हरित हाइड्रोजन नीति | 05 Mar 2022

यह एडिटोरियल 04/03/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “Our Green Energy Policy Needs A Close Relook” लेख पर आधारित है। इसमें हरित हाइड्रोजन नीति और इसके प्रभावी कार्यान्वयन से संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में विद्युत मंत्रालय (MoP) ने हरित हाइड्रोजन नीति (Green Hydrogen Policy- GHP) की घोषणा की है। औद्योगिक प्रतिभागियों ने प्रायः इसका स्वागत किया है, क्योंकि यह वर्ष 2022-23 के लिये भारत के बजट में व्यक्त जलवायु-क्रियात्मक की धारणा के साथ सुसंगत है।

इस नीति ने वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (MTPA) हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है जो देश में मौजूदा हाइड्रोजन मांग से 80% अधिक है।

यह भारत की ऊर्जा संक्रमण यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण क्षण है और इस कदम के साथ भारत एक व्यापक हरित हाइड्रोजन नीति जारी करने वाला 18वाँ देश बन गया है। अमोनिया और हाइड्रोजन को जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित कर सकने वाले भविष्य के ईंधन के रूप में देखा जा रहा है।

हरित हाइड्रोजन नीति:

  • नई नीति के तहत सरकार उत्पादन के लिये विनिर्माण क्षेत्र की स्थापना, प्राथमिकता के आधार पर इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (ISTS) से कनेक्टिविटी और 25 वर्ष के लिये निःशुल्क ट्रांसमिशन (जून 2025 से पहले उत्पादन सुविधा चालू होने पर) की पेशकश कर रही है।
  • इसका अर्थ यह है कि कोई हरित हाइड्रोजन उत्पादक राजस्थान में एक सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर असम के किसी हरित हाइड्रोजन संयंत्र को नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति करने में सक्षम होगा और उसे किसी अंतर-राज्यीय संचरण शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।
    • इसके अलावा, उत्पादकों को शिपिंग द्वारा निर्यात हेतु हरित अमोनिया के भंडारण के लिये बंदरगाहों के पास बंकर स्थापित करने की अनुमति होगी।
  • ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया के विनिर्माताओं को पावर एक्सचेंज से नवीकरणीय ऊर्जा की खरीद करने या नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता को स्वयं या किसी अन्य उत्पादक के माध्यम से कहीं भी स्थापित करने की अनुमति दी गई है।
  • यह उत्पादकों को सृजित नवीकरणीय ऊर्जा के किसी भी अधिशेष को 30 दिनों तक बिजली वितरण कंपनियों (Discoms) के पास जमा रखने और आवश्यकतानुसार इसका उपयोग करने की भी सुविधा प्रदान करती है।

नीति का महत्त्व

  • भारत की सबसे बड़ी तेलशोधक कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) का अनुमान है कि GHP उपायों से हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत 40-50% तक कम हो जाएगी।
  • ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया जैसे ईंधन किसी भी देश की पर्यावरण की दृष्टि से संवहनीय ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत पहले से ही वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्ध है और ग्रीन हाइड्रोजन तेल एवं कोयले से भारत के ट्रांजीशन में एक विघटनकारी तत्त्व के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • GHP भारत में एक प्रतिस्पर्द्धी हरित हाइड्रोजन क्षेत्र के विकास के लिये एक ठोस नींव प्रदान करता है।

संबद्ध चुनौतियाँ

  • संचरण/ट्रांसमिशन पर शुल्क: 1 किलोग्राम हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में लगभग 50 kWh बिजली की खपत होती है (70% इलेक्ट्रोलाइज़र दक्षता के साथ)।
    • जबकि भारत में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की औसत लागत विश्व में सबसे कम है, यह उत्पादन और उपभोग के बिंदुओं के बीच बिजली के परिवहन एवं संचरण पर बहुत अधिक शुल्क आरोपित करता है।
  • ‘ग्रे हाइड्रोजन’ की तुलना में कम लागत प्रभावी: ऐसे मामलों में जहाँ सुदूर स्थित RE संयंत्रों से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है, बिजली की ‘उतराई तक की लागत’ (Landed Cost) उत्पादन लागत (Cost of Output) को निर्धारित करती है जो 3.70 रुपए से 7.14 रुपए प्रति kWh तक होती है।
    • इस दर से हरित हाइड्रोजन 500 रुपए प्रति किलोग्राम की लागत पर उत्पादित होगी जो ‘ग्रे हाइड्रोजन’ (Grey Hydrogen) की लागत से लगभग 3.5 गुना अधिक है।
    • इस प्रकार, ग्रीन हाइड्रोजन को ग्रे हाइड्रोजन के मुकाबले प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये सुदूर स्रोत पर उत्पादित RE की उतराई लागत को वर्तमान लागत से आधा करना होगा।
  • राज्यों की अनिच्छा: सार्वजनिक क्षेत्र की कई बिजली कंपनियाँ बिजली वितरण में अपने एकाधिकार को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। नवीकरणीय ऊर्जा में समृद्ध राज्य या तो नवीकरणीय ऊर्जा को जमा करने (RE Banking) की अनुमति देने से पीछे हट रहे हैं या इस सुविधा को प्रतिबंधित करने के लिये नियम लागू कर रहे हैं।
    • गुजरात केवल सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे के बीच ही जमा सौर ऊर्जा के निपटान की अनुमति देता है और 'हाई-टेंशन' उपभोक्ताओं के लिये बैंकिंग शुल्क के रूप में 1.5 रुपए प्रति यूनिट की वसूली करता है।
    • राजस्थान RE उत्पादन के 25% तक की बैंकिंग और वार्षिक आधार पर निपटान की अनुमति देता है, लेकिन इस पर 10% शुल्क लगाता है जो भारत में अधिकतम है।
    • तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश RE बैंकिंग की अनुमति नहीं देते हैं।
    • इसके अतिरिक्त अधिकांश राज्य ‘पीक आवर्स’ के दौरान जमा बिजली निकालने की अनुमति नहीं देते हैं।
  • उत्पादकों के लिये कम मार्जिन: GHP हरित हाइड्रोजन और अमोनिया परियोजनाओं के लिये ISTS घाटों की किसी भी छूट का उल्लेख नहीं करता है।
    • इसके अलावा, यह डिस्कॉम को SERCs द्वारा निर्धारित केवल एक छोटे मार्जिन के साथ खरीद की लागत पर ग्रीन हाइड्रोजन/अमोनिया उत्पादकों को RE की खरीद एवं आपूर्ति करने का प्रावधान करता है।
    • यह मार्जिन डिस्कॉम के लिये पर्याप्त प्रोत्साहन का निर्माण नहीं करता कि वे लंबी अवधि के लिये हरित हाइड्रोजन उत्पादकों से RE की खरीद और आपूर्ति के लिये संलग्न हों।
  • उद्योगों की अनिच्छा: उच्च संबद्ध लागतों के कारण रसायन, उर्वरक, इस्पात और रिफाइनरियों जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में लो-कार्बन विकल्पों की ओर आगे बढ़ने की अधिक इच्छा नहीं है। ऐसे उद्योगों को उत्सर्जन कम करने के लिये प्रोत्साहन प्राप्त न हो तो उन्हें यह ट्रांजीशन व्यवहार्य प्रतीत नहीं होगा।

आगे की राह

  • राज्य सरकारों की भूमिका: हरित हाइड्रोजन नीति में घोषित उपायों के लिये राज्य सरकारों—(RE पार्कों और प्रस्तावित विनिर्माण क्षेत्रों में भूमि के आवंटन सहित) और संबंधित SERCs के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता होगी।
    • RE-समृद्ध राज्यों को GHP के बैंकिंग प्रावधानों को लागू करने और एकसमान शुल्क आरोपित करने की भी आवश्यकता है, अन्यथा यह हरित हाइड्रोजन उत्पादकों की अधिक मदद नहीं कर सकेगा।
  • केंद्र सरकार की भूमिका: RE-समृद्ध राज्यों का सहयोग पाने के लिये केंद्र सरकार ऐसे राज्यों में डिस्कॉम को बिजली उत्पादकों को उनके बकाया के भुगतान के लिये रियायती वित्त प्रदान करने पर विचार कर सकती है और बदले में उनसे ओपन एक्सेस RE-प्रोजेक्ट्स में उपरोक्त अधिभार को माफ करने और GHP में निर्दिष्ट स्तर पर RE-बैंकिंग शुल्क की सीमा निर्धारित करने की अपेक्षा की जा सकती है।
  • मांग सृजन: जबकि रिलायंस और IOC जैसे बड़े रिफाइनरों के पास ग्रीन-हाइड्रोजन उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करने की योजना है, अन्य निर्माता एवं RE डेवलपर्स मांग सृजकों के अभाव में बड़े पैमाने पर निवेश करने से संकोच रखते हैं।
    • GHP उपायों को प्रतिस्पर्द्धी दरों पर हरित हाइड्रोजन की आपूर्ति बढ़ाने के अलावा मांग को प्रोत्साहित करने के लिये भी कदम उठाना होगा।
  • उद्योगों को प्रोत्साहन: हरित हाइड्रोजन पारितंत्र के निर्माण का समर्थन करने के लिये हाइड्रोजन-खरीद दायित्वों (Hydrogen-Purchase Obligations) या अन्य मांग प्रोत्साहकों की भी आवश्यकता होगी।
    • केंद्र पेट्रोलियम रिफाइनरों और उर्वरक निर्माताओं को हरित हाइड्रोजन के निर्माण और उपयोग के लिये प्रोत्साहन देने पर विचार कर सकती है जहाँ फीडस्टॉक के रूप में इसके उपयोग के आधार पर उन्हें सब्सिडी की पेशकश की जा सकती है।
    • यह वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की प्राप्ति की भारत की प्रतिबद्धता की पूर्ति में सहायक होगा।

अभ्यास प्रश्न: वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में हरित हाइड्रोजन नीति के महत्त्व की चर्चा कीजिये।