लियोपोल्ड द्वितीय: औपनिवेशिक हिंसा का प्रतीक | 10 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये

लियोपोल्ड द्वितीय, एडवर्ड कॉलस्टन, विंस्टन चर्चिल

मेन्स के लिये

विभिन्न देशों की औपनिवेशिक नीतियाँ, भारत पर उपनिवेश का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नस्लभेद को लेकर अमेरिका में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के चलते बेल्जियम में प्रदर्शनकारियों ने लियोपोल्ड द्वितीय (Leopold II) की प्रतिमा को गिरा  दिया है, जिनकी हिंसक और शोषक नीतियों का प्रयोग बेल्जियम को समृद्ध बनाने के लिये किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मृत्यु के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शन अब यूरोप के विभिन्न देशों में भी फैल गया है। ब्रिटेन और बेल्जियम जैसे देशों में यह आंदोलन आम लोगों को अपने देश में उपनिवेश के हिंसक इतिहास पर बात करने के लिये प्रेरित कर रहा है।

कौन थे लियोपोल्ड द्वितीय?

  • वर्ष 1865 से वर्ष 1909 के बीच शासन करने वाले राजा लियोपोल्ड द्वितीय (Leopold II) को बेल्जियम पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाला शासक माना जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि कई विशेषज्ञ कांगो पर प्रशासन के दौरान लियोपोल्ड द्वितीय की अत्याचारों और शोषण से भरी नीति की काफी आलोचना करते हैं।
  • कांगो पर अपने स्वामित्त्व के दौरान लियोपोल्ड द्वितीय ने लाखों की संख्या में कांगो के मूल निवासियों की क्रूर हत्याएँ कीं। माना जाता है कि लियोपोल्ड द्वितीय की क्रूर नीतियों के कारण तकरीबन 10 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी।
  • वर्ष 1908 में लियोपोल्ड द्वितीय ने कांगो को बेल्जियम सरकार के हाथों बेच दिया और यह क्षेत्र बेल्जियम का उपनिवेश बन गया।
  • इसके तकरीबन 52 वर्षों बाद वर्ष 1960 में कांगो ने स्वतंत्रता हासिल की और एक लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।
  • उपनिवेश स्थापित करने में शामिल अन्य राज्यों की तरह बेल्जियम में भी कांगो के लोगों से प्राप्त किया गया धन और संसाधन देश भर में सभी सार्वजनिक भवनों और स्थानों में देखे जा सकते हैं। 
    • जानकारों का मानना है कि राजधानी ब्रसेल्स (Brussels) समेत कई शहरों और कस्बों को बड़े पैमाने पर लियोपोल्ड द्वितीय द्वारा कांगो से प्राप्त किये गए धन और संसाधन से विकसित किया गया है।

नया नहीं है लियोपोल्ड द्वितीय से संबंधित विवाद

  • बेल्जियम राजशाही ने अपने औपनिवेशिक वर्षों के दौरान हुए अत्याचारों के लिये कभी माफी नहीं मांगी। 
  • बेल्जियम के एक विशिष्ट वर्ग ने सदैव ही यह प्रयास किया है कि लियोपोल्ड द्वितीय समेत देश के औपनिवेशिक इतिहास से संबंधित विभिन्न प्रतीकों को बेल्जियम के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों से हटा दिया जाए।
  • वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मृत्यु के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शनों ने बेल्जियम में भी इस मुद्दे को एक बार पुनः चर्चा में ला दिया है।
  • कई शोधकर्त्ता और इतिहासकार मानते हैं कि बेल्जियम सरकार के तहत कांगो की स्थिति बेहतर थी, जबकि कुछ का मत है कि लियोपोल्ड द्वितीय के शासनकाल के दौरान कांगो की स्थिति काफी बेहतर थी। वहीं कुछ आलोचक बेल्जियम की समग्र औपनिवेशिक नीतियों की आलोचना करते हैं।
  • जानकारों के अनुसार, आम सहमति का अभाव ही वह कारण है जिसकी वजह से बेल्जियम के हिंसक औपनिवेशिक इतिहास पर देश में अधिक गंभीर और व्यापक रूप से चर्चा नहीं की गई।

लियोपोल्ड द्वितीय की प्रतिमा हटाने का पक्ष

  • बेल्जियम में ऐसा एक बड़ा वर्ग है जो मानता है कि बच्चों और महिलाओं के विरुद्ध की गई हिंसा समेत कांगों के मूल निवासियों की क्रूर हत्या में लियोपोल्ड द्वितीय की भूमिका के कारण उनकी प्रतिमा को सभी सार्वजनिक स्थानों से हटा दिया जाना चाहिये, क्योंकि इस प्रकार के प्रतीक औपनिवेशिक काल के दौरान हुई हिंसा का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
  • बेल्जियम समेत विश्व भर में जारी विरोध प्रदर्शनों के कारण उपनिवेश और नस्लभेद के हिंसक अतीत का प्रतिनिधित्त्व करने वाले अन्य प्रतीकों को भी हटाया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 1960 में कांगो की आज़ादी के बाद कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य की राजधानी किंशासा (Kinshasa) में लियोपोल्ड द्वितीय की प्रतिमा को हटा दिया गया था।

संबंधित घटनाएँ

  • एडवर्ड कॉलस्टन (Edward Colston): हाल ही में नस्लभेद की निंदा करते हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रदर्शनकारियों द्वारा 17वीं शताब्दी के दास व्यापारी एडवर्ड कॉलस्टन (Edward Colston) की मूर्ति को गिरा दिया गया। एडवर्ड कॉलस्टन रॉयल अफ्रीकन कंपनी (Royal African Company-RAC) के एक शीर्ष अधिकारी थे, जिसने हज़ारों की संख्या में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को दास/गुलाम के तौर पर कई देशों में पहुँचाया, एक अनुमान के अनुसार, रॉयल अफ्रीकन कंपनी (RAC) में रहते हुए एडवर्ड कॉलस्टन ने लगभग 84000 दासों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया, जिसमें से लगभग 20000 दासों की मृत्यु रास्ते में ही हो गई थी। जहाँ एक ओर कुछ लोग एडवर्ड कॉलस्टन को एक दास व्यापारी के रूप में देखते हैं, वहीं कुछ लोग इन्हें एक लोकोपकारी और समाजसेवी के रूप में भी देखते हैं। दरअसल अफ्रीकी दासों की तस्करी करने वाली ब्रिटिश कंपनियों के लिये ब्रिस्टल, लिवरपूल, ग्लासगो और लंदन प्रमुख बंदरगाह थे। इसीलिये दास व्यापारी और जहाज़ कंपनियों के मालिक इन शहरों की आय का एक प्रमुख स्रोत थे। चूँकि एडवर्ड कॉलस्टन भी इसी प्रकार का एक दास व्यापारी था, इसलिये उसके ब्रिस्टल और लंदन जैसे शहरों के विकास में काफी योगदान दिया और शहर में स्कूल तथा अनाथालय खोले। हालाँकि इन तथ्यों के बावजूद यह नकारा नहीं जा सकता कि एडवर्ड कॉलस्टन एक दास व्यापारी थे और वे मौजूदा दौर में औपनिवेशिक गुलामी का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
  • विंस्टन चर्चिल: एक अन्य घटना में लंदन में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) की प्रतिमा के साथ तोड़ फोड़ की गई और उनकी प्रतिमा पर प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर ‘नस्लवादी’ (Racist) लिखा। उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल पर इतिहासकार और शोधकर्त्ता नस्लवादी तथा साम्राज्यवादी नीतियों का आरोप लगते हैं जिसके कारण ब्रिटिश भारत में कई लोगों की मृत्यु हो गई थी। विदित हो कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom-UK) की जीत का श्रेय विंस्टन चर्चिल को ही दिया जाता है। असल में विंस्टन चर्चिल एक पूर्व सैन्य अधिकारी थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस