रक्षा क्षेत्र में संसाधनों की कमी | 22 Jul 2019

इस Editorial में The Hindu, Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित आलेखों का विश्लेषण शामिल है। इस आलेख में रक्षा क्षेत्र में संसाधनों की कमी की चर्चा की गई है, साथ ही इस कमी को दूर करने के कुछ उपाय भी बताए गए हैं तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

चालू वित्त वर्ष के लिये नियमित बजट पेश करते हुए सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र का कोई उल्लेख नहीं किया गया, न ही इसके लिये किसी अतिरिक्त धन के आवंटन का प्रस्ताव रखा। इस प्रकार रक्षा क्षेत्र के लिये कुल परिव्यय 4.31 लाख करोड़ रूपए ही बना रहा जिसका प्रस्ताव संसद में प्रस्तुत अंतरिम बजट में किया गया था। रक्षा परिव्यय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2.04 प्रतिशत और बजट में परिकल्पित केंद्र सरकार के कुल व्यय का 15.47 प्रतिशत है। इन दोनों की प्रतिशतता के मामले में रक्षा क्षेत्र के लिये आवंटन पिछले वर्ष के परिव्यय की तुलना में गिरावट के रुझान को दर्शाता है। चूँकि अंतरिम बजट ने आवंटन की एक रूपरेखा तय कर दी थी और विभिन्न मंत्रालयों व विभागों को धन का आवंटन किया जा चुका था। नई सरकार के गठन के बाद मात्र पाँच सप्ताह की अवधि में नियमित बजट तैयार करते समय इसमें किसी उल्लेखनीय परिवर्तन की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि प्रस्तुत नियमित बजट में सरकार की कुल अनुमानित प्राप्ति में अंतरिम बजट की तुलना में मात्र 2,149 करोड़ रूपए की मामूली वृद्धि हुई।

रक्षा क्षेत्र में संसाधनों की स्थिति

पिछले वित्त वर्ष (2018-19) में सशस्त्र बलों के लिये लगभग 1.12 लाख करोड़ रूपए का आवंटन किया गया था जो उनकी मांग से कम ही था। सरकार की अतिरिक्त प्राप्ति 2,149 करोड़ रूपए को पूर्णरूपेण रक्षा क्षेत्र की ओर मोड़ दिया जाता तो भी यह बेहद मामूली पूर्ति ही होती। अधिक कराधान, विनिवेश और उधारी अथवा अन्य योजनाओं के आवंटन में कटौती के साथ आय व बचत का सृजन कर इसका एक प्रमुख अंश रक्षा क्षेत्र को सौंपा जा सकता था। किंतु इन विकल्पों के उपयोग से रक्षा क्षेत्र को अतिरिक्त धन सौंपने के कदम को व्यावहारिक नहीं माना जा सकता। सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिये लंबे समय से विचारित उस अव्यपगत कोष (Non-lapsable fund) की स्थापना की भी कोई घोषणा नहीं की गई। हालाँकि ऐसे कोष की स्थापना की व्यावहारिकता और उपयोगिता संदिग्ध है, यद्यपि रक्षा पर स्थायी समिति (Standing Committee on Defence- SCoD) ने भी इस विचार का समर्थन किया है। अर्थात सशस्त्र बलों के लिये सरकार को कोष जुटाना ही होगा, भले ये अव्यपगत आधुनिकीकरण कोष के माध्यम से जुटाए जाएँ अथवा बजट परिव्यय के बाहर से जुटाए जाएँ। रक्षा क्षेत्र के लिये बजट परिव्यय की अपर्याप्तता पर चिंता व्यक्त करने भर से काम नहीं चलेगा। स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, अवसंरचनात्मक विकास एवं अन्य सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के वित्तपोषण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना रक्षा हेतु वित्तपोषण के स्तर को वहनीय तरीके से ऊपर उठाने के उपायों की तलाश के लिये गंभीर प्रयास करने होंगे। रक्षा बजट में वृद्धि की आवश्यकता पर तो सभी बात करते हैं लेकिन इसके उपायों पर सब भ्रमित हैं।

रक्षा क्षेत्र में संसाधन जुटाने के उपाय

भारत में रक्षा क्षेत्र प्रायः संसाधनों की कमी का सामना करता रहा है। भारत का उपमहाद्वीपीय आकार तथा पड़ोसी देशों से उत्पन्न होने वाली चुनौतियाँ रक्षा क्षेत्र की ज़रूरतों को आवश्यक बना देती हैं। भारत की अर्थव्यवस्था का आकार अपेक्षाकृत सीमित है एवं देश की आवश्यकताएँ अधिक हैं। ये ज़रूरतें न सिर्फ रक्षा क्षेत्र बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, अवसंरचना आदि क्षेत्रों में भी व्याप्त हैं, इस तथ्य को ध्यान में रखकर भारत अपने संसाधनों का निश्चित भाग ही रक्षा क्षेत्र को उपलब्ध कराने में सक्षम है। ऐसे में सिर्फ बजट आवंटन को बढ़ाकर ही इस क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं किया जा सकता है इसके लिये एक व्यापक नीति की आवश्यकता होगी। फिर भी रक्षा क्षेत्र की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये कुछ उपाय किये जा सकते हैं-

  • भारत GDP का 2.04 प्रतिशत रक्षा क्षेत्र पर व्यय करता है। चीन भी लगभग अपनी GDP का 2 प्रतिशत ही खर्च करता है किंतु चीन का खर्च भारत से कहीं अधिक है, इसका कारण चीन की GDP का आकार भारत के अनुपात से चार गुना अधिक होना है। प्रायः बजट में आवंटन वृद्धि को ही सिर्फ वित्तपोषण का माध्यम माना जाता है, यदि GDP की वृद्धि दर को बढ़ाने पर अधिक ज़ोर दिया जाए तो स्वतः रक्षा क्षेत्र के बजट आवंटन में वृद्धि होगी। सरकार भी इस विचार पर ज़ोर दे रही है क्योंकि सरकार को अपनी वित्तीय क्षमता की समझ है। सरकार भी वर्ष 2024-25 तक GDP का आकार बढ़ाकर 5 ट्रिलियन करने पर ज़ोर दे रही है।
  • रक्षा क्षेत्र में संसाधनों की कमी को दूर करने के लिये कुछ समय पूर्व रक्षा मंत्रालय ने रक्षा क्षेत्र के वार्षिक वित्तीय बजट का वह भाग जो उपयोग नहीं हो पाया हो, उसके लिये अव्यपगत कोष (Non-lapsable Fund) की स्थापना करने की बात की थी। प्रायः ऐसा देखा गया है कि रक्षा खरीद एवं अन्य परियोजनाएँ कई वर्षों में पूर्ण हो पाती हैं एवं उनके लिये दिया गया कोष वर्ष के अंत में व्यपगत हो जाता है। यदि अव्यपगत कोष का निर्माण किया जाता है तो रक्षा परियोजना में आने वाले बजट की समस्या से निपटा जा सकता है।
  • वर्तमान में चीन के बाद भारत में सबसे अधिक सैन्य बल है। आधुनिक युग में युद्ध की प्रकृति में परिवर्तन आया है। ऐसे में सेना की इतनी बड़ी संख्या भारत के रक्षा बजट में पूंजीगत खर्च को बढ़ाने में बाधा उत्पन्न करती है। ध्यान देने योग्य है कि पिछले वर्ष वेतन एवं पेंशन के लिये बजट में 27 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी, वहीं पूंजीगत व्यय के लिये सिर्फ 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। यदि सैनिकों की संख्या में कुछ कटौती की जाती है तो इससे होने वाली बचत का उपयोग पूंजीगत खर्च जैसे- उपकरणों की खरीद तथा सेना के आधुनिकीकरण में किया जा सकता है।
  • भारत में सेना के पास देश में अधिक मात्रा में अनुपयोगी भूमि पड़ी हुई है, इसका बाज़ार मूल्य अधिक है। यदि इस ज़मीन को सरकार आर्थिक उपयोग के लिये बाज़ार को उपलब्ध कराती है तो इसका आर्थिक लाभ हो सकता है। किंतु इससे जुड़ी कुछ सुरक्षा चुनौतियाँ हैं जिनका ध्यान रखना भी आवश्यक होगा।
  • रक्षा क्षेत्र में नवाचार एवं अनुसंधान को बढ़ावा देकर विभिन्न उपकरणों को देश में ही बनाया जा सकता है। वर्तमान में भारत को इन उपकरणों, जैसे-अत्याधुनिक एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर, जहाज़, रडार आदि के लिये विदेश पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत ने कुछ समय पूर्व फ्राँस से राफेल विमान को खरीदने का समझौता किया था यह समझौता अत्यधिक महँगा था यदि ऐसे उपकरण भारत में ही निर्मिंत होंगे तो रक्षा विभाग के साथ-साथ भारत कीअर्थव्यवस्था के लिये भी लाभकारी होगा।
  • स्थायी समिति द्वारा बार-बार रक्षा बजट को GDP के तीन प्रतिशत तक करने की सिफारिश होती रही है। यदि अन्य ज़रूरी मदों में कटौती किये बिना रक्षा बजट को बढ़ाया जा सकता है तो सरकार को इसके लिये अवश्य प्रयास करना चाहिये।

भारत में सरकारों ने रक्षा क्षेत्र को दक्ष बनाने पर अधिक ज़ोर नहीं दिया, न ही इस क्षेत्र के संसाधनों की कमी को दूर करने के लिये वैकल्पिक मार्ग सुझाए हैं। चूँकि बजट संभाषण मुख्यतः भविष्य के प्रति सरकार के दृष्टिकोण पर केंद्रित था, उपयुक्त होता कि सरकार रक्षा प्रतिष्ठान की अपेक्षाओं की पूर्ति के लिये रक्षा परिव्यय में वृद्धि के उपाय की सलाह देने हेतु रक्षा अर्थशास्त्रियों के एक कार्यबल के गठन की घोषणा करती।

यह भी उपयुक्त होता कि बजट में पिछले पाँच वर्षों में की गई रक्षा क्षेत्र संबंधी घोषणाओं के परिणाम का विवरण दिया जाता। पिछले वर्षों में निम्नलिखित परियोजनाओं को आरंभ करने की बात की जाती रही है-

  • रक्षा योजना समिति का गठन।
  • औद्योगिक गलियारा परियोजना का आरंभ।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी कोष का गठन।
  • एक निवेशक सेल की स्थापना।
  • रणनीतिक साझेदारी योजना का प्रवर्तन।
  • ‘मेक इन इंडिया’ से संबद्ध विभिन्न परियोजनाएँ।

सरकार द्वारा बजट में इन परियोजनाओं की चर्चा नहीं कि गई है। इसका एक कारण यह भी है कि सरकार के पास इनके लिये बजट की कमी है तथा ज़रूरी कार्ययोजना की भी कमी है। भारत ने पहले ही रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति का प्रावधान कर दिया है, भारत द्वारा रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र को आकर्षित करने के लिये ज़रूरी माहौल उपलब्ध करवाकर मेक इन इंडिया को बल दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सरकार को उपर्युक्त परियोजनाओं के लिये अन्य प्रयास भी करने होंगे ताकि रक्षा क्षेत्र में संसाधनों की कमी को दूर किया जा सके।

निष्कर्ष

इस परिदृश्य में सबसे व्यावहारिक कदम यह होगा कि अगले पाँच वर्षों के लिये आधुनिकीकरण की कार्ययोजना में त्वरित पुनर्सुधार किया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि यह धन की उपलब्धता के अनुरूप हो। अतीत में एकाध बार ऐसा हुआ भी है। पिछली बार जुलाई 2017 में सशस्त्र बलों द्वारा अगले पाँच वर्षों में 27 लाख करोड़ रूपए के वित्तपोषण की मांग की गई थी। इस मांग की पूर्ति के लिये वर्तमान बजट के आवंटन को दोगुना करने की आवश्यकता थी। इस पर कोई गंभीर विमर्श नहीं किया गया कि मांग अनुरूप वित्तपोषण कैसे किया जाए और यदि यह संभव नहीं है तो फिर इसका सर्वोत्कृष्ट विकल्प क्या है। उपयुक्त होगा कि वास्तविक स्थिति को समझते हुए आर्थिक रूप से व्यवहार्य योजना के अनुसार आगे बढ़ा जाए जहाँ यह स्वीकार किया जाए कि धन की उपलब्धता तब तक सबसे बड़ी चुनौती बनी रहेगी जब तक कि विशेषज्ञ कोई समाधान न ढूंढ लें अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर के स्तर पर पहुँच कर सरकार के लिये उच्च प्राप्ति सुनिश्चित न कर दे।

प्रश्न: रक्षा क्षेत्र विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है, इनमें से एक प्रमुख चुनौती संसाधनों की कमी से संबंधित है। आपके अनुसार इस समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है?