ड्राफ्ट मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट | 17 Mar 2018

संदर्भ
हाल ही में कृषि मंत्रालय द्वारा एक ड्राफ्ट मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2018 जारी किया गया है। इस ड्राफ्ट मॉडल एक्ट  के तहत अनुबंध खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) के लिये एक विनियामक और नीतिगत ढाँचा तैयार करने की व्यवस्था की गई है। पीआरएस द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इस ड्राफ्ट मॉडल एक्ट के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि इस अधिनियम में वर्णित प्रावधानों के आधार पर, राज्यों की विधानसभाएँ अनुबंध खेती पर कानून बना सकती हैं, ऐसा इसलिये, क्योंकि अनुबंध का मुद्दा संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है। इस लेख के अंतर्गत अनुबंध खेती से संबंधित पक्षों यथा-अनुबंध खेती क्या होती है? मौजूदा समय में भारत में इसके संबंध में क्या नीति-निर्देश बनाए गए हैं, इत्यादि पक्षों के विषय में विस्तार से चर्चा करने की कोशिश की गई है।

अनुबंध खेती क्या होती है?

  • अनुबंध खेती के तहत, खरीदार (जैसे-खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ और निर्यातक) और उत्पादक (किसान या किसान संगठन) के बीच हुए फसल-पूर्व समझौते के आधार पर कृषि उत्पादन (पशुधन और मुर्गी पालन सहित) किया जाता है। 
  • इसका लाभ यह होता है कि अनुबंध में वर्णित शर्तों एवं प्रावधानों के अनुसार, उत्पादक द्वारा एक विशिष्ट कीमत पर कृषि उत्पादों को भविष्य में कभी भी खरीदार को बेचा जा सकता है। 
  • अनुबंध खेती के तहत न केवल उत्पादक बाज़ार मूल्य और मांग में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम कर सकने में सक्षम होते है, बल्कि खरीदार भी गुणवत्तायुक्त उत्पादन की अनुपलब्धता के जोखिम को कम कर सकने की स्थिति में होते हैं।
  • ड्राफ्ट मॉडल एक्ट में वर्णित प्रावधानों के अनुसार, अनुबंध समझौते के तहत उत्पादक इनपुट (जैसे प्रौद्योगिकी, पूर्व-फसल और बाद की फसल के बुनियादी ढाँचे के रुप में) के माध्यम से उत्पादन में सुधार के लिये खरीदार से समर्थन प्राप्त कर सकता है। 
  • हालाँकि, इस अनुबंध के तहत यह साफ तौर पर वर्णित किया गया है कि उत्पादन में सुधार हेतु समर्थन देने के बहाने खरीदार उत्पादक की भूमि पर किसी भी प्रकार की स्थायी संरचना का निर्माण नहीं कर सकता है। 
  • साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि उत्पादक के भूमिगत अधिकार या भूमि के स्वामित्व के खरीदार को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

इस संबंध में मौजूदा नियामक संरचना क्या है?

  • वर्तमान में कुछ राज्यों में अनुबंध खेती के लिये कृषि उत्पाद विपणन समिति (Agricultural Produce Marketing Committee -APMC) के द्वारा पंजीकरण किये जाने की आवश्यकता होती है। 
  • इसका अर्थ यह है कि अनुबंध समझौतों को एपीएमसी के साथ दर्ज किया जाता है जो इन अनुबंधों से उत्पन्न होने वाले विवादों को हल करने का काम करती है।
  • इसके अलावा, अनुबंध खेती करने के लिये एपीएमसी को बाज़ार शुल्क और लेवी का भुगतान किया जाता है।
  • मॉडल एपीएमसी अधिनियम, 2003 के तहत राज्यों को अनुबंध खेती से संबंधित कानूनों को लागू करने संबंधी अधिकार प्रदत्त किये जाते है।
  • इस अधिनियम के परिणामस्वरूप 20 राज्यों द्वारा अपने एपीएमसी अधिनियमों में अनुबंध खेती हेतु संशोधन किये गए हैं, इतना ही नहीं, पंजाब में तो अनुबंध खेती पर अलग से एक कानून का निर्माण किया गया है।
  • हालाँकि, अक्तूबर 2016 तक केवल 14 राज्यों द्वारा ही अनुबंध खेती से संबंधित अधिसूचित नियमों का पालन किया गया।

APMC

समस्याएँ
वर्तमान में मौजूद अनुबंध खेती की संरचना के साथ विभिन्न प्रकार की समस्याएँ हैं, जिनके विषय में विशेष रुप से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। अनुबंध खेती के कार्यान्वयन से संबंधित मुख्य मुद्दों में शामिल हैं-

  1. ज़्यादातर राज्यों में पंजीकरण और विवाद निपटान के लिये एक प्राधिकरण के रूप में नियुक्त किये गए एपीएमसी की भूमिका।
  2. अनुबंध खेती के तहत उत्पाद पर स्टॉकहोल्डिंग सीमा संबंधी प्रावधान।
  3. किसानों के बीच अनुबंध खेती के फायदों के संबंध में प्रचार-प्रसार करना।

कृषि उत्पाद विपणन समितियों/विपणन बोर्डों की भूमिका
Agricultural Produce Marketing Committees/Marketing Boards

  • नीति आयोग द्वारा अनुबंध खेती हेतु एपीएमसी को भुगतान किये गए बाज़ार शुल्क और अन्य लेवी के संबंध में निरीक्षण किया गया।
  • इस निरीक्षण में यह पाया गया कि जब एपीएमसी द्वारा बाज़ार सुविधाएँ और अवसंरचना जैसी कोई बुनियादी सेवाएँ प्रदान नहीं की गई हैं, ऐसी स्थिति में कृषि सुधारों पर राज्य मंत्रियों की समिति द्वारा यह सिफारिश की गई है कि अनुबंध खेती को एपीएमसी के दायरे से बाहर कर देना चाहिये। 
  • इसके स्थान पर अनुबंध खेती से संबद्ध हितधारकों हेतु एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण (Independent Regulatory Authority) को स्थापित किया जाना चाहिये।
  • ड्राफ्ट मॉडल एक्ट के अंतर्गत, अनुबंध कृषि को राज्य एपीएमसी के दायरे से बाहर किया गया है। इसका अर्थ यह है कि अब खरीदार को अनुबंध खेती करने के लिये इन एपीएमसी हेतु मार्केट फीस और कमीशन शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। 
  • इसके अलावा, ड्राफ्ट मॉडल एक्ट के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये अधिनियम के अंतर्गत राज्य स्तर के अनुबंध खेती (संवर्द्धन और सुविधा) प्राधिकरण स्थापित करने हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश भी प्रदान किये गए है ताकि किसी प्रकार की कोई दुविधा न हो।
  • इस कार्य हेतु प्राधिकरण की कार्यवाही में निम्नलिखित आयामों को शामिल किया गया है-
    ► सुविधा शुल्क वसूल करना और उनका एकत्रण।
    ► ड्राफ्ट मॉडल एक्ट के तहत उपजे विवादों का निपटारा करना।
    ► अनुबंध खेती का प्रचार करना।
  • इसके अतिरिक्त एक और बहुत महत्त्वपूर्ण व्यवस्था की गई है कि अनुबंधित उत्पाद की बिक्री और खरीद से संबंधित अधिकारों को राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के कृषि विपणन अधिनियम के नियमन के दायरे से बाहर रखा गया है।

पंजीकरण और अनुबंध संबंधी रिकॉर्ड

  • राज्यों को जारी मॉडल एपीएमसी अधिनियम, 2003 द्वारा अनुबंध कृषि समझौते के पंजीकरण संबंधी अधिकार प्रदान किये गए थे। 
  • ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य अनुबंध खेती के संबंध में उपजने वाले विवादों के समाधान सहित, कानूनी समर्थन के माध्यम से उत्पादकों और खरीदारों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करना था। 
  • वर्तमान में कुछ राज्यों में अनुबंध कृषि हेतु पंजीकरण की सुविधा एपीएमसी के तहत उपलब्ध कराई जा रही है, जबकि कुछ राज्यों में यह सुविधा एक राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी के तहत प्रदान की गई है।
  • इसी प्रकार से अनुबंध समझौतों के तहत खरीदारी पर बाज़ार शुल्क के संबंध में भी यही व्यवस्था की गई है, कुछ राज्यों को तो इस संबंध में पूरी तरह से छूट प्रदान की गई है और कुछ में आंशिक रूप से छूट प्रदान की गई है।
  • इस संबंध में कृषि सुधारों पर राज्य मंत्रियों की समिति द्वारा सिफारिश की गई है कि एपीएमसी के बजाय ज़िला स्तर के अधिकारियों को अनुबंध कृषि समझौते के पंजीकरण के लिये प्रबंधित किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, किसी भी रजिस्ट्री प्राधिकारी को खरीदार की वित्तीय स्थिति जैसे विवरण की जाँच करने संबंधी अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये।
  • ड्राफ्ट मॉडल एक्ट के तहत, अनुबंध खेती से संबंधित प्रत्येक समझौते को एक पंजीकरण और करार रिकॉर्डिंग समिति के साथ पंजीकृत किया जाना चाहिये, जिसे कृषि, पशुपालन, विपणन और ग्रामीण विकास जैसे विभागों के अधिकारियों के साथ संबंध स्थापित किया जा सकता है।
  • इस प्रकार की समिति को ज़िला, तालुका या ब्लॉक स्तर पर स्थापित किया जा सकता है।

निर्माता और खरीदार के बीच विवाद की स्थिति में

  • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) द्वारा अनुबंध कृषि समझौते को कायम रखने से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण जोखिमों की समीक्षा की गई। 
  • उदाहरण के लिये, वैसे उत्पादक भी अपने उत्पाद को किसी खरीदार को बेच देते हैं, जिनके साथ किसी प्रकार का कोई अनुबंध नहीं होता है। 
  • दूसरी ओर, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई खरीदार जिन कीमतों पर या उत्पाद की मात्रा पर अनुबंध के दौरान सहमति जताता है उन शर्तों को पूरा करने में विफल हो जाता है, अर्थात् उत्पादों को खरीदने में विफल हो सकता है।
  • इस संबंध में कृषि सुधारों पर राज्य मंत्रियों की समिति द्वारा सिफारिश की गई है कि ऐसी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिये एपीएमसी के स्थान पर ब्लॉक, ज़िला या क्षेत्रीय स्तर पर विवाद निवारण तंत्र की स्थापना की जानी चाहिये।
  • इस बात को आधार बनाते हुए ड्राफ्ट मॉडल एक्ट  के तहत, उत्पादकों और खरीदार के बीच विवाद की स्थिति बनने पर ये लोग निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं :
    ► बातचीत या सुलह के माध्यम से पारस्परिक स्वीकार्य समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।
    ► राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट विवाद निपटान अधिकारी को विवाद का संदर्भ दे सकते हैं।
    ► विवाद निपटान अधिकारी के फैसले से संतुष्ट नहीं होने पर प्रत्येक राज्य में स्थापित अनुबंध कृषि (संवर्द्धन और सुविधा) प्राधिकरण (Contract Farming (Promotion and Facilitation) Authority) से अपील कर सकते हैं।

अनुबंधित उत्पादन पर स्टॉकहोल्डिंग की सीमाएँ

  • आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act), 1955 के आदेशानुसार, अनुबंधित उत्पादन पर स्टॉकहोल्डिंग सीमाओं को अधिरोपित किया जाता है। 
  • स्टॉकहोल्डिंग सीमा के संबंध में बनाए गए ऐसे प्रावधान अनुबंध खेती के क्षेत्र में ठेकेदारों के प्रवेश को न केवल प्रतिबंधित करने का काम कर सकते हैं बल्कि खरीदारों को भी हतोत्साहित कर सकते हैं।
  • इस बात को ध्यान में रखते हुए यह सिफारिश की गई थी कि खरीदारों को उनके व्यापारिक हितों की आवश्यकतानुसार छह महीने तक स्टॉक की सीमा से छूट दी जा सकती है।
  • यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि ड्राफ्ट मॉडल एक्ट के तहत, कृषि उत्पादों के स्टॉकहोल्डिंग की सीमा अनुबंध खेती के तहत खरीदी गई वस्तुओं पर लागू नहीं होगी।

अन्य सिफारिशें

  • जैसा कि हम जानते हैं, अनुबंध खेती किसानों को वैकल्पिक मार्केटिंग चैनलों के साथ-साथ उनकी उपज के संबंध में बेहतर मूल्य के अवसर सृजित करती है। 
  • इसी बात को मद्देनज़र रखते हुए बहुत से विशेषज्ञों द्वारा कई अन्य मार्केटिंग सुधारों के सुझाव भी पेश किये गए है। 
  • इस सुधारों में निम्नलिखित पक्षों को शामिल किया गया है-
    ► किसानों द्वारा उत्पादित उत्पादों की सीधी बिक्री की अनुमति। 
    ► फलों और सब्ज़ियों को एपीएमसी के दायरे से बाहर किया जाना चाहिये।
    ► किसान-उपभोक्ता बाज़ारों की स्थापना की जानी चाहिये।
    ► इलेक्ट्रॉनिक व्यापार को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    ► उत्पादों की बिक्री हेतु इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार को भी इसके अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये।