अपशिष्ट जल – एक समस्या अथवा समाधान? | 22 May 2017

संदर्भ
हर साल विश्व जल दिवस (22 मार्च) के अवसर पर जल की आवश्यकता को रेखांकित किया जाता है| इस वर्ष विश्व जल दिवस का विषय था- ‘अपशिष्ट जल’(wastewater ) | 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • हाल के दशकों में हुई जनसंख्या वृद्धि, बढ़ते शहरीकरण और आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप अपशिष्ट जल की मात्रा में वृद्धि हुई है तथा इससे प्रदूषण के खतरे में भी बढ़ोतरी हुई है| वर्तमान में भारत के अधिकांश ताजे जल के स्रोत संकट में हैं|
  • वैश्विक रूप से, 80% से अधिक अपशिष्ट जल का या तो पुनर्चक्रण हो जाता है अथवा उसका उपयोग बिना किसी उपचार के मानव समुदाय द्वारा किया जाता है|
  • विश्व में 1.8 बिलियन लोग दूषित जल का उपयोग करते हैं जिसके कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जैसे- हैजा,पेचिश, टाइफाइड और पोलियो का खतरा बढ़ जाता है| आज भी 663 मिलियन लोगों के पास स्वच्छ जल के स्रोतों का अभाव है| 
  • कृषि क्षेत्रों से होने वाले पदार्थों का प्रवाह भी प्रदूषण का एक मुख्य स्रोत है| 

अपशिष्ट जल क्या है?
अपशिष्ट जल को ऐसे जल के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसकी गुणवत्ता घरेलू, औद्योगिक, वाणिज्यिक और कृषि गतिविधियों के कारण प्रभावित होती है|

क्या है समस्या?

  • यह अनुमान है कि वर्ष 2030 तक जल की वैश्विक मांग में 50% तक की वृद्धि हो जाएगी| यह मांग अधिकतर शहरों में होगी|
  • विकासशील देशों के कम आय वाले शहरों अथवा कस्बों में अधिकांश अपशिष्ट जल का निष्कासन बिना किसी उपचार के सीधे ही सतही जल वाहिकाओं में कर दिया जाता है| इसके अतिरिक्त, परंपरागत अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र कुछ निश्चित प्रदूषकों को भी नहीं साफ नही कर पाते हैं| 
  • विश्व में प्रयोग किये जाने वाले कुल जल का 22% औद्योगिक जल होता है| भारत का औद्योगिक क्षेत्र बिना किसी उचित उपचार के लगभग 30,730 मिलियन घन मीटर अपशिष्टों को जल निकायों में निष्कासित करता है| दुर्भाग्यवश अनुचित कार्यों और मरम्मत के अभाव में भारत के अधिकांश उपचार संयंत्र संतोषजनक कार्य नहीं कर रहे हैं|

क्या है भारत की स्थिति?

  • भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का लगभग 17% है तथा इसके पास विश्व के 4% जल संसाधन और 2.45 भूमि है| भारत में जल का उपयोग विभिन्न प्रकार के विकासात्मक उद्देश्यों के लिये किया जाता है| अतः भारत में जल का प्रवाह अथवा इसके जल निकायों की संग्रहण क्षमता में धीरे-धीरे कमी आ रही है|
  • विगत वर्षों के अनुभवों से पता चलता है कि जल प्रदूषण के मुद्दे का समाधान करने के लिये बनाए गए विभिन्न कानून और नीतियों के माध्यम से भी इस दिशा में कोई खास प्रगति देखने को नहीं मिली है| यहाँ तक कि राजनीतिक विमर्शों का भी मुख्य विषय अब जल प्रदूषण नहीं रह गया है|
  • भारत में जल प्रदूषण के विषय में लोग अधिक जागरूक नहीं है, जबकि इसकी वजह से मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है| 
  • भारत में जल की समस्या से सामान्यतः गरीब अथवा समाजिक रूप से संवेदनशील समुदाय अधिक पीड़ित होते हैं|
  • विदित हो कि भारत में प्रतिदिन लगभग 29,000 मिलियन अपशिष्ट जल का उत्पादन श्रेणी 1 व 2 के शहरों से होता है जिनमें से 45% का उत्पादन केवल मेट्रो सिटीज़ द्वारा होता है| 

क्या किया जाना चाहिये?

  • इस बात के पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं कि यह समस्या जटिल अवश्य है परन्तु फिर भी इसका समाधान किया जा सकता है| हालाँकि, जल प्रदूषण को कम करके एकाएक शून्य स्तर तक तो नहीं लाया जा सकता है लेकिन इसे एक ऐसे स्तर तक तो अवश्य लाया जा सकता है जो सामाजिक रूप से स्वीकार्य हो तथा जिससे पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े|
  • राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर जल प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित नीतियों को गैर-जल नीतियों के साथ समन्वित किया जाना चाहिये जो जल की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं जैसे- कृषि, भूमि उपयोग प्रबंधन, व्यापार, उद्योग, ऊर्जा और शहरी विकास| जल प्रदूषण को एक दंडनीय अपराध बनाया जाना चाहिये| प्रदूषक भुगतान सिद्धांत की प्रभाविता और शक्ति पर भी विचार किया जाना चाहिये|
  • जल संसाधनों के संरक्षण हेतु विभिन्न नीतियाँ, योजनाएँ और रणनीतियाँ बनाई जानी चाहियें तथा इसके लिये विभिन्न राज्यों की सरकारों, औद्योगिक इकाईयों के प्रमुखों और जनता के साथ विचार-विमर्श किया जाना चाहिये|
  • बाज़ार आधारित रणनीतियाँ जैसे- पर्यावरणीय कर, प्रदूषण दंड और व्यापार योग्य परमिट प्रणालियों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिये| प्रोत्साहन तंत्र जैसे आर्थिक सहायता, ऋण, कर में रियायत आदि का उपयोग भी प्रदूषण प्रबंधन उपकरणों को स्थापित करने के लिये किया जा सकता है|
  • इन सबके अलावा, अपशिष्ट जल का प्रयोग एक संसाधन के रूप में किया जा सकता है| उचित तरीके से प्रबंधित अपशिष्ट जल ऊर्जा, पोषण तथा अन्य पदार्थों का वहनीय और टिकाऊ स्रोत है| इससे मानव स्वास्थ्य को लाभ पहुँचता है|

कैसे हो औद्योगिक प्रदूषण का प्रबंधन?

  • औद्योगिक प्रदूषण प्रबंधन में स्वच्छ उत्पादन प्रौद्योगिकी के माध्यम से तकनीकी प्रयास किये जाने चाहियें| 
  • विदेशों में विकसित की गई परिष्कृत प्रदूषण प्रबंधन जैसी तकनीकों की शुरुआत भारत में भी की जानी चाहिये|
  • पर्यावरण मित्र आगतों के अनुप्रयोगों जैसे- जैव-उर्वरकों, कृषि में कीटनाशकों और वस्त्र उद्योग में प्राकृतिक रंजकों का उपयोग करके भी प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है|

निष्कर्ष
चूँकि विश्व में दिनोंदिन ताजे जल का संकट गहराता जा रहा है, अतः शहरी क्षेत्रों में उपचार के पश्चात अपशिष्ट जल का उपयोग उप-शहरी कृषि, उद्योगों और कुछ घरेलू कार्यों में किया जा सकता है| अपशिष्ट जल को दीर्घकालिक समस्या नहीं अपितु एक संपत्ति माना जाना चाहिये|