क्या भारत के कोयला संयंत्रों को दयनीय दशा में छोड़ देना ठीक होगा? | 01 Jun 2018

संदर्भ

अमेरिका आधारित थिंक टैंक क्लाइमेट पालिसी इनिशिएटिव (CPI) की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कोयला संयंत्रों का पुनःअभियांत्रिकीकरण किया जाना चाहिये और इन्हें "लचीला" बनाया जाना चाहिये ताकि इनका उपयोग नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में अंतराल को भरने के लिये किया जा सके। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा की सबसे बड़ी बाधा इसकी अंतर्विरामशीलता (intermittency) है क्योंकि पवन टरबाइन केवल तेज़ हवा के दौरान लाइनों के माध्यम से बिजली भेज सकती है और एक सौर मॉड्यूल विद्युत तभी उत्पन्न कर सकता है जब सूर्य चमक रहा हो।

भारतीय कोयला संयंत्रों की दयनीय स्थिति 

  • पवन और सौर संयंत्रों से कम लागत वाली बिजली के उत्पादन और भारत की कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की दयनीय स्थिति के कारण विद्युत उत्पादन में इसके तीसरे स्थान पर पहुँचने  की संभावना है।
  • चूँकि भारत में 197,171 मेगावाट की कोयले से उत्पादित विद्युत क्षमता है जिसमें से एक-तिहाई (65,723 मेगावाट) ही हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त है  किंतु बड़ा सवाल यह है कि इसे किस प्रकार उपयोग में लाया जाए| 
  • 2017 में देश के अधिकांश कोयला संयंत्रों ने औसतन केवल 60 प्रतिशत ही बिजली उत्पादन किया| 
  • इसके सबसे बड़े कारणों में से एक यह था कि पवन और सौर संयंत्रों द्वारा उत्पादित विद्युत सस्ते दर पर उपलब्ध थी|
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कोयला संयंत्रों की क्षमता का उपयोग 52 प्रतिशत से नीचे रहता है, जैसा कि नवीनीकरण ऊर्जा के उदय से संभावित है, तो कोयला आधारित संयंत्रों के अस्तित्व पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
  • प्रदूषण की अधिरोपित लागत को कम किये बिना भी स्वच्छ ऊर्जा के सामने प्रदूषित कोयला अनुपयोगी सिद्ध हो रहा है|
  • हालाँकि इस हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला संयंत्रों के लिये सब कुछ खत्म नहीं हो गया है, ज़रूरत है इनके पुनः अभियांत्रिकीकरण की और लचीला बनाए जाने की|
  • भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने पिछले साल कहा था कि कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के एक बड़े हिस्से को हटा देने से रोज़गार और अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ेगा। 

क्या किये जाने की ज़रूरत है?

लचीला कोयला (Flexible coal)

  • कुछ सालों से अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी लचीले कोयले की वकालत कर रही है। तकनीकी रूप से यह संभव हो सकता है|
  • उदाहरण के लिये जर्मनी के मुरबर्ग में दो संयंत्रों, प्रत्येक में 800 मेगावाट, (प्रत्येक सीपीआई रिपोर्ट में उद्धृत) को लचीले संयंत्रों के रूप में संचालित करने के लिये परिवर्तित कर दिया गया है जो अपनी क्षमता से यदि 40 प्रतिशत से कम पर भी संचालित हों तो भी वे व्यवसाय में बने रह सकते हैं।
  • CPI के अध्ययन के अनुसार, भारतीय कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के मुद्दे पर निवेश, लागत और नियामक परिवर्तन जैसे पहलुओं पर गहराई से विचार किये जाने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि "लचीला कोयला" पर विचार करना व्यावहारिक और विवेकपूर्ण है।
  • सबसे पहले, ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा के बड़े हिस्से का एकीकरण बिजली के स्रोत के निर्माण के लिये किया जाना चाहिये जिसे स्वच्छ बिजली उत्पादन में अंतराल को भरने के लिये कम समय में स्विच-ऑन और स्विच-ऑफ किया जा सकता है।
  • CPI रिपोर्ट के अनुसार बैटरी या पंप स्टोरेज पर निवेश लागत मौजूदा कोयला संयंत्रों को लचीला बनाने के लिये आवश्यक निवेश से कहीं अधिक है।
  • नीति आयोग के मुताबिक बैटरी और पंप स्टोरेज लागत प्रति मेगावाट (MW) क्षमता क्रमशः 14 करोड़ और 11.4 करोड़ रुपए है।
  • CPI के अनुमानों के अनुसार, संयंत्र की श्रेष्ठता और आवश्यक लचीलापन परिमाण के आधार पर कोयला संयंत्र बनाने पर लचीलापन लागत एक मेगावाट पर 70 लाख से 2.3 करोड़ रुपए के बीच होगी|

लागत वसूली (Cost recovery)

  • CPI रिपोर्ट यह मानती है कि मौजूदा कोयला संयंत्रों को लचीले संयंत्रों में बदलना बहुत सरल काम नहीं है क्योंकि उन्नयन के लिये आवश्यक निवेश, लचीलापन के लिये विशिष्ट पर्यावरण नीति, प्रोत्साहन तंत्र और जनशक्ति कौशल की आवश्यकता होगी|
  • वर्तमान में देश में कोयला संयंत्र लंबे समय से बिजली खरीद समझौतों पर काम करते हैं। बिजली के लिये जो कीमत मिलती है वह निश्चित और परिवर्तनीय लागत हेतु क्षतिपूर्ति के लिये एक घटक का योग होता है।
  • अतः एक लचीला कोयला संयंत्र के लिये अनुबंधों को फिर से प्रावधान करने की आवश्यकता होगी।
  • बिजली नियामकों (प्रत्येक राज्य के लिये एक) को संयंत्र-दर-संयंत्र के आधार पर लचीलापन लाने के लिये क्षतिपूर्ति की गणना करना आवश्यक है।