परिवार कल्याण समिति दहेज के उत्पीड़न मामलों का मूल्यांकन नहीं कर सकती : उच्चतम न्यायालय | 15 Sep 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने आईपीसी की धारा 498 A दहेज प्रताड़ना संबंधी अपने जुलाई 2017 के आदेश को संशोधित किया है।

क्या है हालिया निर्णय?

  • उच्चतम न्यायालय ने धारा 498 A दहेज प्रताड़ना संबंधी मामलों में गिरफ्तारी हो या नहीं यह तय करने का अधिकार पुलिस को वापस दे दिया है।
  • उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने अपने पुराने फैसले को पलटते हुए कहा है कि दहेज उत्पीड़न के मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी में अब परिवार कल्याण समिति की कोई भूमिका नहीं होगी। न्यायालय का कहना है कि ऐसे पैनलों की स्थापना आपराधिक प्रक्रिया संहिता से परे है।
  • हालाँकि,उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पति और उसके रिश्तेदारों के सरंक्षण के लिये जमानत के संदर्भ में अभी भी अदालत के पास शक्तियाँ मौजूद है।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायालय इस तरह के आपराधिक मामलों की जाँच के लिये सिविल कमेटी नियुक्त नहीं कर सकता, इसकी इज़ाज़त नहीं दी जा सकती।
  • इस फैसले के बाद पुलिस अब इसके तहत किसी महिला की शिकायत पर उसके पति और ससुराल वालों को तुरंत गिरफ्तार भी कर सकती है।
  • यह फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम.खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनाया है।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हर राज्य के DGP इस मुद्दे पर पुलिस अफसरों व कर्मियों में जागरुकता फैलाएँ और उन्हें बताया जाए कि उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तारी को लेकर जो निर्णय दिया है वह क्या है, साथ ही न्यायालय ने हर राज्य के पुलिस महानिदेशक को ऐसे अधिकारियों को कठोर प्रशिक्षण प्रदान करने का आदेश दिया।

NCRB के डेटा

  • मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने तर्क दिया कि 27 जुलाई के आदेश को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो ( NCRB) द्वारा प्रकाशित आँकड़े थे, जिसमें उल्लेख किया गया था कि केवल वर्ष 2012 में ही दहेज़ उत्पीड़न के लिये 1,97,762 पति औरउसके  रिश्तेदारों को गिरफ्तार किया गया था।
  • मुख्य न्यायाधीश ने तर्क दिया कि दोष धारा 498A के साथ नहीं है, जिसे 1983 में संसद द्वारा विवाहित महिलाओं की दहेज के खिलाफ सुरक्षा के लिये पेश किया गया था।
  • दरअसल, बुराई पुलिस को प्राप्त गिरफ्तारी के अधिकार के दुरुपयोग से जुड़ी है, जो इस पर विचार से सम्राटों की तरह व्यवहार करते हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं"
  • उल्लेखनीय है कि IPC की धारा 498A एक संज्ञेय यानी गैर-जमानती अपराध है।