भारत में तकनीकी मंदी की आशंका | 13 Nov 2020

प्रिलिम्स के लिये 

भारतीय रिज़र्व बैंक, सकल घरेलू उत्पाद, तकनीकी मंदी, नाउकास्ट, व्यापार चक्र

मेन्स के लिये

तकनीकी मंदी का अर्थ और निहितार्थ, भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा नवंबर माह के लिये जारी हालिया मासिक बुलेटिन के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 8.6 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया जा सकता है।

  • इस आधार पर रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन में कहा है कि भारत मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में तकनीकी मंदी (Technical Recession) में प्रवेश कर सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • रिज़र्व बैंक ने नवंबर माह के अपने मासिक बुलेटिन में पहली बार ‘नाउकास्ट’ (Nowcast) जारी किया है, जिसके अनुमान के मुताबिक मौजूद वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में संकुचन हो सकता है।
    • प्रायः भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और इसी तरह के अन्य संस्थानों द्वारा पूर्वानुमान अथवा ‘फोरकास्ट’ (Forecast) जारी किया जाता है, किंतु रिज़र्व बैंक ने पहली बार आधुनिक प्रणाली का उपयोग कर ‘नाउकास्ट’ (Nowcast) जारी किया है, जिसमें एकदम निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था की स्थिति की बात की गई है। इस तरह नाउकास्ट में एक प्रकार से वर्तमन की ही बात की जाती है।
  • ध्यातव्य है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भी भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया था, जो कि बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन था।

क्या होती है ‘तकनीकी मंदी’?

  • सरल शब्दों में ‘तकनीकी मंदी’ का अर्थ ऐसी स्थिति से होता है जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों तक संकुचन देखने को मिलता है।
  • किसी भी अर्थव्यवस्था में जब वस्तुओं और सेवाओं का समग्र उत्पादन, जिसे आमतौर पर GDP के रूप में मापा जाता है- एक तिमाही से दूसरी तिमाही तक बढ़ता है, तो इसे अर्थव्यवस्था के विस्तार की अवधि (Expansionary Phase) कहा जाता है।
    • वहीं इसके विपरीत जब वस्तुओं और सेवाओं का समग्र उत्पादन एक तिमाही से दूसरी तिमाही में कम हो जाता है तो इसे अर्थव्यवस्था में मंदी की अवधि (Recessionary Phase) कहा जाता है।
    • इस तरह ये दोनों स्थितियाँ एक साथ मिलकर किसी अर्थव्यवस्था में ‘व्यापार चक्र’ (Business Cycle) का निर्माण करती हैं।
  • यदि किसी अर्थव्यवस्था में मंदी की अवधि (Recessionary Phase) लंबे समय तक रहती है तो यह कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था में मंदी (Recession) की स्थिति आ गई है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जब अर्थव्यवस्था में GDP एक लंबी अवधि तक संकुचित होती रहती है, तो माना जाता है कि अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में पहुँच गई है।
    • हालाँकि मंदी की अवधि की कोई सार्वभौमिक स्वीकृत समयावधि नहीं है, यानी यह तय नहीं है कि कितने समय तक अर्थव्यवस्था में संकुचन को मंदी कहा जाएगा।
    • साथ ही यहाँ यह भी तय नहीं है कि क्या GDP को मंदी का निर्धारण करने का एकमात्र कारक माना जा सकता है।
    • कई जानकार मानते हैं कि मंदी का निर्धारण करते समय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के समग्र उत्पादन के साथ-साथ अन्य कारकों जैसे- बेरोज़गारी और निजी खपत आदि का ध्यान रखा जाना चाहिये।
  • इन्हीं कुछ समस्याओं से बचने के लिये अर्थशास्त्री प्रायः लगातार दो तिमाहियों में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (Real GDP) में गिरावट आने को ‘तकनीकी मंदी’ के रूप में संबोधित करते हैं।

कितनी लंबी होती है मंदी की अवधि? 

  • आमतौर पर मंदी कुछ तिमाहियों तक ही रहती है और यदि इसकी अवधि एक वर्ष या उससे अधिक हो जाती है तो इसे अवसाद अथवा महामंदी (Depression) कहा जाता है।
  • हालाँकि अवसाद अथवा महामंदी की स्थिति किसी भी अर्थव्यवस्था में काफी दुर्लभ होती है और कम ही देखी जाती है। ज्ञात हो कि आखिरी बार अमेरिका में 1930 के दशक में महामंदी (Depression) की स्थिति देखी गई।
  • वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि भारतीय अर्थव्यवस्था को अवसाद अथवा महामंदी (Depression) की स्थिति में जाने से बचना है और मंदी की स्थिति से बाहर निकलना है तो जल्द-से-जल्द महामारी के प्रयास को रोकना होगा।

भारत के संदर्भ 

  • रिज़र्व बैंक के अनुमान के अनुसार, मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में संकुचन देखने को मिल सकता है, जबकि वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया था।
  • इस तरह हम कह सकते हैं कि भारत अब आधिकारिक तौर पर ‘तकनीकी मंदी’ की स्थिति में प्रवेश करने वाला है, हालाँकि इस मंदी को अप्रत्याशित नहीं माना जाना चाहिये, क्योंकि कोरोना वायरस महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत आर्थिक मोर्चे पर काफी प्रभावित हुआ है।
  • मार्च माह में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही कई अर्थशास्त्रियों ने यह घोषणा कर दी थी कि भारत मंदी की चपेट में आ सकता है, हालाँकि यहाँ हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि महामारी की शुरुआत से पूर्व भी भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कुछ संतोषजनक नहीं रहा था।
  • अधिकांश अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में भी भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी अधिक संकुचन देखने को मिल सकता है।

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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस