उत्तर और पूर्वी भारत में उपयोग योग्य भूजल में गिरावट | 11 Apr 2019

चर्चा में क्यों?

आईआईटी-खड़गपुर, पश्चिम बंगाल और अथाबास्का (Athabasca) विश्वविद्यालय, कनाडा की एक टीम ने स्व-स्थाने (in-situ) और उपग्रह-आधारित माप का उपयोग कर पूरे भारत में राज्य-स्तर पर उपयोग योग्य भूजल भंडारण (Usable Ground Water Storage-UGWS) के प्रथम अनुमानों को संकलित किया है।

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘एडवांस इन वाटर रिसोर्सेज़’ नामक जर्नल में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि भारत के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में 2005 तथा 2013 के बीच उपयोग में लाए जाने योग्य भूजल में तेज़ी से गिरावट आई है जिससे गंभीर सूखा, खाद्य संकट और लाखों लोगों के लिये पीने योग्य जल की कमी का जोखिम बढ़ गया है।
  • शोध में पाया गया है कि असम, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में UGWS में तेज़ी से कमी हो रही है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, इन क्षेत्रों में कृषि खाद्य उत्पादन में वृद्धि के परिणामस्वरूप भूजल की मात्रा में तेज़ी से गिरावट आई है।
  • दूसरी ओर दक्षिणी और पश्चिमी राज्य जैसे-आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ में भूजल भंडारण प्रवृत्तियों में सुधार पाया गया है।
  • अनुमान है कि कुल भूजल का प्रतिवर्ष 8.5 क्यूबिक किलोमीटर (km3/वर्ष) का नुकसान हुआ है तथा पूर्वी भाग में कुल भूजल का 5 km3/वर्ष का नुकसान हुआ है।
  • लगभग 85 प्रतिशत ग्रामीण पेयजल की ज़रूरत और 65 प्रतिशत सिंचाई की ज़रूरत तथा 50 प्रतिशत शहरी पेयजल और औद्योगिक ज़रूरतों को भूजल से पूरा किया जाता है।
  • असम, जिसे जल-संपन्न माना जाता था, ने अपने उपयोग योग्य भूजल संसाधन का दो प्रतिशत खो दिया है और आने वाले वर्षों में सूखा और अकाल से पीड़ित होने की कगार पर है।
  • हरियाणा, जो कि 689 mm वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है, 3,593 cm के साथ प्रयोग में लाने योग्य भूजल का उच्चतम स्तर रखता है, जबकि हिमाचल में प्रतिवर्ष 1,147 mm वर्षा के साथ सबसे कम UGWS का स्तर 520 cm है।
  • अध्ययन के मुताबिक, UGWS में हो रही तेज़ी से कमी के कारण खाद्य उत्पादन और पीने के पानी की उपलब्धता में गिरावट आएगी। खाद्य उत्पादन तथा स्वच्छ पेयजल संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के दो प्रमुख लक्ष्य हैं।

स्रोत : द हिंदू बिज़नेस लाइन