G-7 और भारत | 10 Jun 2021

यह एडिटोरियल दिनांक 08/06/2021 को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित “The G-7 opportunity” पर आधारित है। इसमें भारत के लिये आगामी G-7 शिखर सम्मेलन के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

आगामी कुछ दिनों में यूनाइटेड किंगडम में G-7 देशों का शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। कोविड-19 के बाद होने वाला यह शिखर सम्मेलन पश्चिमी राष्ट्रों के सामूहिक राजनीतिक विकास में एक मील का पत्थर साबित होगा।

  • इसके अलावा सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री भी डिजिटल रूप से हिस्सा लेंगे। भारत के लिये G-7 शिखर सम्मेलन अमेरिका और यूरोप के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी के विभिन्न आयामों का विस्तार करने का एक उपयुक्त अवसर है।
  • इस प्रकार यह शिखर सम्मेलन भारत और पश्चिमी देशों के मध्य एक नए वैश्विक समझौते की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में उभर सकता है।

G-7: पृष्ठभूमि

  • G-7 को औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं के परामर्शकर्त्ता के रूप में बनाया गया था, ये देश वर्ष 1975 में G-7 की उत्पत्ति के बाद से लोकतांत्रिक रहे हैं।
  • मूलतः इस संस्था का नाम G-6 था, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और इटली शामिल थे। वर्ष 1976 में कनाडा इस समूह में शामिल हुआ फिर इसका नाम G-7 पड़ा।
  • पुनः रूस के शामिल होने के पश्चात् यह G-8 कहलाया जाने लगा किंतु, वर्ष 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया पर आक्रमण के कारण इसे समूह से बेदखल कर दिया गया।

भारत के लिये G-7 शिखर सम्मेलन का महत्त्व

  • 'अमेरिका फर्स्ट' से 'अमेरिका इज़ बैक' तक: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की "अमेरिका फर्स्ट" नीतियों ने विश्व पर अमेरिकी आधिपत्य को कमज़ोर कर दिया। वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिकी गठबंधनों को मजबूत करने और भारत को एक नए वैश्विक समीकरणों में शामिल करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • एक मजबूत G-7 गठबंधन की आवश्यकता: आक्रामक होते हुए चीन द्वारा उत्पन्न की जाने वाली चुनौतियों, जलवायु परिवर्तन की गति को कम करने की तात्कालिक ज़रूरत और महामारी के बाद की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को देखते हुए एक मजबूत G-7 गठबंधन की आवश्यकता उत्पन्न होती है। ये चुनौतियाँ भारत और पश्चिम के हितों के बीच अभूतपूर्व तालमेल पैदा कर रही हैं।
  • G-7 से जी-11: कुछ समय पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि दुनिया के सबसे विकसित देशों के समूह, G-7, की प्रासंगिकता अब कम हो गई है एवं उन्होंने इसका विस्तार करने का प्रस्ताव रखा था।
    • अतः भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण कोरिया को इसमें आमंत्रित कर इस समूह को G-7 से G-11 में बदलने की संभावना के रूप में देखा जा सकता है। 
    • G-11 का विचार भी एक वैश्विक लोकतांत्रिक गठबंधन के रूप में उभर सकता है एवं भारत इसके केंद्र में है।
    • इसके अलावा प्रस्तावित जी-11 समूह दुनिया के सबसे अमीर देशों में भारत के स्थान को मान्यता प्रदान करेगा और इसके वैश्विक स्तर पर इसकी आवाज़ को स्वीकृति मिलेगी।
  • चीन से मुकाबला: ज्ञातव्य है कि चीन भारत की वैश्विक आकांक्षाओं को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा है।
    • अतः एक पश्चिमी धुरी का निर्माण जिसमें अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ के साथ-साथ क्वाड के साथ मजबूत द्विपक्षीय रणनीतिक सहयोग भारत को चीन से मुकाबला करने में मदद कर सकता है।
    • भारत वैक्सीन उत्पादन के क्षेत्र में लोकतांत्रिक दुनिया के लिये उन्मुख भविष्य की आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण नोड के रूप में उभर रहा है।
  • वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन को आसान बनाना: G-7 शिखर सम्मेलन में रूस को भी आमंत्रित किये जाने के साथ, भारत को अब उम्मीद है कि अमेरिका और रूस के बीच एक नए सिरे से बातचीत से उनके बीच तनाव कम हो सकता है और महान शक्तियों के बीच भारत के संतुलन को आसान बनाएगा।

G-7 और भारत के साथ संबद्ध चुनौतियाॅं

  • हितों का टकराव: भारत और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते पारस्परिक हितों के बढ़ने का मतलब यह नहीं है कि दोनों पक्ष हर बात पर सहमत होंगे।
    • पश्चिमी देशों के भीतर विचलन के कई क्षेत्र हैं जैसे- राज्य की आर्थिक भूमिका से लेकर सोशल मीडिया के लोकतांत्रिक विनियमन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र।
  • G-7 के भीतर आंतरिक संघर्ष: जलवायु परिवर्तन, सुरक्षा योगदान, ईरान, आदि मुद्दों पर सदस्यों के मतभेदों को देखते हुए अब तक एक बहुपक्षीय मंच के रूप में G-7 की प्रभावशीलता के मूल्यांकन की आवश्यकता है।
  • उभरता हुआ नया शीत युद्ध: चीन के साथ सीमा पर तनाव के बावजूद, भारत को एक ऐसे समूह में भाग लेने के अपने उद्देश्यों पर भी विचार करना चाहिये जो अमेरिका और चीन के बीच एक नए शीत युद्ध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतीत होता है।

निष्कर्ष

जबकि भारत एशिया और दक्षिणी विश्व में अपनी भागीदारी को मजबूत कर रहा है, पश्चिमी देशों के साथ एक अधिक उत्पादक साझेदारी भारत के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने में मदद करती है एवं भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक नया आयाम जुड़ेगा।

हालाँकि इसके लिये वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में सुधार, जलवायु परिवर्तन को कम करने, हरित विकास को बढ़ावा देने, भविष्य में दुनिया के महामारियों के प्रति प्रतिरक्षा विकसित करने जैसे साझा हितों पर निरंतर बातचीत की आवश्यकता होगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत इस तथ्य को अनदेखा नहीं कर सकता कि चीन भारत की वैश्विक आकांक्षाओं में सबसे बड़ी बाधा है। इस कथन के आलोक में भारत के G-7 में शामिल होने की संभावनाओं पर चर्चा कीजिये।