Bharat@2047 के लिये कृषि क्रांति | 07 Aug 2025

यह एडिटोरियल 04/08/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Why agriculture is key to building Viksit Bharat” पर आधारित है। यह लेख भारत के कृषि क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति को सामने लाता है, जहाँ 1960 के दशक के पूर्व खाद्य असुरक्षा की स्थिति थी, वहीं वर्ष 2024–25 में रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। साथ ही, यह उत्पादन क्षमता, सतत् विकास और आधुनिकीकरण से जुड़ी चुनौतियों को उजागर करता है, जिन्हें विकसित भारत 2047 की दृष्टि को साकार करने के लिये तत्काल निपटना आवश्यक है।

प्रिलिम्स के लिये: कृषि अवसंरचना कोष, डिजिटल कृषि मिशन, AgriStack, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLISFPI), ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य

मेन्स के लिये: भारतीय कृषि में परिवर्तन के प्रमुख विकास, भारतीय कृषि प्रणाली की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे।

1960 के दशक से पूर्व की खाद्य असुरक्षा से लेकर सत्र 2024-25 में 353.96 मिलियन टन के रिकॉर्ड उत्पादन तक भारत का कृषि परिवर्तन, विकसित भारत की ओर राष्ट्र की यात्रा का एक उदाहरण है। यह कृषि पुनर्जागरण बुनियादी जीविका से लेकर डेयरी, पोल्ट्री और मात्स्यिकी जैसे विविध कृषि उद्योगों तक विकसित हुआ है। हालाँकि, इन उल्लेखनीय उपलब्धियों के बावजूद, कृषि अभी भी उत्पादकता, संवहनीयता और आधुनिकीकरण में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। आर्थिक स्थिरता की नींव के रूप में, कृषि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है, जो इन बाधाओं को दूर करने के बाद, वर्ष 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर निर्णायक सिद्ध होगी।

भारतीय कृषि में परिवर्तन करने वाले प्रमुख विकास क्या हैं?

  • कृषि अवसंरचना निवेश: भारत सरकार द्वारा कृषि अवसंरचना में किया जा रहा पर्याप्त निवेश इस क्षेत्र में बदलाव ला रहा है। कृषि अवसंरचना कोष(AIF) और प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) जैसी पहल भंडारण, प्रसंस्करण एवं परिवहन प्रणालियों का आधुनिकीकरण कर रही हैं।
    • ये प्रयास कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार लाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • कृषि क्षेत्र का सकल पूंजी निर्माण (GCF) सत्र 2022-23 में 19.04% की दर से बढ़ा।
      • ₹1 लाख करोड़ के निवेश लक्ष्य के साथ, AIF भंडारण, कोल्ड चेन और बाज़ार संपर्क में सुधार कर रहा है, जो खाद्य अपव्यय को कम करने के लिये आवश्यक हैं।
  • कृषि का प्रौद्योगिकी एकीकरण और डिजिटलीकरण: भारत कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये AI, ब्लॉकचेन और ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीकों को तेज़ी से अपना रहा है।
    • ₹2,817 करोड़ के वित्तीय परिव्यय के साथ वर्ष 2024 में शुरू किये गए डिजिटल कृषि मिशन का उद्देश्य कृषि के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) स्थापित करना है।
      • AgriStack DPI का आधार स्तंभ है, जिसे किसानों के लिये ‘आधार’ की तरह एक डिजिटल सार्वजनिक साधन के रूप में डिज़ाइन किया गया है।
    • ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसी डिजिटल पहल किसानों के लिये बाज़ार पहुँच को बढ़ा रही हैं, बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित कर रही हैं और बिचौलियों की भूमिका को न्यूनतम कर रही हैं।
  • सतत् कृषि और जैविक कृषि के विकास को बढ़ावा: नीतिगत प्रोत्साहनों और बदलती उपभोक्ता माँग के कारण जैविक कृषि के तेज़ विकास के साथ, संवहनीयता को गति मिल रही है।
    • मार्च 2024 तक, देश में लगभग 1.76 मिलियन हेक्टेयर प्रमाणित जैविक कृषि भूमि थी, और अतिरिक्त 3.63 मिलियन हेक्टेयर भूमि जैविक पद्धतियों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया में थी।
    • भारत में जैविक-कृषि उत्पादों का बाज़ार वर्ष 2025 तक 75,000 करोड़ रुपए (9.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुँचने का अनुमान है। इसके अनुरूप, भारत के जैविक-कृषि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है, पिछले पाँच वर्षों में जैविक-कृषि आधारित फलों के निर्यात में 47.5% की वृद्धि हुई है, जो मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय माँग को दर्शाता है।
  • पशुधन और डेयरी क्षेत्र का पुनरुत्थान: उत्पादन और वैश्विक माँग में वृद्धि के कारण भारत के डेयरी और पशुधन क्षेत्रों में तेज़ी देखी गई है।
    • भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना हुआ है, जो वैश्विक दुग्ध उत्पादन में लगभग 24% का योगदान देता है। 
      • दुग्ध शीतलन संयंत्रों और पशु नस्ल सुधार जैसे बुनियादी अवसंरचना पर सरकार के प्रयासों ने भारत को विश्व के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक के रूप में स्थापित किया है।
    • ‘गौ चिप’ और ‘महिष चिप’ जैसे स्वदेशी जीनोमिक चिप्स के विकास से भारतीय मवेशियों एवं भैंसों के आनुवंशिक सुधार में तेज़ी आ रही है।
  • मात्स्यिकी और जलीय-कृषि विकास: सरकार द्वारा बुनियादी अवसंरचना और सतत् जलीय कृषि पद्धतियों में भारी निवेश के साथ, मात्स्यिकी क्षेत्र एक प्रमुख विकास क्षेत्र के रूप में उभर रहा है। 
    • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) से वित्त वर्ष 2025 तक मत्स्य उत्पादन बढ़कर 220 लाख टन होने की उम्मीद है।
    • सत्र 2014-15 और 2024-25 के दौरान, भारत का समुद्री खाद्य निर्यात मात्रा में 60% बढ़कर 16.85 लाख मीट्रिक टन हो गया।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का विस्तार: भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का विकास मूल्यवर्द्धन के अनेक अवसरों का सृजन कर रहा है, जिससे घरेलू एवं निर्यात दोनों बाज़ारों का विस्तार हो रहा है।
    • यह क्षेत्र वर्ष 2025 तक 3.45 लाख करोड़ रुपए (470 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक बढ़ने की ओर अग्रसर है, जो PMKSY और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLISFPI) जैसी सरकारी पहलों से प्रेरित है।
    • साथ ही, वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI), 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र संगठित विनिर्माण क्षेत्र में सबसे बड़े रोज़गार प्रदाताओं में से एक है, जिसमें कुल पंजीकृत/संगठित क्षेत्र में 12.41% रोज़गार है।
  • कृषि अनुसंधान एवं विकास को सुदृढ़ बनाना: कृषि अनुसंधान एवं विकास में निवेश फसल किस्मों, कीट प्रबंधन और जलवायु-अनुकूलन में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
    • सरकार आनुवंशिक सुधारों और वैकल्पिक कृषि पद्धतियों में उन्नत अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
    • अनुसंधान एवं विकास का एक प्रमुख केंद्र जलवायु-प्रतिरोधी फसल किस्मों का विकास है। इनके विकास में ICAR की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्ष 2024 में, भारत के प्रधानमंत्री ने 109 फसल किस्मों का अनावरण किया जो उच्च उपज देने वाली, जलवायु-अनुकूल और बायो-फोर्टीफाइड हैं, जिनका उद्देश्य कृषि उत्पादकता, पोषण सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन के प्रति सहिष्णुता को बढ़ाना है।

भारतीय कृषि प्रणाली की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • उत्पादन क्षमता को प्रभावित करने वाले संरचनात्मक एवं संसाधन-आधारित मुद्दे 
    • खंडित भूमि जोत: भारत में कृषि उत्पादकता के लिये भूमि जोत का विखंडन एक महत्त्वपूर्ण बाधा बना हुआ है।
      • भारत की कृषि आबादी के 85% से अधिक, लघु और सीमांत किसान, निवल बुवाई क्षेत्र (कृषि जनगणना 2015-16) के लगभग 45% हिस्से पर कृषि करते हैं। फिर भी, छोटी जोत एक उचित आजीविका के लिये अपर्याप्त लाभ देती है।
        • छोटी जोत मशीनीकरण में बाधा डालती है, इनपुट के अकुशल उपयोग का कारण बनती है और समग्र उत्पादकता को कम करती है।
    • सिंचाई की अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसे प्रयासों के बावजूद, सिंचाई मानसून पर अत्यधिक निर्भर है। भारत के लगभग 61% किसान वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं और कुल फसल क्षेत्र का 55% वर्षा आधारित कृषि के अंतर्गत है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य है।
      • अपर्याप्त सिंचाई अवसंरचना जल संकट को बढ़ाती है र शुष्क अवधि के दौरान फसल उत्पादन को सीमित करती है।
      • बड़े पैमाने की सिंचाई परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण एक बड़ी बाधा है। साथ ही, कृषि के लिये बिजली पर भारी सब्सिडी ने भूजल के अत्यधिक दोहन को प्रोत्साहित किया है, जिससे जल संकट की समस्या और भी जटिल हो गई है।
    • रासायनिक उर्वरकों पर निरंतर निर्भरता: रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता, अल्पावधि में पैदावार को बढ़ावा देते हुए, दीर्घकालिक मृदा क्षरण और पर्यावरणीय क्षति का कारण बन रही है।
      • भारत विश्व स्तर पर उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। सत्र 2023-24 में, कुल वार्षिक खपत लगभग 601 लाख मीट्रिक टन (LMT) थी।
        • भारत में उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है और कुछ क्षेत्रों में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में गिरावट आई है। 
      • साथ ही, देश का 100% म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) और लगभग 60% डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) आयात किया जाता है।
        • इससे भारत की उर्वरक आपूर्ति शृंखला वैश्विक मूल्य उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक घटनाओं के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
      • जैविक कृषि और जैव-उर्वरकों के सिद्ध लाभों के बावजूद, उनकी ओर बदलाव धीमा बना हुआ है।
    • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय तनाव: भारत की कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक सुभेद्य है, जिसमें अनियमित वर्षा पैटर्न, बढ़ता तापमान और सूखा व बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएँ फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं।
      • यह पर्यावरणीय अनिश्चितता किसानों के लिये दीर्घकालिक कृषि योजना बनाना कठिन बना देती है।
      • सत्र 2023-24 में, खाद्यान्न उत्पादन 328.8 मिलियन टन कम रहा, जिसका मुख्य कारण अपर्याप्त और विलंबित मानसून था, जो जलवायु की अनिश्चितता का प्रत्यक्ष प्रभाव दर्शाता है।
        • एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि गेहूँ के लिये, 1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि से 6.1% उपज हानि होगी।
  • संस्थागत और वित्तीय बाधाएँ:
    • ऋण और वित्तीय सहायता तक समान पहुँच का अभाव: समय पर और किफायती ऋण की उपलब्धता कई किसानों, विशेषकर लघु किसानों के लिये एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
      • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना के तहत हालिया वृद्धि के बावजूद, ऋण वितरण अत्यधिक असंतुलित बना हुआ है। दक्षिणी क्षेत्र को कुल कृषि ऋण का 47.13% प्राप्त होता है, लेकिन निवल बुवाई क्षेत्र का केवल 16.96% ही इसका प्रतिनिधित्व करता है।
      • इसके अलावा, अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भरता, जो अत्यधिक ब्याज दरें वसूलते हैं, कई किसानों को कर्ज के चक्र में फँसाए रखती है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के मुद्दे: यद्यपि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली किसानों को बाज़ार मूल्य में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिये बनाई गई है, फिर भी इसके कार्यान्वयन और प्रभावशीलता में कई गंभीर समस्याएँ हैं।
      • उचित खरीद बुनियादी अवसंरचना का अभाव, भुगतान में विलंब और फसलों का सीमित कवरेज MSP की प्रभावशीलता को कमज़ोर करते हैं।
        • यद्यपि 23 से अधिक फसलों के लिये MSP निर्धारित है, फिर भी खरीद सीमित है।
      • किसान MSP के लिये कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। हालाँकि, MSP के लिये कानूनी गारंटी का मुद्रास्फीति पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि बाज़ार दरों से ऊपर कीमतें निर्धारित करने से खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिसका कम आय वाले उपभोक्ताओं पर असमान रूप से प्रभाव पड़ेगा।
      • कभी-कभी, MSP, मूल्य की गारंटी देकर, बाज़ार के संकेतों को विकृत कर सकता है और कुछ फसलों के लिये कृत्रिम मांग उत्पन्न कर सकता है। 
        • इससे इन फसलों की अधिक आपूर्ति हो सकती है तथा अन्य की कमी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप खुले बाज़ार में कीमतों में अस्थिरता हो सकती है।
  • उत्पादनोत्तर एवं बाज़ार-संबंधी चुनौतियाँ
    • अपर्याप्त कटाई-पश्चात अवसंरचना: पर्याप्त भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के कारण भारत में कटाई-पश्चात नुकसान चिंताजनक रूप से उच्च बना हुआ है।
      • वर्ष 2020 से 2022 के दौरान NABCON द्वारा किये गए नवीनतम बड़े पैमाने के अध्ययन के अनुसार, भारत को प्रत्येक वर्ष लगभग ₹1.53 ट्रिलियन का खाद्यान्न नुकसान होता है।
      • बागवानी फसलों (फल, सब्जियाँ, बागान और मसाले) को मात्रा के मामले में सबसे अधिक नुकसान होता है।
      • अनुमानतः 30-40% फल और सब्जियाँ फसल-कटाई एवं उपभोग के दौरान नष्ट हो जाती हैं।
  • कृषि संबंधी एवं पारिस्थितिक चिंताएँ
    • अपर्याप्त फसल विविधीकरण: कृषि परिदृश्य, विशेष रूप से ‘हरित क्रांति’ वाले पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, धान-गेहूँ फसल चक्र का प्रभुत्व है। यह प्रणाली देश के खाद्यान्न उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा है।
      • इसके अलावा, जहाँ गन्ना, चावल और कपास जैसी अधिक जल की खपत वाली फसलों की कृषि में वृद्धि हुई है, वहीं किसानों को कदन्न और दलहन जैसी कम जल की खपत वाली फसलों की ओर रुख करने के लिये प्रोत्साहन का गंभीर अभाव है।
        • कृषि का यह निरंतर चलन भूजल संसाधनों के ह्रास में योगदान देता है, विशेषकर सीमित वर्षा वाले राज्यों में।

भारत अपने कृषि क्षेत्र को विकसित भारत के लक्ष्यों के अनुरूप किसन प्रकार पुनर्परिभाषित कर सकता है?

  • डिजिटल सहकारी कृषि प्लेटफॉर्मों के माध्यम से भूमि समेकन: भूमि विखंडन को दूर करने के लिये, भारत को डिजिटल सहकारी कृषि प्लेटफॉर्मों को बढ़ावा देना चाहिये जहाँ लघु किसान स्मार्ट अनुबंधों एवं ब्लॉकचेन-समर्थित समझौतों के माध्यम से स्वेच्छा से भूमि और संसाधनों का उपयोग करते हैं।
    • ये प्लेटफॉर्म स्वामित्व अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए साझा मशीनीकरण, इनपुट खरीद और बाज़ार पहुँच को सुगम बना सकते हैं।
    • FPO और GIS-आधारित भूमि अभिलेखों का लाभ उठाते हुए, यह मॉडल कानूनी समेकन के बिना बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्थाओं को प्राप्त कर सकता है। यह सामूहिक दक्षता को बढ़ावा देते हुए संपत्ति सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
      • यह ग्रामीण काश्तकारी गतिशीलता को बाधित किये बिना भूमि उपयोग का आधुनिकीकरण करता है।
  • पंचायत-स्तरीय जल परिषदों के माध्यम से विकेंद्रीकृत सूक्ष्म सिंचाई केंद्र: अपर्याप्त सिंचाई बुनियादी अवसंरचना से निपटने के लिये, ग्राम पंचायत स्तर पर जल संसाधन परिषदों को सौर ऊर्जा चालित पंपों और वास्तविक समय मृदा की नमी के आँकड़ों का उपयोग करके क्लस्टर-आधारित ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों को लागू करने के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये।
    • PMKSY और MGNREGA के साथ एकीकरण से सूक्ष्म जलाशयों एवं जलभृत पुनर्भरण संरचनाओं जैसी सामुदायिक परिसंपत्तियों को वित्तपोषित किया जा सकता है।
    • जल बजट और स्थानीय शासन कुशल आवंटन सुनिश्चित करेंगे। यह जलवायु परिवर्तन के प्रति सहिष्णुता बढ़ाते हुए, खंडित जोतों में समान जल पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • क्षेत्र-विशिष्ट जैव-इनपुट पार्कों के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य संप्रभुता: उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता से निपटने के लिये, स्थानीय जैविक अपशिष्ट का उपयोग करके जैव-उर्वरक, कम्पोस्ट एवं सूक्ष्मजीवी संघों का उत्पादन करने वाले क्षेत्रीय रूप से अनुकूलित जैव-इनपुट पार्कों की आवश्यकता है।
    • इन पार्कों का प्रबंधन ICAR-KVK से प्रशिक्षण प्राप्त FPO द्वारा किया जा सकता है और लक्षित अनुप्रयोग के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड द्वारा समर्थित किया जा सकता है।
    • जैव-इनपुट प्रमाणन प्रणाली को संस्थागत रूप देने से गुणवत्ता और विपणन क्षमता सुनिश्चित होगी। यह मृदा पुनर्स्थापन का विकेंद्रीकरण करते हुए, चक्रीय ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करेगा तथा रासायनिक भार को कम करेगा।
  • जन धन-KCC लिंकेज के माध्यम से हाइपरलोकल एग्री-फिनटेक एकीकरण: ऋण सुलभता में सुधार के लिये, हाइपरलोकल एग्री-फिनटेक मॉडल लॉन्च किया जाना चाहिये जो जन धन खातों, भूमि रिकॉर्ड, KCC पात्रता एवं डिजिटल लेन-देन डेटा को एकीकृत करके स्वचालित क्रेडिट स्कोर उत्पन्न करें।
    • फिनटेक के साथ साझेदारी करके, ये प्लेटफॉर्म अंतर्निहित फसल बीमा के साथ जोखिम-समायोजित माइक्रोक्रेडिट प्रदान कर सकते हैं।
    • आधार-सक्षम, वास्तविक-काल संवितरण लघु किसानों के लिये वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करेगा। यह कृषि वित्त को संपार्श्विक-आधारित से डेटा-संचालित ऋण पारिस्थितिकी तंत्र में स्थानांतरित करता है।
  • ज़िला-स्तरीय जलवायु-आकस्मिक फसल नियोजन प्रकोष्ठ: जलवायु तनाव से निपटने के लिये, ज़िला जलवायु-आकस्मिक नियोजन प्रकोष्ठ स्थापित किया जाना चाहिये जो बुवाई, इनपुट उपयोग और फसल बीमा लक्ष्यीकरण का मार्गदर्शन करने के लिये कृषि-IoT, GIS विश्लेषण एवं फसल जोखिम मॉडल के माध्यम से मौसमी जलवायु पूर्वानुमानों का उपयोग करते हैं।
    • अनुकूली योजनाएँ पूर्वानुमान परिवर्तनशीलता के साथ फसल संरेखण सुनिश्चित करेंगी, जिससे जलवायु-प्रेरित आय झटकों को कम किया जा सकेगा। यह स्थानीय स्तर पर कृषि-जलवायु जोखिम आसूचना को संस्थागत बनाता है।
  • गति शक्ति फ्रेमवर्क के अंतर्गत ग्रामीण कृषि-लॉजिस्टिक्स नोड्स: कटाई के बाद होने वाले नुकसानों से निपटने के लिये, PM गति शक्ति मास्टरप्लान के साथ एकीकृत ग्रामीण कृषि-लॉजिस्टिक्स नोड्स (RALN) बनाने की आवश्यकता है ताकि खेत के द्वारों के पास कोल्ड चेन, एकत्रीकरण केंद्र एवं पैकहाउस विकसित किये जा सकें।
    • इन नोड्स का डिजिटल मानचित्रण किया जाना चाहिये और उन्हें ई-कॉमर्स तथा निर्यात गलियारों से जोड़ा जाना चाहिये।
    • शीघ्र खराब होने वाली फसल क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। इससे मूल्य प्रतिधारण को बढ़ावा मिलता है, खाद्यान्न की बर्बादी कम होती है और कृषि निर्यात-संरेखित एवं बाज़ार-अनुकूल बनती है।
  • कृषि-पोषक संबंधों पर आधारित पोषण फसल मिशन: फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये, भारत को कृषि-पारिस्थितिक व्यवहार्यता और पोषण संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर कदन्न, दलहन, तिलहन और औषधीय फसलों को बढ़ावा देने वाले कृषि-पोषण मिशन शुरू करने चाहिये।
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मध्याह्न भोजन में इन फसलों को प्राथमिकता देने के लिये राज्य खरीद नीतियों को पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिये। पोषण क्षेत्रीकरण मृदा स्वास्थ्य, आहार सुरक्षा और जलवायु-अनुकूलन को जोड़ेगा।
      • यह कृषि को केवल खाद्य उत्पादक ही नहीं, बल्कि एक जन स्वास्थ्य प्रवर्तक के रूप में स्थापित करता है।
  • सेवा के रूप में कृषि-मशीनीकरण (AMAAS) पारिस्थितिकी तंत्र: आधुनिक कृषि को बढ़ावा देने के लिये, एक सेवा के रूप में कृषि-मशीनीकरण (AMAAS) मॉडल बनाया जाना चाहिये जहाँ ड्रोन सेवाएँ, हार्वेस्टर और AI-आधारित सटीक उपकरण FPO या ग्रामीण स्टार्टअप द्वारा प्रबंधित डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से किराये पर दिये जा सकें।
    • पूँजीगत सब्सिडी को स्वामित्व के बजाय साझा-उपयोग मॉडल से जोड़ा जा सकता है। प्रशिक्षण और मरम्मत केंद्रों के साथ बैकएंड एकीकरण संवहनीयता सुनिश्चित करता है। यह लघु किसानों के लिये चौथी पीढ़ी की कृषि तकनीकों का लोकतांत्रिकरण करता है।
  • प्रत्यक्ष दक्षता प्रोत्साहनों के माध्यम से स्मार्ट सब्सिडी संक्रमण मॉडल: सब्सिडी की अक्षमताओं को दूर करने के लिये, एक स्मार्ट सब्सिडी संक्रमण कार्यढाँचा विकसित किया जाना चाहिये जहाँ इनपुट सब्सिडी (जैसे: उर्वरक, जल, बिजली) को धीरे-धीरे प्रत्यक्ष दक्षता-जुड़े प्रोत्साहनों में स्थानांतरित किया जाए।
    • मृदा-अनुकूल इनपुट, सूक्ष्म-सिंचाई और कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रथाओं को अपनाने वाले किसानों को डिजिटल कृषि लाभ अंतरण (DABT) के माध्यम से पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
    • यह मॉडल आय समर्थन बनाए रखते हुए पर्यावरणीय संरक्षण सुनिश्चित करता है। यह सब्सिडी को प्रदर्शन-आधारित संवहनीयता की ओर पुनर्निर्देशित करता है।
  • MSP 2.0: गतिशील, विकेंद्रीकृत और डिजिटल रूप से खरीद: MSP में सुधार के लिये, वास्तविक काल लागत सूचकांकों और जलवायु पूर्वानुमानों के आधार पर ज़िला-विशिष्ट न्यूनतम मूल्यों के साथ गतिशील MSP प्लेटफॉर्म बनाए जाने चाहिये।
    • डिजिटल किसान पंजीकरण, मोबाइल-आधारित रसीदों और e-RUPI के माध्यम से तत्काल भुगतान के माध्यम से खरीद का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • स्वयं सहायता समूहों और सहकारी समितियों द्वारा विकेंद्रीकृत खरीद के साथ, दलहन, तिलहन और क्षेत्रीय रूप से प्रासंगिक फसलों को शामिल करने के लिये MSP कवरेज में विविधता लाया जाना चाहिये। इससे एक उत्तरदायी, समावेशी और प्रौद्योगिकी-संचालित मूल्य समर्थन प्रणाली का निर्माण होता है।
  • नवाचार-आधारित कृषि के लिये कृषि-तकनीक क्षेत्र: AI-आधारित फसल निदान, ड्रोन कृषि और IoT-आधारित सिंचाई जैसी अग्रणी तकनीकों का परीक्षण करने के लिये ग्रामीण ज़िलों में कृषि-तकनीक नवाचार क्षेत्र (ATIZ) स्थापित  किया जाना चाहिये।
    • ये क्षेत्र स्टार्टअप इंडिया और अटल नवाचार मिशन के तहत सार्वजनिक-निजी-CSR सहयोग के लिये परीक्षण स्थल के रूप में काम कर सकते हैं। किसान-वैज्ञानिक-स्टार्टअप संबंधों को संस्थागत बनाने से तकनीक सदुपयोग में तेज़ी आ सकती है। इन मॉडलों को कृषि-जलवायु क्षेत्रों में लागू करने से स्मार्ट कृषि पारिस्थितिकी तंत्र मुख्यधारा में आ जाएगा, जो नवाचार को विकास के गुणक के रूप में स्थापित करता है।

निष्कर्ष:

खाद्य-अभावग्रस्त अर्थव्यवस्था से वैश्विक कृषि महाशक्ति बनने की भारत की यात्रा अब केवल 'भोजन सुरक्षा' तक सीमित न रहकर 'किसान समृद्धि' तक भी पहुँचे। विकसित भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिये, कृषि को एक तकनीक-एकीकृत, जलवायु-अनुकूल और मूल्य-संचालित क्षेत्र के रूप में विकसित करना आवश्यक है। इसके लिये हरित क्रांति से आगे बढ़कर संधारणीय समाधानों की ओर बदलाव की आवश्यकता है, जहाँ मृदा का सॉफ्टवेयर से और नवाचार का समावेशिता के साथ सह-अस्तित्व हो। ग्रामीण जड़ों से विकसित भारत का बीजारोपण करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि कृषि न केवल राष्ट्र का भरण-पोषण करे, बल्कि एक विकसित अर्थव्यवस्था में इसके परिवर्तन को भी बढ़ावा दे।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत की कृषि निर्वहन से प्रौद्योगिकी-संचालित और जलवायु-अनुकूल विकास इंजन में परिवर्तित हो रही है। इस परिवर्तन को संचालित करने वाले प्रमुख विकासों पर चर्चा कीजिये तथा विकसित भारत के दृष्टिकोण के साथ कृषि को संरेखित करने में आने वाली लगातार चुनौतियों का समाधान करने के उपायों का सुझाव दीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)' दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी० सी० ए० एफ० एस०) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है। 
  2. सी० सी० ए० एफ० एस० परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी० जी० आइ० ए० आर०) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्राँस में है। 
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आइ० सी० आर० आइ० एस० ए० टी०), सी० जी० आइ० ए० आर० के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)

कार्यक्रम/परियोजना            मंत्रालय

1. सूखा-प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम   : कृषि मंत्रालय

2. मरुस्थल विकास कार्यक्रम   : पर्यावरण एवं वन मंत्रालय 

3. वर्षापूरित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जलसम्भर विकास परियोजना     : ग्रामीण विकास मंत्रालय

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (d)


प्रश्न 3. भारत में, निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है। (2020)

  1. सभी फसलों के कृषि उत्पाद के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना 
  2. प्राथमिक कृषि साख समितियों का कंप्यूटरीकरण  
  3. सामाजिक पूंजी विकास 
  4. कृषकों को नि:शुल्क बिजली की आपूर्ति 
  5. बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की माफी 
  6. सरकारों द्वारा शीतागार सुविधाओं को स्थापित करना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3, 4 और 5
(c) केवल 2, 3 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (c)

मेन्स 

प्रश्न 1. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017)

प्रश्न 2. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी० एम० एफ० बी० वाइ०) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016)