ज़ेड (ज़ीरो डिफेक्ट, ज़ीरो इफेक्ट) योजना | 01 Aug 2017

चर्चा में क्यों ?
हाल ही में सरकार ने ‘ज़ेड प्रमाणन योजना में एमएसएमई के लिये वित्तीय सहायता’ नामक एक नई योजना शुरू की है। इसका उद्देश्य सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) लिये ज़ेड मूल्याँकन के तहत निर्माण को बढ़ावा देना है। ज़ेड मूल्याँकन का अर्थ है वैसा निर्माण, जिसमें ज़ीरो डिफेक्ट हो यानी उत्पाद गुणवत्ता बनी रहे और ज़ीरो इफेक्ट हो अर्थात् पर्यावरण पर इसका कोई नकारात्मक असर न पड़े।

ज़ेड योजना का उद्देश्य

  • उद्योगों के बीच तालमेल के साथ मशीनों, प्रणालियों और प्रक्रियाओं के एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
  • एक देश, एक क्षेत्र, एक व्यवसाय और एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य में प्रतिस्पर्द्धा की धारणा की जाँच करना। 
  • रोज़गार के अवसरों को बढ़ाना।
  • पर्यावरण संरक्षण के साथ उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार करना।
  • एमएसएमई आरम्भ करने वाले लोगों को जागरूक बनाना। 
  • मूल्याँकन, रेटिंग, सलाह, मार्गदर्शन, पुनर्मूल्याँकन और सभी एमएसएमई को प्रमाणित करना तथा ज़ेड के आधार पर उनका विकास सुनिश्चित करना।

योजना से लाभ

  • अधिक और उच्च गुणवत्ता वाला उत्पादन।
  • वेस्टेज कम होगा।
  • उत्पादन की लागत कम होगी।
  • प्रदूषण कम होगा।
  • मानकों के अनुसार उत्पाद बनेंगे।

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह योजना ?

  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises – MSMEs) वस्तुतः छोटे आकार के ऐसे उद्यम हैं, जिन्हें उनमें होने वाले निवेश के आकार से परिभाषित किया जाता है।
  • कुशल तथा अर्द्ध-कुशल लोगों के लिये बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर सृजित करके, बड़े उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराकर तथा विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन को बढ़ाकर, निर्यात में योगदान करके, मूलभूत वस्तुओं के निर्माण इत्यादि कार्यों के माध्यम से ये अर्थव्यवस्था में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • विदित हो कि उत्पादन के अप्रचलित तरीकों के साथ कार्य करने को मज़बूर एमएसएमई के उत्पाद प्रायः गुणवत्ता के स्तर पर कमज़ोर होते हैं। साथ ही एनवायरनमेंट फ्रेंडली माहौल के अभाव में काम करने के कारण प्रदूषण का कारक भी बन जाते हैं। अतः सरकार की ज़ेड योजना निश्चित ही एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।