भारत में सेवा क्रांति के मायने (India and the promise of service revolution) | 15 Nov 2018

संदर्भ

भारत चौथी औद्योगिक क्रांति का सामना कर रहा है जो उद्यमियों, उपभोक्ताओं, युवाओं और वृद्ध लोगों को समान रूप से प्रभावित करेगा। पहली औद्योगिक क्रांति पानी और भाप की शक्ति के कारण हुई, जिसने मानव श्रम को यांत्रिकी निर्माण में परिवर्तित किया वहीं, दूसरी औद्योगिक क्रांति विद्युत शक्ति के कारण हुई जिसकी  वज़ह बड़े स्तर पर उत्पादन संभव हो सका तथा तीसरी औद्यगिक क्रांति ने इलेक्ट्रॉनिक  और सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा स्वचालित निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। चौथी औद्योगिक क्रांति वर्तमान में जारी है और इसमें ऑटोमेशन तथा निर्माण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आँकड़ों का आदान-प्रदान किया जा रहा है। डिजिटल संचार में पाँच दशकों की बढ़ती क्षमताओं और गिरती लागतों के परिणामस्वरूप वैश्विक सेवा क्रांति हुई यह मौजूदा उद्योगों, श्रम बाज़ारों को पुनः बदल रहा है और इस तरह से हम एक-दूसरे से संबंधित हैं तथा इससे प्रभवित हो रहे हैं। सेवा क्षेत्र अब विनिर्माण क्षेत्र पर हावी है और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 70% से अधिक का योगदान देता है।

सेवा क्षेत्र का विस्तार

  • सेवाएँ विकासशील देशों के सकल घरेलू उत्पाद में भी व्यापक योगदान देती हैं।
  • युवा श्रमिक जो शहरों के लिये अपने गाँवों और खेतों को  छोड़ते हैं, वे विनिर्माण की बजाय शहर के सेवा क्षेत्र की नौकरियों में तेज़ी से संलग्न हो रहे हैं।
  • चीन के विपरीत, भारत ने विनिर्माण की तुलना में सेवाओं में तेज़ी से वृद्धि के कारण इस क्षेत्र की वृद्धि का नेतृत्व किया गया है। माल के व्यापार की तुलना में सेवाओं का व्यापार तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि सेवाओं में श्रम उत्पादकता वृद्धि, उद्योगों से अधिक है और भारत में सेवाओं में उत्पादकता वृद्धि चीन के विनिर्माण क्षेत्रों में श्रम उत्पादकता वृद्धि से मेल खाती है।
  • चौथी औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप भूमंडलीकरण नए रूप में सामने आया है जो विकास के दौर में देरी से शामिल होने वाले देशों को लाभान्वित कर रहा है।

उत्पन्न चुनौतियाँ एवं प्रबंधन

  • हालाँकि, तकनीकी परिवर्तनों ने चिंताओं को और भी बढ़ाया है। इसने हमारे समक्ष कई प्रश्न खड़े किये हैं यथा - क्या कौशल आधारित  तकनीकी परिवर्तन नौकरियों को कम करेगा और क्या श्रमिकों तथा नौकरियों की गुणवत्ता में भी कमी होगी? परिणामतः तकनीकी पूरकता की कमी होगी।
  • इन चुनौतियों का प्रबंधन मानव पूंजीगत स्टॉक में अधिक निवेश तथा भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये बफर बनाने, असमानता, लिंग भेदभाव और मशीन लर्निंग आदि विषयों में शिक्षित करके, बेहतर तरीके से कर सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त चौथी क्रांति के लाभ को समझने और जोखिमों का प्रबंधन करने के लिये सभी को मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी।

विकास एस्केलेटर के रूप में

  • फर्म-स्तरीय डेटा के विश्लेषण के मुताबिक प्रौद्योगिकी, विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच वैश्विक विकास अभिसरण को बढ़ावा देती है।
  • विकासशील देशों में उत्पादकता वृद्धि तकनीकी सीमा में मौजूद कंपनियों के लिये अपेक्षाकृत अच्छी रही है।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ सतत, समावेशी और स्मार्ट विकास के नए रास्ते खोलती हैं।
  • भारत द्वारा समय-पूर्व विऔद्योगीकीकरण (de-industrialization) के डर को अच्छी तरह से प्रबंधित किया गया है  लेकिन किसी को भी इस उभरने वाले नए विकास एस्केलेटर को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिये।
  • दरअसल, सेवाएँ अब सबसे अधिक विकास और नौकरियों की रणनीति का एक सक्रिय घटक हैं। स्थानीय उद्योग संघ भी अब नीति तालिका में सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • विकास की दहलीज़ पर देर से आने के नाते, भारत को अपने भविष्य को आकार देने के लिये स्वर्णिम अवसर है और वह नई औद्योगिक क्रांति के दौर में अधिक लाभ उठा सकता है, बशर्ते नीति निर्माण का केंद्रबिंदु जनसांख्यिकीय लाभांश और तकनीकी परिवर्तनों द्वारा उत्पन्न अवसरों को लक्षित करें।
  • भले ही भौतिक आधारभूत संरचना में निवेश विनिर्माण क्षेत्र के लिये अधिक मायने रखता है, लेकिन नए बुनियादी ढाँचे के रूप में सेवाओं के साथ मानव बुनियादी ढाँचे/ मानव संसाधन में निवेश का महत्त्व भी बढ़ गया है।
  • उल्लेखनीय है कि यू.के. और अमेरिका में मानव पूंजी निवेश पहले ही भौतिक आधारभूत संरचना में निवेश को पार कर चुका है और वहीं विश्व के विभिन्न क्षेत्रों यथा - अफ्रीका और दक्षिण एशिया में जहाँ विकास ने देरी से दस्तक दी है वहाँ तकनीकी परिवर्तन की तीव्र गति के कारण मानव पूंजीगत स्टॉक बहुत पीछे रह गया है।
  • इसके अतिरिक्त कार्यों के संदर्भ में कई और नौकरियों को पुनर्परिभाषित किया जाएगा और बड़ी संख्या में नई नौकरियाँ सृजित की जाएंगी जिनके लिये विभिन्न कौशल, तकनीकी जानकारियों, समस्या निवारण और महत्त्वपूर्ण ज्ञान कौशल, साथ ही सहयोग और सहानुभूति की आवश्यकता होगी।
  • विकास के दायरे में देरी से प्रवेश करने के कारण भारत उन सभी सुविधाओं से लाभान्वित होगा क्योंकि भारत दुनिया की सबसे युवा आबादी वाला देश है जहाँ सीखने क्षमता और उत्सुकता अधिक है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 तक चीन और अमेरिका (37), पश्चिमी यूरोप (45) और जापान (49) की तुलना में भारत में औसत आयु केवल 28 होगी।
  • भारत की युवा आबादी कई माध्यमों से आर्थिक विकास में वृद्धि करेगी। इसमें पहला, मानव पूंजी स्टॉक चैनल है। अगर मानव पूंजीगत स्टॉक में निवेश बढ़ाया जाता है तो भारत का जनसांख्यिकीय नया विकास चालक बन जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि जैसे-जैसे युवा आबादी कामकाजी उम्र तक पहुँचेगी, उन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है और नए उद्योगों में शामिल होने के लिये कौशल प्रदान किया जा सकता है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश द्वारा वित्तीय संसाधनों को खर्च करने की दिशा में भी परिवर्तन होगा और जो उन्हें बच्चों की उच्च शिक्षा और कौशल में निवेश करने हेतु प्रेरित करेगा।
  • दूसरा चैनल महिलाओं के कार्यबल में वृद्धि संबंधी है जो स्वाभाविक रूप से प्रजनन क्षमता में गिरावट से जुड़ा हुआ है। तीसरा चैनल, बचत दर में वृद्धि है, क्योंकि कामकाजी उम्र ही बचत के लिये प्रमुख अवधि होती है तथा चौथा चैनल, बचत के लिये अधिक दीर्घायु के साथ सेवानिवृत्ति की लंबी अवधि को प्रोत्साहित करता है।
  • इसके अतिरिक्त पाँचवाँ चैनल, एक मध्यम श्रेणी के समाज की मानसिकता में  व्यापक बदलाव से संबंधित है, जो पहले से ही बना हुआ है। गौरतलब है कि प्रौद्योगिकी पहले से ही विश्व अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा क्षेत्र है, यहाँ तक ​​कि इसने वित्तीय सेवाओं का क्षेत्र भी समाहित कर लिया है।

आगे की राह

  • हमें इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि नए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग लोगों को बाज़ारों से जोड़ने, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) को वैश्विक व्यापार से जोड़ने और लिंग आसमानता को दूर करने वाली क्रांति को बढ़ावा देने हेतु उपयोग किया जाना चाहिये ताकि अपेक्षित विचार परिवर्तन किया जा सके।
  • नई नौकरियों के लिये तकनीकी जानकारियों, समस्या निवारण और महत्त्वपूर्ण ज्ञान कौशल का संयोजन, साथ ही अन्य कौशल जैसे दृढ़ता, सहयोग और सहानुभूति आदि विशिष्ट कौशल की आवश्यकता होगी।
  • भारत की सबसे बड़ी संपत्ति इसकी युवा आबादी है, मानव पूंजी में निवेश भारत के लिये एक बड़ी कामयाबी साबित होगी और यह भारत को जनसांख्यिकीय अभिशाप का सामना करने से भी रोक देगी।
  • नीति निर्माताओं को बुनियादी ढाँचे के वितरण योजना बनाते समय भौतिक और मानव संसाधन दोनों पर ज़ोर देने की जरूरत है, लेकिन साथ ही मानव पूंजीगत स्टॉक में निवेश के महत्त्व पर बल देना होगा।
  • हमें अपनी समझ को अभी भी और विकसित की आवश्यकता है कि कैसे इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ते शहरीकरण, सार्वजनिक निजी साझेदारी को अनुकूल प्रदान कर सकता है या डिजिटल प्रौद्योगिकी का उचित उपयोग तथा वर्तमान में शिक्षा और सामाजिक ज़रूरतों की लागत को कम करता है?
  • गौरतलब है कि आज किए गए निर्णयों का दशकों बाद भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश पर असर पड़ेगा अतः भविष्य के प्रति सचेत होकर सही निर्णय लेने की आवश्यकता है।