हरित विकास | 22 Jun 2017

संदर्भ
भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के लिये ऊर्जा उपभोग भी बढ़ता जाता है| बिजली का उपयोग ऊर्जा दक्षता का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्तर को प्राप्त करने के लिये कम ऊर्जा का उपयोग करना अधिक कुशलता को दर्शाता है। ऊर्जा दक्षता (सकारात्मक या नकारात्मक) पर कार्य करना हरित विकास (Green Growth) को प्राप्त करने की दिशा में एक कारगर कदम माना जाता है। अत: हरित विकास और ऊर्जा दक्षता को प्राप्त करने हेतु भारत को भी इस दिशा में कुशलता से साथ आगे आने एवं इस पर कार्य करने की आवश्यकता है।

भारत की स्थिति

  • भारत के 900 जिलों में कार्यरत विनिर्माण उद्योगों से प्राप्त डाटा के आधार पर पता चला है कि पिछले कुछ दशकों में भारत ने हरित विकास में वृद्धि की है और ऊर्जा दक्षता में भी सुधार किया है।
  • भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की ऊर्जा तीव्रता (Eenergy Intensity) जो 1980 के दशक में  1.09 किलोग्राम तेल के बराबर (Kg Unit of Oil Equivalent) थी, वर्तमान में घटकर 0.66 पर आ गई है। ध्यातव्य है कि चीन की ऊर्जा तीव्रता भारत से लगभग 1.5 गुना अधिक है।
  • शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं की ज़्यादा संख्या और स्थानीय स्तर पर कुशल ऊर्जा उत्पादकों के कारण ऊर्जा की प्रति उत्पादन लागत में कमी आने के कारण शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार हुआ है।
  • बड़े विनिर्माण उद्यम अब भूमि की कम कीमत के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ स्थानांतरित हो रहे हैं। ये उद्यम ग्रामीण क्षेत्रों में ‘स्वर्णिम चतुर्भुज परिवहन राजमार्ग नेटवर्क’ जैसे परिवहन गलियारों (Transport Corridors) के साथ-साथ स्थापित हो रहे हैं ।
  • यह पाया गया है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार नहीं हो रहा है तथा समय के साथ यह विचलन बढ़ता जा रहा है। अत: इस समस्या को हल करने में हरित विकास के ड्राइवर कहे जाने वाले शहरी क्षेत्र अपनी सीमित भूमिका ही निभा पा रहे हैं।
  • ऊर्जा तीव्रता वाले उद्योग जैसे: लोहा और इस्पात, उर्वरक, पेट्रोलियम रिफाइनिंग, सीमेंट, एल्यूमीनियम और लुगदी एवं कागज इत्यादि काफी बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उपभोग करते हैं, लेकिन इन उद्योग ने ऊर्जा दक्षता की दिशा में काफी सुधार भी किये हैं।
  • इस प्रवृत्ति के लिये कई कारकों ने भूमिका निभाई है, जैसे: अधिक प्रतिस्पर्धा, 1990 से बढ़ती हुई ऊर्जा की कीमतें तथा ऊर्जा दक्षता योजनाओं को बढ़ावा देना इत्यादि शामिल है।
  • बहरहाल, कई उद्योग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर अक्षम पाए गए हैं, लेकिन इन ऊर्जा गहन उद्योगों में ऊर्जा बचत की पर्याप्त संभावनाएँ मौजूद हैं।

राज्यों में स्थिति

  • राज्यों में ऊर्जा दक्षता में स्थानिक असमानता बहुत ज़्यादा है, हालाँकि अनेक राज्यों द्वारा ऊर्जा दक्षता की दिशा में कार्य भी किये गए हैं। 
  • मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में प्रति इकाई ऊर्जा उपभोग उल्लेखनीय रूप से उच्च है और कुछ मामलों में तो पूरे भारत के स्तर से दोगुना है। इसके विपरीत दिल्ली और हरियाणा जैसे राज्यों में ऊर्जा  खपत का स्तर राष्ट्रीय औसत से भी लगातार कम बना हुआ है।

उद्योगों की स्थिति

  • उद्योगों में भी ऊर्जा उपभोग में भारी विविधता बनी हुई है।
  • टेक्सटाइल, पेपर और पेपर प्रोडक्ट, बेसिक मेटल्स और गैर-मेटलिक खनिज उत्पाद उद्योगों में प्रति यूनिट ऊर्जा उपभोग सर्वाधिक है। 
  • उद्योग, जो सबसे कम उपभोग करते हैं, उनमें तंबाकू उत्पादन एवं कार्यालय, लेखा और कंप्यूटिंग मशीनरी प्रमुख हैं। उल्लेखनीय है कि उद्योग स्तर पर ऊर्जा दक्षता में अभिसरण (Convergence) राज्य स्तर पर ऊर्जा दक्षता में अभिसरण से अधिक है।

ऊर्जा  उपभोग में कमी वाले क्षेत्र 

  • पहला, ऊर्जा के उपभोग में अधिकांश कटौती मौजूदा साइटों की गतिविधियों में कमी से आ सकती है। 
  • दूसरा, तेज़ी से बढ़ते औद्योगिक क्षेत्रों में निम्न ऊर्जा उपभोग के स्तर को प्राप्त करना। 
  • देश भर में विनिर्माण उधोगों के स्थानिक स्थानान्तरण से प्रति यूनिट ऊर्जा  की खपत में कमी आने की संभावना कम ही है।

समस्या

  • ऊर्जा की पहुँच में कमी और अविश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति जैसी समस्याओं के कारण उद्योगों को स्वयं ऊर्जा  उत्पादन करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। उदहारणस्वरुप देश में विनिर्माण संयंत्रों द्वारा बिजली की कुल मात्रा का लगभग 35% स्वयं-उत्पादन किया जाता है। फलस्वरूप उत्पादक पूंजी की एक बड़ी मात्रा को खर्च करना पड़ता है।
  • हालाँकि भारत ऊर्जा प्रणाली की स्थापित क्षमता के मामले में विश्व में चीन, अमेरिका, जापान और रूस के बाद पाँचवे स्थान पर है तथा चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। लेकिन भारत अभी भी अपनी तेज़ी से बढ़ती ऊर्जा  मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है।
  • भारत में ऊर्जा  खपत 566 KWh प्रति व्यक्ति है, जो वैश्विक स्तर के औसत 2782 KWh से काफी कम है।
  • देश में अभी भी 250 मिलियन से ज़्यादा लोगों की बिजली तक पहुँच नहीं है। 
  • देश में बिजली की अक्सर कमी होती रहती है और यह कमी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 7% के बराबर मानी गई है।

समाधान

  • ‘हरित विकास एजेंडा’ को शहरी क्षेत्रों से आगे बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किया जाए।
  • औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया को ऐसी दिशा दी जानी चाहिये, ताकि पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को भी कम किया जा सके। 
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये नीति निर्माताओं को तीन मोर्चों पर कार्य करने की ज़रूरत है। 

• पहला, ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना।
• दूसरा, प्रौद्योगिकी तक पहुँच सुनिश्चित करना।
• तीसरा, नवीकरणीय ऊर्जा  को बढ़ावा देना।

  • भारत को सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के क्षेत्रों को बढ़ावा देना चाहिये, और साथ-ही-साथ कोयला आधारित सुपरक्रिटिकल टेक्नोलॉजी वाले बिजली संयंत्रों का भी विकास किया जाए। 

निष्कर्ष
अत: देश को बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में तेज़ी से कार्य करना चाहिये| इस दिशा में किया गया प्रत्येक कार्य धारणीय विकास की परिधि के भीतर ही होना चाहिये| इस दिशा में  ‘ऊर्जा संरक्षण अधिनियम-2001’ के तहत सरकार द्वारा भी ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिये प्रयास किए जा रहे हैं।