वर्टिकल फार्मिंग | 25 Apr 2022

संदर्भ:

भारत हर दिन कुछ नया कर रहा है। साथ ही औद्योगिकीकरण में नाटकीय रूप से वृद्धि देखी जा रही है जिसके कारण कृषि योग्य भूमि अधिक जोखिम में हैं। भारत के संदर्भ में वर्टिकल फार्मिंग इन सभी समस्याओं का समाधान  है।

वर्टिकल फार्मिंग:

  • पृष्ठभूमि:
    • 1915 में गिल्बर्ट एलिस बेली ने वर्टिकल फार्मिंग शब्द गढ़ा और उन्होंने इस पर एक किताब लिखी।
    • इस आधुनिक अवधारणा को पहली बार वर्ष 1999 में प्रोफेसर डिक्सन डेस्पोमियर द्वारा प्रस्तावित किया गया था। उनकी अवधारणा इस विचार पर केंद्रित थी कि शहरी क्षेत्रों को अपना भोजन खुद उगाना चाहिये जिससे परिवहन के लिये आवश्यक समय और संसाधनों की बचत हो सके।
  • परिचय: 
    •  वर्टिकल फार्मिंग में  पारंपरिक खेती की तरह ज़मीन पर क्षैतिज रूप से खेती करने के बजाय ऊर्ध्वाधर रूप में  खेती की जाती है  तथा  भूमि और जल संसाधनों पर अत्यधिक प्रभाव डाले बिना ऊर्ध्वाधर परतों में फसल उगाई जाती हैं। 
    • इसमें मिट्टी रहित कृषि तकनीक व अन्य कारक शामिल हैं।
    • एरोपोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स जैसी ऊर्ध्वाधर कृषि प्रणालियाँ 'संरक्षित खेती' के व्यापक दायरे में आती हैं, जहाँ एक कारक पानी, मिट्टी, तापमान, आर्द्रता आदि जैसे कई कारकों  को नियंत्रित कर सकता है।
    • बड़े पैमाने पर संरक्षित खेती उपभोक्ता के नज़दीक भोजन उपलब्ध कराकर हमारी फार्म-टू-प्लेट आपूर्ति शृंखला को छोटा और अनुकूलित करने की एक विशाल क्षमता प्रदान कर सकती है तथा इस तरह हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सुधार के लिये एक लंबा मार्ग तय कर आयात निर्भरता को कम कर सकती है।

वर्टिकल फार्मिंग के प्रकार:

  • हाइड्रोपोनिक्स:
    • हाइड्रोपोनिक्स जल आधारित, पोषक तत्त्वों के घोल में पौधों को उगाने की एक विधि है।
    • इस विधि में जड़ प्रणाली को एक अक्रिय माध्यम जैसे- पेर्लाइट, मिट्टी के छर्रों, पीट, काई या वर्मीक्यूलाइट का उपयोग करके उगाया जाता है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य ऑक्सीजन तक पहुँच प्रदान करना है जो उचित विकास के लिये आवश्यक है।

Hydroponics

  • एरोपोनिक्स: 
    • एरोपोनिक्स खेती का एक पर्यावरण के अनुकूल तरीका है जिसमें जड़ें हवा में लटकी रहती हैं और पौधे बिना मिट्टी के आर्द्र वातावरण में बढ़ते हैं।
    • यह हाइड्रोपोनिक्स का एक प्रकार है जहाँ पौधों के बढ़ने का माध्यम और बहते पानी दोनों अनुपस्थित होते हैं।
      • इस विधि में पौधों की जड़ों पर पानी और पोषक तत्त्वों के घोल का छिड़काव किया जाता है। 
      • यह तकनीक किसानों को ग्रीनहाउस के अंदर आर्द्रता, तापमान, पीएच स्तर और जल चालकता को नियंत्रित करने में सक्षम बनाती है। 

Aeroponics

  • एक्वापोनिक्स:
    • एक्वापोनिक्स एक प्रणाली है जिसमें एक बंद प्रणाली के भीतर हाइड्रोपोनिक्स और जलीय कृषि की जाती है।
    • एक्वापोनिक्स प्रक्रिया में तीन जैविक घटक होते हैं: मछलियाँ, पौधे और बैक्टीरिया। 
      • इस प्रणाली में पौधों और मछलियों के बीच एक सहजीवी संबंध पाया जाता है; अर्थात् मछली का मल पौधों के लिये उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है, जबकि पौधे मछली हेतु जल को साफ करते हैं।

Aquaponics

वर्टिकल फार्मिंग का महत्त्व:

  • वित्तीय व्यवहार्यता: 
    • यद्यपि ऊर्ध्वाधर खेती/वर्टिकल फार्मिंग में शामिल प्रारंभिक पूंजी लागत आमतौर पर अधिक होती है लेकिन यदि संपूर्ण फसल उत्पादन की परिकल्पना आवश्यकतानुसार उचित तरीके से की जाए तो यह प्रक्रिया पूरी तरह से लाभ प्रदान करने वाली बन जाती है और पूरे वर्ष या किसी विशिष्ट अवधि के दौरान एक विशेष फसल को ऊर्ध्वाधर खेती के माध्यम से उगाने, उसकी कटाई करने तथा उत्पादन करने वित्तीय रूप से व्यवहार्य हो सकती है।
  • अत्यधिक जल कुशल:  
    • पारंपरिक कृषि पद्धतियों के माध्यम से उगाई जाने वाली फसलों की तुलना में वर्टिकल फार्मिंग विधि के माध्यम से उगाई जाने वाली सभी फसलें आमतौर पर 95% से अधिक जल कुशल होती हैं।
  • पानी की बचत:
    • भारत जैसे देश के लिये, जिसमें दुनिया के जल संसाधनों का लगभग 4% हिस्सा है, ऊर्ध्वाधर कृषि-आधारित प्रौद्योगिकियांँ न केवल हमारे खाद्य उत्पादन की दक्षता व उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं, बल्कि पानी की बचत के मामले में भी सुधार कर सकती हैं, जो बदले में अपने खाद्य उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर कार्बन-तटस्थता प्राप्त करने के भारत के महत्वाकाँक्षी लक्ष्यों को समर्थन और प्रोत्साहन देगा।
  • बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य: 
    • इसके अतिरिक्त चूंँकि अधिकांश फसलें "कीटनाशकों के उपयोग के बिना" उगाई जाती हैं, इससे "समय के साथ-साथ बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य की दिशा में सकारात्मक योगदान" प्रदान करता है; इसलिये उपभोक्ता शून्य-कीटनाशक उत्पादन की उम्मीद कर सकते हैं, जो ग्रह के लिये स्वस्थ, ताज़ा और टिकाऊ भी है।
  • रोज़गार:
    • अंत में इस बात पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण है कि संरक्षित खेती में हमारे देश के कृषि छात्रों के लिये नए रोज़गार, कौशल सेट और आर्थिक अवसर पैदा करने की क्षमता है, जो सीखने की अवस्था के अनुकूल होने के साथ तेज़ी से आगे बढ़ने में सक्षम है। 

आगे की राह

  • खाद्य सुरक्षा के लिये मिट्टी रहित तकनीकों को प्रोत्साहित करना: भूख से लड़ने और कुपोषण के बोझ से निपटने के लिये खाद्य उत्पादन व वितरण प्रणाली को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
    • एक्वापोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स के विकास में खाद्य सुरक्षा के सभी आयाम शामिल हैं।
    • सरकार इन विधियों को पारंपरिक खेती के लिये व्यवहार्य विकल्प के रूप में मानती है और इन तकनीकों को बड़ी संख्या में किसानों के लिये सस्ती बनाने में सहायता प्रदान करेगी।
  • ज्ञान और कौशल प्रदान करना: हालाँकि इन वैकल्पिक तकनीकों का उपयोग विभिन्न हितधारकों द्वारा किया जा सकता है, घरेलू उपयोग के लिये कृषि करने वाले किसानों व छोटे से लेकर बड़े पैमाने पर खेती करने वाले किसानों तक सुरक्षित, सफल व टिकाऊ कार्यान्वयन हेतु उनमें विशिष्ट ज्ञान तथा कौशल विकसित किया जाना चाहिये।
  • सतत् खेती को सुगम बनाना: भारत जैसे देश में कृषि भूमि पर लगातार दबाव बना रहता है, अतः इसे अन्य विकल्प के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
    • एरोपोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली के तहत खेती द्वारा भूमि की कमी को दूर कर स्थायी कृषि तकनीकों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
  • स्कूलों के लिये आगे की रणनीति: ऐसी प्रणालियाँ कठिन हैं लेकिन इन्हें बनाए रखना असंभव नहीं है, इन प्रणालियों की कम-से-कम बुनियादी समझ होना आवश्यक है।
    • स्कूली छात्रों को गणित, जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे मुख्य एसटीईएम विषयों के व्यावहारिक ज्ञान के साथ कृषि कार्य के रूप में स्कूलों में एक्वापोनिक सिस्टम स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस