सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर लॉकडाउन का प्रभाव | 06 May 2020

प्रीलिम्स के लिये

‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’, COVID-19

मेन्स के लिये

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 की महामारी से उत्पन्न हुई चुनौतियों के कारण देश के ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ (Micro- Small and Medium Enterprises- MSMEs) सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। देश में अधिकांश MSME पहले से ही तरलता की कमी से जूझ रहे थे परंतु लॉकडाउन के कारण व्यापार प्रभावित होने से इनकी समस्या और अधिक बढ़ गई है। 

मुख्य बिंदु: 

  • MSME क्षेत्र के लगभग 99.5% उद्यम ‘सूक्ष्म’ (Micro) श्रेणी में आते हैं। 
  • वर्तमान में भारत के विभिन्न भागों में स्थित अनेक MSME लगभग 11 करोड़ लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराते हैं।
  • सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावज़ूद भी MSMEs का प्रत्यक्ष बैंकिंग क्षेत्र की पहुँच से दूर रहना इस क्षेत्र के संकट का एक बड़ा कारण है।  

MSMEs का निर्धारण: 

  • MSMEs का विनियमन ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम (Micro, Small and Medium Enterprises Development Act), 2006 के तहत किया जाता है। 
  • MSMEs का निर्धारण उद्यम शुरू करने और मशीनरी में लगे आर्थिक निवेश के आधार पर किया जाता है, हालाँकि इस प्रक्रिया में निवेश के संबंध में विश्वसनीय और सटीक आँकड़े न मिल पाने के कारण इसकी आलोचना भी होती रही है।
  • फरवरी 2018 में केंद्र सरकार द्वारा MSME के श्रेणी निर्धारण हेतु मानक को ‘निवेश’ से बदलकर ‘वार्षिक कारोबार' करने का निर्णय लिया गया था, हालाँकि इस परिवर्तन को अभी प्रत्यक्ष रूप से लागू नहीं किया गया है।
  • सरकार द्वारा प्रस्तावित नई परिभाषा के अनुसार, 5 करोड़ रुपए से कम वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘सूक्ष्म’ उद्यम की श्रेणी में, 5-75 करोड़ रुपए के वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘लघु’ उद्यम की श्रेणी में और 75-250 करोड़ रुपए के वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘मध्यम’ उद्यम की श्रेणी में रखा गया है।

भारत में MSMEs की स्थिति:

  • वित्तीय वर्ष 2018-19 के आँकड़ों के अनुसार, MSME के तहत भारत में लगभग 6.34 उद्यम सक्रिय हैं, इनमें से अधिकांश (लगभग 51%) देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं।
  • वर्तमान में MSMEs लगभग 11 करोड़ लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराते हैं हालाँकि इनमें से अधिकांश (लगभग 55%) रोज़गार शहरी क्षेत्रों में स्थित MSME द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।  
  • वर्तमान में MSMEs के तहत लगभग 99.5% उद्यम ‘सूक्ष्म’ श्रेणी के हैं, सूक्षम उद्यमों से आशय सामान्यतः उन छोटे उद्यमों से है जिनका संचालन एक व्यक्ति (महिला अथवा पुरुष) द्वारा अपने घर से किया जाता है। 
  • देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ‘सूक्ष्म उद्यमों’ की संख्या समान है परंतु ‘लघु और मध्यम’ श्रेणी (कुल MSMEs का लगभग 0.5%) के अधिकांश उद्यम शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं, जो लगभग 5 करोड़ कामगारों के लिये रोज़गार उपलब्ध कराते हैं। 

समाज के विभिन्न वर्गों तक MSMEs की पहुँच: 

  • वर्तमान में देश में MSME क्षेत्र के 66% उद्यम समाज के निचले वर्ग से जुड़े लोगों द्वारा संचालित किये जाते हैं। 
  • इनमें से 12.5% अनुसूचित जाति, 4.1% अनुसूचित जनजाति और 49.7% अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं। 
  • सभी श्रेणियों के MSMEs के कर्मचारियों में लगभग 80% पुरुष और मात्र 20% ही महिलाएँ हैं। 
  • भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो देश के केवल 7 राज्यों में ही लगभग 50% MSMEs स्थित हैं।
  • इनमें उत्तर प्रदेश (14%), पश्चिम बंगाल (14%), तमिलनाडु (8%), महाराष्ट्र (8%), कर्नाटक (6%), बिहार (5%) और आंध्र प्रदेश (5%) हैं।

MSMEs की मुख्य चुनौतियाँ:

  • आँकड़ों का अभाव: 
    • देश में सक्रिय MSMEs सामान्यतः बहुत ही छोटे स्तर पर कार्य करते हैं, जिसके कारण इनमें से अधिकांश का किसी प्रकार का पंजीकरण नहीं कराया गया है।
    • अधिकांश MSMEs, वस्तु और सेवा कर (GST) की पहुँच से बाहर है और वे किसी प्रकार का खाता बनाने, कर देने या अन्य नियमों का पालन करने आदि में भी अधिक सक्रिय नहीं हैं। 
    • इस प्रक्रिया में उनकी कुछ बचत तो होती है परंतु संकट की स्थिति में किसी ठोस आँकड़े के अभाव में ऐसे उद्यमों को सहायता पहुँचा पाना सरकार के लिये भी एक चुनौती बन जाती है।
      • उदाहरण के लिये वर्तमान आर्थिक संकट के बीच कुछ विकसित देशों में सरकारों ने छोटे उद्यमों में मज़दूरी सब्सिडी और अतिरिक्त ऋण उपलब्ध कराया है, परंतु यह इसलिये संभव हो सका क्योंकि वहाँ छोटे उद्यमों के बारे में भी विश्वसनीय आँकड़े उपलब्ध थे।
  • आर्थिक चुनौतियाँ:  
    • MSME क्षेत्र में वित्तपोषण की कमी इस क्षेत्र के लिये सबसे सबसे बड़ी चुनौती है, वर्ष 2018 में जारी ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम’ (International Finance Corporation- IFC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, MSME क्षेत्र को औपचारिक बैंकिग प्रणाली द्वारा MSMEs की कुल आवश्यकता का एक-तिहाई (लगभग 11 लाख करोड़ रुपए) से कम ही ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
    • अर्थात् MSMEs को अधिकांश ऋण अनौपचारिक स्रोतों से प्राप्त होता है, यही कारण है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा MSME क्षेत्र में तरलता बढ़ाने के प्रयासों के परिणाम बहुत ही सीमित होते हैं।
    • भुगतान में बिलंब होना MSMEs के लिये दूसरी बड़ी चुनौती है चाहे वह खरीदारों से हो (जिसमें सरकारी संस्थान भी शामिल हैं) या GST रिफंड आदि के तहत मिलने वाली राशि।

MSMEs पर COVID-19 का प्रभाव:  

  • विशेषज्ञों के अनुसार, COVID-19 महामारी के पहले से ही MSMEs की आय में गिरावट और अन्य कई समस्याओं से जूझ रहे थे, परंतु लॉकडाउन के बाद कई उद्यमों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह उठने लगे हैं।
  • हाल ही में जारी एक सर्वे में ‘लघु और मध्यम’ श्रेणी के केवल 7% उद्यमों ने माना कि वे वर्तमान में उपलब्ध पूंजी के माध्यम से तीन महीने से अधिक तक कारोबार बंद होने की स्थिति में भी उद्यम को बचाए रखने में सक्षम होंगे।
  • साथ ही अधिकांश श्रमिकों के पलायन के कारण इन उद्यमों को पुनः शुरू कर पाना एक बड़ी चुनौती होगी।

आगे की राह:  

  • RBI द्वारा MSME क्षेत्र में तरलता की कमी को दूर करने के कई प्रयास किये गए हैं, परंतु संरचनात्मक जटिलताओं (प्रत्यक्ष बैंकिंग प्रणाली से न जुड़ा होना, आँकड़ों का आभाव) के कारण इसके सीमित प्रभाव दिखाई दिये हैं।
  • सरकार कर में कटौती, रिफंड प्रक्रिया में तेज़ी के साथ विभिन्न योजनाओं (जैसे- पीएम किसान, जन धन योजना आदि) के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में तरलता और MSME उत्पादों की मांग में वृद्धि कर MSMEs को सहायता पहुँचा सकती है।
  • MSMEs को दिया गया अधिकांश ऋण संपत्ति (Property) के मूल्य पर आधारित होता है परंतु वर्तमान में COVID-19 महामारी के कारण संपत्तियों के मूल्यों में भारी गिरावट हुई है, जो नए ऋण जारी होने में एक बाधा बन गया है।
  • ऐसे में यदि सरकार की तरफ से MSME ऋण के लिये एक ‘क्रेडिट गारंटी’ (Credit Guarantee) जारी की जाती है तो यह MSMEs के लिये काफी मददगार साबित हो सकती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस