BRI परियोजना और भारत की चिंता | 26 Nov 2018

संदर्भ


हाल ही में पेरिस पीस फोरम में प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान चीन की बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के प्रमुखों ने अधिक समावेशी बहुपक्षवाद के मामले को उठाया और इसे वैश्वीकरण के खिलाफ मानते हुए कहा कि चीन बहुपक्षवाद के ज़रिये एक गैर-पश्चिमी और गैर-लोकतांत्रिक महाशक्ति के रूप में इस परियोजना को आगे बढ़ा रहा है। वास्तव में BRI परियोजना द्वारा चीन दुनिया को प्रभावित करने की महत्त्वाकांक्षा रखता है और यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह इसी तरह विस्तार करता रहेगा। उल्लेखनीय है कि चीन द्वारा विकसित इस परियोजना में शामिल देशों के व्यापार हेतु निर्धारित मानक ढाँचे की मुख्य भूमिका भी स्वयं चीन द्वारा निभाई जाती है और विवादों को सुलझाने हेतु किसी संगठन का न होना इसे और संदेहास्पस्द बनाता है तथा भारत भी इन समस्यायों से अप्रभावित नहीं है।

बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI)

  • BRI एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका के बीच भूमि और समुद्र क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये चीन द्वारा संचालित परियोजनाओं का एक सेट है।
  • इस परियोजना की परिकल्पना 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने की थी। हालाँकि, चीन इस बात से इनकार करता है, लेकिन इसका प्रमुख उद्देश्य चीन द्वारा वैश्विक स्तर पर अपना भू-राजनीतिक प्रभुत्व कायम करना है।
  • BRI को 'सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट’ और 21वीं सदी की सामुद्रिक सिल्क रोड के रूप में भी जाना जाता है।
  • BRI पहल चीन द्वारा प्रस्तावित एक महत्त्वाकांक्षी आधारभूत ढाँचा विकास एवं संपर्क परियोजना है जिसका लक्ष्य चीन को सड़क, रेल एवं जलमार्गों के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका और एशिया से जोड़ना है।
  • यह कनेक्टिविटी पर केंद्रित चीन की एक रणनीति है, जिसके माध्यम से सड़कों, रेल, बंदरगाह, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं को ज़मीन एवं समुद्र से होते हुए एशिया, यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने की कल्पना की गई है।
  • विश्व की 70% जनसंख्या तथा 75% ज्ञात ऊर्जा भंडारों को समेटने वाली यह परियोजना चीन के उत्पादन केंद्रों को वैश्विक बाज़ारों एवं प्राकृतिक संसाधन केंद्रों से जोड़ेगी।
  • BRI के तहत पहला रूट जिसे चीन से शुरू होकर रूस और ईरान होते हुए इराक तक ले जाने की योजना है जबकि इस योजना के तहत दूसरा रूट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से श्रीलंका और इंडोनेशिया होकर इराक तक ले जाया जाना है।
  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य चीन को सड़क मार्ग के ज़रिये पड़ोसी देशों के अलावा यूरोप से जोड़ना है, ताकि वैश्विक कारोबार को बढ़ाया जा सके।
  • चीन से लेकर तुर्की तक सड़क संपर्क कायम करने के साथ ही कई देशों के बंदरगाहों को आपस में जोड़ने का लक्ष्य भी इस योजना में रखा गया है।
  • BRI के तहत गलियारे यूरेशिया में प्रमुख पुलों, चीन-मंगोलिया-रूस, चीन-मध्य एवं पश्चिम एशिया, चीन-भारत-चीन प्रायद्वीप, चीन-पाकिस्तान, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार से गुज़रेंगे।
  • सामुद्रिक रेशम मार्ग बेल्ट के गलियारों का सामुद्रिक प्रतिरूप है और उसमें प्रस्तावित बंदरगाह तथा अन्य तटवर्ती बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का नेटवर्क है, जो दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया से पूर्वी अफ्रीका तथा उत्तरी भूमध्य सागर तक बनाए जाएंगे।
  • BRI वास्तव में चीन द्वारा परियोजना निर्यात करने का माध्यम है जिसके ज़रिये वह अपने विशाल विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग बंदरगाहों के विकास, औद्योगिक केंद्रों एवं विशेष आर्थिक क्षेत्रों के विकास के लिये कर वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना चाहता है।

चीन की मंशा

  • वन बेल्ट, वन रोड के माध्यम से एशिया के साथ-साथ विश्व पर भी अपना अधिकार कायम करना।
  • दक्षिणी एशिया एवं हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करना।
  • वस्तुतः इस परियोजना के द्वारा चीन सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते कर, उन्हें आर्थिक सहायता एवं ऋण उपलब्ध कराकर उन पर मनमानी शर्तें थोपना चाहता है जिसके फलस्वरूप वह सदस्य देशों के बाज़ारों में अपना प्रभुत्व बना सके।
  • असल में पिछले काफी सालों से चीन के पास स्टील, सीमेंट, निर्माण साधन इत्यादि सामग्री का आधिक्य हो गया है। अत: चीन इस परियोजना के माध्यम से इस सामग्री को भी खपाना चाहता है।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और भारत की चिंता चीन चाहता है कि भारत भी BRI का हिस्सा बने, लेकिन भारत इसे लेकर सावधानी बरत रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुज़रने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) भी BRI का ही हिस्सा है।
  • BRI में CPEC को शामिल किये जाने के कारण भारत ने इसमें शामिल होने की सहमति नहीं दी। चूँकि CPEC पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़र रहा है जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है।
  • ऐसे में BRI में शामिल होने का मतलब है कि भारत द्वारा इस क्षेत्र पर पाकिस्तान के अधिकार को सहमति प्रदान करना।
  • 1962 के बाद से ही भारत-चीन संबंधों में प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति रही है एवं चीन ने भारत को कमज़ोर करने एवं घेरने का हरसंभव प्रयास किया है। अतः चीन की अगुवाई में निर्मित इस परियोजना में शामिल होने के प्रति भारत आशंकित है।
  • दूसरी ओर, इस परियोजना के खतरे को लेकर पाकिस्तान के एक अखबार का मानना है कि इसने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमा लिया है तथा चीनी उद्यमों और संस्कृति की उसके समाज में गहराई तक पैठ बन गई है।
  • चीन का BRI भी कोई बहुपक्षीय परियोजना नहीं है और न ही यह कोई बहुराष्ट्रीय फ्रेमवर्क या संस्थागत व्यवस्था है, बल्कि यह प्रस्तावित परियोजनाओं की एक श्रृंखला है।
  • निस्संदेह यह चीन के विस्तारवादी रुख का प्रतीक है, जिसके तहत वह वैश्विक कारोबार पर अपना नियंत्रण स्थापित कर अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को और बढ़ाना चाहता है। ऐसे में भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि उसके साथ भू-सीमा विवाद तो है ही, साथ में चीन ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ता जिसे भारत को परेशानी न होती हो।

आगे की राह

  • चीन ट्रांस-पैसिफ़िक साझेदारी से अमेरिका की वापसी के बाद इस वैक्यूम को भरने की मांग कर रहा है और भारत को भी इसमें शामिल करना चाहता है जो 'एशियाई शताब्दी' के दृष्टिकोण के रूप में एक प्रकार से उचित भी है ।
  • ऐसे में भारत को चीन के लिये एक नई रणनीति बनाने की आवश्यकता है, जिसमें न केवल आर्थिक रूपरेखा हो बल्कि पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने की रणनीति भी हो।
  • भारत को अपनी क्षेत्रीय रणनीति पर पुनः विचार करने की ज़रूरत है, साथ ही पड़ोस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • इसके लिये भारत सार्क, बिम्सटेक, आसियान, एससीओ जैसे क्षेत्रीय संगठनों की मदद भी ले सकता है।
  • इसके अलावा, भारत को उपमहाद्वीप में क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के प्रयास करने चाहिये। बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलिपींस जैसे देश जो चीन के साथ बहुत सहज महसूस नहीं करते, साथ मिलकर भारत को क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं का विकास करना चाहिये।
  • ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ BRI के विकल्प पर मिलकर भारत का आगे बढ़ना चीन को यह संदेश पहुँचाने का एक सार्थक प्रयास है कि नए रास्तों की तलाश करना वह भी जानता है।
  • इसके अतिरिक्त उपमहाद्वीप में भारत को अपने संसाधनों के साथ अपने बुनियादी ढाँचे की पहलों को बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • इसे अन्य देशों में परियोजनाओं को लागू करने में अपनी कई संस्थागत सीमा की समस्या को दूर करना भी सीखना चाहिये।

स्रोत : द हिंदू