जनजातियों की शैक्षिक स्थिति में सुधार | 20 Jul 2019

चर्चा में क्यों?

केरल के सुदूर क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातीय आबादी राज्य साक्षरता मिशन (State Literacy Mission-SLM) के अंतर्गत 100% साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करने की राह पर अग्रसर है।

प्रमुख बिंदु

  • अपने प्रयासों के तहत, SLM ने प्रभावी स्कूली रणनीतियों को विकसित करने हेतु एक रूपरेखा के अंतर्गत समग्र (Samagra) के अलावा निम्नलिखित कार्यक्रम भी लागू किये हैं जिनका उद्देश्य हाशिये पर रहने वाले लोगों के मध्य निरक्षरता अंतराल को कम करना है-
    • वायनाड लिटरेसी इक्वीवैलेंसी (Wayanad Literacy Equivalency)
    • अट्टापदी लिटरेसी इक्वीवैलेंसी कार्यक्रम (Attappadi Literacy Equivalency programmes)
  • इन पहलों के माध्यम से वर्ष 2020 के अंत तक वायनाड में आदिवासी लोगों के बीच 100% साक्षरता सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी।
  • अब तक, साक्षरता अभियान ने वायनाड ज़िले की 2,000 बस्तियों के बीच अपनी पहुँच बनाई है।
  • दूसरे चरण में SLM ने 200 आदिवासी बस्तियों में 4,371 घरों का सर्वेक्षण किया और इनमें 3,133 महिलाओं सहित 5,342 व्यक्तियों को निरक्षर पाया।
  • शिक्षकों की मदद से 3,179 निवासियों जिनमें 2,590 महिलाएँ भी शामिल थीं, की साक्षरता परीक्षा ली गई और इस साक्षरता परीक्षा के दौरान उनमें प्रगति भी देखी गई।
  • अब परियोजना के अंतर्गत तीसरे चरण में शेष 1,517 आवासों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, और इसमें व्यापक जन भागीदारी देखी गई है। जल्द ही यहाँ भी कक्षाएँ शुरू हो जाएंगी।

जनजातीय शिक्षा में समकालीन चिंताएँ:

  • उच्च ड्रॉपआउट दर: विशेष रूप से माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक चरणों में जनजातीय छात्रों के बीच विद्यालय छोड़ने की दर बहुत अधिक है (स्कूल शिक्षा के आँकड़े, 2010-11 के अनुसार दसवीं कक्षा में 73 प्रतिशत, ग्यारहवीं कक्षा में 84 प्रतिशत और बारहवीं कक्षा में 86 प्रतिशत)।
    • RTE अधिनियम के पहले और उपरांत कार्यान्वित ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ जनजातीय समुदाय के छात्रों को पढ़ने, लिखने और अंकगणित में बुनियादी कौशल हासिल करने का अवसर नहीं देता।
  • 'कुशल’ शिक्षकों की कमी: RTE अधिनियम के तहत निर्धारित पात्रता मानदंड को पूरा करने वाले शिक्षकों की कमी भी जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा के अधिकार की पूर्ति में एक बाधा है। प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी के कारण जनजातीय छात्रों की उपलब्धि का स्तर कम रहता है।
  • जनजातीय छात्रों के लिये भाषायी बाधाएँ: भारत में अधिकांश जनजातीय समुदायों की अपनी मातृभाषा है, लेकिन अधिकांश राज्यों में, कक्षा शिक्षण के लिये आधिकारिक/क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग किया जाता है, जिन्हें प्राथमिक स्तर पर जनजातीय बच्चे नहीं समझ पाते।
  • घुमंतू जनजातियों की शिक्षा: घुमंतू जनजातियाँ मौसम, व्यवसायों और आजीविका के अवसरों के आधार पर लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर गमन करती रहती हैं। इस कारण इस समुदाय के बच्चे प्राथमिक स्तर की स्कूली शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

सरकार द्वारा की गई पहलें

  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय: वर्ष 2022 तक प्रत्येक आदिवासी क्षेत्र में नवोदय मॉडल पर आधारित आवासीय विद्यालय।
  • राजीव गांधी राष्ट्रीय फैलोशिप योजना (Rajiv Gandhi National Fellowship Scheme-RGNF): RGNF को वर्ष 2005-2006 में ST समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिये प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से लाई गई थी।
  • प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाएँ।
  • जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र: इस योजना का उद्देश्य ST छात्रों के कौशल को उनकी योग्यता और वर्तमान बाज़ार के रुझान के आधार पर विकसित करना है।

सिफारिशें

  • कोठारी आयोग (Kothari Commission) ने जनजातियों (ST) की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने पर ज़ोर दिया।
  • शाशा समिति (XaXa Committee) ने शिक्षा में लैंगिक असमानता को दूर करने पर अधिक ध्यान देने की सिफारिश की।
  • अभिभावकों में व्यवहार में परिवर्तन लाने हेतु जागरूकता अभियान, नुक्कड़ नाटक, शिविर परामर्श सत्र का आयोजन किया जाना चाहिये।
  • कैरियर या नौकरी उन्मुख पाठ्यक्रम पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।

स्थानीय शिक्षकों की भर्ती की जानी चाहिये जो आदिवासी संस्कृति और प्रथाओं को समझते हों तथा उनका सम्मान करते हों और इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि वे स्थानीय भाषा से अच्छी तरह से परिचित हों।

स्रोत: द हिंदू