नौसेना में महिलाएँ | 18 Mar 2020

प्रीलिम्स के लिये:

न्यायालय का निर्णय

मेन्स के लिये:

नौसेना में महिलाओं की भूमिका और संबंधित विषय

चर्चा में क्यों?

लैंगिक समानता पर ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारतीय नौसेना में महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारी अपने पुरुष समकक्षों के समान स्थायी कमीशन की हकदार हैं।

प्रमुख बिंदु

  • भारत सरकार बनाम लेफ्टिनेंट कमांडर एनी नागराज और अन्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय की खंड पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘लैंगिक समानता की लड़ाई मानसिकता की लड़ाई है। इस संदर्भ में सरकार द्वारा दिये गए तर्क रुढ़िवादी मानसिकता को दर्शाते हैं।

पृष्ठभूमि

  • बीते दिनों 17 महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की गई थी। इन अधिकारियों का तर्क था कि इन्हें SSC अधिकारी के रूप में 14 वर्ष की सेवा पूरी करने के बावजूद स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया था।
  • सभी महिला SSC अधिकारियों ने सशस्त्र बलों की तीनों शाखाओं में SSC अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने वाली सरकार के नीति पत्र को चुनौती दी थी।

न्यायालय का निर्णय

  • न्यायालय ने अपने निर्देश में 26 सितंबर, 2008 के उक्त नीति पत्र में उल्लिखित शर्तों को रद्द कर दिया, जिससे महिलाओं के लिये स्थायी कमीशन का मार्ग स्पष्ट हो गया।
  • न्यायालय ने कहा कि स्थायी कमीशन की सभी आवश्यक शर्तों को पूरा करने वाली महिला SSC अधिकारी सभी प्रकार के लाभों जैसे- पदोन्नति और सेवानिवृत्ति लाभ आदि की हकदार होंगी।
  • इसके अलावा जिन महिला SSC अधिकारियों को 26 सितंबर, 2008 के नीति पत्र के आधार पर स्थायी कमीशन देने से इनकार कर दिया गया था, उन्हें भी सभी प्रकार के सेवानिवृत्ति लाभ दिये जाएंगे।
  • न्यायालय ने कहा कि महिला अधिकारियों ने सेवा के प्रत्येक क्षेत्र में अपने पुरुष समकक्षों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर कार्य किया है और इसीलिये इस संदर्भ में दिये गए सभी स्पष्टीकरण बिल्कुल भी तार्किक नहीं हैं।
    • ध्यातव्य है कि इस मामले में दिये गए स्पष्टीकरण में कहा गया था कि भारतीय नौसेना द्वारा तैनात किये गए रूसी मूल के जहाज़ों में महिला अधिकारियों के लिये बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। न्यायालय ने इस स्पष्टीकरण को आधारहीन घोषित किया है।

नौसेना में महिलाएँ

  • 9 अक्तूबर, 1991 तक भारतीय नौसेना में महिलाओं को कमीशन नहीं दिया जाता था। इसके पश्चात् 9 अक्तूबर, 1991 को सरकार ने अधिसूचना जारी की और नौसेना अधिनियम की धारा 9(2) का प्रयोग कर यह निश्चित किया कि महिलाएँ भी भारतीय नौसेना में अधिकारी के रूप में नियुक्त हो सकें।
  • हालाँकि उस समय महिलाओं की नियुक्ति नौसेना की मात्र 4 शाखाओं (लॉजिस्टिक्स, कानून, हवाई यातायात नियंत्रण और शिक्षा) तक ही सीमित थी।
  • इसी समय सरकार ने यह भी कहा था कि वर्ष 1997 तक महिलाओं के लिये स्थायी कमीशन संबंधी नीतिगत दिशा-निर्देश निर्धारित किये जाएंगे किंतु वर्ष 2008 तक इस विषय में कोई प्रगति नहीं हो सकी।
  • 26 सितंबर, 2008 को सरकार ने पहली बार तीनों सेनाओं में SCC महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्णय लिया, हालाँकि यह प्रस्ताव कुछ श्रेणियों तक ही सीमित था।

सशस्त्र बल में महिलाएँ

  • लंबे समय तक सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका चिकित्सीय पेशे जैसे- डॉक्टर और नर्स तक ही सीमित थी। भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति की शुरुआत वर्ष 1992 से हुई।
  • शुरुआत में महिला अधिकारियों को नॉन-मेडिकल जैसे- विमानन, रसद, कानून, इंजीनियरिंग और एक्ज़ीक्यूटिव कैडर में नियमित अधिकारियों के रूप में पाँच वर्ष की अवधि के लिये कमीशन दिया जाता था, जिसे समाप्ति पर पाँच वर्ष और बढ़ाया जा सकता था।
  • वर्ष 2006 में नीतिगत संशोधन किया गया और महिला अधिकारियों को शाॅर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के तहत 10 वर्ष की सेवा की अनुमति दे दी गई, जिसे 4 वर्ष और बढ़ाया जा सकता था।
  • वर्ष 2006 में हुए नीतिगत संशोधनों के अनुसार, पुरुष SSC अधिकारी 10 वर्ष की सेवा के अंत में स्थायी कमीशन का विकल्प चुन सकते थे, किंतु यह विकल्प महिला अधिकारियों के लिये उपलब्ध नहीं था।
  • इस प्रकार सभी महिला अधिकारी कमांड नियुक्ति से बाहर हो गईं और वे सैन्य अधिकारियों को दी जानी वाली पेंशन की आवश्यक योग्यता को भी पूरा नहीं करती थीं, जो एक अधिकारी के रूप में 20 वर्षों की सेवा के पश्चात् ही शुरू होती है।

आगे की राह

  • हम यह समझना होगा कि जब नौसेना की महिला अधिकारियों को भी उसी प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है जो उनके पुरुष समकक्षों को दी जाती है तो महिलाएँ किस आधार पर पुरुषों से भिन्न हैं?
  • सेना में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने और इस विषय से संबंधित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को समझने के लिये एक समेकित अध्ययन करने की आवश्यकता है जिसमें नागरिक समाज के अलावा स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास तथा मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्रालय को शामिल किया जाना चाहिये ताकि हम निकट भविष्य में इस क्षेत्र में अपेक्षित चुनौतियों का सामना करने एवं उनसे निपटने में सक्षम हो सकें।

स्रोत: द हिंदू