भारत के रक्षा बजट को जीडीपी के 3% तक बढ़ाने में समस्या | 01 Sep 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित एक थिंक टैंक, रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (IDSA) द्वारा रक्षा व्यय को जीडीपी के 3% तक बढ़ाए जाने की व्यवहार्यता की जाँच की गई।

प्रमुख बिंदु

  • रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति समेत कई रक्षा संस्थानों ने कहा है कि रक्षा पर व्यय जीडीपी के कम-से-कम 3% तक बढ़ाया जाए। 
  • व्यापक रूप से माना जाता है कि यह वृद्धि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी समस्याओं का समाधान करेगी और सेना के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करेगी।

जीडीपी की प्रासंगिकता

  • सकल घरेलू उत्पाद के 1.49% प्रतिशत के रूप में भारत का रक्षा व्यय चीन के साथ हुए 1962 के विनाशकारी युद्ध से पहले की तुलना में कम है। लेकिन 1.49% या 2,79,305 करोड़ रुपए के इस आँकड़े में रक्षा पेंशन और रक्षा मंत्रालय के खर्च शामिल नहीं हैं। 
  • यदि इन दोनों को इस खर्च में शामिल करें तो कुल रक्षा व्यय 4,04,364 करोड़ रुपए या सकल घरेलू उत्पाद का 2.16% हो जाता है। पिछले दशक के आँकड़ों से ज्ञात होता है कि इस आँकड़े में भी गिरावट हो रही है, जबकि 2009-10 में यह जीडीपी का 2.78% था। 
  • 4,04,364 करोड़ रुपए का कुल  रक्षा व्यय वर्तमान में केंद्र सरकार के व्यय (CGE) का 16.6% है और पिछले दशक में 16-18% की सीमा में स्थिर रहा है। लेकिन जीडीपी के प्रतिशत के रूप में रक्षा व्यय गिर रहा है क्योंकि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में CGE पिछले दशक में 16% से घटकर 13% हो चुका है। 

खर्च में बाधाएँ

  • मौजूदा रक्षा बजट को सकल घरेलू उत्पाद के 2.16% से 3% तक बढ़ाने का मतलब है 1,57,305 करोड़ रुपए के अतिरिक्त आवंटन को बढ़ाना होगा जो कि वर्तमान में 4,04,364 करोड़ रुपए से बढ़कर 5,61,669 करोड़ रुपए या CGE का 23% हो जाएगा। 
  • यह वृद्धि बजट के पूंजीगत पक्ष पर होनी चाहिये, क्योंकि वेतन, पेंशन और अन्य परिचालन खर्चों के लिये पर्याप्त धन आवंटन किया जाता है तथा इन क्षेत्रों में अतिरिक्त धनराशि को अवशोषित करने के लिये बहुत कम संभावना होती है।
  • 2018-19 में रक्षा मंत्रालय का 99,564 करोड़ रुपए का पूंजी व्यय सरकार के कुल पूंजी व्यय 3,00,441 करोड़ रुपए का 33% है। रक्षा पूंजी व्यय को 1,57,305 करोड़ रुपए के अतिरिक्त आवंटन की सहायता से बढ़ाकर 2,56,869 करोड़ रुपए करने से इस अनुपात में 85% की वृद्धि होगी। 
  • इस अतिरिक्त खर्च की वज़ह से रक्षा सेवाओं के लिये खरीद के अलावा, बुनियादी ढाँचे और संपत्ति निर्माण सहित पूंजीगत खर्च के लिये सरकार के पास बहुत कम धनराशि बचेगी। 
  • इसके अलावा, चूँकि अधिकांश रक्षा उपकरण विदेशों से प्राप्त किये जाते हैं, इसलिये बढ़ा हुआ पूंजीगत बजट रक्षा आयात बिल और चालू खाता घाटे में वृद्धि करेगा।

कर का प्रश्न 

  • 2018-19 में रक्षा के लिये मौजूदा आवंटन कुल कर राजस्व का 27% है, जो सकल घरेलू उत्पाद के 3% के लक्ष्य को पूरा करने के लिये आवंटन को 5,61,669 करोड़ रुपए तक बढ़ाने पर कुल कर राजस्व का 38% तक हो जाएगा। 
  • इसके लिये मौजूदा कर दरों में वृद्धि या कर आधार के विस्तार की आवश्यकता होगी, लेकिन इनमें से दोनों को अल्पावधि में हासिल करना मुश्किल होगा। इस प्रकार सरकार के गैर-उधार राजस्व में वास्तव में वृद्धि करना और रक्षा के लिये जीडीपी का 3% आवंटित करना व्यवहार्य नहीं होगा। राजस्व संग्रह में वृद्धि न किये जाने की स्थिति में  रक्षा व्यय तभी बढ़ सकता है जब अन्य मदों हेतु आवंटन की राशि को कम किया जाए। 
  • CGE का 23.6% ब्याज भुगतान और 17.5% राज्यों को आवंटित किये जाने के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस तथा सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के लिये सरकार के पास अत्यंत कम धनराशि बचती है। जबकि भारत, जो कि अपनी मानव पूंजी में सुधार करने हेतु संघर्षरत है, वास्तव में उसे अपने सामाजिक-आर्थिक व्यय को कई गुना बढ़ाने की ज़रूरत है।

आगे की राह 

  • इसका समाधान शायद रक्षा बजट में वर्तमान असंतुलन को ठीक करने में निहित है, जहाँ तेज़ गति से बढ़ा हुआ संसाधनों का बड़ा हिस्सा मानव संसाधन लागत की ओर उन्मुख है जिसके कारण आधुनिकीकरण के लिये अत्यंत कम राशि उपलब्ध हो पाती है। 
  • वन रैंक वन पेंशन (OROP) और नए वेतन आयोग के साथ अकेले रक्षा पेंशन 2013-14 में रक्षा खर्च के 18% से बढ़कर 2018-19 में 27% हो चुकी है; अब रक्षा पेंशन 1,08,853 करोड़ रुपए के साथ 59,613 करोड़ रुपए की कुल नागरिक पेंशन की प्रतिकूल रूप से तुलना की जा सकती है। 
  • कुल मिलाकर, 2011-12 और 2018-19 के बीच, कुल रक्षा व्यय में मानवश्रम लागतों के  भुगतान – वेतन, भत्ते तथा पेंशन आदि में 44% से 56% की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि काफी हद तक पूंजीगत खरीद की लागत पर हुई है, जो कि रक्षा व्यय के 26% से गिरकर 18% तक हो चुकी है। आवंटित की जाने वाली निधि में हिस्सा बढ़ाने की बजाय मौजूदा रक्षा आवंटन को अनुकूलित करना अब प्रमुख चुनौती है।