विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार | 16 May 2022

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक कोविड शिखर सम्मेलन, कोविड-19, ट्रिप्स, WHO।

मेन्स के लिये:

वैश्विक कोविड शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दूसरे वैश्विक कोविड वर्चुअल शिखर सम्मेलन को संबोधित किया, जहाँ उन्होंने WHO से संबंधित सुधारों पर ज़ोर दिया।

  • भारत सरकार ने इस वर्ष (2021-22) G20 और BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों पर WHO में सुधार की आवश्यकता को बार-बार दोहराया है। WHO में सुधारों के लिये भारत के आह्वान का समर्थन विशेष रूप से कोविड-19 महामारी से प्रारंभिक रूप से निपटने के बाद दुनिया भर के देशों द्वारा किया गया है।

भारत द्वारा सुझाए गए सुधार:

  • अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ (Public Health Emergency of International Concern- PHEIC) घोषणा प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाना:
    • PHEIC की घोषणा करने के लिये स्पष्ट मापदंडों के साथ वस्तुनिष्ठ मानदंड तैयार करने की आवश्यता है।
    • घोषणा प्रक्रिया में पारदर्शिता और तत्परता पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
    • PHEIC का तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जो:
      • गंभीर, अचानक, असामान्य या अप्रत्याशित हो।
      • प्रभावित राज्य की राष्ट्रीय सीमा से परे सार्वजनिक स्वास्थ्य के निहितार्थ हो।
      • जिसमें तत्काल अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता हो।
  • वित्तपोषण:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यक्रम संबंधी गतिविधियों के लिये अधिकांश वित्तपोषण अतिरिक्त बजटीय योगदान से आता है, जो स्वैच्छिक प्रकृति के होते हैं और इन्हें सामान्य रूप से निर्धारित किया जाता है। WHO को इन फंडों के उपयोग में बहुत कम लचीलापन प्राप्त है।
    • यह सुनिश्चित करने किया जाना चाहिये’ कि अतिरिक्त बजटीय या स्वैच्छिक योगदान की आवश्यकता कहाँ सबसे अधिक है। WHO के पास उन क्षेत्रों में इसके उपयोग के लिये आवश्यक लचीलापन है। 
    • WHO के नियमित बजट को बढ़ाने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि विकासशील देशों पर भारी वित्तीय बोझ आरोपित किये बिना WHO की अधिकांश मुख्य गतिविधियों को इससे वित्तपोषित किया जा सके।
  • वित्तपोषण तंत्र और जवाबदेही ढाँचे की पारदर्शिता सुनिश्चित करना:
    • ऐसा कोई सहयोगी तंत्र नहीं है जिसमें सदस्य राज्यों के परामर्श से वास्तविक परियोजनाओं और गतिविधियों पर निर्णय लिया जाता है तथा वित्तीय मूल्य एवं सदस्य राज्यों की प्राथमिकताओं के अनुसार परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं या उनमें हो रही असामान्य देरी के संबंध में न ही कोई समीक्षा होती है। 
    • मज़बूत और सुरक्षित वित्तीय जवाबदेही ढाँचे की स्थापना से वित्तीय प्रवाह में अखंडता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
    • बढ़ी हुई जवाबदेही को देखते हुए डेटा रिपोर्टिंग और वित्त के वितरण के संबंध में उचित पारदर्शिता सुनिश्चित किये जाने की भी आवश्यकता है।
  • WHO और सदस्य राज्यों की प्रतिक्रिया क्षमता में वृद्धि:
    • IHR 2005 के कार्यान्वयन ने सदस्य राज्यों के बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचे में महत्त्वपूर्ण कमियों को उजागर किया है। यह कोविड-19 महामारी से निपटने में उनकी क्षमता को देखते हए और अधिक स्पष्ट हो गया है।
    • यह आवश्यक है कि WHO द्वारा अपने सामान्य कार्यों के तहत की जाने वाली कार्यक्रम संबंधी गतिविधियों में IHR 2005 के तहत उन आवश्यक सदस्य राज्यों में क्षमता निर्माण को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जहाँ सदस्य राज्यों द्वारा की गई IHR 2005 पर स्व-रिपोर्टिंग के आधार पर कमी पाई जाती है।
  • WHO के प्रशासनिक ढाँचे में सुधार:
    • एक तकनीकी संगठन होने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन में अधिकांश कार्य स्वतंत्र विशेषज्ञों से बनी तकनीकी समितियों द्वारा किये जाते हैं। साथ ही इसके अलावा बीमारी के प्रकोप से जुड़े बढ़ते जोखिमों को देखते हुए WHO स्वास्थ्य आपात स्थिति कार्यक्रम (WHE) के प्रदर्शन के लिये ज़िम्मेदार स्वतंत्र निरीक्षण और सलाहकार समिति (IOAC) की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
    • WHO से मिलने वाली तकनीकी सलाह और सिफारिशों के आधार पर कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार राज्यों के लिये WHO के कामकाज में सदस्य राज्यों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
    • सदस्य राज्यों द्वारा प्रभावी पर्यवेक्षण सुनिश्चित करने हेतु कार्यकारी बोर्ड की स्थायी समिति जैसे विशिष्ट तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • IHR के कार्यान्वयन में सुधार:  
    • अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (International Health Regulations- IHR) 2005 के तहत स्व-रिपोर्टिंग सदस्य राज्यों का एक दायित्व है। यद्यपि IHR के कार्यान्वयन की समीक्षा स्वैच्छिक है।
      • IHR (2005) एक बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी समझौते का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें WHO के सभी सदस्य राज्यों सहित विश्व भर के 196 देश शामिल हैं।
      • इन विनियमों का उद्देश्य गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों (जिनमें एक देश से दूसरे देश में प्रसारित होने तथा मानव जाति के समक्ष जोखिम उत्पन्न करने की संभावना हो) को रोकने और उन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मदद करना है।
    • IHR कार्यान्वयन की समीक्षा स्वैच्छिक आधार पर जारी रहनी चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढाने के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित करना भी महत्त्वपूर्ण है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को विकासशील देशों के उन क्षेत्रों में सहायता हेतु निर्देशित किया जाना चाहिये जिनकी पहचान IHR के क्रियान्वयन में आवश्यक क्षमता की कमी वाले क्षेत्र के रूप में की गई है।
  • चिकित्सीय सुविधाओं, टीके और निदान तक पहुँच:  
    • यह महसूस किया गया है कि दोहा घोषणा के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये ट्रिप्स (TRIPS) समझौतों में प्रदान की गई छूट, कोविड-19 महामारी जैसे संकटों से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकती है।
    • कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने के लिये सभी साधनों तक उचित, वहनीय और समान पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है और इस प्रकार उनके आवंटन हेतु एक रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है।
  • संक्रामक रोगों और महामारी के प्रबंधन हेतु वैश्विक ढाँचे का निर्माण:
    • यह आवश्यक हो गया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों, अवसंरचनात्मक तैयारी, मानव संसाधन और परीक्षण एवं निगरानी प्रणाली जैसी प्रासंगिक स्वास्थ्य प्रणालियों की क्षमताओं के संदर्भ में सदस्य राज्यों का समर्थन किया जाए तथा तथा इस संदर्भ में एक निगरानी तंत्र की स्थापना की जाए।
    • महामारी की संभावना वाले संक्रामक रोगों के लिये तैयारी और प्रतिक्रिया के संदर्भ में देशों की क्षमता में वृद्धि की जानी चाहिये, जिसमें प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मार्गदर्शन तथा स्वास्थ्य आपात के लिये आर्थिक उपायों पर एक बहु-विषयक दृष्टिकोण (जिसमें स्वास्थ्य व प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ सामाजिक विज्ञान भी शामिल है) का समावेश हो।
  • महामारी प्रबंधन हेतु वैश्विक भागीदारी की आवश्यकता:
    • नए इन्फ्लुएंज़ा विषाणुओं के कारण मानव जाति में रोगों के अत्यधिक प्रसार के जोखिम की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में वैश्विक समुदाय द्वारा तत्काल इस समस्या के समाधान हेतु साहसिक प्रयास किये जाने और हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सतर्कता एवं तैयारियाँ सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।
    • वैश्विक महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया संबंधी क्षमता में सुधार तथा भविष्य में ऐसी किसी भी महामारी का सामना करने की हमारी क्षमता को मज़बूती प्रदान करना वैश्विक भागीदारी का प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू