उच्च शिक्षा में महिलाओं की स्थिति | 09 Sep 2019

चर्चा में क्यों?

चाइल्ड राइट्स एंड यू (Child Rights and You-CRY) नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में उच्च माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के पढ़ाई छोड़ने के पीछे के कारणों पर प्रकाश डाला गया है।

  • यह अध्ययन चार राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात और हरियाणा में लिये गए 3,000 साक्षात्कारों पर आधारित है।

लड़कियों द्वारा पढ़ाई छोड़ने के मुख्य कारण

  • उच्च शिक्षा हेतु भेजने पर अधिकतर अभिभावकों को लड़कियों की सुरक्षा संबंधी चिंता होती है।
  • लैंगिक कारण
    • स्कूल में महिला शिक्षक न होने के कारण भी कुछ माता-पिता लड़कियों को स्कूल भेजने से कतराते हैं।
    • कभी-कभी घरेलू काम भी लड़कियों को स्कूल जाने से हतोत्साहित करते हैं।
  • कुछ राज्यों में खराब सड़कें और परिवहन सुविधाओं की कमी भी एक प्रमुख कारण है।
  • अध्ययन के अंतर्गत मासिक धर्म (Menstruation) को भी स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण माना गया है।
    • देश के कई स्कूलों में पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं।
  • शिक्षा की लागत और बाल श्रम भी दो अन्य कारण हैं।
  • देश के कई हिस्सों में लोग बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं से परिचित नहीं हैं।
    • अध्ययन में यह भी पता चला है कि कई लड़कियाँ योजनाओं के लाभ के वितरण में देरी तथा अन्य कारणों जैसे - कठोर पात्रता मापदंड, लाभ प्राप्त करने की जटिल प्रक्रिया आदि के परिणामस्वरूप अब तक योजनाओं का पूर्ण लाभ नहीं उठा सकी हैं।
  • इसके अलावा लड़कियों की छोटी उम्र में विवाह भी पढ़ाई छोड़ने का एक प्रमुख कारण होती है।

सुझाव:

  • माता-पिता और समुदाय द्वारा दिये गए समर्थन तथा आत्म-प्रेरणा ने लड़कियों को स्कूल जाने के लिये प्रेरित किया है।
    • अध्ययन के अनुसार, उपरोक्त कारकों के परिणामस्वरूप 88 प्रतिशत लड़कियाँ स्कूल जाने के लिये अभिप्रेरित हुई हैं।
  • जिन चार राज्यों में यह अध्ययन किया गया उनमें रहने वाले 40 प्रतिशत अभिभावकों को लड़कियों की शिक्षा हेतु चल रहे अभियानों के बारे में पता ही नहीं है। अतः इस संदर्भ में उन्हें जागरूक किया जाना भी आवश्यक है।
    • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में देश में लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु मुख्यमंत्री साइकिल योजना (Mukhya Mantri Cycle Yojana) तथा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao, Beti Padhao) सहित 21 अन्य योजनाएँ लागू हैं।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड