भारत के शैक्षिक भविष्य का निर्माण | 26 Jun 2025
यह एडिटोरियल 25/06/2025 को द लाइवमिंट में प्रकाशित “Education crisis: Don’t let fads disrupt the fundamentals of learning" लेख पर आधारित है। यह लेख इस विचार को सामने लाता है कि भारत में शैक्षिक सफलता का आधार समृद्धि की तुलना में शिक्षक गुणवत्ता और पाठ्यक्रम मानकों जैसे मूल सिद्धांतों के निरंतर पालन पर अधिक निर्भर करती है। यह अल्पकालिक समाधानों की तुलना में दीर्घकालिक, मापनीय सुधारों की आवश्यकता पर जोर देता है।
प्रीलिम्स के लिये:SWAYAM एवं SWAYAM प्रभा, पीएम ईविद्या, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, निष्ठा, निपुण भारत मिशन, पीएम श्री स्कूल, भारत का उच्च शिक्षा आयोग, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मेन्स के लिये:भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्रमुख सकारात्मक विकास, भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्रमुख सतत् मुद्दे। |
भारत के विभिन्न राज्यों में शैक्षणिक परिणाम दर्शाते हैं कि केवल आर्थिक समृद्धि ही स्कूली सफलता का निर्धारण नहीं करती। इसके विपरीत, शिक्षा के मूलभूत सिद्धांतों के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता, चाहे प्रशासनिक बदलाव हों या नहीं, परिणामों को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभाती है। यह संकेत करता है कि शिक्षक की गुणवत्ता, पाठ्यक्रम के मानक और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन जैसे बुनियादी तत्त्वों पर निरंतर ध्यान वित्तीय संसाधनों की तुलना में कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत के शैक्षिक परिदृश्य में गहराई से देखने पर स्पष्ट होता है कि सुधारों को तात्कालिक समाधानों की बजाय दीर्घकालिक स्थिरता पर केंद्रित होना चाहिये और ऐसा सीखने का ढाँचा विकसित करना चाहिये जो मज़बूत हो, व्यावहारिक हो तथा बड़े पैमाने पर लागू किया जा सके।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्रमुख सकारात्मक विकास क्या हैं?
- डिजिटल लर्निंग अवसंरचना का विस्तार: डिजिटल लर्निंग के तेजी से विकास ने शिक्षा तक पहुँच में काफी सुधार किया है।
- महामारी के कारण इस बदलाव में तेजी आई है तथा पीएम ई-विद्या और SWAYAM एवं SWAYAM प्रभा जैसी पहलों ने लाखों लोगों को ऑनलाइन पाठ्यक्रमों तक पहुँच बनाने में सक्षम बनाया है।
- यह डिजिटल क्रांति आजीवन सीखने की सुविधा प्रदान करती है, लेकिन यह डिजिटल समानता की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है।
- वर्ष 2023 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 400 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता होंगे, जिससे ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच बढ़ेगी।
- कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा पर अधिक ध्यान: प्रारंभिक अवस्था से ही व्यावसायिक शिक्षा को एकीकृत करने की दिशा में बदलाव, शिक्षा को नौकरी बाज़ार की मांग के साथ संरेखित करने की देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- शैक्षणिक और व्यावसायिक धाराओं के बीच कठोर सीमाओं को समाप्त करके, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 अनुभवात्मक शिक्षा और व्यावहारिक कौशल पर ज़ोर देती है।
- इसका उद्देश्य कौशल अंतर को कम करना और रोज़गार क्षमता में सुधार लाना है तथा शहरी-ग्रामीण विभाजन और युवा बेरोज़गारी दोनों को दूर करना है।
- कक्षा 6 से कौशल-आधारित पाठ्यक्रमों की शुरूआत तथा वर्ष 2035 तक 50% स्नातक नामांकन अनुपात का लक्ष्य भारत की उभरती हुई शैक्षिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
- शिक्षक प्रशिक्षण और शैक्षणिक सुधारों में सुधार: NEP 2020 और निष्ठा कार्यक्रमों के तहत शिक्षक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना एक महत्त्वपूर्ण विकास है।
- NEP 2020 में 4 वर्षीय एकीकृत बैचलर ऑफ एजुकेशन (बी.एड.) डिग्री को अनिवार्य किया गया है, जिसमें विषय ज्ञान को शैक्षणिक प्रशिक्षण के साथ जोड़ा गया है।
- इन सुधारों का उद्देश्य पूरे देश में शिक्षण की गुणवत्ता को मानकीकृत और उन्नत करना है। शिक्षक प्रशिक्षण में आधुनिक शैक्षणिक तकनीकों का एकीकरण बेहतर परिणाम सुनिश्चित करता है, जो रटने की आदत से हटकर आलोचनात्मक सोच की ओर ले जाता है।
- निष्ठा कार्यक्रम द्वारा वर्ष 2024 तक 42 लाख से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है, जिससे छात्र-केंद्रित शिक्षा में उनके कौशल में वृद्धि हुई है।
- मौलिक साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान (FLN) की शुरुआत: FLN मिशन एक परिवर्तनकारी पहल है, जिसका उद्देश्य कक्षा 3 तक के बच्चों में साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान को मज़बूत करना है।
- यह प्रारंभिक शिक्षा को भविष्य के समस्त अधिगम का आधार मानते हुए प्रारंभिक चरण में ही सीखने की कमी को दूर करने पर बल देता है।
- मूलभूत शिक्षा में मौजूद कमियों को दूर करके यह मिशन बच्चों के संज्ञानात्मक (cognitive) और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
- वर्ष 2025 भारत में FLN के लिये एक निर्णायक वर्ष साबित होने जा रहा है, क्योंकि निपुण भारत मिशन का लक्ष्य इस वर्ष के अंत तक देश के सभी प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक मौलिक साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान की प्राप्ति है।
- सार्वजनिक निवेश और बुनियादी ढाँचे के उन्नयन में वृद्धि: शिक्षा में निवेश बढ़ाने पर सरकार का नया ध्यान, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद के 6% तक व्यय बढ़ाने की प्रतिबद्धता शामिल है, एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव है।
- समग्र शिक्षा अभियान (SSA) और पीएम श्री स्कूल जैसी योजनाओं के तहत बुनियादी ढाँचे में सुधार बेहतर शैक्षिक वातावरण को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अधिक धनराशि का उद्देश्य डिजिटल सुविधाओं को उन्नत करना, पहुँच और गुणवत्ता दोनों को बढ़ाना है।
- समग्र शिक्षा अभियान (SSA) और पीएम श्री स्कूल जैसी योजनाओं के तहत बुनियादी ढाँचे में सुधार बेहतर शैक्षिक वातावरण को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- बहुभाषी शिक्षा और क्षेत्रीय भाषा एकीकरण पर ध्यान: NEP, 2023 के तहत बहुभाषिकता पर भारत का ज़ोर इसकी सांस्कृतिक विविधता के अनुरूप है।
- नीति में कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षा देने का समर्थन किया गया है, जिससे लाखों बच्चों की समझ और सीखने के परिणामों में सुधार होगा।
- यह बदलाव न केवल समावेशिता को बढ़ावा देता है, बल्कि भाषाई विविधता का भी सम्मान करता है तथा क्षेत्रीय भाषाओं को बनाए रखने में सहायता करता है।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म अब क्षेत्रीय भाषा पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, जिससे दक्षिण भारत जैसे गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में 25 मिलियन से अधिक छात्र लाभान्वित होते हैं।
- नीति में कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षा देने का समर्थन किया गया है, जिससे लाखों बच्चों की समझ और सीखने के परिणामों में सुधार होगा।
- शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्विक सहयोग: भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को प्रोत्साहित करती है तथा विनिमय कार्यक्रमों और संयुक्त डिग्री के लिये विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी की अनुमति प्रदान करती है।
- भारतीय कॉलेज संयुक्त डिग्री, विनिमय कार्यक्रम और इंटर्नशिप प्रदान करने के लिये वैश्विक साझेदारियाँ बना रहे हैं, जिससे छात्रों का अंतर्राष्ट्रीय अनुभव बढ़ रहा है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने भारतीय और विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच ट्विनिंग, संयुक्त डिग्री और डबल डिग्री कार्यक्रमों की पेशकश करने के लिये अकादमिक सहयोग पर विनियम जारी किये हैं।
- उच्च शिक्षा प्रशासन और स्वायत्तता में सुधार: भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) के निर्माण के प्रस्ताव के साथ उच्च शिक्षा प्रशासन का पुनर्गठन एक सकारात्मक सुधार है।
- कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता प्रदान करके, यह कदम नवाचार और शैक्षिक उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करता है।
- इसका उद्देश्य सत्ता के केंद्रीकरण को कम करना तथा संस्थाओं को उनके संचालन और पाठ्यक्रम में अधिक स्वतंत्रता प्रदान करना है।
- नई प्रत्यायन सुधारों के परिणामस्वरूप भारत के विश्वविद्यालयों की QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स में भी सुधार देखा गया है।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्रमुख सतत् मुद्दे क्या हैं?
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक असमान पहुँच: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में शहरी-ग्रामीण अंतर भारत की शैक्षिक प्रगति में बाधा बन रहा है।
- विभिन्न पहलों के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों को अभी भी बुनियादी ढाँचे, योग्य शिक्षकों और संसाधनों के मामले में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- यह असमानता असमान शैक्षिक परिणामों को जन्म देती है, विशेष रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये।
- भारत में केवल 18.47% ग्रामीण स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह सुविधा 47.29% है (शिक्षा मंत्रालय)।
- इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी 37% ड्रॉपआउट दर (2020-21 के अनुसार) दर्ज की गई है, जिसमें बुनियादी ढाँचे की कमी इस समस्या को और भी गंभीर बना रही है।
- रटने की पद्धति और मानकीकृत परीक्षण पर अत्यधिक जोर: भारत की शिक्षा प्रणाली रटने की पद्धति और मानकीकृत परीक्षण पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे समालोचनात्मक सोच और रचनात्मकता के विकास को उपेक्षित किया जाता है।
- इससे छात्रों की वास्तविक विश्व की स्थितियों में नवाचार करने और समस्याओं को हल करने की क्षमता सीमित हो जाती है। यह पद्धति समग्र विकास की तुलना में परीक्षा के अंकों को प्राथमिकता देता है, जिससे छात्रों में थकान बढ़ती है।
- 18वीं वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2023, जो 14–18 वर्ष की आयु के युवाओं को कवर करती है, एक गंभीर शैक्षिक अंतर की ओर इशारा करती है।
- उदाहरणस्वरूप, लगभग 25% युवा अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 स्तर का पाठ भी धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते, और केवल 57.3% युवा ही अंग्रेज़ी में वाक्य पढ़ पाने में सक्षम हैं।
- शिक्षक की कमी और अपर्याप्त प्रशिक्षण: सुधारों के बावजूद, शिक्षक गुणवत्ता भारत की शिक्षा प्रणाली में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। देशभर में प्रशिक्षित शिक्षकों की भारी कमी है और अधिकांश शिक्षकों को पेशेवर विकास के पर्याप्त अवसर नहीं मिलते।
- शिक्षकों के लिये व्यावसायिक विकास के अवसरों की कमी गुणवत्ता के अंतर को बढ़ाती है। शिक्षकों को अक्सर भीड़भाड़ वाली कक्षाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे प्रभावी शिक्षण और छात्रों की सहभागिता में बाधा आती है।
- नीति आयोग की 2023 की रिपोर्ट में बताया गया कि देश में 10 लाख से अधिक शिक्षकों के पद खाली हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर है।
- हालाँकि NISHTHA कार्यक्रम के तहत लाखों शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है, फिर भी नियमित और अद्यतन प्रशिक्षण की कमी बनी हुई है।
- खराब बुनियादी ढाँचे और संसाधन आवंटन: हालाँकि शैक्षिक बुनियादी ढाँचे में निवेश किया गया है, फिर भी कई स्कूलों में अभी भी स्वच्छ पेयजल, शौचालय और पुस्तकालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
- यह खराब बुनियादी ढाँचा छात्रों के समग्र शिक्षण अनुभव को बाधित करता है, जिससे उनकी उपस्थिति और शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित होता है।
- 13वीं ASER रिपोर्ट के अनुसार, 23% ग्रामीण स्कूलों में शौचालय उपयोग लायक नहीं हैं और 11.5% स्कूलों में लड़कियों के लिये अलग शौचालय नहीं हैं।
- वेब सीरीज 'पंचायत' ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों की भयावह स्थिति को प्रभावी ढंग से उजागर करती है, जहाँ छात्र अक्सर शौचालय का उपयोग करने से बचते हैं।
- माध्यमिक शिक्षा में उच्च ड्रॉपआउट दर और कम प्रतिधारण: माध्यमिक शिक्षा स्तर पर उच्च ड्रॉपआउट दर भारत की शिक्षा प्रणाली की एक गंभीर समस्या है।
- आर्थिक तंगी, खराब बुनियादी ढाँचा और अधिगम में रुचि की कमी के कारण छात्र शिक्षा अधूरी छोड़ देते हैं। यह भारत की कुशल कार्यबल बनाने की क्षमता को सीमित करता है।
- वर्ष 2021-22 में कक्षा 10 की ड्रॉपआउट दर 20.6% थी, जो अत्यधिक चिंता का विषय है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री के अनुसार, इसका मुख्य कारण आर्थिक दबाव और पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ हैं।
- समग्र शिक्षा अभियान (SSA) जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य इस पर अंकुश लगाना है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल छोड़ने की दर अभी भी अधिक है।
- शिक्षा में लैंगिक असमानता: यद्यपि प्रगति हुई है, फिर भी शिक्षा में लैंगिक असमानता एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
- लड़कियों को, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में, कम उम्र में विवाह, सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों और सुरक्षित बुनियादी ढाँचे की कमी जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो उनकी शिक्षा में भागीदारी और पढ़ाई में बने रहने में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं के बावजूद, एक हालिया अध्ययन बताता है कि छोड़ने वाली लड़कियों में 76% की उम्र 15 से 18 वर्ष के बीच थी।
- कॅरियर मार्गदर्शन और कौशल विकास का अभाव: भारत की शिक्षा प्रणाली में एक बड़ी चुनौती कॅरियर मार्गदर्शन और कौशल-आधारित शिक्षा का अभाव है।
- अकादमिक विषयों पर पारंपरिक ज़ोर अक्सर छात्रों को तेजी से बदलते नौकरी बाज़ार के लिये तैयार नहीं कर पाता है।
- व्यावहारिक कौशल के संदर्भ में विद्यार्थी जो सीखते हैं और नियोक्ताओं को जो चाहिए, उसके बीच काफी अंतर होता है।
- भारत कौशल रिपोर्ट 2023 से पता चलता है कि युवाओं के बीच समग्र रोज़गार क्षमता में सुधार सिर्फ 50.3% है।
- अकादमिक विषयों पर पारंपरिक ज़ोर अक्सर छात्रों को तेजी से बदलते नौकरी बाज़ार के लिये तैयार नहीं कर पाता है।
- निजी बनाम सरकारी स्कूल विभाजन: भारत में निजी और सरकारी स्कूलों के बीच बढ़ता विभाजन एक और सतत् मुद्दा है।
- उच्च शिक्षा के क्षेत्र में, भारत में 1,385 विश्वविद्यालयों में से 67.51% और 60,127 कॉलेजों में से 37.81% निजी हैं, जिनकी फीस बहुत अधिक है।
- शिक्षा का निजीकरण अब इस स्तर तक पहुँच गया है कि शिक्षा की गुणवत्ता तक पहुँच एक छात्र की आर्थिक स्थिति पर निर्भर होती जा रही है, जिससे सामाजिक विषमता और बढ़ रही है।
- मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर अपर्याप्त ध्यान: प्रतिस्पर्द्धी परीक्षाओं और अकादमिक दबाव के कारण छात्रों में चिंता, अवसाद और आत्महत्या जैसी मानसिक समस्याएँ लगातार बढ़ रही हैं।
- बढ़ती जागरूकता के बावजूद, शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता और छात्र कल्याण के प्रति समग्र दृष्टिकोण का अभाव है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2023 में 13,000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, जिनमें प्रमुख कारण शैक्षणिक दबाव बताया गया है।
भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- समग्र और अंतःविषयक पाठ्यक्रम सुधार: अंतःविषयक शिक्षण और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिये पाठ्यक्रम में सुधार किया जाना चाहिये, जैसा कि NEP, 2020 में निर्देशित किया गया है, विषयों के बीच पारंपरिक अंतर को समाप्त किया जाना चाहिये।
- शैक्षणिक ज्ञान के परियोजना-आधारित, वास्तविक-विश्व अनुप्रयोगों को प्रोत्साहित करने से छात्रों में समस्या-समाधान कौशल, रचनात्मकता और सहयोग में वृद्धि होगी।
- इसका उद्देश्य रटने की प्रक्रिया से हटकर विश्लेषणात्मक और अनुकूलन कौशल को बढ़ावा देना है, जो भविष्य के कार्यबल के लिये आवश्यक है, जिसमें शैक्षणिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण दोनों शामिल हैं।
- व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षुता कार्यक्रमों का विस्तार: उद्योग साझेदारी के माध्यम से व्यावसायिक शिक्षा का विस्तार करने से छात्रों को प्रारंभिक स्तर से ही व्यावहारिक अनुभव और नौकरी के लिये तैयार कौशल प्राप्त होंगे।
- विनिर्माण, आईटी और स्वास्थ्य सेवा जैसे उच्च माँग वाले क्षेत्रों में प्रशिक्षुता कार्यक्रमों का विस्तार करने से कौशल अंतर और बेरोज़गारी को कम तथा शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक शिक्षा को एकीकृत किया जा सकेगा।
- ऐसा करने से छात्रों को वास्तविक विश्व की जानकारी और प्रमाणन प्राप्त होगा, जिससे उन्हें पाठ्यक्रम पूरा होने के तुरंत बाद रोज़गार मिल सकेगा।
- शिक्षक प्रशिक्षण में प्रौद्योगिकी का एकीकरण: शिक्षकों के लिये प्रौद्योगिकी-संचालित, सतत् व्यावसायिक विकास को एकीकृत करके शिक्षण की गुणवत्ता को काफी बढ़ाया जा सकता है।
- वास्तविक समय फीडबैक, माइक्रो-क्रेडेंशियल और इंटरैक्टिव लर्निंग मॉड्यूल के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म को लागू करने से शिक्षकों को शैक्षणिक प्रगति और प्रौद्योगिकी रुझानों के साथ बने रहने में मदद मिलेगी।
- इसे शिक्षक प्रशिक्षण को वैयक्तिकृत करने और व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये AI-संचालित शिक्षण उपकरणों के साथ जोड़ा जा सकता है, जिससे शिक्षण प्रभावशीलता बढ़ सकती है।
- सक्रिय समुदाय और अभिभावक सहभागिता: अभिभावकों, शिक्षकों और समुदाय के सदस्यों को शामिल करने वाला सहयोगात्मक दृष्टिकोण शिक्षा की प्रासंगिकता को बढ़ाएगा और समग्र छात्र विकास सुनिश्चित करेगा।
- स्कूल सामुदायिक शिक्षण पहल, नियमित अभिभावक-शिक्षक परामर्श और स्वयंसेवी कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं जो स्थानीय आवश्यकताओं को शैक्षिक लक्ष्यों के साथ संरेखित करते हैं।
- इससे विद्यार्थियों, विशेषकर हाशिये पर पड़े या वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों के लिये मज़बूत सहायता प्रणाली बनाने में भी मदद मिलेगी।
- उद्यमशीलता सोच और नवाचार को बढ़ावा देना: छात्रों में प्रारंभिक स्तर से ही उद्यमिता कौशल और नवाचार की सोच को पाठ्यक्रम में शामिल करने से उन्हें बदलते रोजगार बाजार के अनुकूल बनाया जा सकता है।
- डिज़ाइन थिंकिंग, स्टार्टअप संस्कृति और समस्या समाधान पर आधारित पाठ्यक्रमों के माध्यम से छात्र अवसरों की पहचान करना, जोखिम लेना और विकासोन्मुख मानसिकता विकसित करना सीखेंगे।
- विद्यालयों और कॉलेजों में इन्वोवेशन हब की स्थापना छात्रों को व्यावहारिक व्यावसायिक कौशल के साथ-साथ नवाचार को भी प्रोत्साहित करेगी।
- समावेशी शिक्षा के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचा: समावेशी शिक्षा को साकार करने के लिये ऐसे विद्यालयीय ढाँचों में निवेश आवश्यक है जो दिव्यांग छात्रों और विशेष आवश्यकताओं वाले छात्रों की ज़रूरतों को पूरा कर सकें।
- यूनिवर्सल डिज़ाइन प्रिंसिपल्स के अनुसार रैम्प, सहायक तकनीकें, विशेष शिक्षण उपकरण आदि का उपयोग किया जाना चाहिये। साथ ही, विशेष शिक्षक, थेरेपिस्ट, और सहायक स्टाफ की नियुक्ति से इन छात्रों को लक्षित सहायता मिल सकेगी।
- परीक्षा प्रणाली का सशक्तीकरण और सरलीकरण: हालाँकि परीक्षाएँ आवश्यक हैं, लेकिन वर्तमान प्रणाली को निरंतर और संरचनात्मक मूल्यांकन की ओर स्थानांतरित करना चाहिये। PARAKH विधि के माध्यम से छात्रों की प्रगति को समय के साथ ट्रैक किया जा सकता है।
- कौशल-आधारित मूल्यांकन, प्रोजेक्ट, प्रेजेंटेशन, और पीयर रिव्यू जैसे विविध तरीकों को अपनाकर छात्रों के समग्र ज्ञान को मापा जा सकता है।
- इससे छात्रों पर परीक्षा का दबाव कम होगा और गहन सीख को बढ़ावा मिलेगा।
- कौशल-आधारित मूल्यांकन, प्रोजेक्ट, प्रेजेंटेशन, और पीयर रिव्यू जैसे विविध तरीकों को अपनाकर छात्रों के समग्र ज्ञान को मापा जा सकता है।
- स्थिरता और पर्यावरण शिक्षा एकीकरण: पाठ्यक्रम में स्थिरता और पर्यावरण जागरूकता को शामिल करने से छात्रों को जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार किया जा सकेगा।
- स्कूलों को विभिन्न विषयों में व्यावहारिक पर्यावरणीय परियोजनाएँ, इको-क्लब और स्थिरता-केंद्रित पाठ शुरू करने चाहिये।
- इससे न केवल छात्रों को ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि उनमें ग्रह के प्रति ज़िम्मेदारी की भावना भी उत्पन्न होती है, तथा पर्यावरण के प्रति जागरूक नागरिकों के निर्माण में योगदान मिलता है।
- शैक्षिक नवाचार के लिये संवर्द्धित सार्वजनिक-निजी सहयोग: मज़बूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने से शिक्षा प्रणाली में संसाधन और बुनियादी ढाँचे की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है।
- प्रौद्योगिकी, पाठ्यक्रम डिजाइन और शिक्षक प्रशिक्षण में निजी खिलाड़ियों की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर, सार्वजनिक स्कूल उन संसाधनों तक पहुँच बना सकते हैं जिनकी उन्हें कमी है।
- ये साझेदारियाँ अत्याधुनिक उपकरणों और शैक्षिक पद्धतियों की शुरूआत में भी सहायक हो सकती हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में शिक्षा प्रासंगिक बनी रहे।
- ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा पर ध्यान: ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों को लक्ष्य करके विशेष पहल यह सुनिश्चित करेगी कि शिक्षा सबसे वंचित समुदायों तक भी पहुँचे।
- इसमें मोबाइल लर्निंग इकाइयाँ, समुदाय द्वारा संचालित स्कूल और डिजिटल शिक्षा केंद्र शामिल हैं जो स्कूली शिक्षा को सीधे बच्चों के दरवाजे तक पहुँचाते हैं।
- इसके अतिरिक्त, शिक्षकों को बेहतर वेतन और आवास के साथ दूरदराज के क्षेत्रों में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करने से इन क्षेत्रों में प्रतिधारण दर में वृद्धि होगी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित होगी।
- मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण सहायता प्रणालियों को मज़बूत करना: शैक्षणिक संस्थानों के भीतर व्यापक मानसिक स्वास्थ्य सहायता संरचनाओं की स्थापना, छात्रों द्वारा सामना किये जाने वाले तनाव और दबाव को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अनिवार्य परामर्श सेवाएँ शुरू करना, भावनात्मक बुद्धिमत्ता शिक्षा को बढ़ावा देना तथा छात्रों के लिये शैक्षणिक या व्यक्तिगत चुनौतियों पर चर्चा करने हेतु सुरक्षित स्थान बनाना, एक स्वस्थ शिक्षण वातावरण को बढ़ावा देगा।
- इसके अतिरिक्त, माइंडफुलनेस, तनाव प्रबंधन कार्यक्रम, और योग/ध्यान जैसी गतिविधियाँ पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जा सकती है।
निष्कर्ष:
संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य 4 (SDG 4 - गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुरूप, शिक्षा सुधारों का उद्देश्य समावेशी, समान और सुलभ शिक्षा सुनिश्चित करना होना चाहिये। शिक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने के लिये बुनियादी ढाँचे, शिक्षक प्रशिक्षण और मानसिक स्वास्थ्य सहायता में सतत् और दीर्घकालिक निवेश अत्यंत आवश्यक है। प्रौद्योगिकी के एकीकरण और कौशल-आधारित शिक्षा पर विशेष बल देकर हम न केवल वर्तमान शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं, बल्कि भविष्य की जटिलताओं से निपटने के लिये भावी पीढ़ियों को भी तैयार कर सकते हैं।
दृष्टि अभ्यास प्रश्न: प्रश्न. जबकि वित्तीय संसाधनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, भारत की शिक्षा प्रणाली में परिणामों में सुधार लाने के लिये दीर्घकालिक स्थिरता और मूलभूत शैक्षिक सिद्धांतों का पालन कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस कथन की पृष्ठभूमि में वर्तमान शैक्षिक सुधारों की प्रभावशीलता का समालोचनात्मक विश्लेषण और निरंतर बनी चुनौतियों के समाधान के उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |