने के लिये निवेश ही सर्वोत्तम उपाय है।

अभ्यास प्रश्न: माँग सृजन के लिये सरकार की नीति प्रतिक्रिया के माध्यम से सीधी कार्रवाई विकास की गति को बनाए रखने का आदर्श उपाय है। टिप्पणी कीजिये।