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भारत में जीनोम अनुक्रमण | 13 Jun 2019 | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीनोम मैपिंग यानी जीन-समूह को क्रमबद्ध करने का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। भारत सरकार का संस्थान CSIR भारत के विभिन्न ग्रामीण अंचलों में रहने वाले करीब 1000 युवाओं के जीन-समूह को क्रमबद्ध करने के प्रोजेक्ट पर काम काम कर रहा है। प्रस्तुत Editorial में इस जटिल विषय का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है और इसके लिये The Hindu, The Indian Express तथा अन्य स्रोतों से जानकारी जुटाई गई है।

संदर्भ

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) अपनी एक महत्त्वाकांक्षी योजना के तहत भारत के विभिन्न ग्रामीण अंचलों में रहने वाले करीब 1000 युवाओं के जीन-समूह को क्रमबद्ध करने के प्रोजेक्ट पर काम काम कर रही है। इसे जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) नाम दिया गया है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य छात्रों की नई पीढ़ी को जीन-विज्ञान (Genomics) की उपयोगिता से अवगत कराना है। इस प्रोजेक्ट पर 18 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।

जीनोम मैपिंग क्या है?

मेंडल के वंशानुक्रम नियम

ग्रेगोर मेंडल को Father of Genetics कहा जाता है, उन्होंने 1865 में वंशानुक्रम के तीन नियम खोजे थे, जिन्हें मेंडल के नियम कहा जाता है। मेंडल के इन वंशानुक्रम नियमों में प्रभाव, अलगाव और स्वतंत्र वर्गीकरण के नियम शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक को जीवाणु कोशिकाओं में केंद्रकीय परिवर्तन के विकास की अवस्था अर्थात् अर्द्ध-सूत्री विभाजन की प्रक्रिया (Meiosis) के माध्यम से समझा जा सकता है।

क्रैक किया DNA कोड

जीनोम मैपिंग की आवश्यकता क्यों?

2003 में मानव जीनोम को पहली बार अनुक्रमित किये जाने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच संबंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिखाई दे रही है। अधिकांश गैर-संचारी रोग, जैसे- मानसिक मंदता (Mental Retardation), कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, न्यूरोमस्कुलर डिसऑर्डर तथा हीमोग्लोबिनोपैथी (Haemoglobinopathy) कार्यात्मक जीन में असामान्य DNA म्यूटेशन के कारण होते हैं। चूँकि जीन कुछ दवाओं के प्रति असंवेदनशील हो सकते हैं, ऐसे में इन रोगों को आनुवंशिकी के दृष्टिकोण से समझने में सहायता मिल सकती है।

जीनोम मैपिंग के लाभ

इसके माध्यम से उपचारात्मक और एहतियाती (Curative & Precautionary) चिकित्सा के स्थान पर Predictive चिकित्सा की जा सकती है। इसके माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी पहले से ही शुरू की जा सकती है। इसे ही Predictive चिकित्सा कहा गया है। इसके अलावा बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जींस का पता भी लगाया जा सकता है और आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि कुछ ऐसी बीमारियाँ होती हैं जिनका सही समय पर पता चल जाए तो उनकी क्यूरेटिव मेडिसिन विकसित की जा सकती है तथा व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है।

कई देशों में चल रहा जीनोम अनुक्रमण प्रोजेक्ट

साझा की जाएगी जानकारी

क्या होता है जीनोम अनुक्रमण?

मानव जीन-समूह (DNA) में 3.20 अरब बेस पेयर्स

अब भारत को अपनी स्वयं की जीनोमिक्स क्रांति की शुरुआत करनी चाहिये। आनुवंशिक अनुसंधान के लिये भारत के पास समुचित वैज्ञानिक संसाधन मौजूद हैं। जीन-विज्ञान में क्रांति का भरपूर लाभ उठाने के लिये भारत को अपनी आबादी की आनुवंशिकी के बारे में सूचनाएं एकत्र करनी होंगी और इन्हें ठीक से समझने के लिये जनबल को भी प्रशिक्षित करना होगा। तकनीकी समझ और इसे सफलतापूर्वक लॉन्च करने की क्षमता हमारे देश के वैज्ञानिकों के पास मौजूद है। आनुवंशिक दृष्टि से भारत में विविधता अधिक है, यहाँ करीब 5000 जातीय, भाषायी और धार्मिक समूह हैं तथा सभी की अपनी आनुवंशिक विशिष्टताएँ हैं।

मानव जीनोम मैपिंग परियोजना

अभ्यास प्रश्न: चिकित्सा पद्धति के परिप्रेक्ष्य में जीनोम अनुक्रमण की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए भारत में इसकी संभावनाओं का विश्लेषण कीजिये।