नवजात मृत्यु : भारत की चिंताजनक स्थिति | 28 Apr 2018

संदर्भ 
फरवरी में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन निधि (यूनिसेफ) ने नवजातों के लिये भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की गंभीर स्थिति को उजागर करने वाली एक रिपोर्ट जारी की। प्रत्येक 1,000 जीवित जन्मों पर 25.4 मौतों की औसत नवजात मृत्यु दर के साथ, भारत निम्न मध्यम आय वाले देशों की सूची का नेतृत्व करता है। यह संख्या प्रतिवर्ष 6.4 मिलियन या पूरी दुनिया में होने वाली नवजात मौतों की एक चौथाई होती है।

भारत की स्थिति

  • यद्यपि भारत आर्थिक समृद्धि के मार्ग पर निर्विवाद रूप से बढ़ रहा है, लेकिन हर साल रोकी जा सकने वाली लाखों बच्चों की मौतें इस प्रगति को कमज़ोर कर देती हैं।
  • राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में डायरिया और निमोनिया हेतु टीकों को शामिल करने के साथ, भारत 1990 से 2006 के बीच पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर को 34% कम करने में सक्षम हो पाया था। 
  • लेकिन नवजातों की मृत्यु के कारण अलग-अलग होते हैं, अतः टीकाकरण से इन्हें रोक पाना मुमकिन नहीं होता।
  • अभी भी निमोनिया और डायरिया जैसे संक्रमणों से भारत में काफी नवजातों की मृत्यु होती है।
  • एक परिपूर्ण दुनिया में, समुदाय की देखभाल के लिये पर्याप्त कर्मचारियों, प्रशिक्षण और उपकरणों के साथ प्रत्येक स्वास्थ्य प्रणाली को पर्याप्त रूप से वित्त पोषित होना चाहिये।
  • वर्ष 2016 में (संख्या के संदर्भ में) नवजातों की मृत्यु के मामले में 6,40,000 मौतों के साथ भारत शीर्ष पर रहा। 
  • वैश्विक स्तर पर जन्म लेने के कुछ समय या दिनों में नवजातों की मृत्यु के 24% मामले भारत में दर्ज किये गए थे।  
  • वहीं, संख्या के संदर्भ में पाकिस्तान दूसरे स्थान पर है, जहाँ वर्ष 2016 में 2,48,000 नवजातों की जन्म के कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई।

समाधान 

  • इनकी रोकथाम के लिये गर्भावस्था के दौरान माता के स्वास्थ्य पर ध्यान देना और प्रशिक्षित डॉक्टरों या नर्सों की निगरानी में प्रसव संपन्न करवाना प्रमुख समाधान है। 
  • भारत में इसके लिये जननी सुरक्षा योजना जैसे कार्यक्रम प्रारंभ किये गए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों में इन कार्यक्रमों के विस्तार की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा, स्वास्थ्य शिक्षा प्रणाली के बाहर भी महिला साक्षरता दर जैसे कुछ कारक हैं जिनसे स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। लेकिन शिक्षा के स्तर में बदलाव धीरे-धीरे आएगा। 
  • केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य इस बात के उदाहरण हैं कि इन कारकों पर ध्यान केंद्रित करके भारतीय परिस्थितियों में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर को 15 प्रति 1000 जीवित जन्मों से नीचे लाया जा सकता है।