व्यापार चक्र डेटिंग समिति: आवश्यक किन्तु उपेक्षित | 20 Mar 2017

विदित हो कि एलपीजी सुधारों के बाद से हम प्रत्येक छोटे-बड़े आर्थिक सुधारों के प्रति गंभीर रहें हैं लेकिन जैसे ही बात व्यापार चक्र डेटिंग समिति की होती है हमारी सक्रियता गायब हो जाती है| गौरतलब है कि एलपीजी सुधारों के 25 वर्षों से भी अधिक का समय बीत चुका है लेकिन व्यापार चक्र डेटिंग समिति के स्थापना की बात कौन करे हम तो इसकी ज़रूरत को भी समझ नहीं पा रहे हैं| इस समिति की आवश्यकता को समझने के लिये पहले हमें कुछ मूलभूत बातों पर गौर करना होगा|

क्या है व्यापार चक्र?

  • दरअसल, व्यापार चक्र (business cycle) बाज़ार अर्थव्यवस्था में एक वर्ष अथवा कुछ माह में उत्पादन, व्यापार और सम्बंधित गतिविधियों को सन्दर्भित करने वाला एक शब्द है| गौरतलब है कि यदि किसी अर्थव्यवस्था ने सुधारों की दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है तो उसका प्रभाव तुरंत ही दिखना आरम्भ नहीं हो जाता, सुधारों कि एक लम्बी प्रक्रिया होती है जो लम्बे समय तक चलती है| 
  • ध्यातव्य है कि इस लम्बी अवधि में अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा एक जैसी नहीं रहती| व्यवस्था में सदा तेजी या सदा मन्दी नहीं रहती बल्कि तेजी के बाद मन्दी तथा मन्दी के बाद तेजी का क्रम आता रहता है। यह अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता है। इसे ही व्यापार चक्र कहते हैं। कई देशों की अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने के पश्चात अर्थशास्त्री क्लीमेण्ट ने सबसे पहले सन् 1878  में 'व्यापार चक्र' की संकल्पना रखी थी|

व्यापार चक्र के पूरे प्रक्रम को हम 4 भागों में विभाजित कर सकते हैं : 

1) समृद्धि (Prosperity): यह व्यापार चक्र की सबसे प्रभावशाली तरंग के रूप में होती है जिसके अंतर्गत कुल रोज़गार, कुल आय, कुल उत्पादन और कुल मांग सबसे ऊँचे स्तरों पर होती हैं, चारों तरफ एक आशावादी और विस्तारवादी वातावरण का निर्माण होता है और यह तब तक रहता है जब तक हम उस उच्चतम स्तर पर नहीं पहुँच जाते|
2) सुस्ती (Recession):  सुस्ती का आरंभ ‘तेजी’ के अंदर विद्यमान विरोधाभासों से होता है| इसके अंतर्गत विस्तारवादी अवस्था कमज़ोर हो जाती है स्टॉक बाज़ार, बैंकिग प्रणाली और कीमतों के स्तरों में विरोधाभास के कारण गिरावट आरम्भ हो जाती है|
3) मंदी (Depression): मंदी के अंतर्गत हमारे सभी आर्थिक क्रिया-कलाप कमज़ोर पड़ जाते हैं| हमारे उत्पादन और कीमत स्तर, आय और रोज़गार तथा मांग, बिलकुल निचले स्तरों पर होते है, इसके साथ-साथ जमा और ब्याज दरों के निचले स्तरों पर होने के कारण साख का निर्माण नहीं हो पाता| किसी भी प्रकार का नया निर्माण ( उपभोग या पूँजी ) नहीं हो पाता है| अर्थव्यवस्था इस मंदी या गर्त में कितने समय रहती है यह उन विस्तारवादी शक्तियों के पुनः मज़बूत होने पर निर्भर करता है जो बिलकुल कमज़ोर पड़ चुकी हैं|
4) पुनरुथान ( Recovery): जब अर्थव्यवस्था पर मंदी हावी रहती है तो विस्तारवादी शक्तियाँ, अर्थव्यवस्था के निचले स्तर से आरंभिक शक्तियों के रूप में अपना कार्य शुरू करती हैं| ये शक्तियाँ अंतर्जात या बाह्य दोनों हो सकती हैं, स्थानापन्न कारकों के माध्यम से नए मांग के लिये नया निर्माण होता है और नए निर्माण के लिये नया निवेश आरम्भ होता है| इस प्रकार एक व्यापार चक्र पुरा होता है|

क्या है व्यापार चक्र समिति ?

  • व्यापार चक्र डेटिंग समिति आर्थिक विशेषज्ञों का एक मंडल है जो अर्थव्यवस्था में होने वाले उतार-चढ़ाव की समय सीमा का ध्यान रखता है और प्रमुख आर्थिक गतिविधियों जैसे खपत, निवेश, बेरोज़गारी, मुद्रा आपूर्ति, मुद्रास्फीति, स्टॉक की कीमतें आदि पर इनके होने वाले प्रभाव का अध्ययन करता है| यह समिति अर्थव्यवस्था में लाए जाने वाले सुधारों के पूर्व की मुद्रास्फीति और मंदी के कारणों की तुलना वर्तमान मुद्रास्फीति या मंदी के कारणों से करते हुए उनके आवश्यक उपायों की रुपरेखा भी तैयार करती है|

भारत में व्यापार चक्र डेटिंग समिति की आवश्यकता क्यों ?

  • उल्लेखनीय है कि व्यापारिक चक्रों का एक कालक्रम बनाए रखने से, भारत अर्थव्यवस्था की बेहतर निगरानी कर सकेगा| व्यापार चक्र डेटिंग समिति अर्थव्यवस्था में मंदी के कारक बनने वाले प्रभावों का एल अलग सुचकांक बनाकर उन पर लगातार निगरानी रखने का कार्य करती है, जो कि भारत में नीति-निर्मार्ताओं के लिये अत्यंत ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है| विदित हो कि वर्तमान में, भारत व्यापारिक चक्रों की डेटिंग के लिये व्यक्तिगत अध्ययनों पर निर्भर है, अतः यह आवश्यक है कि एक व्यापार चक्र डेटिंग समिति की स्थापना कि जाए|

संबंधित प्रगति

  • ज्ञात हो कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने 2002 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये प्रमुख संकेतकों के विकास के संबंध में आर. बी. बरमन की अध्यक्षता में आर्थिक सूचकांक के विकास के लिये कार्यकारी समूह और एक तकनीकी सलाहकार समूह) की स्थापना की थी| इस समिति ने सुझाव दिया था कि व्यापार चक्र के अध्ययन के लिये एक स्थायी समिति का गठन किया जाए, लेकिन इस संबंध में आवश्यक प्रगति नहीं होना सुधारों के प्रति हमारी सुस्ती का एक और उदाहरण है|

व्यापार चक्र डेटिंग समिति के निर्माण की चुनौतियाँ

  • भारत में व्यापार चक्र डेटिंग समिति के निर्माण की राह में जो भी चुनौतियाँ हैं वे इसकी सरंचना से संबंधित हैं| दरअसल, रिज़र्व बैंक एक स्वायत्त संस्था है लेकिन हाल के दिनों में आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर सवाल उठते रहें हैं| अतः व्यापार चक्र डेटिंग समिति को एक स्वतंत्र और राजनैतिक हस्तक्षेप से मुक्त एजेंसी के तौर पर विकसित करना होगा, आरबीआई के ढाँचे के अनुरूप ही व्यापार चक्र डेटिंग समिति को विकसित करने के साथ ही इन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिये|

निष्कर्ष:

व्यापार चक्र डेटिंग समिति के निर्माण से पारदर्शिता बनाए रखने, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये आँकड़ों के आधार को मज़बूत करने और अर्थव्यवस्था के बदलते स्वरूप को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी| व्यापार चक्र डेटिंग समिति, भारत को अन्य विकसित और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के साथ ताल-मेल बिठाने में भी मददगार सबित होगा| विश्व के अनेक बड़े देश पहले ही इस व्यवस्था को अपना चुके हैं और इसकी मदद से उल्लेखनीय प्रगति भी की है, 1991 के सुधारों की रजत जयंती मना चुके भारत को भी अब देर नहीं करनी चाहिये|