भारत में हाथी गलियारों का बढ़ता संकट | 13 Nov 2017

भूमिका

प्रायः हाथियों के झुंड को प्रतिवर्ष तकरीबन 350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करने के रूप में जाना जाता है। परंतु,  तेज़ी से खंडित होते प्राकृतिक परिदृश्यों ने इस वृहद् आकर वाले स्तनधारी जानवर को मानव-प्राच्य क्षेत्रों में प्रवेश करने को मज़बूर कर दिया है। यही कारण है कि आए दिन समाचारों में मनुष्य-पशु संघर्ष के संबंध में कोई न कोई खबर देखने को मिल जाती है। मानव बस्तियों के साथ-साथ हाथियों के जीवन को सुरक्षित करने के उद्देश्य से ही हाथी गलियारे (Elephant corridors) का निर्माण किया गया। वस्तुतः देखा जाए तो हाथी गलियारे को बनाए रखना न केवल हाथियों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है बल्कि मानव सुरक्षा के लिये भी यह अभूत ज़रुरी है।

हाथी गलियारा क्या होता है?

  • हाथी गलियारा भूमि का एक संकीर्ण भाग होता है जो दो बड़े आवासों को आपस में जोड़ता है। बहुत से ऐसे गलियारे पहले ही किसी न किसी सरकारी एजेंसी जैसे वन या राजस्व विभाग के नियंत्रण में हैं। गलियारों में बड़ी वाणिज्यिक सम्पदाओं तथा अनाज या कृषि भूमि में अप्रयुक्त स्थानों को शामिल किया जा सकता है।

'राइट ऑफ पैसेज' की रिपोर्ट के अनुसा

  • अगस्त 2017 में जारी 800-पृष्ठ वाले एक अध्ययन 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) में भारत में अवस्थित 101 हाथी गलियारों से संबंधित विवरणों की पहचान आदि के विषय में जानकारी प्रदान की गई थी।
  • 'राइट ऑफ पैसेज' का प्रकाशन प्रोजेक्ट एलिफेंट और ब्रिटेन स्थित एनजीओ एलीफैंट फैमिली के साथ सहयोग करते हुए वन्यजीव ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) द्वारा किया गया। इसके अंतर्गत विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए लेखों एवं रिपोर्टों को समाहित किया जाता है।
  • गौरतलब है कि इन 101 गलियारों में से 28 गलियारे दक्षिण भारत में स्थित हैं, जबकि मध्य भारत में 25, पूर्वोत्तर भारत में 23, उत्तरी पश्चिम बंगाल में 14 और उत्तर-पश्चिमी भारत में 11 हाथी गलियारे अवस्थित हैं।
  • 101 गलियारों का लगभग 70% हिस्सा हाथियों द्वारा उनकी कार्यक्षमता या उपयोग के संदर्भ में नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। इसके इतर 25% हिस्सा कभी-कभी उपयोग में आता है जबकि 6% हिस्सा शायद ही कभी उपयोग होता हो। 
  • दक्षिण भारत (93%) और उत्तरी पश्चिम बंगाल (86%) में अवस्थित लगभग सभी हाथी गलियारों का नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार पूर्वोत्तर भारत में अवस्थित 66% गलियारों का भी नियमित रूप से उपयोग किया जाता है।

गलियारों की अवस्थिति के संबंध में

elephant

  • इस अध्ययन के अंतर्गत हाथी गलियारों के संबंध में विशिष्ट संरक्षण समाधान प्रस्तुत किये गए है, परंतु प्रत्येक क्षेत्र में वनावरण और गलियारों की संख्या के बीच व्युत्क्रम संबंधों को भी इंगित किया गया है। उदाहरण के तौर पर जिस क्षेत्र में अधिक से अधिक जंगलाच्छादित क्षेत्र हैं उसमें उसी के अनुपात में अधिक हाथी गलियारे अवस्थित हैं।
  • इस प्रकार, गलियारों की सबसे अधिक संख्या उत्तरी-पश्चिमी बंगाल में स्थित है। यहाँ प्रत्येक 150 वर्ग किमी. के लिये हाथियों के आवास हेतु एक हाथी गलियारा मौजूद है। जिसके परिणामस्वरूप मानव-पशु संघर्ष की संख्या में बढ़ोतरी होती है। ध्यातव्य है कि यहाँ हर साल औसतन 48-50 लोग केवल मानव-पशु संघर्ष के कारण काल के ग्रास बनते हैं। 
  • इसके बाद उत्तर-पश्चिमी भारत का स्थान आता है, जहाँ हाथियों के निवास हेतु प्रत्येक 500 वर्ग किलोमीटर के लिये एक हाथी गलियारा है। इसके पश्चात् मध्य भारत का स्थान आता है, जहाँ प्रत्येक 840 वर्ग किलोमीटर में एक हाथी गलियारा है। 
  • दक्षिणी भारत में, प्रत्येक 1,410 वर्ग किमी के लिये एक हाथी गलियारा मौजूद है। हालाँकि, हाथियों के निवास स्थान हेतु निर्मित इन हाथी गलियारों में पूर्वोत्तर भारत की स्थिति सबसे बेहतर है। यहाँ प्रत्येक 1,565 वर्ग किमी के लिये एक हाथी गलियारा बनाया गया है।
  • यह विवरण इस बात की स्पष्ट व्याख्या करता है कि यदि मानव बस्तियों के इतने समीप पशु निवास स्थानों को स्थापित किया जाएगा तो भविष्य में मानव-पशु संघर्ष की घटनाओं में और अधिक इज़ाफा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। 

किस राज्य में कितने हाथी गलियारे हैं?

  • यदि राज्यों में संख्या की दृष्टि से विचार किया जाए तो पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक हाथी गलियारे (14) अवस्थित हैं। 
  • इसके पश्चात् स्थान आता है, क्रमशः तमिलनाडु (13) और उत्तराखंड (11) राज्य का।

हाथी गलियारों की स्थिति के संदर्भ में

  • वर्ष 2005 में WTI द्वारा 88 हाथी गलियारों को सूचीबद्ध करते हुए मानचित्रित किया गया था। प्राकृतिक परिदृश्य में परिवर्तन और विकास की तीव्र गति के संबंध में शोधकर्त्ताओं द्वारा यह पाया गया कि इनमें से सात गलियारे बेहद खराब स्थिति में हैं। 
  • साथ ही वर्तमान में हाथियों द्वारा इसका उपयोग भी नहीं किया गया है। शोधकर्त्ताओं द्वारा इसके अंतर्गत 20 नए गलियारों को भी सूचीबद्ध किया गया।
  • इस विषय में यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो स्थिति और भी चिंताजनक प्रकट होती है। वर्ष 2017 की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 2005 में 45.5% की तुलना में वर्तमान में लगभग 74% गलियारे एक किलोमीटर या उससे भी कम की चौड़ाई वाले गलियारे हैं। 
  • इसी प्रकार वर्ष 2005 के 41% की तुलना में वर्तमान में केवल 22% गलियारे एक से तीन किलोमीटर चौडाई वाले हैं। स्पष्ट है कि पिछले 12 सालों में इस स्थिति में बहुत अधिक बदलाव आया है जोकि बेहद चिंता का विषय है। 
  • वर्ष 2005 और 2017 की वास्तविक स्थिति का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि हाथी गलियारों के क्षरण की स्थिति बेहद गंभीर है। इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2017 के 21.8% की तुलना में वर्ष 2005 में 22.8% गलियारे मानव हस्तक्षेप से मुक्त थे, इसी प्रकार वर्ष 2017 में 45.5% बस्तियाँ अवस्थित थी जबकि वर्ष 2005 में यह 42% था। 
  • इसी प्रकार यदि भूमि उपयोग के संदर्भ में बात करें तो केवल वर्ष 2005 के 24% की तुलना में वर्ष 2017 में 12.9% गलियारे पूरी तरह वनावरण के तहत आते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि केवल आठ हाथी गलियारों को राज्य के वन विभागों सहित एम.ओ.ई.एफ.सी.सी. ((Ministry of Environment, Forest and Climate Change - MoEFCC), डब्ल्यू.टी.आई. और अन्य संरक्षण संगठनों द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई हैं। 
  • वस्तुतः मात्र आठ गलियारों को सुरक्षा प्रदान किये जाने से इस समस्या का समाधान हो पाना असंभव है। अत: संरक्षण की इस प्रक्रिया को और अधिक विस्तारित किये जाने पर बल दिया जाना चाहिये। साथ ही इस संबंध में अन्य उच्च प्राथमिकताओं के साथ-साथ संकटग्रस्त गलियारे को तत्काल आधार पर सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये।

गज यात्रा नामक पहल

  • गौरतलब है कि हाथी गलियारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये 'गज यात्रा' आरंभ करने की योजना बनाई जा रही है।
  • इसके अंतर्गत तकरीबन ऐसे 12 राज्यों में जहाँ हाथियों की पहुँच है, सड़क शो के माध्यम से स्थानीय कारीगरों द्वारा निर्मित हाथी मॉडलों की परेड की जाएगी।

बाधित क्षेत्र 

  • इसके अलावा, वर्तमान में देश में प्रत्येक तीन हाथी गलियारों में से दो कृषि गतिविधियों से प्रभावित हैं। 58.4% गलियारे स्थिर कृषि के अंतर्गत आते हैं तथा 10.9% झूम खेती के तहत आते हैं।
  • उत्तर पश्चिम बंगाल के सभी (100%) हाथी गलियारों, मध्य भारत (96%) और पूर्वोत्तर भारत के गलियारों (52.2%) में कृषि भूमि क्षेत्र है। उत्तर-पश्चिमी भारत में लगभग 72.7% और दक्षिणी भारत के 32% गलियारे कृषि भूमि वाले गलियारे हैं।
  • उत्तर-पश्चिम भारत में लगभग 36.4% हाथी गलियारों में से, मध्य भारत में 32%, उत्तरी पश्चिम बंगाल में 35.7% और पूर्वोत्तर में 13% हाथी गलियारे के पास से रेलवे लाइनें गुज़रती हैं। 
  • इसके अलावा, लगभग दो-तिहाई गलियारों के पास से या तो राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग गुजरता है। स्पष्ट रूप से इससे न केवल हाथियों का निवास स्थान प्रभावित होता है बल्कि इससे उनकी गतिविधियाँ भी बाधित होती हैं।
  • ध्यातव्य है कि हाथियों की गतिविधियों को बाधित होने से रोकने के लिये तकरीबन 20% गलियारों के लिये वाहनों हेतु एक ओवरपास की तत्काल आवश्यकता है। 
  • रेलवे पटरियों और राजमार्गों के अलावा 11% गलियारों के पास से नहरें गुजरती हैं, जबकि 12% हाथी गलियारे खनन एवं पत्थरों के उत्खनन से प्रभावित हैं।
  • ध्यात्वय है कि तीन महीन पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वन्यजीव संरक्षण समिति-भारत (Wildlife Conservation Society-India - WCS) द्वारा दाखिल एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation  - PIL) के जवाब में यह कहा गया कि 9 राज्यों के 27 उच्च प्राथमिकता वाले गलियारों में भूमि अधिग्रहण किये जाने की आवश्यकता है ताकि हाथियों की गतिविधियों को सुरक्षा प्रदान की जा सके।
  • पशु कल्याण के लिये अंतर्राष्ट्रीय फंड और डब्लू.टी.आई. ने वर्ष 2003 में 25.5 एकड़ गाँव की ज़मीन खरीदी गई और वर्ष 2007 में कर्नाटक सरकार को सौंप दी गई। यह भारत का पहला निजी तौर पर खरीदा गया गलियारा है। 
  • डब्ल्यू.टी.आई. और उसके साझीदारों द्वारा दक्षिणी कर्नाटक में एडेयारल्ली-डोड्डासम्पाई (Edayaralli-Doddasampige) सहित छह गलियारों को भी सुरक्षित किया गया है। यह गलियारा बिलीगिरी रंगास्वामी मंदिर (Biligiri Rangaswamy Temple) और एम.एम. हिल वन्यजीव अभयारण्यों को आपस में जोड़ता है। 

निष्कासन इसका जवाब नहीं है

  • हालाँकि, यदि न्यायालय के इस व्यक्तव्य के विषय में गंभीरता से विचार किया जाए तो ज्ञात होता है कि हाथियों की गतिविधियों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है।
  • वस्तुतः हाथी गलियारों को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया में समुदायों को संरक्षण-प्रकिया में शामिल करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। निश्चित रूप से बेदखली तो इसका जवाब बिलकुल नहीं है।
  • गाँवों को स्थानांतरित करने के बजाय हमें गलियारे को पुनर्स्थापित करने और लोगों को महत्त्वपूर्ण (हाथी) प्रवास वाले मार्गों का उपयोग करने से रोकने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

दिनोंदिन बढ़ते मनुष्य-पशु संघर्ष को मद्देनज़र रखते हुए यह कहना गलत न होगा कि सरकार द्वारा हाथी गलियारों के संरक्षण एवं रख-रखाव के विषय में शीघ्र कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है। इस प्रकार के संरक्षण का उद्देश्य जहाँ एक ओर हाथियों को सुरक्षा प्रदान करना है, वहीं दूसरी ओर इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी सुरक्षा प्रदान करना है। स्पष्ट रूप से इस दिशा में कार्य करने के लिये सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोगों, संस्थाओं तथा सरकारी एवं निजी संगठनों द्वारा प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, तभी इस संदर्भ में अपेक्षित लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।