ऊर्जा संक्रमण और राजकोषीय प्रभाव | 19 Apr 2022

यह एडिटोरियल 18/04/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “Coping with Fiscal Effects of Energy Transition” लेख पर आधारित है। इसमें जीवाश्म ईंधन पर भारत की वित्तीय निर्भरता और स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण के आर्थिक प्रभाव के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ:

ऊर्जा संक्रमण (Energy transitions) दुनिया भर में गति पकड़ रहा है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। उसने नवीकरणीय ऊर्जा के लिये विश्व के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है।

हालाँकि हम यदि इसके वित्तीय प्रभावों पर विचार करें तब यह संक्रमण एक जटिल कार्य होगा। इसके साथ ही, भारत जैसे बड़ी आबादी और विविधता वाले देश में यह सुनिश्चित करना आसान नहीं होगा कि भारत के ऊर्जा संक्रमण से उत्पन्न अवसर पूरे समाज में न्यायसंगत रूप से साझा हो रहे हैं।

रोज़गार, विकास और संवहनीयता के तिहरे लाभ की प्राप्ति के लिये भारत को अपने ऊर्जा संक्रमण के केंद्र में लोगों को और एक सुचारू वित्तीय संक्रमण को रखने का प्रयास करना चाहिये। 

जीवाश्म ईंधन पर भारत की वित्तीय निर्भरता 

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) द्वारा प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने के साथ कोयले, तेल और प्राकृतिक गैस से सरकारों (केंद्र और राज्य दोनों) को प्राप्त होने वाला राजस्व अगले दो दशक प्रभावित रहेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार विकास, मूल्यों और करों पर बेहद मानक आकलनों के तहत वर्ष 2040 तक जीवाश्म ईंधन से राजस्व में निरंतर वृद्धि होगी।
    • हालाँकि सकल घरेलू उत्पाद और समग्र सरकारी बजट के हिस्से के रूप में राजस्व में उल्लेखनीय गिरावट आएगी, जो स्वाभाविक रूप से अगले दो दशकों में केंद्र एवं राज्य सरकारों दोनों के लिये वित्तीय चुनौतियाँ उत्पन्न करेगी।
  • वर्ष 2019 तक केंद्र के राजस्व में पाँचवें भाग से अधिक का योगदान जीवाश्म ईंधन से प्राप्त हो रहा था जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) द्वारा भुगतान किये गए कर (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों) और गैर-कर राजस्व (रॉयल्टी, लाभांश आदि सहित) शामिल थे।  
    • राज्य सरकारों के लिये जीवाश्म ईंधन से प्राप्त राजस्व कुल राजस्व का लगभग 8% थे।
    • केंद्र और राज्यों दोनों के लिये संयुक्त राजस्व एकत्रित कुल राजस्व का 13% था, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 3.2% है।
      • यह हिस्सा भारत के रक्षा व्यय से बहुत अधिक है और केंद्र एवं राज्यों दोनों के लिये शिक्षा, संस्कृति और खेल के संयुक्त व्यय के बराबर है।

ऊर्जा संक्रमण का वित्तीय प्रभाव 

  • वैश्विक स्तर पर: ये प्रभाव हर जगह एकसमान रूप से महसूस नहीं किये जाएँगे। चीन वर्ष 2050 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में कुल 75 ट्रिलियन डॉलर की कुल आर्थिक क्षति के लगभग 27% का अनुभव करेगा, जबकि अमेरिका लगभग 12%, यूरोप 11% और भारत लगभग 7% का अनुभव करेगा।
    • इराक जैसी अर्थव्यवस्थाएँ जिनके पास गैर-जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों में निवेश करने के लिये वित्तीय भंडार उपलब्ध नहीं है, उन्हें आर्थिक उत्पादन में सर्वाधिक नुकसान हो सकता है।
    • गहन पूंजी बाज़ारों वाली समृद्ध अर्थव्यवस्थाएँ, जिन्होंने पहले से ही ऊर्जा संक्रमण प्रौद्योगिकियों में बड़ा निवेश करने वाले फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड जैसे देश बेहतर स्थिति में होंगे।
  • राष्ट्रीय स्तर पर: कोविड-19 के दौरान राजस्व के लिये जीवाश्म ईंधन (मुख्य रूप से पेट्रोलियम) पर सरकारों की निर्भरता में वृद्धि हुई।
    • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में कमी के बावजूद भारत में पेट्रोल/डीजल पर करों में वृद्धि की गई जिससे अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू तेल मूल्यों के बीच असंलग्नता की स्थिति बनी।
    • नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019-20 में पेट्रोलियम से प्राप्त राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का 2.7% था जो वर्ष 2020-21 में उच्च उत्पाद शुल्क और वैट के कारण बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 3.4% हो गया।
    • भारत द्वारा अपनी शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धताओं का पालन शुरू करने के साथ पहला कदम जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करना होगा। नतीजतन, राजस्व का यह प्रमुख स्रोत सीमित हो जाएगा।

संबंधित चिंताएँ 

  • राजस्व में गिरावट: समय के साथ जीवाश्म ईंधन से राजस्व में लगातार गिरावट आएगी क्योंकि भारत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण कर रहा है, जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी आती जाएगी और इलेक्ट्रिक वाहनों (Evs) का उपयोग बढ़ता जाएगा।
    • यदि मौजूदा आर्थिक रुझान जारी रहता है तो राजस्व वर्ष 2019 में सकल घरेलू उत्पाद के 3.2% से गिरकर वर्ष 2030 और 2040 में क्रमशः 1.8% और 1% होने का अनुमान है।
  • सब्सिडी - एक आवश्यक बुराई: इलेक्ट्रॉनिक वाहनों पर उत्पाद शुल्क की रियायत, इलेक्ट्रिक कारों पर रियायती GST, ग्रीन हाइड्रोजन नीति के तहत दी गई रियायतें (जैसे लघु पवन ऊर्जा और हाइब्रिड सिस्टम प्रोग्राम) आदि के रूप में ऊर्जा संक्रमण के एक बड़े हिस्से को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सब्सिडी के माध्यम से समर्थन देने की आवश्यकता हो सकती है।
    • ये सब्सिडी केंद्र और राज्यों के वित्तीय तनाव को बढ़ाएँगी। लेकिन इन सब्सिडी के बिना ऊर्जा संक्रमण स्वयं धीमा हो सकता है।
  • राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: घटते राजस्व के राजनीतिक-आर्थिक प्रभाव भी हो सकते हैं। वर्ष 2022 राज्य सरकारों को प्रदत्त जीएसटी मुआवजे का अंतिम वर्ष है जो कुछ राज्यों के राजस्व पर दबाव डाल सकता है।
    • इसके अलावा, जीएसटी ढाँचे के तहत राज्यों के पास कर बढ़ाने की सीमित स्वायत्तता समस्या को बढ़ा सकती है।
      • केंद्र ने पिछले कुछ वर्षों से उपकर के माध्यम से अधिक राजस्व एकत्र करना शुरू कर दिया है, जिसे राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है और इससे केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव का जोखिम उत्पन्न होता है।
  • निवेश की चुनौतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में वित्तीय बाधाओं पर ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति (2021-22) की 21वीं रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत की दीर्घकालिक RE प्रतिबद्धताओं के लिये प्रति वर्ष 1.5-2 ट्रिलियन रुपए की आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों में वास्तविक निवेश लगभग 75,000 करोड़ रुपए का रहा है ।
  • हरित क्षेत्र में लैंगिक असमानता: ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) और IEA द्वारा वर्ष 2019 में किये गए एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 32% है, लेकिन भारत में रूफटॉप सोलर कार्यबल में उनकी हिस्सेदारी मात्र 11% है।

भारत वित्तीय संक्रमण से कैसे निपट सकता है?

  • अतिरिक्त कर: जब सरकार राजस्व तनाव का अनुभव करती है तो वह ऊर्जा को राजस्व का सबसे आसान स्रोत मानती है। कोयले पर अतिरिक्त कर या ‘कार्बन टैक्स’ लगाया जा सकता है।
    • सदी के मध्य तक धीरे-धीरे मौजूदा कोयला उपकर (या जीएसटी मुआवजा उपकर) के बराबर एक छोटी राशि से लेकर 2,500 रुपए प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड तक पहुँचा जा सकता है।
    • अल्पावधि में, भारत जीवाश्म ईंधन से प्राप्त राजस्व में कमी की भरपाई के लिये अन्य स्रोतों से राजस्व में वृद्धि कर सकता है (जैसे शराब, तंबाकू आदि डी-मेरिट वस्तुओं पर कर बढ़ाने के रूप में)।
  • सुदृढ़ नीतियाँ: जिस तरह हमें सुदृढ़ जलवायु नीतियों की आवश्यकता है, उसी तरह हमें यह सुनिश्चित करने के लिये सुदृढ़ सामाजिक नीतियों और स्थानीय संस्थानों की भी आवश्यकता है कि स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण निष्पक्ष और न्यायसंगत हो।
    • भारत को इस तथ्य के लिये तैयार रहना चाहिये कि ज़रूरी नहीं कि रोज़गार का सृजन उसी जगह हो जहाँ से रोज़गार का ह्रास हुआ है; और अधिकांश नई नौकरियों का गैर-संगठित होना भी संभावित है, जहाँ प्रायः सुरक्षा जाल की कमी होती है। देश को अपनी नीतियाँ इसी अनुरूप तैयार करनी होंगी।
    • कार्बन कर राजस्व को उन गरीब परिवारों को वापस पुनर्चक्रित करने की आवश्यकता पड़ सकती है जो अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा ऊर्जा पर खर्च करते हैं।
  • एक अवसर के रूप में निवेश चुनौती: बजट 2022 ने घोषणा की कि सरकार हरित अवसंरचना के लिये संसाधन जुटाने हेतु ‘सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड’ जारी करने का प्रस्ताव करती है।
    • इन बॉण्डों को रुपया-मूल्यवर्ग के अंत-उपयोग के साथ रुपए के राजस्व से सेवित होने की उम्मीद है। यह घरेलू स्तर पर और साथ ही विदेशों में 'मसाला' बॉण्ड जारी करने के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करता है। 
    • कई भारतीय कॉरपोरेट्स ने अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों से पूंजी जुटाने के लिये इंडिया इंटरनेशनल एक्सचेंज (India INX) का दोहन किया है। हरित वित्त के लिये भारत की अत्यधिक आवश्यकताओं को एक घरेलू लेकिन विश्व-उन्मुख पूंजी बाज़ार के विकास के लिये एक लाभ में बदला जा सकता है।
      • यह भारत को एशिया और अफ्रीका में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक प्रवेश द्वार के रूप में स्थापित कर सकता है जो अपने स्वयं के ऊर्जा संक्रमण के लिये अंतर्राष्ट्रीय पूंजी जुटाने की इच्छा रखते हैं।
  • लैंगिक रूप से संतुलित संक्रमण: जबकि भारत के ऊर्जा संक्रमण से कई नए रोज़गार सृजित होंगे, बढ़ते हरित कार्यबल में महिलाओं की सीमित भागीदारी की समस्या को संबोधित किया जाना चाहिये।
    • प्राथमिकता के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा कंपनियों को अपने कार्यबल में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने हेतु नीतियों को बढ़ावा देना चाहिये।
    • इनमें परियोजना स्थलों पर महिलाओं के लिये उपयुक्त सुविधाओं में निवेश करना, लचीली कार्य व्यवस्था के लिये दिशानिर्देश तैयार करना और नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिये अधिक महिलाओं को तैयार करने हेतु कार्यक्रम सृजन करना शामिल हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत पर स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के वित्तीय प्रभाव की चर्चा कीजिये और आर्थिक दृष्टिकोण से सुचारू संक्रमण के लिये उपायों के सुझाव दीजिये।