अमेरिका ने परमाणु हथियार परीक्षण पुनः शुरू करने का आदेश दिया | 03 Nov 2025

प्रिलिम्स के लिये: परमाणु हथियार, व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT), परमाणु अप्रसार संधि (NPT), नो फर्स्ट यूज़ नीति, न्यू START, परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG)

मेंस के लिये: अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने के परिणाम और परमाणु शांति बनाए रखने तथा परमाणु वृद्धि को रोकने के लिये आवश्यक कदम। परमाणु हथियारों के उपयोग के संबंध में भारत का रुख।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

  • अमेरिकी राष्ट्रपति ने 33 वर्ष (1992 के बाद) के अंतराल के बाद अमेरिकी परमाणु हथियार परीक्षण फिर से शुरू करने का आदेश दिया है, जो वैश्विक परमाणु नीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।

वैश्विक परमाणु हथियार परीक्षण सुविधा की स्थिति क्या है?

  • शुरुआत: परमाणु युग की शुरुआत वर्ष 1945 में अमेरिका द्वारा एटमिक परीक्षणों और हिरोशिमा तथा नागासाकी पर बमबारी के साथ हुई, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हुआ, जबकि सोवियत संघ का 1949 का परीक्षण जल्दी ही शीत युद्ध के तनाव को बढ़ा गया।
  • परमाणु परीक्षण की आवृत्ति: वर्ष 1945 से 1996 तक, विश्व भर में 2,000 से अधिक परमाणु परीक्षण किये गए, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने 1998 में दो बार परीक्षण किया और उत्तर कोरिया ने वर्ष 2006–2017 के बीच छह बार परीक्षण किया।
    • अमेरिका ने अंतिम बार 1992 में चीन और फ्राँस ने वर्ष 1996 में और सोवियत संघ ने 1990 में परीक्षण किया था। रूस, जिसने सोवियत संघ के हथियार भंडार को विरासत में लिया, ने कभी भी परीक्षण नहीं किया।
  • परमाणु परीक्षण रोकने के कारण: सोवियत संघ द्वारा कज़ाखस्तान और आर्कटिक में तथा पश्चिमी देशों द्वारा प्रशांत द्वीपों में किये गए परमाणु परीक्षणों से विकिरण का संपर्क, भूमि का प्रदूषण और स्थायी स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय नुकसान हुआ।
    • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT- 1996) सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है ताकि तनाव को कम किया जा सके। रूस ने इसे वर्ष 2000 में अनुमोदित किया, लेकिन वर्ष 2023 में इसे रद्द कर दिया, जबकि अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर तो किये, लेकिन अनुमोदित नहीं किया।
  • परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने के कारण: मौजूदा और नए हथियारों की प्रभावकारिता की पुष्टि करने और प्रतिद्वंद्वी देशों को रणनीतिक संदेश देने के लिये परमाणु परीक्षण फिर से शुरू किया जा सकता है।

अमेरिका द्वारा परमाणु हथियार परीक्षण पुनः शुरू करने के क्या प्रभाव हो सकते हैं?

  • भू-राजनैतिक प्रभाव: अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षण नए वैश्विक हथियार दौड़ को बढ़ावा दे सकता है, जिससे रूस, चीन और अन्य देश भी परीक्षण फिर से शुरू कर सकते हैं और प्रमुख शक्तियों के बीच सैन्य तनाव बढ़ सकता है।
    • यह पाकिस्तान, उत्तर कोरिया या ईरान को अपने हथियार भंडार का विस्तार करने या परीक्षण करने के लिये भी प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता बाधित हो सकती है।
    • इससे भारत पर अपने रणनीतिक सिद्धांत, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के संदर्भ में, पर पुनर्विचार करने का दबाव पड़ सकता है।
    • यह कंप्यूटर सिमुलेशन से परे, उन्नत वारहेड और प्रक्षेपण प्रणाली का वास्तविक दुनिया में परीक्षण करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • कूटनीतिक निहितार्थ: CTBT, भले ही लागू न हो, फिर भी एक प्रमुख वैश्विक मानदंड बना हुआ है, परमाणु परीक्षण पुनः शुरू करना इसे कमज़ोर करेगा, लंबे समय से चले आ रहे निषेध (अस्वीकृति) को तोड़ेगा और वैश्विक हथियार निष्कासन प्रयासों और अप्रसार संधि (NPT) के उद्देश्यों में विश्वास को कम करेगा।
    • यह कूटनीतिक संवाद की तुलना में सैन्य प्रतिरोध (डिटरेंस) पर अमेरिका के ध्यान को बढ़ाता है और ट्रम्प के पहले के 'परमाणु त्रयी' या न्यूक्लियर ट्राइएड (Nuclear Triad) के आधुनिकीकरण प्रयासों के अनुरूप है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: परमाणु परीक्षण वायुमंडल में रेडियोधर्मी पदार्थ छोड़ सकते हैं, जिससे वायु, जल और मृदा सीज़ियम-137 और स्ट्रोंटियम-90 जैसे दीर्घायु समस्थानिकों से प्रदूषित हो जाते हैं।
    • इससे आसपास की आबादी में कैंसर, आनुवंशिक उत्परिवर्तन (जेनेटिक म्यूटेशन) और जन्म दोषों के जोखिम में भारी वृद्धि होती है।
  • वैश्विक निरस्त्रीकरण लक्ष्यों को कमज़ोर करना: यह वर्ष 2017 में अपनाई गई परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW) की भावना को कमज़ोर करता है और NPT तथा CTBT जैसी परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार संधियों के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को भी कमज़ोर कर सकता है।
  • नैतिक चिंताएँ: यह असुरक्षित समुदायों को असमान रूप से नुकसान पहुँचाता है, वैश्विक शांति को कमज़ोर करता है और CTBT जैसी निरस्त्रीकरण संधियों की भावना का उल्लंघन करता है।
    • विनाशकारी तरीकों से सुरक्षा प्राप्त करने का प्रयास, अहिंसा, न्याय और मानवता तथा प्रकृति के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी के सिद्धांतों के विपरीत है।

परमाणु हथियार नियंत्रण संधियाँ

  • परमाणु हथियारों के अप्रसार की संधि (NPT), 1968: इसका उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करना है। यह पाँच परमाणु हथियार संपन्न देशों — अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन — को मान्यता देती है। (भारत इसका सदस्य नहीं है)
  • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT), 1996: यह परीक्षण उद्देश्यों के लिये सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है, हालाँकि यह अभी तक लागू नहीं हुई है। (भारत ने CTBT पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं)
  • परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW), 2017: अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत परमाणु हथियारों के उपयोग, स्वामित्व, परीक्षण और स्थानांतरण पर प्रतिबंध लगाती है।

भारत का परमाणु हथियारों के उपयोग पर दृष्टिकोण क्या है?

  • परमाणु परीक्षण: भारत ने परमाणु परीक्षणों पर स्वैच्छिक रोक लागू कर रखी है, लेकिन इसे किसी कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि का हिस्सा नहीं बनाया है।
  • नो फर्स्ट यूज पॉलिसी: भारत नो फर्स्ट यूज पॉलिसी का पालन करता है, जिसे वर्ष 2003 की परमाणु नीति में पुनः पुष्टि की गई थी। भारत विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध बनाए रखता है।
  • अप्रसार के प्रति प्रतिबद्धता: हालाँकि भारत NPT का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, फिर भी वह परमाणु अप्रसार के उद्देश्यों के प्रति समर्पित है।
  • शांतिपूर्ण परमाणु उपयोग: भारत परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देता है — विशेषकर ऊर्जा उत्पादन, चिकित्सा एवं उद्योग के क्षेत्रों में ताकि एक सतत् और कम-कार्बन समाधान प्राप्त किया जा सके। भारत वर्ष 1994 के परमाणु सुरक्षा अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • नागरिक और रणनीतिक आवश्यकताओं में संतुलन: भारत अपने नागरिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और रणनीतिक हथियार भंडार के बीच संतुलन बनाए रखता है। उसका तीन-चरणीय थोरियम-आधारित कार्यक्रम परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।

परमाणु शांति बनाए रखने और परमाणु तनाव को रोकने हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • अप्रसार तंत्र को सुदृढ़ करना: न्यू स्टार्ट जैसी संधियों के माध्यम से सत्यापन योग्य हथियार सीमा समझौतों को नवीनीकृत किया जाना चाहिये और CTBT को लागू करके परमाणु परीक्षणों एवं हथियार प्रतिस्पर्द्धा पर नियंत्रण किया जाना चाहिये।
    • निर्यात नियंत्रण और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) के दिशा-निर्देशों को और मज़बूत किया जाए, ताकि हथियार-स्तरीय सामग्री तथा संवेदनशील तकनीकों का प्रसार रोका जा सके।
  • आकस्मिक या जल्दबाजी में उपयोग को रोकना: कमांड सिस्टम को अधिक सुरक्षित और साइबर सुरक्षा से सुदृढ़ बनाया जाए ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटनात्मक वृद्धि को रोका जा सके।
    • परमाणु बलों को डी-अलर्ट (De-alert) किया जाए तथा निर्णय-प्रक्रिया की समय-सीमा बढ़ाई जाए ताकि तत्काल उपयोग के दबाव को कम किया जा सके और स्थिति का शांतिपूर्वक एवं विवेकपूर्ण मूल्यांकन किया जा सके।
  • हथियार नियंत्रण वार्ताओं को पुनर्जीवित करना: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बीच संयुक्त राष्ट्र (UN) या G20 के ढाँचे के अंतर्गत रणनीतिक वार्ताएँ पुन: शुरू की जानी चाहिये ताकि पारदर्शिता और संयम सुनिश्चित किया जा सके।
  • विश्वास निर्माण उपाय: पारस्परिक बल सूची और निरीक्षण की व्यवस्था लागू की जाए, ताकि वास्तविक हथियार स्तरों का सत्यापन किया जा सके। अस्थायी रूप से हथियार उन्नयन या आपूर्ति पर रोक लगाकर विश्वास बहाली के कदम उठाए जाएँ।
  • निरंतर उच्च-स्तरीय कूटनीति: परमाणु जोखिम में कमी को वैश्विक प्राथमिकता बनाए रखनी चाहिये, संवाद और सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये ताकि सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, बिना परमाणु प्रतिरोध पर निर्भरता के।

निष्कर्ष:

अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षणों को पुनः प्रारंभ करना हथियार नियंत्रण मानदंडों को कमज़ोर कर सकता है, नए हथियार प्रतिस्पर्द्धा का दौर प्रारंभ कर सकता है तथा पर्यावरण और जनस्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है। इसके साथ ही यह कदम वैश्विक अप्रसार प्रयासों को जटिल बना देगा, राजनयिक संबंधों पर दबाव डालेगा और आर्थिक लागतों में वृद्धि करेगा।

दृष्टि मेंस प्रश्न:

प्रश्न. किसी प्रमुख शक्ति द्वारा परमाणु परीक्षणों को पुनः प्रारंभ करने के वैश्विक हथियार नियंत्रण व्यवस्थाओं पर क्या प्रभाव पड़ेंगे, इसकी विवेचना कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT) क्या है?

CTBT (1996) सभी प्रकार के परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है। यह अब तक लागू नहीं हुई है क्योंकि प्रमुख हस्ताक्षरकर्त्ता देशों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका (US) ने इस पर हस्ताक्षर तो किये हैं, लेकिन इसे अनुमोदित नहीं किया है, जिससे इसकी प्रवर्तन क्षमता कमज़ोर हो गई है।

2. परमाणु हथियारों के परीक्षण से जुड़े प्रमुख पर्यावरणीय जोखिम क्या हैं?

परीक्षणों के दौरान सीज़ियम-137 (Caesium-137) जैसे दीर्घकालिक रेडियोधर्मी समस्थानिक उत्सर्जित होते हैं, जो वायु, मृदा और जल को व्यापक रूप से प्रदूषित करते हैं। इससे कैंसर और आनुवंशिक विकारों के खतरे बढ़ जाते हैं।

3. भारत की घोषित परमाणु नीति का प्रमुख स्तंभ क्या है?

भारत नो फर्स्ट यूज पॉलिसी का पालन करता है और विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध बनाए रखता है। यह अपनी नागरिक परमाणु योजनाओं और रणनीतिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करते हुए परमाणु अप्रसार के उद्देश्यों का समर्थन करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’’ के अधीन रखे जाते हैं, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)


मेंस

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)